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कोरोना वायरस: लॉकडाउन में सेक्स वर्कर्स की ज़िंदगी कैसे कट रही है?
- Author, अनघा पाठक
- पदनाम, बीबीसी मराठी
नासिक की रेखा कहती हैं, "सामाजिक दूरी और बाक़ी चीज़ें ठीक हैं, लेकिन हमें अपना धंधा करने की इजाज़त नहीं दी जा रही है. हम पैसे नहीं कमा सकते और ऐसे में हम अपने बच्चों को खाना भी नहीं खिला पा रहे हैं."
रेखा एक सेक्स-वर्कर हैं और वह एक स्वयंसेवी संस्था की एक्टिविस्ट भी हैं जो कि सेक्स-वर्कर्स के लिए काम करती है.
कोरोना का ख़तरा बढ़ने के साथ ही पूरे देश के रेड-लाइट इलाक़ों में सेक्स-वर्कर्स ने अपना धंधा बंद कर दिया है. सेक्स-वर्कर्स ने लॉकडाउन का आदेश आने से पहले ही ख़ुद ही यह फ़ैसला लिया है और वे अपने यहां कस्टमर्स को आने नहीं दे रहे हैं.
रेखा ने कहा, "कर्फ़्यू के ऐलान से तीन दिन पहले ही हमने अपना कामकाज बंद कर दिया था. हमने सोचा कि दूसरों को यह बीमारी नहीं होनी चाहिए और हम ख़ुद भी दूसरों के ज़रिए संक्रमित नहीं होना चाहते थे. वैसे तो हम हर रोज़ ही डर के साये में जीते हैं. हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं और हमें भी आने वाले दिनों में अपनी आजीविका के बारे में सोचना होगा. लेकिन, मैं यह कह सकती हूं कि अगर हम इससे संक्रमित नहीं होंगे तो आप भी इससे संक्रमित नहीं होंगे."
प्रधानमंत्री के 21 दिनों के लिए पूरे देश को लॉकडाउन में डालने के ऐलान के साथ ही सभी तरह के कारोबार थम गए हैं.
किसानों, वर्कर्स, छोटे कारोबारियों और दिहाड़ी मज़दूरों को कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन से तगड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है. इन लोगों के लिए रोज़ाना के लिए रोज़ी-रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो रहा है.
सेक्स वर्कर्स भी समाज के हाशिए पर मौजूद तबका है. इनके लिए रोज़ाना के लिए खाने-पीने का इंतज़ाम करना मुश्किल भरा हो गया है.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के एक अनुमान के मुताबिक, देश में क़रीब 30 लाख सेक्स वर्कर्स हैं.
बीबीसी मराठी ने यह जानने की कोशिश की है कि इस लॉकडाउन की अवधि में पतली गलियों और अंधेरे इलाक़ों में रहने वाली ये महिलाएं कैसे गुज़र-बसर कर रही हैं.
रोज़ाना खाने की चिंता
चूंकि, अब कारोबार बंद हो गया है ऐसे में सेक्स-वर्कर्स के पास पैसे की कमी हो गई है. छोटे दुकानदार, एजेंट्स और ठेले वालों की भी कमाई बंद हो गई है क्योंकि इनका कामकाज सेक्स-वर्कर्स के धंधे पर टिका होता है.
रानी खाला भिवंडी की एक सेक्स-वर्कर हैं. वो कहती हैं, "हमारे पास एक रुपया भी नहीं बचा है. हम अपने रोज़ाना की रोज़ी-रोटी को लेकर चिंतित हैं. हम फ़िलहाल स्वयंसेवी संस्थाओं पर ही टिके हुए हैं."
इस रेड-लाइट एरिया में कई एचआईवी पॉज़िटिव और टीबी मरीज़ हैं. ऐसे लोगों के लिए क्लीनिक जाना मुश्किल हो गया है. रानी कहती हैं, "हम उन्हें रेगुलर मेडिसिन देते हैं. अगर कोई अधिक बीमार हो जाता है तो स्वयंसेवी संस्थाओं की एंबुलेंस मदद के लिए आती है."
कई स्वयंसेवी संगठन इन सेक्स-वर्कर्स को रोज़ाना खाना मुहैया कराते हैं.
भिवंडी के रेड लाइट एरिया में काम करने वाले श्रमजीवी संगठन की डॉ. स्वाति ख़ान कहती हैं, "हमें हर ज़रूरी मदद की दरकार है. किसी भी संकट के दौर में सेक्स-वर्कर्स को सबसे आख़िर में मदद मिलती है. हालांकि, मेरी सेक्स-वर्कर्स बहनों ने अपना कामकाज बंद कर दिया है ताकि समाज का स्वास्थ्य बना रहे और अब ये बहनें एक-दूसरे की मदद कर रही हैं."
भिवंडी के हनुमान टेकड़ी के रेड-लाइट इलाक़े में 565 सेक्स-वर्कर्स हैं. सेक्स-वर्कर्स में ही 20 स्वयंसेवी इन सेक्स-वर्कर्स के लिए मदद जुटाने का काम करते हैं. इन वॉलंटियर्स के ज़रिए दूसरे सेक्स-वर्कर्स ग्रोसरी, दूध और दूसरे आवश्यक सामान हासिल करते हैं.
डॉ. स्वाति कहती हैं, "कोई भी भूख से न मरे यही हमारा गोल है. कोरोना वायरस जिस तरह से फैल रहा है, यह साफ़ है कि हमें अगले छह महीनों के लिए इंतज़ाम करने होंगे. भले ही आने वाले दिनों में लॉकडाउन ख़त्म हो जाए, लेकिन सामाजिक दूरी के नियमों के चलते सेक्स-वर्कर्स इसके बाद के कुछ महीनों तक अपना धंधा शुरू नहीं कर पाएंगे."
