महाराष्ट्र: शिव सेना संग 'दोस्ती' और 'दुश्मनी' की दुविधा में उलझी कांग्रेस

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- Author, रजनीश कुमार
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
शिव सेना ने महाराष्ट्र के 'सेनापति' बनने के लिए सोमवार को मोदी सरकार में अपने एकलौते मंत्री अरविंद सावंत से इस्तीफ़ा दिलवा दिया.
शिव सेना को लग रहा था कि एनडीए से अलग होने की शर्त पूरी करने के बाद उसे एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन मिल जाएगा और वो प्रदेश की सेनापति बन जाएगी.
अरविंद सावंत की इस्तीफ़े के बाद कांग्रेस और एनसीपी भी हरकत में आई. दूसरी तरफ़ महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शिव सेना को सोमवार की शाम साढ़े सात बजे तक बहुमत की चिट्ठी सौंपने का वक़्त दिया था.
वक़्त की सीमा बीतती जा रही थी, लेकिन कांग्रेस का समर्थन पत्र नहीं मिल रहा था. बात यहां तक चलने लगी थी कि उद्धव ठाकरे ख़ुद ही मुख्यमंत्री बनेंगे. सबको इंतज़ार था साढ़े सात बजे तक कांग्रेस के समर्थन पत्र मिलने का लेकिन नहीं मिला.
शिव सेना ने राज्यपाल से वक़्त बढ़ाने का आग्रह किया लेकिन वहां से भी निराशा मिली. आदित्य ठाकरे चाह रहे थे कि उन्हें और दो दिन का वक़्त मिले. शिव सेना नेता संजय राउत दोपहर तक सेना के सीएम होने की घोषणा करते रहे और अचानक से बीमार पड़े और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा.

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राज्यपाल कोश्यारी ने इसी बीच शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी को सरकार बनाने का आमंत्रण दे दिया.
एनसीपी विधायकों की संख्या के लिहाज़ से प्रदेश की तीसरी बड़ी पार्टी है. हालांकि दूसरी बड़ी पार्टी शिव सेना और एनसीपी में दो सीटों का ही अंतर है. शिव सेना के पास 56 विधायक हैं और एनसीपी के पास 54. सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों की ज़रूरत है जो किसी के पास नहीं है.
राज्यपाल से आमंत्रण मिलने के बाद एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा, ''राज्यपाल ने हमें सरकार बनाने का निमंत्रण दिया है. हमें 24 घंटे का वक़्त मिला है. कांग्रेस हमारी सहयोगी पार्टी है और हम सबसे पहले उससे बात करेंगे. इसके बाद ही कुछ फ़ैसला ले पाएंगे.'' अगर कोई भी पार्टी सरकार बनाने में सक्षम नहीं रही तो राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफ़ारिश करेंगे.
राज्यपाल से और वक़्त नहीं मिला तो आदित्य ठाकरे ने कहा, ''हमें राज्यपाल से पत्र मिला कि क्या शिव सेना सरकार बनाना चाहती है. हमने हामी भरी कि सरकार बनाएंगे. हम कांग्रेस और एनसीपी से बात करने के लिए और दो दिन चाहते थे लेकिन नहीं मिला. हालांकि हमने सरकार बनाने का इरादा नहीं छोड़ा है. हम दोनों पार्टियों के विधायकों से बात कर रहे हैं. इसके बारे में कोई और जानकारी नहीं दे सकते.''

