भारत में कोरोना से हुई मौतों का सही आँकड़ा मिलना क्यों मुश्किल
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Author, फ़ैसल मोहम्मद अली
पदनाम, बीबीसी संवाददाता
इस समय भारत में कोरोना संक्रमण के कुल मामलों की तादाद एक लाख 73 हज़ार से ज़्यादा है जबकि कुल मौतों का आंकड़ा 4900 पार कर चुका है. कुल मौतों की तादाद को लेकर संशय है जिसकी कई वजहें हैं.
शहरी इलाक़ों में तो ख़ैर फिर भी श्मशान, क़ब्रिस्तान वग़ैरह से मौतों के आंकड़ों को जमा किया जा सकता है लेकिन गांवों के मामलों में ये आसान नहीं. अभी तक बहुत सारे लोग खुली जगहों पर और कई बार तो अपनी ज़मीनों में ही अंतिम क्रियाकर्म कर देते हैं.
आम दिनों में भारत में महज़ 22 प्रतिशत मौतों का रजिस्ट्रेशन हो पाता है. जो मृत्यु गांवों या घरों में होती है उनमें अधिकतर में मेडिकल-सर्टिफिकेट मौजूद नहीं होता जिसकी ग़ैर-मौजूदगी में ये पता चलाना बहुत मुश्किल है कि मौत की वजह क्या थी? मसलन, दिल का दौरा, मलेरिया या कुछ और?
उन्हीं मौतों को कोरोना से हुई मौत के तौर पर गिना जा सकता जो अस्पताल में हुई हों, रोगी का टेस्ट रिज़ल्ट पॉज़िटिव आया हो और मौत किसी अन्य कारण से नहीं, बल्कि श्वसन तंत्र के काम करना बंद करने की वजह से हुई हो.
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अलग-अलग मानदंड
कोरोना से हो रही मौतों की तादाद पर हुए विवाद के बाद इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने गाइडलाइन में कुछ तब्दीलियां की हैं. इससे पहले अलग-अलग सूबे इन मामलों को अपने-अपने तरीक़े से दर्ज कर रहे थे.
कोविड-19 के मरीज़ों का इलाज कर रहे डाक्टरों से कहा गया है कि वो उन मामलों में 'कोरोना को मौत के बुनियादी कारण' के रूप में दर्ज करें जिसमें मरीज़ निमोनिया, श्वसन तंत्र के बंद होने या हार्ट फेल होने से मरा हो.
इस नए दिशा-निर्देश के मुताबिक़ चिकित्सक को तीन कॉलम्स भरने होंगें जिसमें मौत की तत्काल वजह, पूर्ववर्ती कारण और दूसरी वजहें भरनी होंगी.
कोरोना संक्रमण के मामले में ज़्यादातर मरने वाले लोग डायबिटीज़, हृदय रोग या किसी अन्य गंभीर बीमारी के पहले से शिकार होते हैं, इस स्थिति को को-मॉर्बिडिटी कहते हैं, यानी कोरोना के अलावा दूसरे अन्य रोग जिनकी वजह से मौत हो सकती हो.
कुल मिलाकर, मेडिकल सर्टिफ़िकेट पर जब तक मृत्यु का बुनियादी कारण कोरना संक्रमण न लिखा हो तब तक उसकी गिनती 'कोरोना डेथ' के तौर पर नहीं होती.
जिन मौतों का मेडिकल सर्टिफिकेट मौजूद भी होता है वहां भी मौत की वजह कई बार साफ़ नहीं हो पाती है. ऐसे मामले भारत के अलावा दूसरे मुल्कों में भी सामने आते रहे हैं.
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गोले प्रत्येक देश में कोरोना वायरस के पुष्ट मामलों की संख्या दर्शाते हैं.
स्रोत: जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियां
आंकड़े कब अपडेट किए गए
5 जुलाई 2022, 1:29 pm IST
मृत्यु का प्रमाणपत्र
यहां ये ध्यान रखने की ज़रूरत है कि मेडिकल सर्टिफिकेट ऑफ़ डेथ और किसी म्यूनिसिपल एरिया से मिला डेथ-सर्टिफिकेट दोनों अलग-अलग चीज़ें हैं.
