मोदी सरकार सुस्त अर्थव्यवस्था को रफ़्तार क्यों नहीं दे पा रही

इसी सप्ताह भारत सरकार ने जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के नए आंकड़े जारी किए और इन आंकड़ों ने इस बात की पुष्टी कर दी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार ख़राब दौर से गुज़र रही है.

मौजूदा तिमाही में जीडीपी 4.5 फ़ीसद पर पहुंच गई जो पिछले छह साल में सबसे निचले स्तर पर है. पिछली तिमाही की भारत की जीडीपी 5 फ़ीसदी रही थी.

इस साल जुलाई में बजट पेश होने के बाद से सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई कदम उठाए हैं.

लेकिन अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़ें देखने पर सवाल उठता है कि क्या सरकार के उठाए क़दम कारगर साबित हो रहे हैं?

बीबीसी संवाददाता नवीन नेगी ने आर्थिक मामलों के जानकार शिशिर सिन्हा से संपर्क कर ये जानने की कोशिश की क्या सरकार के उठाए क़दमों से अर्थव्यवस्था को कोई लाभ नहीं पहुंच रहा.

पढ़िए शिशिर सिन्हा का नज़रिया -

इस दरमियान आप देखेंगे कि सरकार की तरफ़ से 30 से भी अधिक ऐसे क़दम उठाए गए हैं.

लेकिन सबसे अधिक चर्चा जिस बात की हुई है वो है कॉर्पोरेट टैक्स कट की. 20 सितंबर को कॉर्पोरेट टैक्स में कमी करने की घोषणा हुई थी.

इस टैक्स में कमी के दो स्तर हैं. 22 प्रतिशत की दर सभी कंपनियों पर लागू करने की बात हुई थी जबकि नई मैनुफ़ैक्चरिंग कंपनियों पर 15 प्रतिशत की दरों की बात हुई थी.

सबसे बड़ा सवाल ये उठा कि क्या इस नई कटौती का अर्थव्यवस्था को कोई फ़ायदा हुआ या नहीं.

अभी तक की स्थिति को देखें तो पता चलता है कि उसकी वजह से भारत में अब तक कोई नया निवेश नहीं आया है.

लेकिन इसके पीछे एक बड़ी वजह भी है. इस तरह के किसी फ़ैसले का असर देखने में दो-तीन महीने लगते हैं, कभी-कभी छह महीने तक भी लग जाता है.

अगर शेयर बाज़ार में देखें तो, बजट में सुपर रिच सरचार्ज जो बढ़ाया गया था उसका बुरा असर शेयर बाज़ार पर पड़ा था.

बाद में सरकार ने ये क़दम वापस ले लिया था लेकिन शेयर बाज़ार को तब तक हानि पहुंच चुकी थी. शेयर बाज़ार उस स्थिति से बहुत जल्दी नहीं उबर पाया.

उसके बाद अब भारतीय शेयर बाज़ार में जो स्थिति देखने को मिल रही है उसके लिए देश के भीतर के घटक उतने ज़िम्मेदार नहीं हैं जितना कि वैश्विक आर्थिक स्थिति है.

भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले वैश्विक कारण

अमरीका और चीन के बीच जो व्यापार युद्ध की स्थिति है उस कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है. भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने का सबसे बड़ा कारण यही है.

दूसरा कारण ये है कि यूरोप, अमरीका, पूरे अफ्रीका या फिर पूरे एशिया में - दुनिया के तमाम देशों में कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी हुई है. कई जगहों पर मंदी की स्थिति है.

किसी भी देश की कमाई होने के लिए ज़रूरी है कि देश में बनने वाला सामान बिके. अगर हमारा सामान देश के बाहर बिकेगा तभी तो कमाई होगी.

भारत के ऊपर तो दोहरी मार है- भारत के भीतर घरेलू बाज़ार में भी माल नहीं बिक रहा और रही विदेशी बाज़ार की बात तो वहां हमारा माल ख़रीदने वाला कोई नहीं क्योंकि वहां स्थिति ख़राब है.

ये वो कारण हैं जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक प्रभावित किया है.

क्या अर्थव्यवस्था को लेकर हुई है नीतिगत ग़लतियां?

भारत ने अब तक निवेश बढ़ाने के उपाय किए हैं. लेकिन ज़रूरी ये भी है कि साथ-साथ खपत बढ़ाने के बारे में क़दम उठाए जाएं.

अर्थव्यवस्था ऐसी गाड़ी है जो निवेश और खपत दो पहियों पर चलती है.

अगर सरकार निवेश बढ़ाती है लेकिन खपत बढ़ाने के लिए क़दम नहीं उठाती तो उसका कुछ न कुछ असर दिखता है.

बात बजट की हो या फिर उसके बाद की बात हो, ख़ासतौर पर कॉर्पोरेट टैक्स में कमी करने की बात हो - ये निवेश बढ़ाने के लिए बड़ा क़दम था.

खपत बढ़ाने के लिए सरकार को आयकर में कमी करने की ज़रूरत होगी.

आयकर में कमी की जाएगी तो लोगों के हाथों में अधिक पैसे आएंगे. इसके साथ अगर लोगों को भरोसा दिलाया जाता है कि उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है और उनकी नौकरियां सुरक्षित हैं, तो लोग खपत करना शुरू करेंगे.

खपत बढ़ेगी तो उद्योग जगत अधिक निवेश करने और अधिक सामान बनाने के लिए उत्साहित होगा.

पूरी व्यवस्था में जो एक कमी है वो ये है कि खपत बढ़ाने के लिए लोगों के हाथों में अधिक पैसे देने का इंतज़ाम सरकार ने नहीं किया है.

अगर सरकार ने ये काम कर दिया तो अर्थव्यवस्था की स्थिति काफ़ी बेहतर हो सकती है.

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