कोरोना वायरस: बच्चों से दूर कैसे फ़र्ज़ निभा रही हैं ये महिला पुलिसकर्मी

कॉन्स्टेबल साधना यादव
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    • Author, कमलेश
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

भारत में कोरोनावायरस के मामले

17656

कुल मामले

2842

जो स्वस्थ हुए

559

मौतें

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

अपनी ड्यूटी और परिवार के बीच संतुलन बैठाना हमेशा से महिला पुलिसकर्मियों के लिए एक चुनौती रही है लेकिन कोरोना संक्रमण के दौरान ये चुनौती और बढ़ गई है.

ख़ासकर उन महिला पुलिसकर्मियों के लिए जिनके बच्चे रोज़ उनके आने की राह देखते हैं और मां के गले लगना चाहते हैं.

लेकिन, अब वो चाहकर भी अपने बच्चे को गले लगाकर चूम नहीं सकतीं, उन्हें प्यार नहीं कर सकतीं. यहां तक कि उन्हें अपनी आंखों के तारे को आंखों से ही दूर करना पड़ा है. फिर भी वो बिना किसी शिकन के दिन-रात ड्यूटी निभा रही हैं.

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बच्चे को भेजा दूर

कॉन्स्टेबल साधना यादव ने अपनी चार साल की बच्ची को ख़ुद से दूर अपनी मां के पास भेज दिया है. उन्हें डर है कि कहीं उनकी बेटी को उनके ज़रिए संक्रमण ना हो जाए.

साधना यादव की पहले लखनऊ में पोस्टिंग थी लेकिन कुछ समय पहले ही उन्हें डिबियापुर थाने में भेजा गया है. डिबियापुर थाना औरैया ज़िले के अंतर्गत आता है.

औरैया ज़िले में कोरोना वायरसे के आठ मामले सामने आ चुके हैं. यहां तब्लीग़ी जमात से जुड़े मामले भी पाए गए थे. ऐसे में कोरोना वायरस को लेकर पूरे ज़िले में ख़ासतौर पर सावधानी बरती जा रही है.

पहले साधना यादव की बेटी भी उनके साथ रहती थी लेकिन जब से कोरोना संक्रमण के दौर में उनकी ड्यूटी लगी है उन्होंने बच्ची को अपनी मां के पास भेज दिया है.

साधना कहती हैं, “ऐसे समय पर बच्चों को अपने साथ रखना ठीक नहीं है. छोटी बच्ची को मेरी ज़रूरत है इसलिए मैं उसे अपने साथ ले आई थी लेकिन इस सबके बीच मैं उसका ध्यान नहीं रख सकती. अकेली रह रही हूं तो बहुत ज़्यादा ध्यान नहीं देना पड़ता. जब सब ठीक हो जाएगा तो छुट्टी लेकर बच्ची से मिलने जाऊंगी.”

साधना यादव को भी कई बार फ़ील्ड में जाना होता है. उन्होंने बताया कि कई लोग राशन और खाना बांटना चाहते हैं लेकिन डरते हैं कि कहीं बांटने से उन्हें ही कोरोना ना हो जाए. इसलिए वो लोग थाने में ही सामान देकर चले जाते हैं. फिर हम उस सामान को ज़रूरतमंदों में बांटते हैं.

साधना यादव की तरह ही कई अन्य महिला पुलिसकर्मी भी इन्हीं चुनौतियों से निपट रही हैं.

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बच्चे को गले भी नहीं लगा पाती

कॉन्स्टेबल गीतांजलि भी डिबियापुर थाने में तैनात हैं. गीतांजली को लोगों की कॉल आने पर उनकी मदद के लिए जाना पड़ता है. कई बार राशन और खाना बांटने की ज़िम्मेदारी भी दी जाती है.

उनका दो साल का बेटा है जो घर पर उनकी मां के साथ रहता है. घर लौटते ही उनका बच्चा मां की गोद में आने के लिए दौड़ता है लेकिन गीतांजली को पीछे हटना पड़ता है.

कॉन्स्टेबल गीतांजलि
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गीतांजलि बताती हैं, “जब पहले घर जाती थी तो उसे सीधे गोद में उठा लेती थी लेकिन अब ऐसा नहीं कर पाती. शुरुआत में तो जैसे ही गेट खोलती थी तो वो मेरे पास दौड़ता हुआ आता था लेकिन मैं उससे दूर चली जाती थी. वो रोता भी था लेकिन मां उसे संभालती थीं.”