म्युनिसिपल एरिया सर्टिफ़िकेट सिर्फ़ इस बात का प्रमाण है कि अमुक व्यक्ति की मृत्यू हो गई है और इसकी ज़रूरत अधिकतर जायदाद के बंटवारे, पेंशन, बैंक और उस जैसे दूसरे कामों में होता है लेकिन मेडिकल सर्टिफिकेट ऑफ़ डेथ में ये भी दर्ज होता है कि मौत की वजह क्या थी- चिकित्सकीय आधार पर.
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डाक्टर सिल्विया कर्पगम कहती हैं कि "अधिकांश मामलों में चिकित्सक इस बात के लिए प्रशिक्षित नहीं होते कि वो सटीक तरीक़े से मौत की वजह लिख सकें. अक्सर किस तरीक़े से मौत हुई और मौत की वजह क्या थी इसे लेकर मेडिकल सर्टिफिकेट में भी अक्सर भ्रम क़ायम रहता है".
ऐसी बातें सामने आ रही है कि जो बुजुर्ग हैं या पहले से ही किसी बीमारी से ग्रसित हैं उनके लिए वायरस के जानलेवा होने का ख़तरा और बढ़ जाता है. जब इस तरह की बीमारियों की वजह से जो लोग अस्पताल में भी भर्ती होते हैं तो उनकी मौतों की वजह क्या लिखी जाएगी? मसलन, कोरोना या फिर दिल के दौरे से मौत?
और फिर सवाल उन मौतों का भी है जिनमें कोरोना संक्रमित होने के बावजूद व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं दिखे, टेस्ट नहीं कराया गया और मौत हो गई.
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सरकारें लोगों का मनोबल बनाए रखने के लिए, और स्थिति संभाल न पाने के आरोपों से बचने के लिए मौत की संख्या को कम से कम बतानी चाहती हैं, यह केंद्र और राज्य सरकार, दोनों पर लागू होता है.
स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकारी नियंत्रण भारत में किसी भी बीमारी के फैलाव या मौजूदगी के पूरे आंकड़े सामने नहीं आने देता.
वे कहते हैं कि तमिलनाडु में एक समय मलेरिया से होने वाली मौतों को फीवर डेथ का नाम दे दिया गया और समझ लिया गया कि मलेरिया चेन्नई जैसी जगहों से समाप्त हो गया है. वहीं पश्चिम बंगाल में हैज़ा के मामलों को पहले गैस्ट्रोइंट्राइटिस का मामला बताने का चलन चल पड़ा.
आंकड़ों की विशवसनीयता पर सवाल
कोरोना-काल में पश्चिम बंगाल ने ऐसी मौतों को तय करने के लिए एक ऑडिट-पैनल बनाया गया था जिसे लेकर बहुत विवाद रहा और कहा गया कि कोरोना से हुई कई मौतों को किसी दूसरी बीमारी के खाते में डाल दिया गया.
दिल्ली के मामले में भी कई म्यूनिसिपल क्षेत्रों ने आरोप लगाया है कि उनके इलाक़े में पड़ने वाले श्मशान घाटों और क़ब्रिस्तानों में हुई अंत्येष्टियों की संख्या और अरविंद केजरीवाल सरकार के ज़रिए बताए जा रहे मौत के आंकड़ों में फ़र्क़ है.
अस्पताल से जारी आंकड़ों और दिल्ली स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों में फर्क़ का मामला तो दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री की प्रेस कांफ्रेस में भी उठा और उन्होंने कहा कि ये अस्पताल से आंकड़े भेजने में हुई देरी की वजह से हुआ है.
मौतों के आंकड़ों में फ़र्क़ का मामला पहले भी सामने आता रहा है. साल 2005 में भारत में एचआईवी से जुड़े कारणों से मौतों की जो तादाद दी गई थी वो विश्व स्वास्थ्य संगठन के ज़रिये जारी संख्या से काफ़ी कम थी जबकि मलेरिया के मामले में ये वैश्विक संस्था की तादाद से पांच गुना अधिक थी.
डॉक्टर सिल्विया कहती हैं कि प्राइवेट सेक्टर अब भी सरकार से डेटा शेयर करने को बाध्य नहीं है और कई दफ़ा 'बदनामी' के डर की वजह से इस तरह की संख्या को छुपाया जाता है.
