दिल्ली में आख़िर क्यों लागू करनी पड़ी पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी?

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- Author, भूमिका राय
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल ईपीसीए ने दिल्ली में जन स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की है.
राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहले ही दिल्ली को गैस-चैंबर बता चुके हैं. इस इमरजेंसी की वजह से सरकार ने पांच नवंबर तक के लिए सभी स्कूलों को बंद करने का आदेश दिया है.
इसके साथ ही लोगों से अपील की गई है कि वे जितना कम हो सके बाहर रहें. ज़्यादा से ज़्यादा घर के अंदर ही रहें. लोगों को निजी वाहनों का कम इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है और साथ ही कचरा जलाने से भी मना किया गया है.

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स्कूलों को बंद करने के साथ ही सभी प्रकार के निर्माण कार्यों पर भी फ़िलहाल के लिए रोक लगा दी गई है.
ईपीसीए के चेयरमेन भूरे लाल ने उत्तर प्रदेश , हरियाणा और दिल्ली के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता की ख़राब स्थिति पर चिंता व्यक्त की. इससे इस बात का अंदाज़ा तो हो जाता है कि स्थिति कितनी ख़राब है.
लेकिन यह स्थिति इतनी ख़राब हुई कैसे?
एक ओर जहां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसे पूरी तरह पड़ोसी राज्यों में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली का असर बता रहे हैं वहीं केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि हरियाणा और पंजाब को इस स्थिति के लिए दोष देना बंद करके अगर आपस में मिलकर इस समस्या का समाधान तलाशने की कोशिश की जाती तो संभव है स्थिति बेहतर होती.
लेकिन राजनीतिक बयानों से इतर आम आदमी इस समस्या से ख़ासा परेशान है.

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स्कूलों में भले छुट्टियां कर दी गईं हों लेकिन लोगों को तो काम पर जाना ही है. बीबीसी ने इस प्रदूषण का असर जानने के लिए कई राहगीरों से बात की और लगभग हर किसी का यही कहना था कि सड़क पर आते ही सिर दर्द, खांसी, आंखों में जलन शुरू हो जा रही है.
तो क्या यही हेल्थ इमरजेंसी है?
हवा की गुणवत्ता को एयर क्वालिटी इंडेक्स पर मापा जाता है. अगर एयर क्वालिटी इंडेक्स 0-50 के बीच है तो इसे अच्छा माना जाता है, 51-100 के बीच में यह संतोषजनक होता है, 101-200 के बीच में औसत, 201-300 के बीच में बुरा, 301-400 के बीच में हो तो बहुत बुरा और अगर यह 401 से 500 के बीच हो तो इसे गंभीर माना जाता है.
दिल्ली में कई जगह पीएम 2.5 अपने उच्चतम स्तर 500 के पार दर्ज किया गया. पीएम 2.5 हवा में तैरने वाले वाले वो महीन कण हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते हैं. लेकिन सांस लेने के साथ ये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. वायुमंडल में इनकी मात्रा जितनी कम होती है, हवा उतनी ही साफ़ होती है. इसका हवा में सुरक्षित स्तर 60 माइक्रोग्राम है. इसके अलावा पीएम 10 भी हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है.