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शिव सेना में सेनापति बनने की हसरत और एनसीपी-कांग्रेस में बीजेपी को बाहर रखने की चाहत के कारण वैचारिक भिन्नता की लक़ीर सोमवार की मिटती दिख रही थी लेकिन ऐन मौक़े पर कांग्रेस ने बाज़ी पलट दी.
कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के आवास पर कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक हुई लेकिन कोई फ़ैसला नहीं पाया कि शिव सेना को बाहर से समर्थन देना है या सरकार में शामिल होना है. अब अगर तीनों पार्टियां मिलकर सरकार बनाना चाहती हैं तो फिर से बहुत कम समय में दशकों की वैचारिक दूरियों को ख़त्म करना होगा.
कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक के बाद पार्टी ने बयान जारी करके कहा, ''महाराष्ट्र पर कांग्रेस वर्किंग कमिटी में विस्तार से चर्चा हुई. सोनिया गांधी ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से बात भी की. पार्टी अभी एनसीपी से और बात करेगी.''
शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और शरद पवार के बीच भी बात हुई लेकिन कांग्रेस समर्थन देने पर कोई फ़ैसला नहीं कर पाई.
हालांकि शिव सेना के सीएम बनने का सपना अब भी ख़त्म नहीं हुआ है. कांग्रेस और एनसीपी चाहें तो अब भी सेना के उम्मीदवार को सीएम बना सकती हैं. कांग्रेस के भीतर इस बात पर सहमति नहीं है कि वो बाहर से समर्थन दे या सरकार में शामिल हो. कहा जा रहा है कि शिव सेना चाहती है कि कांग्रेस सरकार का हिस्सा बने. शरद पवार की पार्टी ने समर्थन की चिट्ठी दे दी थी.
शिव सेना और कांग्रेस की दुविधा और क़रीबी
शिव सेना और कांग्रेस सत्ता में कभी साथ नहीं रहे लेकिन कई मुद्दों पर दोनों पार्टियां एक साथ कई रही हैं.
शिव सेना उन पार्टियों में से एक है जिसने 1975 में इंदिरा गांधी के आपातकाल का समर्थन किया था. तब बाल ठाकरे ने कहा था कि आपातकाल देशहित में है.
आपातकाल ख़त्म होने के बाद मुंबई नगर निगम का चुनाव हुआ तो दोनों पार्टियों को बहुमत नहीं मिला. इसके बाद बाल ठाकरे ने मुरली देवड़ा को मेयर बनने में समर्थन देने का फ़ैसला किया था.
1980 में कांग्रेस को फिर एक बार शिव सेना का समर्थन मिला. बाल ठाकरे और सीनियर कांग्रेस नेता अब्दुल रहमान अंतुले के बीच अच्छे संबंध थे और ठाकरे ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में मदद की.
1980 के दशक में बीजेपी और शिव सेना दोनों साथ आए तो बाल ठाकरे खुलकर कम ही कांग्रेस के समर्थन में आए लेकिन 2007 में एक बार फिर से राष्ट्रपति की कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को समर्थन दिया ना कि बीजेपी के उम्मीदवार को.
शिव सेना ने प्रतिभा पाटिल के मराठी होने के तर्क पर बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन नहीं दिया था. पाँच साल बाद एक बार फिर से शिव सेना ने कांग्रेस के राष्ट्रपति उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी को समर्थन दिया. बाल ठाकरे शरद पवार को पीएम बनाने पर भी समर्थन देने की घोषणा कर चुके थे.
अछूत वाली स्थिति नहीं
कांग्रेस और शिव सेना के संबंध में अछूत वाली स्थिति नहीं रही है. मुसलमानों को लेकर शिव सेना की सोच को लेकर कांग्रेस पर भले समर्थन देने के बाद सवाल उठेंगे लेकिन कांग्रेस शिव सेना से समर्थन लेती रही है. हालांकि कांग्रेस ये भी तर्क दे सकती है कि धर्मनिरपेक्षता के लिए बीजेपी को सत्ता से बाहर रखना ज़्यादा ज़रूरी न कि शिव सेना की सरकार नहीं बनने देना.
हालांकि एक बात ये भी पूछी जा रही है कि क्या कांग्रेस आगामी चुनावों में महाराष्ट्र में शिव सेना के साथ चुनाव लड़ेगी? फिर शिव सेना की हिन्दुत्व वादी पार्टी की पहचान का क्या होगा? क्या शिव सेना कांग्रेस के साथ रहकर आक्रामक हिन्दूवादी पार्टी बनी रह सकती है या कांग्रेस शिव सेना के साथ रहकर धर्मनिरपेक्ष होने का दावा कर सकती है?