कोरोना-संक्रमण को लेकर जिस तरह की मनोवृति लोगों में फैली है वो भी इसका बड़ा कारण हो सकता है. हालांकि सरकार ने उस दिशा में लोगों में कई माध्यमों से जागरुकता पैदा करने की कोशिश शुरु की है.
लेकिन जानकारों का मानना है कि भारत में दूसरे देशों के मुक़ाबले अभी भी टेस्टिंग का प्रतिशत बहुत कम है और जब तक इसे न बढ़ाया जाएगा तब तक बीमारी के फैलाव को लेकर किसी तरह के सही नतीजे पर पहुंचना बहुत मुश्किल है.
लेकिन कोच्चि में रहने वाले विशेषज्ञ केआर एंथनी कहते हैं कि भारत में कोरोना के कम मामलों को कई दूसरी बातों के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए.
एंथनी कहते हैं, "भारत दूसरे मुल्कों जैसे इटली या अमरीका की तुलना में युवाओं का देश है इसलिए मरने वालों की तादाद कम है, इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. दूसरे भारत में पश्चिमी देशों की तुलना में अब भी बुज़ुर्गों को साथ रखने और उसकी वजह से उनकी बेहतर देखभाल की संस्कृति है जिसका फ़ायदा उसे मिलेगा".
मगर एंथनी मानते हैं कि ग़लत समय पर की गई तालाबंदी और उसके बाद शुरु हुए प्रवासियों के मूवमेंट से नुक़सान पहुंचा है.
जानकार कहते हैं कि ये भी याद रखने की ज़रूरत है कि ये बीमारी एक नए क़िस्म की है, और भारत ही नहीं, तमाम विश्व इसे और इससे होने वाले प्रभाव को समझने की कोशिश कर रहा है.
हाल के दिनों में चीन ने बीमारी से हुई कुल मौतों के अपने आंकड़ों को अपडेट किया और उसमें पचास फ़ीसदी का इज़ाफ़ा दर्ज किया.
इसी तरह न्यूयॉर्क शहर में ही मौतों की संख्या में 3700 से अधिक की बढ़ोतरी की गई क्योंकि इसमें उन लोगों को भी शामिल किया गया जिनकी मौत संभावित तौर पर इस बीमारी से हई थी मगर किसी वजह से उनका टेस्ट नहीं हो पाया था
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क्या कहती है विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के गाइडलाइन के मुताबिक़ अगर किसी को बुख़ार, गले में दर्द, सूखी खांसी और उसके साथ सांस लेने में दिक्क़त हो तो उसे संभावित कोविड-19 पीड़ित समझा जा सकता है. अगर उसने हाल के दिनों में किसी कोरोना से ग्रसित इलाक़े का दौरा किया हो या किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आया हो जो रोग से पीड़ित था, तो उसे भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है.
लक्ष्णों के आधार पर की गई तशख़ीस को पक्का करने के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट करवाना चाहिए.
अगर लैब से रिपोर्ट आने के पहले ही मरीज़ की मौत हो जाती है तो उसकी मौत कोविड-19 से हुई मानी जाएगी. डेथ सर्टिफिकेट में भी यही दर्ज किया जाएगा. इसके लिए एक अंतरराष्ट्रीय कोड भी जारी किया गया है.
अगर मरीज को पहले से भी दूसरी बीमारी है तो इसका उल्लेख किया जाना चाहिए.
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कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है
सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं
कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.
ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.
लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.
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जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.
यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.
कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है?जिलियन गिब्स
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.
इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.
क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है?सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.
फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.
बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
आप कितने दिनों से बीमार हैं?मेडस्टोन से नीता
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.
इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.
अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है?फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.
अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.
क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है?स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.
ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
जिन्हें निमोनिया रह चुका है क्या उनमें कोरोना वायरस के हल्के लक्षण दिखाई देते हैं?कनाडा के मोंट्रियल से मार्जे
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.
लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है?हार्लो से लोरैन स्मिथ
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.
फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.
क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए?मैनचेस्टर से एन हार्डमैन
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.
मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.
फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.
यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.
अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए?लंदन से ग्राहम राइट
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.
सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.
मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा?बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.
यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.
गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.
मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?मीव मैकगोल्डरिक
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.
अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.
ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.
बच्चों के लिए क्या जोखिम है?लंदन से लुइस
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.
ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.
हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.