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हालांकि साल 2017 में हवा में ख़तरनाक सूक्ष्म पीएम 2.5 कणों की मात्रा 700 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक हो गई थी. ये कण हमारी नाक के बालों से भी नहीं रुकते और फेफड़ों तक पहुंचकर उन्हें ख़राब करते हैं.
साथ ही ऐसे कई अन्य हानिकारक तत्व हैं जो गाड़ियों और उद्योगों से आते हैं जैसे कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और ओजोन जैसी गैसें.
इस गंभीर स्थिति को ही ध्यान में रखते हुए पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की गई है.
सेंटर फ़ॉर साइंस एंड इनवायरमेंट में रिसर्च एसोसिएट (क्लीन एयर एंड सस्टेनेबल मोबिलिटी प्रोग्राम) की शांभवी शुक्ला का कहना है कि हवा का कॉन्सन्ट्रेशन लेवल सामान्य से बहुत अधिक यानी गंभीर स्थिति तक पहुंच गया है, जिससे कोई भी इंसान जो इस हवा में सांस लेगा उस पर इसका नकारात्मक असर दिखेगा. यही हेल्थ इमरजेंसी है.
शांभवी के मुताबिक़ सबसे ज़्यादा नज़र आने वाले लक्षणों में आँख में जलन होना और सांस लेने में तकलीफ़ होना ही है.
लंग केयर फ़ाउंडेशन के संस्थापक डॉ. अरविंद कुमार भी कुछ ऐसा ही कहते हैं.
उनके अनुसार, जब इस तरह की हवा में इंसान जाता है तो आंख से पानी निकलना, आंख में जलन होना शुरू हो जाती है. इसके अलावा नाक, गले में भी जलन शुरू हो जाती है.
डॉ. अरविंद कुमार अस्थमा से जूझ रहे मरीज़ों के लिए इस समय को सबसे अधिक ख़तरनाक मानते हैं.

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लेकिन इसकी वजह क्या है?
शांभवी मानती हैं कि इस तरह की स्थिति के लिए किसी एक वजह को दोष नहीं दिया जा सकता है.
वो कहती हैं "इस बात से इनक़ार नहीं किया जा सकता है कि पड़ोसी राज्यों में जो पराली जलाई जा रही है वो एक बड़ा कारण है (शनिवार को 38 फ़ीसदी प्रदूषण पराली की वजह से रहा) लेकिन सिर्फ़ वही कारण है ऐसा भी नहीं है. इसके अलावा निर्माण कार्य, गाड़ियों का प्रदूषण भी है. साथ ही मौसम के कारण को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है. हवा नहीं है इसलिए ऐसा माहौल हो गया है."
हेल्थ इमरजेंसी कोई अनूठी बात नहीं है
शांभवी कहती हैं कि बहुत से लोगों के लिए हेल्थ इमरजेंसी नया शब्द हो सकता है लेकिन दुनिया के लिहाज़ से ये कोई नया शब्द नहीं है.
साल 2012 में चीन में हेल्थ इमरजेंसी लगाई गई थी जब वहां प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ गया था. शांभवी का मानना है कि भारत में तो इसे लगाने में काफ़ी वक़्त लिया गया जबकि दुनिया के दूसरे देशों में यह बहुत ही शुरुआती स्तर पर घोषित कर दी जाती है.

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शांभवी का मानना है इस स्थिति से निपटने के लिए थोड़ा संयम रखना ज़रूरी होगा क्योंकि मौसम को हम अपने हिसाब से नहीं ढाल सकते ऐसे में अपनी गतिविधियों को ही नियंत्रित करना होगा.
कितना ख़तरनाक है ये प्रदूषण
2015 के एक अध्ययन में बताया गया है कि राजधानी के हर 10 में से चार बच्चे 'फेफड़े की गंभीर समस्याओं' से पीड़ित हैं. इसके अलावा भारत साल 2015 में प्रदूषण से हुई मौतों के मामले में 188 देशों की सूची में पांचवें स्थान पर था.
प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल, द लांसेट में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक़, दक्षिण पूर्व एशिया में साल 2015 में 32 लाख मौतें हुईं. दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के इस आंकड़े में भारत भी शामिल है.
दुनियाभर में हुई क़रीब 90 लाख मौतों में से 28 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में हुई हैं. यानी यह आंकड़ा 25 लाख से ज़्यादा रहा.
एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 360 के ऊपर होने का मतलब है 20 से 25 सिगरेट पीना. इस आधार पर यह कहना ग़लत नहीं होगा कि दिल्ली में कोई भी नॉन-स्मोकर नहीं बचा है.