मालिक कर रहे मदद
भले ही सभी सेक्स-वर्कर्स एक ही धंधे में हैं, लेकिन सबकी स्थितियां एक जैसी नहीं हैं. कुछ महिलाओं ने पैसे बचाए हैं और कुछ के पास पैसे ख़त्म हो गए हैं.
ऐसे में, बाहर से मदद मिलने का इंतज़ार करने की बजाय अच्छी स्थिति में मौजूद कुछ सेक्स वर्कर्स ख़राब परिस्थितियों से जूझ रही महिलाओं की मदद कर रहे हैं.
रेखा कहती हैं, "एक महिला मेरे घर के पास रहती है. उसके परिवार में आठ लोग हैं. वह अपने लिए फ़ूड पैकेट्स का सहारा ले सकती हैं, लेकिन परिवार के बाक़ी सदस्यों का पेट कैसे भरा जाए? अंत में मैंने उसे 10,000 रुपये दिए. हमारे पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. अब हमें अपनी मदद के लिए ख़ुद खड़ा होना पड़ेगा."
असावरी देशपांडे प्रवर मेडिकल ट्रस्ट की कोऑर्डिनेटर हैं. उनका संस्थान नासिक में सेक्स-वर्कर्स को खाना, दवाइयां और दूसरे ज़रूरी सामान मुहैया कराता है.
वो कहती हैं, "आमतौर पर यह माना जाता है कि मालिक ख़राब होते हैं. पुलिस भी सबसे पहले इनके मालिकों को पकड़ती है. लेकिन, ये मालिक क्रिमिनल नहीं हैं. बल्कि इन्होंने दूसरे सेक्स-वर्कर्स की मदद करना शुरू कर दिया है."
महिला मालिकों ने बेघर सेक्स-वर्कर्स को रहने का ठिकाना दिया है और वे इसके लिए कोई पैसा भी नहीं ले रही हैं. इन्होंने इन वर्कर्स के लिए खाने और पानी का भी इंतज़ाम किया है. जिन युवा सेक्स-वर्कर्स के पास कुछ पैसा है वे पुराने सेक्स-वर्कर्स की मदद कर रही हैं.
लगातार होते झगड़े
सेक्स-वर्कर्स को मानसिक शॉक से गुज़रना पड़ रहा है क्योंकि उनकी ज़िंदगी अचानक से ठहर गई है.
डॉ. स्वाति कहती हैं, "हर दिन यहां झगड़े होते हैं और हमें इन्हें सुलझाना पड़ता है. इसमें इन महिलाओं की ग़लती नहीं है, उनका स्वभाव ही ऐसा हो गया है और अब उनका कामकाज भी बंद हो गया है. लॉकडाउन शुरू होने के बाद के आठ दिनों में केवल आज महिलाओं में लड़ाई नहीं हुई है. उन्हें समझ आ गया है कि केवल वे ही एक-दूसरे की मदद कर सकती हैं. अब हम कोशिश कर रहे हैं कि उनके मानसिक स्वास्थ्य को ठीक किया जाए."
रेड-लाइट एरिया में कई महिलाओं के पास रहने के लिए कोई और जगह नहीं है. कुछ एक कमरे में शेयरिंग के आधार पर रहती हैं, कुछ एक कॉमन हॉल में रहती हैं. रेखा पूछती हैं कि इस तरह से रहना क्या ख़तरनाक नहीं है?
कमाई का अन्य ज़रिया
ऐसा लगता है कि एक-दूसरे से निकटता पर टिका हुआ यह धंधा सामान्य रूप में आने में कई महीने ले लेगा. ऐसे में कुछ स्वयंसेवी संस्थानों ने स्किल-डिवेलपमेंट की कक्षाएं इन्हें देना शुरू किया है ताकि ये कमाई का कोई दूसरा ज़रिया निकाल सकें.
असावरी कहती हैं, "हम सेक्स-वर्कर्स को वोकेशनल ट्रेनिंग दे रहे हैं. हम उन्हें पेपर-बैग बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं. हम उन्हें मास्क बनाना भी सिखा रहे हैं. इसके लिए हमने पब्लिक वेल्फ़ेयर डिपार्टमेंट के साथ गठजोड़ किया है."
डॉ. स्वाति इसी तरह का एक अनुभव बताती हैं. ये महिलाएं 24 घंटे अपने घरों में रहती हैं और इनके पास करने के लिए कोई काम नहीं है. इनकी कमाई रुक गई है, ऐसे में इन पर काफ़ी मानसिक दबाव है. इससे निकलने के लिए इन्हें इंग्लिश-स्पीकिंग और दूसरे स्किल्स सिखाए जा रहे हैं.
डॉ. स्वाति के मुताबिक, "हमारे पास एक वॉलंटियर लड़की है जो कि इंग्लिश में होशियार है. वह इन महिलाओं को सिखाएगी. हम पहले भी इन सेक्स-वर्कर्स को ट्रेनिंग देने की कोशिश कर चुके हैं. लेकिन, इन्होंने तब कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. लेकिन, अब ये इनमें रुचि दिखा रही हैं."
इन वर्कर्स की पूरी ज़िंदगी एक जगह ठहर गई है. इनके पास पैसे नहीं हैं और ये अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं. तब ऐसा क्या है जिससे इनकी हिम्मत बंधी हुई है. रेखा कहती हैं, 'इन्हें बस जीना है. आगे जो भी होगा वह तभी देखा जाएगा.'
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