टिकटॉक वीडियो ने कैसे दो साल से ग़ायब एक शख़्स को परिवार से मिलाया

तेलंगाना के भद्राद्री कोठागुडम के एक परिवार के लिए टिकटॉक का एक वीडियो वरदान साबित हुआ है. इस परिवार का कहना है कि इस वीडियो ने उन्हें दो साल पहले लापता हुए उनके पिता से मिलवा दिया है.

रोद्दम पेद्दीराजू का कहना कि उन्हें लग रहा था कि वो अपने पिता से फिर कभी नहीं मिल पाएंगे, लेकिन एक वीडियो के कारण उनके पिता वापस घर लौट सके.

पंजाब के लुधियाना शहर के एक फ्लाईओवर के नीचे कई बेघर लोग रहते हैं. दो साल पहले 55 साल का एक व्यक्ति इस फ्लाईओवर के नीचे रहने आया.

जब स्थानीय लोगों ने उनसे उनके बारे में सवाल किया तो वो कुछ बता नहीं पाए. बाद में लोगों को पता चला कि वो स्थानीय भाषा नहीं जानते थे. लोगों को ये भी पता चला कि उन्हें सुनने और बोलने में दिक्कत थी.

उनके गांव या परिवार के बारे में स्थानीय लोगों को किसी तरह की कोई जानकारी नहीं थी. न लोगों को उनके नाम का पता था और न ही वो पढ़े लिखे थे कि लिखकर अपनी पहचान के बारे में बता सकते.

ऐसे में वो फ्लाईओवर के नीचे ही रहने लगे और लोगों के दान पर निर्भर करने लगे. इसी तरह दो साल बीत गए.

हाल में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने उनके जैसे लोगों के लिए मुश्किलें पैदा कर दीं. एक दिन अपने डेली रूटीन के तहत पंजाब पुलिस में कॉन्स्टेबल अजैब सिंह फ्लाईओवर के नीचे रहने वाले लोगों को खाना देने गए.

गुरप्रीत नाम के एक व्यक्ति ने इसका वीडियो बनाया और टिकटॉक पर अपलोड कर दिया. यह इस साल मार्च के महीने की बात है.

कॉन्स्टेबल अजैब सिंह कहते हैं कि वो इस तरह के वीडियो से अनजान लोगों की मदद करने के लिए लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते हैं. लेकिन उन्हें कभी यह पता नहीं था यह वीडियो पंजाब से 2000 किलोमीटर दूर तेलंगाना तक पहुंचेगा और इसके ज़रिए वो व्यक्ति अपने परिवार से मिल सकेंगे.

भद्राद्री कोठागुडम ज़िले के पिनापाका गांव के नागेंद्रबाबू ने यह वीडियो देखा. उन्हें लगा कि वीडियो में खाना लेने वाले व्यक्ति को वह पहचानते हैं.

उन्होंने कई बार यह वीडियो देखा और फिर उन्हें एहसास हुआ कि शायद यह उनके मित्र रोद्दम पेद्दीराजू के पिता हैं जो दो साल पहले लापता हो गए थे. उन्होंने यह वीडियो डाउनलोड किया और अपने पेद्दीराजू को भेजा.

उनके मित्र के परिवार ने उन्हें यह बताया कि वीडियो में दिखने वाले शख़्स रोद्दम वेन्कटेश्वरालु हैं जो दो साल पहले लपता हो गए थे.

रोद्दम वेन्कटेश्वरालु पंजाब कैसे पहुंचे?

लापता होने से पहले वेन्कटेश्वरालु अपने गांव में मज़दूरी का काम करते थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी और पांच बच्चे थे.

उनके बेटे पेद्दीराजू ने बीबीसी के अरुण शांडिल्य से बात की और अपने पिता के बारे में बताया.

"27 अप्रैल 2018 को मेरे पिता नज़दीक के एक गांव में काम करने के लिए गए थे. वो हाइवे से एक ट्रक पर सवार हुए और वहीं गाड़ी में सो गए. ट्रक के ड्राइवर को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मेरे पिता गाड़ी में सो रहे हैं. कई किलोमीटर आगे जाने के बाद जब ड्राइवर को मेरे पिता के गाड़ी में होने का पता चला तो वो उन्हें सड़क पर उतारकर चला गया."

"मेरे पिता को नहीं पता था कि कहां जाना है. वो इस उम्मीद में एक और ट्रक पर सवार हो गए कि वो वापस हमारे ज़िले में पहुंच जाएंगे. मेरे पिता ने हाथों के इशारे से इस ट्रक के ड्राइवर को जो समझाया वो उसे समझ नहीं आया, लेकिन उसने मदद करने के ख़याल से उन्हें लिफ्ट दे दी. यह ट्रक उन्हें पंजाब ले गया. ड्राइवर उन्हें लुधियाना में छोड़कर आगे बढ़ गया. उस दिन के बाद से मेरे पिता वहीं फ्लाईओवर के नीचे रहने लगे थे."

"पिता के लापता होने के दो-तीन बाद मैंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई लेकिन उन्हें खोजा नहीं जा सका. हमने उन्हें फिर से देखने की सारी उम्मीद छोड़ दी थी."

"18 मई को मैंने एक वीडियो देखा जिसमें मेरे पिता थे."

पिता को वापिस लाने की कोशिश

देश में कोरोना को लेकर लॉकडाउन था लेकिन पेद्दीराजू किसी तरह पुलिस और प्रशासन की मदद से अपने पिता को वापस लाने पंजाब पहुंचे.

वो कहते हैं, "मैं हैदराबाद में इंडियन इम्यूनोलॉजिकल लिमिटेड नाम की कंपनी में काम करता हूं. वहां मैंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से अपने पिता के बारे में बात की. उनमें से एक अधिकारी लुधियाना में रहने वाले जसप्रीत सिंह को जानते थे. हमने उन्हें मेरे पिता का वीडियो भेजा और उनसे ये पता लगाने के लिए कहा कि यह किसने बनाया है. उन्होंने मेरे पिता को खोज निकाला."

"उन्होंने मेरे पिता के पास पहुंचकर वीडियो कॉल पर मेरी उनसे बात कराई. मेरे पिता ने इशारे से कहा कि मुझे आकर ले जाओ. इसके बाद जब तक मैं लुधियाना नहीं पहुंचा तब तक मेरे पिता जसप्रीत सिंह के साथ ही रहे."

वो कहते हैं, "सबसे पहले मैंने जिस थाने में अपने पिता के लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई थी वहां जाकर यह वीडियो दिखाया. ज़िले के पुलिस अधीक्षक ने लुधियाना पुलिस से संपर्क किया. पुलिस अधिकारियों ने मुझसे कहा कि लॉकडाउन के बाद मैं पंजाब आ जाऊं. लेकिन मैंने कहा कि मैं पिता से मिलने का इंतज़ार नहीं कर सकता. मैंने उनसे मुझे परमिट देने की गुज़ारिश की."

पेद्दीराजू और उनके पिता ने कार से लुधियाना से गांव पिनापाका तक का सफ़र तय किया.

पेद्दीराजू कहते हैं, "यह पहली बार है जब मेरे पिता हमसे इतने वक़्त के लिए दूर रहे हैं. दो साल तक वह केवल रोटी पर ही ज़िंदा थे जिसकी उन्हें आदत नहीं है."

"मैं सबसे पहले उन्हें घर पर बना गर्मागर्म चावल खिलाऊंगा."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)