कोरोना वायरस: 'बदनाम' तब्लीग़ी जमात वरदान साबित होने वाला है?

    • Author, ज़ुबैर अहमद
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

तब्लीग़ी जमात के दर्जनों लोग कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद प्लाज़्मा देने के लिए आगे आए हैं.

ये दिल्ली में हुए तब्लीग़ी जमात के एक जमावड़े के बाद कोरोना पॉज़िटिव पाए गए थे. इन्हें देश के कई हिस्सों में कोरोना फैलाने के लिए ज़िम्मेदार भी ठहराया गया था.

दिल्ली और देश के दो अन्य राज्यों में प्लाज़्मा थेरीपी का क्लिनिकल ट्रायल चल रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ कोरोना वायरस का अब तक कोई इलाज या फिर टीका नहीं बन सका है. कोरोना वायरस के टीके के ऊपर भारत समेत दुनिया के कई देशों में शोध चल रहा है.

प्लाज़्मा थेरिपी को लेकर अब तक जो प्रतिक्रियाएँ मिली हैं, वो काफ़ी उत्साहवर्धक हैं. दिल्ली में तीन अस्पतालों में जमात के सदस्यों से ख़ून लिया जा रहा है. ये सदस्य क़रीब एक महीने तक क्वारंटीन में रह कर बाहर आए हैं.

तमिलनाडु के रहने वाले फ़ारूक़ बासा उन दस जमातियों में से एक हैं जिन्होंने रविवार को प्लाज़्मा डोनेट किया है. उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा कि वो देश के लोगों की मदद कर के ख़ुश हैं.

उन्होंने कहा,"मीडिया ने कोरोना पॉज़िटिव होने के बाद हमारी छवि को नुक़सान पहुँचाया है. लेकिन अल्लाह का रहम है कि अब हमारा यह क़दम (प्लाज़्मा देने का) हमारी छवि को सुधारने में मदद करेगा."

दिल्ली में हुए एक जमावड़े के बाद तब्लीग़ी जमात के लोग उस वक़्त सुर्ख़ियों में आए जब उन पर आरोप लगे कि देश भर में कई जगहों पर उनकी वजह से कोरोना का संक्रमण फैला है. यह आयोजन दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित तब्लीग़ी जमात के मुख्यालय में मार्च के दूसरे और तीसरे हफ्ते में हुआ था.

उनका मुख्यालय तब से ही सील कर दिया गया है. देशभर में 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद वहाँ कई लोग फंस गए थे, जिनमें क़रीब 250 विदेशी नागरिक भी थे. यहाँ जमा हुए जमातियों में हज़ार से ज्यादा लोग कोरोना पॉज़िटिव पाए गए थे और इसके बाद उन्हें क्वारंटीन में भेज दिया गया था.

पुलिस ने जमात के प्रमुख मोहम्मद साद कांधलवी के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज किया था. प्रवर्तन निदेशालय ने उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस भी दर्ज किया है. मौलाना के परिवार वाले और समर्थकों का मानना है कि उनके ऊपर लगे मामले 'पुलिस की कोरी कल्पना' हैं.

मीडिया के एक धड़े ने तब्लीग़ी जमात के सदस्यों को 'वायरस' और 'कोरोना वायरस का वाहक' कहकर संबोधित किया. सोशल मीडिया पर हैशटैग 'कोरोना जिहादी' ट्रेंड करने लगा और कई लोग जमातियों पर जानबूझकर कोरोना फैलाने का आरोप लगाने लगे. लोगों ने आरोप लगाया कि जमातियों ने जानबूझकर भीड़ में जाकर दूसरों को संक्रमित संक्रमित किया है. उनकी तुलना आत्मघाती बम दस्ते से की गई. कई दिनों तक सरकारी की ओर से कोरोना संक्रमण के हर रोज़ के अपडेट में तब्लीग़ियों की ओर से फैलाए गए कोरोना की अलग से जानकारी दी गई. इसके बाद देश के कई हिस्सों से मुसलमानों को प्रताड़ित करने की ख़बरें आई थीं.

तब्लीग़ी जमात एक वैश्विक संगठन है जिसकी पश्चिम के देशों में मज़बूत मौजूदगी है. 1926 में इसकी स्थापना हुई थी. उनके ऊपर लगातार होने वाले इन हमलों की प्रतिक्रिया में संयुक्त अरब अमीरात ने पिछले हफ्ते कड़ा एतराज़ जताया है. अरब के कई प्रभावी लोगों ने भारत के धर्मनिरपेक्षता पर सोशल मीडिया पर सवाल खड़े किए हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर एकजुटता की अपील की और कहा कि वायरस का कोई धर्म नहीं होता.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को कोरोना को लेकर ब्रीफ़िंग देने के दौरान एकता की ज़रूरत पर बल दिया है. जमात के लोगों की ओर से प्लाज़्मा देने की ख़बर आने से पहले उन्होंने इस ब्रीफ़िंग के दौरान कहा, "मुझे एक ख्याल आया कि अगर ऐसा हो कि कल को कोई हिंदू मरीज़ किसी मुसलमान के दिए प्लाज़्मा से ठीक हो जाए या फिर कोई मुसलमान मरीज़ हिंदू के दिए प्लाज़्मा से ठीक हो जाए. जब भगवान ने दुनिया बनाई तो उसने सिर्फ़ इंसान बनाया. सभी इंसान के दो आँख और एक शरीर होता है. सभी का ख़ून लाल होता है. भगवान ने हमारे बीच दीवार नहीं खड़ी की है."