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उन उपायों का क्या जो हवा को सुधारने के लिए किये गए?
हवा की गंभीर स्थिति को देखते हुए शहर में जगह-जगह पानी का छिड़काव किया जा रहा है लेकिन यह स्पष्ट है कि ये प्रयास काफ़ी नहीं हैं.
हालांकि, इससे पहले 'एंटी स्मॉग गन' और 'जेट इंजन' जैसे प्रयोग भी किये जा चुके हैं लेकिन ऐसी स्थिति को देखते हुए उनकी सफलता का सिर्फ़ कयास ही लगाया जा सकता है.
एंटी स्मॉग गन बनाने वाली कंपनी क्लाउड टेक का दावा था कि दिल्ली के स्मॉग को देखते हुए इसे विकसित किया गया है. इसे किसी एक जगह पर फ़िक्स किया जा सकता है या फिर ट्रक पर रखकर पूरे शहर में घुमाते हुए पर्यावरण को साफ़ किया जा सकता है.
कंपनी का दावा था कि इस मशीन की सहायता से पर्यावरण में पीएम 2.5 की मात्रा को 90 फ़ीसदी तक कम किया जा सकता है.

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वहीं जब साल 2016 में जेट का प्रयोग किया गया था तो कहा गया था कि जेट इंजन एक वर्चुअल चिमनी की तरह इस्तेमाल होगा. एक जेट इंजन से 1000 मेगावाट वाले पॉवर प्लांट के धुएं को वायुमंडल के पार भेजना संभव होगा.
उस वक़्त भी यह एक सवाल ही था कि क्या जेट इंजन की मदद से दिल्ली की प्रदूषित हवा को साफ़ किया जा सकेगा?
इसके अलावा साल 2016 में 15 दिनों के लिए दिल्ली में गाड़ियों के प्रयोग को लेकर ऑड-ईवन फॉर्मूला भी लागू किया गया. सरकार का ऐसा दावा था कि इससे 20 से 25 फ़ीसदी प्रदूषण कम हुआ. और संभव है कि उसी को देखते हुए इस बार भी चार नवंबर से ऑड-ईवन को लागू किया जा रहा है.
लेकिन फ़िलहाल जिस तरह के अभी हालात हैं उसे देखकर तो नहीं लगता है कि दिल्ली की प्रदूषित हवा से इतनी जल्दी निजात मिलने वाली है. मौसम विज्ञानियों ने भले ही शनिवार से कुछ राहत की बात कही है लेकिन पांच तारीख़ तक को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार आपात स्थिति रहेगी.

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कुछ उपाय जिन्हें किया जा सकता है..
धुआं और धूल से हर संभव बचने की कोशिश करें.
अस्थमा के मरीज़ निबोलाइजर और इनहेलर हमेशा साथ रखें.
एन-95 मास्क पहनें. ये आपको धूल से होने वाली परेशानी से बचाएगा.
पानी से भीगे रूमाल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
आंख और नाक लाल हो तो ठंडे पानी से उसे धोएं.
होंठ पर जलन होने पर उसे धोएं.
इसके अलावा कुछ सुझाव भी है जिन्हें मानकर थोड़ी राहत पायी जा सकती है.

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सुझाव
सुबह की सैर और शाम बाहर निकलने से बचें.
लंबे समय तक भारी परिश्रम से बचें.
लंबी सैर की जगह कम दूरी तक टहलें. इस दौरान कई ब्रेक लें.
सांस से जुड़ी किसी भी तरह की परेशानी होने पर शारीरिक क्रियाएं बंद कर दें.
प्रदूषण ज़्यादा महसूस होने पर घर की खिड़कियां बंद कर दें.
लकड़ी, मोमबत्ती और अगरबत्ती जलाने से परहेज़ करें.
कमरे में पानी से पोछा लगाएं ताकि धूल-कण कम हो सकें.
बाहर जाने पर एन-95 और पी-100 मास्क का इस्तेमाल करें.
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