कोरोना वायरस: रिज़र्व बैंक की घोषणा से आपकी EMI पर कितना असर पड़ेगा

    • Author, आलोक जोशी
    • पदनाम, आर्थिक मामलों के पत्रकार, बीबीसी हिन्दी के लिए

साफ़ है कि सरकार अब कोरोना संकट से मुक़ाबले के लिए कई मोर्चों पर एक साथ लग गई है. वित्तमंत्री ने ग़रीबों के लिए राहत का एलान किया और एक रात इंतजार के बाद रिज़र्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास ने वो एलान कर दिया जिसकी मांग भी चल रही थी और जिसका इंतज़ार भी हो रहा था.

रेपो रेट या रिज़र्व बैंक जिस दर पर बैंकों को क़र्ज़ देता है उसे 0.75% घटाकर 4.4% कर दिया गया है. लेकिन रिवर्स रेपो यानी जब बैंक रिज़र्व बैंक के पास पैसा रखते हैं तो उन्हें जिस रेट से ब्याज़ मिलता है उसमें 0.90% की कटौती की गई है और यह अब 4% हो गया है.

इसी तरह बैंकों को अपने पास नक़द रकम रखने की पाबंदी यानी कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) भी पूरे एक परसेंट घटाकर तीन परसेंट कर दिया गया है.

शुक्रवार की सुबह रिज़र्व बैंक की तरफ़ से हुए इस एलान का सीधा असर ये होगा कि बैंकिंग व्यवस्था में तीन लाख 74 हजार करोड़ रुपए की नकदी निकल आएगी. बाज़ार में या इकोनॉमी में इस्तेमाल के लिए.

इसका स्वागत करते हुए सीआईआई के डीजी चंद्रजीत बनर्जी ने भी कहा है कि रेपो और रिवर्स रेपो रेट में अंतर बढ़ने का फ़ायदा होगा कि बैंकों को अब अपना पैसा रिज़र्व बैंक के पास पड़ा रहने देने या पार्क करने में फ़ायदा नहीं दिखेगा. यानी उन्हें साफ़ उम्मीद है कि इन घोषणाओं का फ़ायदा होगा.

इस वक़्त ये क़दम उठने और उद्योगपतियों व्यापारियों के मन में भरोसा जगाना बेहद ज़रूरी था क्योंकि इससे कुछ ही घंटे पहले दुनिया की सबसे बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से एक मूडीज़ ने भारत की ग्रोथ रेट का अनुमान घटाकर 2.5% कर दिया है.

इससे सिर्फ़ 17 दिन पहले ही मूडीज़ ने ये रेट घटाकर 5.3% किया था. साफ़ है कि पहले से पस्त पड़ी अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना का संकट कोढ़ में खाज की तरह आया है. इससे निपटने के लिए सरकार और रिज़र्व बैंक जो भी करें कम ही है.

कितना असरदार होगा क़दम

जब तक सब कुछ पटरी पर लौटता न दिखे, ये कहना भी मुश्किल है कि किस क़दम का कितना असर होगा. रिज़र्व बैंक का भी कहना है कि इस साल की आख़िरी तिमाही और अगले पूरे साल ग्रोथ पर असर पड़ने की आशंका है.

बाज़ार में मांग कमज़ोर होने का डर है और आगे का भविष्य अनिश्चित और अंधकार में (निगेटिव) दिख रहा है.

बैंक की तरफ़ से दूसरा एलान आम आदमी के लिए बहुत बड़ा है. लाखों परिवारों और करोड़ों लोगों को इससे राहत मिल सकती है. आरबीआई ने बैंकों को ये छूट दे दी है कि वो ईएमआई के भुगतान को तीन महीने तक के लिए माफ़ कर सकते हैं.

रिजर्व बैंक की घोषणा में कहा गया है कि लंबी अवधि के कर्ज की किस्त चुकाने के लिए तीन महीने का मोरेटोरियम दिया जा सकता है.