रविवार को सबसे पहले अनस सईद मौलाना के अपील पर प्लाज़्मा देने आए थे. वो कहते हैं, "हमारे लिए पिछले कुछ हफ्ते मुश्किल भरे रहे हैं, जब हर कोई हमें कोरोना फैलाने के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहा था. हमारा क्वारंटीन अब पूरा हो चुका है. मौलान ने प्लाज़्मा देने की अपील की है इसलिए हमने इसे देने का फ़ैसला किया है."

दूसरे राज्यों में ऐसे और भी हैं जो प्लाज़्मा देने के लिए आगे आए हैं. जमात के सदस्य बरकत ख़लील पिछले महीने अहमदाबाद में अपने परिवार के आठ सदस्यों के साथ कोरोना पॉज़िटिव पाए गए थे.

वो बताते हैं, "हममें से चार अब पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं और हम जल्दी ही प्लाज़्मा डोनेट करने जा रहे हैं." लेकिन वो जमात के लोगों के साथ जैसा व्यवहार हुआ है, उसे लेकर दुखी है. उनका मानना है, "हमारे समाज को राजनीतिक रूप से शिकार बनाया गया है."

डॉक्टर शोएब अली जमात से नज़दीकी रिश्ता रखते हैं. उन्हें दिल्ली में जमात के ठीक हुए सदस्यों को प्लाज़्मा देने के लिए प्रेरित करने का ज़िम्मा सौंपा गया है.

उन्होंने बीबीसी को बताया कि उन्हें ज़्यादा कोशिशें नहीं करनी पड़ी. उन्होंने बताया, "जो पिछले महीने कोरोना पॉज़िटिव पाए गए थे और अब पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं, वो सब प्लाज़्मा देने के लिए तैयार हैं. मेरा मानना है कि अगले कुछ दिनों में दिल्ली में 300-400 लोग प्लाज़्मा देंगे."

डॉक्टर शोएब अली का कहना है कि जमात के लोग एक नागरिक होने के नाते अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं. उन्होंने इसे डैमेज कंट्रोल मानने से इंकार किया. वो कहते हैं, "अगर पिछले महीने जमात को बदनाम नहीं किया जाता तब भी ये लोग प्लाज़्मा देने के लिए आगे आते क्योंकि ये लोग ख़ुदा से डरने वाले लोग हैं और उन्हें बलिदान देना सिखाया गया है."

डॉक्टर शोएब अली का मानना है कि प्लाज़्मा देने की प्रक्रिया को पूरे होने में कई दिन लगेंगे क्योंकि दिल्ली के अस्पतालों में सुविधाओं की कमी है. उनका कहना है कि आठ से दस लोग रविवार को प्लाज़्मा देने पहुँचे थे और कई लोग देने वालों की सूची में शामिल थे. सोमवार को 60 लोगों ने अपना प्लाज़्मा दिया है.

केजरीवाल ने अपने बयान में एक कोरोना मरीज़ के प्लाज़्मा थेरीपी से ठीक होने की बात कही है.

लखनऊ के सरकारी अस्पताल के डॉक्टर तौसिफ़ ख़ान देश के पहले प्लाज़्मा डोनर हैं. वो उस वक़्त संक्रमित हो गए थे जब मार्च में एक मरीज़ का इलाज कर रहे थे. उन्होंने बताया कि उन्होंने जिसे प्लाज़्मा दिया है वो मरीज़ ठीक हो रहा है.

वो बताते हैं, "हम कोरोना के संक्रमण से सिर्फ़ गंभीर रूप से बीमार लोगों को ही प्लाज़्मा थेरीपी देते हैं. ऐसे मरीज़ों के शरीर में वायरस के ख़िलाफ़ एंटीबॉडी तैयार नहीं हो रहा होता है. इसकी वजह डायबिटीज और हाइपरटेंशन होती है."

प्लाज़्मा देने की प्रक्रिया के बारे में वो बताते हैं, "यह साधारण प्रक्रिया है. कोरोना के मरीज़ को इसके लिए दो बार कोरोना निगेटिव होने की ज़रूरत होती है. इसके बाद उन्हें 14 दिनों के क्वारंटीन में भेजा जाता है. अगर वो प्लाज़्मा देना चाहते हैं तो उन्हें अस्पताल जाकर आरटी पीसीआर टेस्ट कराना होता है. अगर इसका परिणाम निगेटिव आता है तो वे प्लाज़्मा दे सकते हैं."

वो बताते हैं कि ख़ून में 55 फ़ीसदी प्लाज़्मा होता है और इसका नब्बे फ़ीसदी हिस्सा पानी होता है. केवल दस फ़ीसदी ही इसमें एंटीबॉडी होता है. सिर्फ़ स्वस्थ्य प्लाज़्मा ही ज़रूरमंदों को दिया जाता है.

वो कहते हैं, "हम 500 मिलीलीटर प्लाज़्मा निकालते हैं जिससे कम से कम एक मरीज़ को बचाया जा सकता है."

प्लाज़्मा थेरीपी अभी भी ट्रायल स्टेज के दौर से गुज़र रहा है, जो दिल्ली, उत्तर प्रदेश और कुछ दूसरे राज्यों में चल रहा है. कई भारतीय राज्यों में इस थेरेपी से इलाज शुरू करने के लिए सरकार से अनुमति मिलने का इंतज़ार है.

यह अब तक साफ़ तौर पर नहीं पता है कि तब्लीग़ी जमात के सदस्यों से मिले प्लाज़्मा को कितने कोरोना के मरीज़ों को दिया गया है. डॉक्टरों का कहना है कि प्लाज़्मा को माइनस 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर साल भर तक रखा जा सकता है और माइनस 70 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर पाँच साल तक रखा जा सकता है. भविष्य में गंभीर मरीज़ों की संख्या बढ़ने के साथ इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

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