कोरोना वायरस: योगी के 'आगरा मॉडल' की क्यों हो रही चर्चा

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- Author, सरोज सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
देश भर में कोरोना संक्रमण के सबसे अधिक मामले जिन 10 राज्यों में है, उनमें से उत्तर प्रदेश एक है. यहां प्रति 10 लाख लोगों पर टेस्टिंग की संख्या भी बाक़ी राज्यों के मुक़ाबले कम है.
बावजूद इसके कोरोना संक्रमण के मामलों से निपटने लिए उत्तर प्रदेश के एक ज़िले की बहुत चर्चा है.
ये ज़िला है - ताज नगरी आगरा. फ़िलहाल आगरा में आज भी कोविड-19 के 138 मरीज़ हैं. लेकिन कोई भी केस क्रिटिकल नहीं है.
शनिवार को केंद्र सरकार की तरफ से होने वाले प्रेस कांफ्रेस में 'आगरा मॉडल' की तारीफ़ की गई, जिसके बाद बाक़ी राज्यों में भी इसे अमल में लाने का सुझाव दिया गया.
जिन क्लस्टर में कोरोना संक्रमण ज़्यादा पाए गए हैं उनके लिए केंद्र सरकार ने एक कंटेनमेंट प्लान बनाया है. आगरा ने उसी प्लान को अपनाया और उन्हें अच्छी सफलता मिली है.
केंद्र सरकार का दावा है कि आगरा देश का पहला क्लस्टर हैं, जहां इसे लागू किया गया है.
आगरा में कोरोना का पहला मामला
आगरा में कोरोना संक्रमण से निपटने का ये मॉडल पिछले डेढ़ महीने से चल रहा है.
आगरा में शुरुआती दिनों में ही एक साथ कोरोना संक्रमण के कई मामले मिले थे.
बीबीसी से बात करते हुए आगरा के ज़िलाधिकारी प्रभु एन सिंह ने बताया कि उन्होंने पहले दिन से ही काम शुरू किया और इसका फ़ायदा भी मिला.
आगरा में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 2 मार्च को आया.
यहां विश्व प्रसिद्ध ताज महल है, जिसे देखने के लिए देश विदेश से कई सैलानी आते हैं. पहला मामला सैलानियों के एक ग्रुप के साथ ही यहां पहुंचा था, जिसका टेस्ट जयपुर में हो चुका था.
पूरे ग्रुप में तकरीबन 19 लोग थे. रिपोर्ट में ग्रुप के एक व्यक्ति को कोरोना संक्रमित होने की बात सामने आई. उसके बाद चुनौती थी ग्रुप के बाक़ी लोगों को टेस्ट करना, जहां वो गए और जिन लोगों के संपर्क में आए उनको ढूंढना और फिर उनका इलाज.
इसके अलावा दो मार्च को ही पता चला कि आगरा के दो निवासी इटली से लौटे हैं और उनमें से दो को संक्रमण है. फिर परिवार के बाक़ी 5 लोगों का टेस्ट कराया गया, और वो भी पॉजिटिव पाए गए.
प्रभु सिंह के मुताबिक़ एक ही दिन में उनके पास 19 विदेशी और 7 देसी लोगों के कोरोना संक्रमण का मामला सामने आ गया था, जो उस वक़्त के हिसाब से बहुत ही बड़ा चैलेंज था.

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आगरा मॉडल है क्या?
ज़िला प्रशासन ने इस चैलेंज को स्वीकार करते हुए केंद्र, WHO और राज्य स्तर की टीमों के साथ मिल कर काम किया. समय रहते उन्हें सबका सहयोग मिला. यही वजह है कि राज्य में इस वक्त कोई भी कोरोना का मरीज़ क्रिटिकल स्थिति में नहीं है.
मरीज़ों का पता चलते ही, डीएम ने सबसे पहले आगरा के जिस होटल में विदेशी सैलानी रुके थे उसको क्वारंटीन किया. उस होटल के तकरीबन 160 स्टॉफ़ को भी निगरानी में रखा गया. आगरा के डीएम अपने इस कदम को "फ़र्स्ट मूवर एडवांटेज" के तौर पर देखते हैं यानी पहले पहल हरक़त में आने का उन्हें फ़ायदा मिला.

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पूरे इलाक़े को तीन ज़ोन में बांटा
यहीं से शुरुआत हुई 'आगरा मॉडल' की. जिस भी जगह पर एक साथ कोरोना संक्रमण के कई मामले पाए जाते हैं, केंद्र सरकार के दिशा निर्देश के मुताबिक़ उसे क्लस्टर के तौर पर देखना चाहिए. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक प्लान बनाया है - जिसे कंटेनमेंट प्लान कहा जाता है.
इस प्लान के तहत पूरे क्लस्टर को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. आगरा में भी वही किया गया.
1. बफ़र ज़ोन - इसके प्लान के तहत 5 किलोमीटर को बफ़र ज़ोन मान कर वहां कोराना संक्रमण से निपटने की तैयारी की जाती है.
2. कंटेनमेंट ज़ोन - बफ़र ज़ोन के भीतर के 3 किलोमीटर के दायरे को एपिसेंटर या फिर कंटेनमेंट ज़ोन घोषित किया जाता है
3. हॉटस्पॉट - अंत में कंटेनमेंट ज़ोन के अंदर आने वाले पॉज़िटिव मरीज़ के घर, गली और नज़दीकी रिश्तेदारों के इलाक़े को हॉटस्पॉट मान कर सील कर दिया जाता है.

