कश्मीर अपडेट: नियंत्रण रेखा पर तनाव, घाटी में खामोशी

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- Author, रियाज़ मसरूर
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर
जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पांच अगस्त के बाद से तनाव बना अब भी बरकरार है.
भारत सरकार ने पांच अगस्त को ही जम्मू कश्मीर को ख़ास दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को हटाने का फ़ैसला किया था.
सेना का कहना है कि बीते पांच हफ़्तों के दौरान करीब 30 बार युद्धविराम का उल्लंघन हुआ है. बीते दो-तीन दिन से राजौरी और पुंछ के मजकूट, सुंदरबनी और बालाकोट सेक्टर में गोलीबारी हुई.
इस वजह से वहां से काफी लोग पलायन करने पर भी मजबूर हो गए. गोलीबारी में कुछ बच्चे भी स्कूल में फंस गए थे. सेना के अधिकारियों ने कुछ टुकड़ियों को भेजकर उन्हें स्कूल से निकाला.
हालांकि नियंत्रण रेखा के कश्मीर क्षेत्र में जम्मू के मुक़ाबले कम गोलाबारी हुई है. जम्मू के पुंछ और राजौरी के सीमावर्ती क्षेत्रों में कहीं ज्यादा तनाव है.
अगर बात कश्मीर घाटी की करें तो ये कहना मुश्किल बल्कि असंभव है कि गिरफ़्तारी में कमी आई है या नहीं. दरअसल, गिरफ़्तारी का जो पैटर्न है, उसे लेकर असमंजस है. जैसे किसी मोहल्ले में एक या दो पथराव की घटनाएं घटती हैं उसके बाद एक अभियान शुरू होता है. कुछ युवाओं को थाने में बुलाकर वहीं हिरासत में ले लिया जाता है.
प्रशासन इसे गिरफ़्तारी की जगह काउंसलिंग बताता है. जिन लोगों को लेकर ये आशंका होती है कि वो किसी प्रदर्शन में हिस्सा लेंगे, उनको बुलाकर दो दिन, चार दिन या दस दिन रखा जाता हैं. इस कार्रवाई से एक अजीब सी स्थिति पैदा हो जाती है. उनके माता-पिता बहुत ज्यादा घबरा जाते हैं. क्योंकि अक्सर ऐसा होता है कि उनको मुलाकात की अनुमति भी नहीं दी जाती.

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कैसी है घाटी की स्थिति?
शोपियां ज़िले में ऐसा ही एक मामला शनिवार को भी हुआ. यहां बड़ी तादाद में युवाओं को उठाया गया है लेकिन प्रशासन का कहना है कि उनके माता-पिता या उनके मोहल्ले के बड़े बुजुर्गों के साथ बात करके उनकी काउंसलिंग की जा रही है.
इन लोगों ने डिप्टी कमिश्नर के दफ़्तर के बाहर धरना दिया और मांग की कि उनके बच्चों को रिहा किया जाए.
कश्मीर घाटी में खामोशी तो है. खामोशी को ही अगर शांति कहते हैं तो वो यहां है. लेकिन आम जनजीवन को जिस तरह से पटरी पर आना चाहिए था, वो नहीं है. अभी भी हड़ताल है. व्यापारिक गतिविधियां नहीं चल रही हैं.

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छात्र-छात्राएं अभी भी स्कूल नहीं जा रहे हैं. एक बार फिर प्रयास शुरू हुआ है कि सोमवार से स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़े. लेकिन हमने पिछले पांच-छह हफ्ते में देखा है कि अभी तक सभी प्रयास विफल हो गए हैं. सिर्फ़ शिक्षक स्कूलों में आते हैं.
बच्चे अब भी स्कूलों से गायब हैं. इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन पर लगातार पाबंदी बनी हुई है.
ये सारे संकेत अगर सामान्य स्थिति और शांति के हैं तो फिर शांति नहीं है.
लेकिन अगर पथराव न होना या किसी का मारा ना जाना शांति है तो फिर यहां हालात ठीक हैं.
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