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कोरोना वायरस: बिना लक्षण वाला कोरोना भारत के लिए कितना ख़तरनाक ?
- Author, सरोज सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
दिल्ली में 20 अप्रैल से लॉकडाउन 2 में मिलने वाली छूट, फ़िलहाल नहीं मिल रही है. इसके पीछे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कई कारण गिनाए हैं. उनमें से एक है - दिल्ली में बिना लक्षण वाले कोरोना मरीज़ों का मिलना.
जी हां, आपने सही पढ़ा. बिना लक्षण वाले कोरोना मरीज़. ये वो मरीज़ हैं जिनमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं होता फिर भी ये कोरोना पॉज़िटिव होते हैं.
रविवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि ऐसे मरीज़ों ने उनकी चिंता और ज़्यादा बढ़ा दी है. प्रेस कॉंफ्रेंस में संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा, "दिल्ली ने कोरना टेस्ट ज़्यादा करना शुरू किया है. एक दिन में हुए 736 टेस्ट रिपोर्ट में से 186 लोग कोरोना पॉज़िटिव निकले. ये सभी 'एसिम्प्टोमैटिक' मामले हैं यानी इनमें कोरोना के कोई लक्षण मौजूद नहीं थे. किसी को बुख़ार, खासी, सांस की शिकायत नहीं थी. उनको पता ही नहीं था कि वो कोरोना लेकर घूम रहे हैं. ये और भी ख़तरनाक हैं. कोरोना फैल चुका है और किसी को पता भी नहीं चलता कि वो कोरोना के शिकार हो चुके हैं."
ऐसे मामले केवल दिल्ली ही नहीं देश के दूसरे राज्यों से भी सामने आ रहे हैं.
तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, असम, राजस्थान जैसे दूसरे राज्यों ने भी इस तरह के मामले सामने आने की बात स्वीकार की है.
इस लिहाज़ से भारत में एसिम्प्टोमैटिक (बिना लक्षण) कोरोना मामले डाक्टरों के लिए नया सिर दर्द बन गए हैं.
संक्रमण कब-कब फैल सकता है?
इसके बारे में ज़्यादा जानकारी दें, उससे पहले ये जानना ज़रूरी है कि कोरोना संक्रमण किन रास्तों से फैल सकता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ कोरोना संक्रमण फैलने के तीन रास्ते हो सकते हैं.
1. सिम्प्टोमैटिक- वो लोग जिनमें कोरोना के लक्षण देखने को मिले और फिर उन्होंने दूसरों को इसे फैलाया. ये लोग लक्षण दिखने के पहले तीन दिन में लोगों को कोरोना फैला सकते हैं.
2. प्री सिम्प्टोमैटिक - वायरस के संक्रणम फैलाने और लक्षण दिखने के बीच भी कोरोना का संक्रमण फैल सकता है. इसकी समय सीमा 14 दिन की होती है, जो इस वायरस का इंक्यूबेशन पीरियड भी है. इनमें सीधे तौर पर कोरोना के लक्षण नहीं दिखते. लेकिन हल्का बुख़ार, बदन दर्द जैसे लक्षण शुरुआती दिनों में दिखते हैं.
3. एसिम्प्टोमैटिक - जिनमें किसी तरह के लक्षण नहीं होते लेकिन वो कोरोना पॉज़िटिव होते हैं और संक्रमण फैला सकते है.
दुनिया के बाक़ी देशों में भी एसिम्प्टोमैटिक मामले देखने को मिले हैं, लेकिन भारत में इनकी संख्या थोड़ी ज़्यादा है.
ऐसे मरीज़ चुनौती क्यों है?
बेंगलुरू के राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के संस्थान के डॉ सी. नागराज का दावा है कि दुनिया भर में इस तरह के एसिम्प्टोमैटिक कोरोना पॉज़िटिव मामले तक़रीबन 50 फ़ीसदी के आस-पास हैं.
अपने संस्थान के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके यहां 12 मरीज़ों में से 5 एसिम्प्टोमैटिक मरीज़ हैं, यानी लगभग 40 फीसदी.
डॉ. नागराज के मुताबिक़ इनमें से सबसे अहम बात जो ग़ौर करने वाली है वो है इन मरीज़ों की उम्र. उनके पाँच में से तीन मरीज़ 30-40 साल की उम्र के हैं, चौथा मरीज़ 13 साल का है और पाँचवे मरीज़ की उम्र 50 से ऊपर की है.
दिल्ली में पाए गए एसिम्प्टोमैटिक कोरोना मरीज़ों की उम्र की प्रोफ़ाइल की जानकारी सामने नहीं आई है.
हालांकि केन्द्र सरकार के मुताबिक़ एसिम्प्टोमैटिक कोरोना मरीज़ों की संख्या विश्व में बहुत ज़्यादा नहीं है. लेकिन सरकार इसे चुनौती ज़रूर मानती है.
केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के मुताबिक़ हमें इस तरह के मामलों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि जो लोग हॉटस्पॉट एरिया में रह रहे हैं और बुज़ुर्ग हैं, हाई रिस्क में हैं, उन्हें अपने टेस्ट कराने चाहिए. उसी तरह से जो लोग एसिम्प्टोमैटिक हैं लेकिन कोरोना पॉज़िटिव लोगों के सम्पर्क में आए हैं, उन्हें ख़ुद को सेल्फ़ आईसोलेट करना चाहिए. जरूरत पड़े तो हमसे सम्पर्क करें, उन्हें अस्पताल में रखने की ज़रूरत होगी तो हम वो भी सुविधा उन्हें देंगे.
भारत के लिए चिंता क्यों?
डॉ. नागराज के मुताबिक़ भारत में युवा लोगों की जनसंख्या बाक़ी देशों के मुक़ाबले ज़्यादा है, और उन्हीं को कोरोना संक्रमण ज़्यादा हो रहा है. यही वजह है कि भारत को इस नए ट्रेंड से चिंतित होने की ज़रूरत है.
4 अप्रैल को केंद्र सरकार की तरफ़ से जारी आंकड़े के मुताबिक़ देश में 20 से 49 की उम्र के बीच के 41.9 फ़ीसदी लोग कोरोना पॉज़िटिव हैं. 41 से60 साल की उम्र वाले तक़रीबन 32.8 फ़ीसदी लोग कोरोना पॉज़िटिव हैं.
इन आकड़ों से साफ़ है कि देश में युवा ही कोरोना के संक्रमण की चपेट में ज़्यादा आ रहे हैं.
डॉ. नागराज के मुताबिक़ इसके पीछे की एक वजह ये भी हो सकती है कि भारतीय की इम्यून सिस्टम दूसरे देश के नागरिकों के मुक़ाबले ज़्यादा बेहतर है, इसलिए भारतीयों में कोरोना के लक्षण नहीं दिखते और फिर भी कोरोना के मरीज़ होते हैं.
डॉ. नागराज की इस बात से सवाई मानसिंह अस्पताल के एमएस डॉ एमएस मीणा भी इत्तेफ़ाक़ रखते हैं. उनके मुताबिक़ भारतीयों का रहन-सहन, भोगौलिक स्थितियां इसके लिए ज़िम्मेदार है. हमारा प्रदेश गर्म है, हम गर्म खाना खाते हैं, गर्म पेय पीते हैं, इस वजह से हमारे यहां एसिम्प्टोमैटिक मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं. उनके मुताबिक़ कोरोना वायरस हीट सेंसेटिव है.
डॉ. मीणा का मानना है कि हमारे यहां युवाओं में ये बीमारी ज़्यादा फैल रही है और लोग ज़्यादा ठीक भी हो रहे हैं. ये सब इस बात का सबूत है कि भारतीयों का इम्यून सिस्टम ज़्यादा बेहतर तरीक़े से काम करता है और इसलिए कोरोना से होने वाली मौत भी भारत में इस वक़्त कम है.
एसिम्प्टोमैटिक मामले ज़्यादा ख़तरनाक हैं
बिना लक्षण वाले कोरोना मरीज़ो के लिए डॉ. मीणा 'दो मुंही' तलवार कहते हैं. उनके मुताबिक़ जब किसी मरीज़ में कोई लक्षण नहीं होगा, तो वो अपना टेस्ट भी नहीं कराएंगे, तो इन्हें पता ही नहीं चलेगा और ये कोरोना फैलाते चले जाएंगे.
डॉ. मीणा का कहना है कि जो भी आदमी बाहर जाता है, उसे टेस्ट कराना चाहिए. जैसे ही लोगों को पता चलता है कि जिनके सम्पर्क में आए हैं वो कोरोना पॉज़िटिव है, उनको ख़ुद आगे आकर टेस्ट कराना चाहिए.
डॉ.नागराज और डॉ. मीणा दोनों का कहना है कि रैपिड टेस्टिंग और पूल टेस्टिंग से ऐसे मामलों को पकड़ने में थोड़ी मदद ज़रूर मिलेगी. लेकिन युवा लोगों को भी ख़ुद का ज़्यादा ख्याल रखने की ज़रूरत हैं
क्या कहती है रिसर्च?
मेडिकल जरनल नेचर मेडिसिन में 15 अप्रैल को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड19 का मरीज़ लक्षण दिखने के 2-3 दिन पहले ही लोगों को संक्रमित करना शुरू कर सकता है. उन्होंने 44 फीसदी मामलों में ऐसा पाया है. पहला लक्षण दिखने के बाद, दूसरों को संक्रमित करने की क्षमता भी पहले के मुक़ाबले कम होती है.
नेचर मेडिसिन में प्रकाशित इस रिपोर्ट में 94 मरीज़ों के टेस्ट सैम्पल लिए गए थे. उन पर की गई शोध से ही उन्हें इस बात का पता चला.
डॉ नागराज के मुताबिक़ भारत को एसिम्प्टोमैटिक मामलों पर अपनी अलग रिसर्च भी करनी चाहिए ताकि इससे ठोस जानकारी निकाल कर उस पर सरकार अमल कर सके. इससे ये भी पता चल पाएगा, कि हमें कोरोना हॉटस्पॉट के बाहर भी ऐसे एसिम्प्टोमैटिक लोगों के टेस्ट करने की ज़रूरत है या नहीं.
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