यानी कंपनियों के लिए हुए बड़े बड़े लोन पर कर्ज की किस्त अगर तीन महीने तक न आई तो उसे एनपीए या डूबत खाते में नहीं डाला जाएगा. इससे इतना तो बिलकुल साफ है कि जितने लोगों ने घर का कर्ज ले रखा है उन्हें तीन महीने तक ईएमआई चुकाने से छूट मिल जाएगी.

कुछ चीज़ें स्पष्ट नहीं हैं

लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि इन तीन महीनों में उन पर ब्याज़ चढ़ता रहेगा या उससे भी छूट मिलेगी. यह भी साफ़ नहीं है कि जिन लोगों ने पांच या सात साल के कार लोन ले रखे हैं, या पांच साल के पर्सनल लोन ले रखे हैं उन्हें लंबी अवधि का लोन माना जाएगा या नहीं.

इसी तरह एक और साफ़ एलान है कि जिन लोगों ने भी वर्किंग कैपिटल के लिए क़र्ज़ ले रखा है या कैश क्रेडिट लिमिट ले रखी हैं, उन पर तीन महीने तक ब्याज़ नहीं जोड़ा जाएगा.

इससे बहुत बड़ी संख्या में व्यापारियों को लाभ होगा. बड़े से लेकर छोटे तक. रिज़र्व बैंक की तरफ़ से ये फ़ैसला ज़रूरी था ताकि इनको राहत भी मिल सके और उनकी क्रेडिट हिस्ट्री और सिबिल रेटिंग पर भी असर न पड़े.

बैंकिंग सेक्टर में लंबा अनुभव रखनेवाले बीजेपी प्रवक्ता सैयद ज़फर इस्लाम का कहना है कि पॉलिसी के स्तर पर उठाए गए इन क़दमों से इंडस्ट्री को ज़रूरी राहत मिलेगी ही.

लेकिन आम आदमी के लिए मोटा गणित है कि अगर किसी ने 20 साल के लिए 25 लाख रुपए का होम लोन ले रखा है तो रिज़र्व बैंक की रेट कटौती से उसे साल में क़रीब तेरह हजार रुपए की राहत मिल सकती है.

और तीन महीने का वक्त ऊपर से. लेकिन इसका महीन गणित तभी लग पाएगा जब पता चलेगा कि बैंक अपनी-अपनी ब्याज़ दर में कितनी कटौती का एलान कर रहे हैं और वो किस किस लोन पर भुगतान से छूट देने जा रहे हैं.

और सबसे बड़ी चिंता अभी क्रेडिट कार्ड से ख़र्च करनेवालों को है. उनका भुगतान तो लॉन्ग टर्म लोन कतई नहीं माना जा सकता. फिर उन्हें भुगतान से राहत कौन देगा, और अगर नहीं मिली तो फिर क्या होगा. और सबसे बड़ा सवाल, जिन्होंने कोई क़र्ज़ नहीं ले रखा है, लेकिन जिनकी नौकरी ख़तरे में है, वेतन नहीं मिलता, घर का किराया नहीं मिलता, दुकान से आमदनी बंद है उनका क्या होगा?

अच्छा संकेत

हालांकि रेट कट की मांग सभी तरफ़ से हो रही थी, लेकिन इस एलान के बाद बाज़ार ऊपर जाने की बजाय डांवाडोल दिख रहा है. इसे भी एक अच्छा संकेत मानना चाहिए.

क्योंकि जब भी समाज के बड़े हिस्से को फ़ायदा देने वाला कोई फ़ैसला होता है, जिसे दूसरे शब्दों में लोक लुभावन भी कहा जाता है, तब तब बाज़ार ऊपर नहीं नीचे ही जाता दिखता है. वैसे भी इन दिनों बाज़ार की चाल में कोई संकेत पढ़ना ठीक नहीं है.

बाज़ार में एक-एक क़दम फूंक फूंक कर रखना ही समझदारी है.

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