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आगरा में ज़िला स्तर पर यही काम शुरू किया गया. आगरा में तकरीबन 38 एपीसेंटर चिह्नित किया गया जिसमें से 10 को पूरी तरह बंद किया गया.
बीबीसी को मिली जानकारी के मुताबिक़, आगरा में ज़िला स्तर पर पॉज़िटिव लोगों के संपर्क में आए लोगों की पहचान, डोर टू डोर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, टेस्टिंग, आइसोलेशन और बाक़ी लोगों तक ज़रूरी सामान पहुंचाने के लिए
• 1248 टीमों का गठन किया गया.
• कुल 9 लाख 30 हज़ार लोगों का सर्वे हुआ और
• 1.6 लाख घरों की स्क्रीनिंग की गई
• तकरीबन 2500 लोगों के सैम्पल लिए गए.
आगरा के स्मार्ट सिटी सेंटर को ज़िला प्रशासन ने कोविड19 के वॉर रुम में तब्दील किया और सभी मरीज़ों की निगरानी यहीं से शुरू की.
राज्य सरकार के अधिकारियों के मुताबिक़ आगरा मॉडल में बहुत बड़ी भूमिका प्राइवेट हेल्थ वर्कर की भी रही. चाहे सील किए गए इलाकों में लोगों तक जरूरी समान पहुंचाने की बात हो या फिर लोगों को ट्रेस कर के टेस्ट करने की बात को, आम नागरिकों ने भी स्थानीय प्रशासन की काफ़ी मदद की.

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आगरा मॉडल पर WHO
आगरा में कोरोना संक्रमण को जिस तरह से स्थानीय प्रशासन ने काम किया उस पर WHO ने भी उसकी सराहना की है.
WHO के मुताबिक किसी भी संक्रमण को डील करने का एक ही तरीका है, एक ही मॉडल है. जैसे ही आपको संक्रमण का सोर्स पता चलता है, बस आपको उसको ट्रैक करना है. वो कहां गए, किससे मिले, वो कौन-कौन लोग हैं जो संक्रमित हो सकते हैं. शुरुआत में ही अगर आप इस तरह से काम करते हैं तो आप आसानी से इस बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं. राजस्थान के भीलवाड़ा में भी यही हुआ था. दुनिया के दूसरे देशों में भी यही हो रहा है.
आगरा मॉडल में WHO ने ही स्थानीय प्रशासन को तकनीकी सपोर्ट दिया है. एरिया की मैपिंग से लेकर हॉटस्पॉट को चिन्हित करने तक में WHO से मदद ली गई है.
आगरा मॉडल की चुनौतियां
लेकिन ऐसा नहीं कि आगरा मॉडल में सब कुछ हर समय अच्छा ही होता रहा.
पहले सैलानियों से निपटना एक चैलेंज था. ताज महल के बंद होने के बाद स्थिति पर नियंत्रण होता नज़र आया.
लेकिन तुरंत बाद में ही मरक़ज़ में शामिल हुए लोगो को आइसोलेट करना दूसरा चैलेंज था.
जिला अधिकारी प्रभु एन सिंह ने बीबीसी को बताया कि मार्च के अंत में जब लग रहा था कि अब स्थिति नियंत्रण में है, तब दिल्ली में मरक़ज़ मामले का पता चला.
आगरा के कुछ लोग भी इसमें शामिल हुए थे. इस घटना से जुड़े तकरीबन 200 लोगों को उन्होंने एक जगह क्वारंटीन में रखा था, ताकि बाक़ी लोगों में कोरोना संक्रमण ना फैल सके.
अब इनमें से तकरीबन 60 लोगों ही ऐसे हैं जिन्हें इलाज के लिए अब भी रखा गया है. बाक़ी लोग अपने अपने घरों में लौट चुके हैं.
लेकिन अब भी चैलेंज़ है हेल्थ वर्कर. आगरा के 25 हेल्थ वर्कर आज कोरोना की चपेट में हैं. इनमें से पारस हॉस्पिटल में आज भी तकरीबन 20 हेल्थ वर्कर कोरोना पॉजिटिव हैं और एक लोकल डॉक्टर हैं, उनकी क्लीनिक में भी करीबन 5 लोग इससे संक्रमित हैं. ज़िला प्रशासन की टीम उन पर भी निगरानी रखे हुए हैं.
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इस इलाक़े को हॉटस्पॉट घोषित कर दिया गया है. अब किसी को यहां से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है. ज़रूरी सामान की सप्लाई अस्पताल में ही की जा रही है. 24 घंटे इन पर नज़र है.
आगरा में अब भी तकरीबन 600 लोगों को हाई रिस्क ग्रुप मानते हुए ज़िला प्रशासन आज भी उनको ट्रैक करा रहा है.
डीएन प्रभु सिंह के मुताबिक़ क्लस्टर कंटेनमेंट प्लान तब तक काम करता है जब तक कंटेनमेंट जोन या जिसे हम एपिसेंटर कहते हैं वो गिने चुने हों. लेकिन जब उनकी संख्या बढ़ जाती है, तो उन्हें सीधे हॉटस्पॉट को ही डील करना पड़ता है. इसके अलावा कोई चारा नहीं बचता. और ऐसे वक़्त में काम टीम वर्क से ही चलता है.
डीएम के मुताबिक़ उनकी टीम बहुत ही सशक्त है, मुस्तैद है, जिसकी वजह से आगरा मॉडल आज देश भर के लिए मिसाल है.
लेकिन वो ये भी मानते हैं कि काम अभी शुरू हुआ है, आगे चुनौतियां बहुत हैं.



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