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मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि कांग्रेस के ज़्यादातर विधायक शिव सेना के साथ सरकार बनाने के पक्ष में हैं. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान पर अपने ही विधायकों का दबाव है. सोमवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अपने विधायकों से बात की थी. सोनिया गांधी ने भी पार्टी विधायकों से बात की.
अगर तीनों पार्टी साथ मिल जाती हैं तो स्पष्ट बहुमत हो जाएगा. ऐसे में बीजेपी प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी होकर भी विपक्ष में बैठने पर मजबूर होगी. बीजेपी 105 विधायकों के साथ प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी है.
चुनावी नतीजे आने के बाद महाराष्ट्र में 18 दिन हो गए हैं लेकिन कोई सरकार नहीं बन पाई है. शिव सेना और बीजेपी में चुनाव पूर्व गठबंधन था लेकिन चुनाव बाद दोनों अलग-अलग छोर पर खड़े हैं. शिव सेना बीजेपी के साथ सरकार बनाने के लिए तब तैयार होगी जब उसे भी पाँच साल के कार्यकाल में ढाई साल के लिए सीएम पद मिलेगा. बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं है.

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शिव सेना की उम्मीदें अभी बाक़ी हैं?
शिव सेना ने सीएम का ख़्वाब लिए 25 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया. सेना का तर्क है कि अगर बीजेपी जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए महबूबा मुफ़्ती से हाथ मिला सकती है तो उसे कांग्रेस और एनसीपी से क्यों परहेज़ होना चाहिए.
कांग्रेस महासचिव अविनाश पांडे ने कहा है कि राजभवन ने शिव सेना के दावों को नकारा नहीं है और उनकी पार्टी एनसीपी के साथ समर्थन देने के लिए तैयार है. पांडे ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, ''हम चाहते हैं कि सरकार गठन से पहले कई मसलों पर बातचीत हो जाए. हम अब भी उम्मीद करते हैं कि महाराष्ट्र में शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनेगी.''
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महाराष्ट्र की राजनीति को बख़ूबी समझने वाले पत्रकार निखिल वागले ने ट्वीट कर कहा है, ''महाराष्ट्र में विपक्ष के पास ग़ैर बीजेपी सरकार बनाने का मौक़ा है. विपक्ष अगर इस मौक़े का फ़ायदा उठाने में नाकाम रहता है तो कोई बचा नहीं सकता. शिव सेना कांग्रेस और एनसीपी से ख़ुश नहीं है. हालांकि पवार ने देर रात उद्धव ठाकरे को आश्वस्त किया है. लेकिन नुक़सान हो चुका है. लोग पूरे घटनाक्रम को अब संदेह की नज़र से देख रहे हैं. बीजेपी को सत्ता के खेल में अभी मात देना आसान नहीं है. इसके लिए ठोस प्लान की ज़रूरत है.''
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निखिल वागले ने अपने अगले ट्वीट में लिखा है, ''अब कांग्रेस और एनसीपी का कहना है कि वो शिव सेना से सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर बात करना चाहती हैं. लेकिन वे राज्यपाल को समर्थन पत्र सौंपकर भी कर सकती हैं. आख़िर मसला क्या है? कुछ तो गड़बड़ है. बेशक महाराष्ट्र के राज्यपाल ने बीजेपी और दूसरी पार्टियों को वक़्त देने में भेदभाव किया है. राज्यपाल ने बीजेपी को 72 घंटे का वक़्त दिया जबकि शिव सेना और एनसीपी को 24-24 घंटे का. हालांकि राज्यपाल से निष्पक्षता की उम्मीद करना ही बेमानी है.''
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