“हालांकि, अब वो भी समझ गया है और मुझे देखकर बोलता है कि मम्मा हैंडवॉश. वो रोज़ मुझे घर पर आकर सीधे वॉशरूम में जाते देखता है. घर में मां हैं तो वो बच्चे को देख लेती हैं और मैं जितना हो सके दूरी बनाकर रखती हूं. उसके पापा भी यहां पर नहीं है इसलिए उसे मेरी ज़रूरत और ज़्यादा है. खैर फिर भी काम तो अपनी जगह है.”

18 महीने की बच्ची को क्या समझाऊं

नीलम दिल्ली के ग्रेटर कैलाश थाने में कॉन्स्टेबल हैं. वो सुबह नौ बजे थाने पर पहुंचती हैं और शाम को सात बजे तक निकलती हैं. नीलम आजकल इलाक़े के लोगों के लिए थाने में मास्क बना रही हैं और फिर उसे मुफ़्त में लोगों को बांटती हैं.

नीलम के घर में 18 महीने की एक बच्ची, 11 साल का बेटा, पति और सास-ससुर रहते हैं जिनकी उम्र 80 साल तक है. नीलम घर से बाहर जाती हैं तो ऐसे में सबसे ज़्यादा ख़तरा उन्हीं को है. इसलिए वो अपने घरवालों से दूरी बनाते हुए अपनी ज़िम्मेदारियां निभा रही हैं.

कॉन्स्टेबल नीलम
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नीलम बताती हैं, “जब से कोरोना वायरस की ड्यूटी लगी है तो हमारी छुट्टियां कैंसल हो गई हैं. अब मेरा बेटा बार-बार बोलता था कि आप छुट्टी कब लोगे. हमारे साथ कब रहोगे. हालांकि, अब वो समझ गया है कि मेरा काम कितना ज़रूरी है. घर आती हूं तो एक भी सामान नहीं छूती. बच्ची तो पापा के पास ही रहती है. पति दरवाज़ा खुला छोड़ देते हैं और गर्म पानी लगा देते हैं. मैं बिना कुछ छुए सीधे बाथरूम में जाती हूं नहाने के बाद ही कुछ और काम करती हूं.”

वह बताती हैं, “बच्ची के पास जाने में डर लगता है क्योंकि मैं दिनभर बाहर रहकर आई हूं. लेकिन, फिर भी आप छोटे बच्चे को कितना समझा सकते हैं. मैं घर पर रहती हूं तो मुझसे ही खाना खाती है. मेरे पास सोने के लिए कहती है. सास-ससुर बूढ़े हैं,नतो उनके लिए मुझे अलग डर रहता है. हालांकि, इस सबके बावजूद जब ड्यूटी पर होते हैं तो ये सब जैसे भूल जाते हैं.”

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घर लौटकर आने पर मुश्किल

सब इंस्पेक्टर नीरज त्यागी का ज़्यादातर काम फ़ील्ड में होता है. उन्हें आवाजाही से लेकर, खाने का सामान बांटने और मदद के लिए आने वाली कॉल पर बाहर जाना होता है. वह औरैया ज़िले के डिबियापुर थाने में तैनात हैं. वह रोज़ सुबह आठ बजे अपने 11 साल के बेटे को घर पर छोड़ ड्यूटी के लिए निकल पड़ती हैं.

नीरज बताती हैं, “आजकल ज़िम्मेदारी काफ़ी बढ़ गई है. सुबह जल्दी ही निकलना पड़ता है और फिर देर से लौटना होता है. हमारी दिनचर्या पूरी तरह बदल गई है. बच्चे के लिए सुबह किसी तरह खाना बनाती हूं और फिर निकल जाती हूं. कई बार तो खाना भी नहीं बना पाती. वो भूखा ही रहता है या कुछ हल्का-फुल्का खा लेता है.”

“सबसे ज़्यादा मुश्किल तो घर लौटकर होती है. आप दो पल बच्चे के साथ आराम से बैठ नहीं सकते. सबसे पहले सीधे नहाने जाती हूं, अपनी यूनिफॉर्म धोती हूं. तब बच्चे के पास जाती हूं और उसके लिए खाना बनाती हूं. जैसे कि मेरा काम फ़ील्ड में है तो पता नहीं कब संक्रमित हो जाएं इसलिए कुछ समय की तकलीफ़ सहकर सावधानी रखना ज़्यादा बेहतर समझती हूँ.”

भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.

राज्य या केंद्र शासित प्रदेश कुल मामले जो स्वस्थ हुए मौतें
महाराष्ट्र 1351153 1049947 35751
आंध्र प्रदेश 681161 612300 5745
तमिलनाडु 586397 530708 9383
कर्नाटक 582458 469750 8641
उत्तराखंड 390875 331270 5652
गोवा 273098 240703 5272
पश्चिम बंगाल 250580 219844 4837
ओडिशा 212609 177585 866
तेलंगाना 189283 158690 1116
बिहार 180032 166188 892
केरल 179923 121264 698
असम 173629 142297 667
हरियाणा 134623 114576 3431
राजस्थान 130971 109472 1456
हिमाचल प्रदेश 125412 108411 1331
मध्य प्रदेश 124166 100012 2242
पंजाब 111375 90345 3284
छत्तीसगढ़ 108458 74537 877
झारखंड 81417 68603 688
उत्तर प्रदेश 47502 36646 580
गुजरात 32396 27072 407
पुडुचेरी 26685 21156 515
जम्मू और कश्मीर 14457 10607 175
चंडीगढ़ 11678 9325 153
मणिपुर 10477 7982 64
लद्दाख 4152 3064 58
अंडमान निकोबार द्वीप समूह 3803 3582 53
दिल्ली 3015 2836 2
मिज़ोरम 1958 1459 0

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

डर और पराधबोध होता है

दिल्ली के पंजाबी बाग थाने में एएसआई के तौर पर काम करने वाली अंजू बाला इस वक्त ड्यूटी ऑफिसर की ज़िम्मेदारी संभाल रही हैं और ज़रूरत पड़ने पर फ़ील्ड में भी जाती हैं.

उनके 20-25 साल के तीन बच्चे हैं जिनके साथ आजकल वो जितना हो सके दूरी बनाकर रह रही हैं. साथ ही वो एक अलग ही तरह के डर और अपराधबोध से गुज़र रही हैं.

अंजू बाला बताती हैं, “जहां पहले घर जाते ही बच्चों से गले मिला करती थी वहीं अब उनके पास तक नहीं बैठती. मेरे घर पहुंचने पर बच्चे दरवाज़ा पूरा खोलकर रखते हैं ताकि मुझे किसी भी चीज़ को छूना ना पड़े. उसके बाद नहाकर, अपनी वर्दी धोकर ही रसोई में जाती हूं. मैं घर में थोड़ा अलग-थलग रहती हूं ताकि मेरे घरवालों को किसी भी तरह का ख़तरा ना हो.”

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अंजू बाला का कहना है कि एक डर हमेशा बना रहता है. जैसे उनकी वजह से उनके बच्चों को दिक्कत झेलनी पड़ रही है. वह कहती हैं, “सभी घर पर रहें तो अलग बात होती है लेकिन इस वक़्त मैं ही हूं जो बाहर जा रही हूं. तीनों बच्चे घर में ही रहते हैं. मुझे लगता है कि अगर उन्हें संक्रमण हुआ तो उसका कारण मैं ही बनूंगी. फिर ये कुछ दिनों की बात भी नहीं. पता नहीं कब तक ऐसा करना है.”

ऐसे में अंजू बाला घर ही नहीं दफ़्तर में भी पूरी सावधानी बरतती हैं. रोज़ सुबह सैनिटाइजर से ऑफिस का सामान साफ करती हैं और अब सिविल ड्रेस में घर से नहीं आतीं. कम से कम कपड़े इस्तेमाल हों इसलिए आते-जाते वक़्त वर्दी ही पहनती हैं.

अमूमन महिलाओं की शारीरिक और मानसिक मज़बूती को संदेह की निगाह से देखा जाता है. उन्हें भावनात्मक रूप से कमज़ोर मानकर महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों से भी वंचित किया जाता रहा है.

लेकिन, आज कोरोना वायरस से लड़ाई में महिला पुलिसकर्मी इन्हीं धारणाओं को ग़लत साबित कर रही हैं. वो अपनी शारीरिक ही नहीं मानसिक मज़बूती का भी परिचय दे रही हैं.

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