उन्नाव रेप केस: क्या है उस लड़की की कहानी?

- Author, दिव्या आर्य
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, उन्नाव से लौटकर
दिल्ली के एम्स अस्पताल में तारों और मॉनिटर्स से घिरी उन्नाव की एक लड़की आईसीयू में वेंटिलेटर के सहारे सांस ले रही है.
लड़की के बलात्कार के आरोप में भारतीय जनता पार्टी के विधायक रह चुके कुलदीप सेंगर जेल में हैं.
उन पर उसके परिवार को धमकियां देने और उस 'दुर्घटना' को आयोजित करने का भी आरोप है, जिसमें लड़की ज़ख़्मी हुई. सेंगर सभी आरोपों से इनकार करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बाद वर्ष 2017 के इस मामले में आख़िरकार मुक़दमा शुरू हुआ है और रोज़ाना सुनवाई के साथ इसे डेढ़ महीने में ख़त्म किया जाना है.
ये है उस लड़की की अब तक की कहानी
वर्ष 2017 की वो एक आम दोपहर थी. खाने के बाद ऊंघने का पहर, लेकिन उस दिन जो हुआ, उससे कई रातों तक किसी को ठीक से नींद नहीं आई.
उत्तर प्रदेश के उन्नाव की एक नाबालिग लड़की ने दिल्ली में अपनी चाची को बताया कि उसके साथ बलात्कार हुआ है.
वो ख़ुद नाबालिग थी और उसका आरोप रसूख़ वाले विधायक कुलदीप सेंगर पर था.
लड़की की चचेरी बहन के मुताबिक़, "ये सब उन्नाव में हुआ, लेकिन वहां उसे जान से मारने की धमकी देकर चुप करा दिया गया था. यहां तक कि वो अपनी मां से भी कुछ नहीं कह पाई."

कुलदीप सेंगर
15 साल से विधायक कुलदीप सेंगर उन्नाव में उस लड़की के पड़ोसी थे.
लखनऊ से जब मैं कुलदीप सेंगर के गांव पहुंची और सेंगर के घर का पता पूछा तो सबने एक बड़े कॉम्प्लेक्स की ओर इशारा कर दिया.
वहां एक हवेली, एक मंदिर और एक स्कूल था. गांववालों ने बताया कि ये सब 'विधायक जी' का है.
हवेली के दरवाज़ों पर ताले जड़े थे. पीछे की दीवार पर दो सीसीटीवी कैमरे लगे थे. दोनों का रुख़ पड़ोस में बने लड़की के घर की ओर था.
गांववालों के मुताबिक़ ये कैमरे विधायक सेंगर की गिरफ़्तारी के बाद लगाए गए, पीड़ित लड़की के परिवार पर नज़र रखने के लिए.

गांव में इस मामले को लेकर तरह-तरह की बात सुनने को मिली. षडयंत्र, प्रेम-प्रसंग, दुश्मनी, कई दावे थे जिनके ना सबूत थे और ना गवाह.
पहचान छिपाने की शर्त पर हर कोई एक नई कहानी सुनाने को तैयार था.
जिस एक बात पर कई लोग सहमत थे वो थी विधायक सेंगर की लोकप्रियता.
कुलदीप सेंगर तीन बार पार्टी बदल चुके हैं. 2002 में बहुजन समाज पार्टी से पहली बार विधायक बने, फिर समाजवादी पार्टी में गए और दो बार जीते, और 2017 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की.
उनके नाना कई साल गांव के सरपंच रह चुके थे. अब उनके छोटे भाई की पत्नी सरपंच हैं और उनकी पत्नी ज़िला पंचायत प्रमुख.

उधर लड़की के घर में पढ़ाई-लिखाई का ख़ास चलन नहीं था. मां भी अनपढ़ थीं. उन्होंने बताया, "घर में कभी इतने पैसे नहीं थे कि अपनी चार बेटियों और छोटे बेटे को पढ़ाएं."
गांव में लड़की के पिता और उनके दो भाइयों की छवि दबंग की थी. गांव के कई लोगों ने मुझसे बातचीत में उन्हें गुंडा बताया जिनके लिए शराब पीना और मारपीट करना आम था.
स्थानीय थानाध्यक्ष राकेश सिंह के मुताबिक़ लड़की के पिता के ख़िलाफ़ 29 और चाचा के ख़िलाफ़ 14 मामले दर्ज हैं.
चाची
हिंसा और सियासत के इसी माहौल से दूर भागकर दिल्ली आई लड़की ने जब अपनी चाची को उस कथित वारदात के बारे में बताया तो नहीं जानती थी कि वो क्या कहेंगी.
चाची पढ़ी लिखी थीं. उनके पिता का दिल्ली में अच्छा व्यापार था. शादी के बाद लड़की के चाचा दिल्ली आ गए थे. यहीं कारोबार जमाया था.
लड़की की चचेरी बहन के मुताबिक़ चाची की हिम्मत नहीं होती, तो आगे कुछ नहीं होता.

लड़की ने पुलिस में शिकायत करने का फ़ैसला किया लेकिन महीनों तक एफ़आईआर दर्ज नहीं हुई.
आख़िरकार उसने अदालत का रुख़ किया.
भारत की अपराध दंड संहिता यानी सीआरपीसी के सेक्शन 156(3) में प्रावधान है कि पुलिस अगर किसी मामले में शिकायत ना लिखे तो पीड़ित अदालत के ज़रिए एफ़आईआर करवाए जाने की दरख़्वास्त कर सकते हैं.
लड़की की अर्ज़ी के बाद अदालत ने तहक़ीक़ात का आदेश दिया और पुलिस को एफ़आईआर करनी पड़ी.
लेकिन कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई. लड़की की मां के मुताबिक़ उन्हें लगातार धमकियां मिलती रहीं.
कुलदीप सेंगर के उस व़क्त मीडिया को दिए बयान के मुताबिक़, "ये राजनीति से प्रेरित झूठे आरोप थे".

पुलिस
फिर अप्रैल 2018 में विधायक सेंगर के छोटे भाई अतुल सेंगर और उनके साथियों ने लड़की के पिता के घर में घुसकर उन्हें बहुत बेरहमी से पीटा.
लड़की के पड़ोसी बताते हैं, "पानी डाल-डाल कर पीट रहे थे, लग रहा था कि जान बचेगी भी या नहीं, लेकिन उनका आपसी मामला था तो कोई बीच में नहीं बोला."
मारपीट ख़त्म हुई तो पिता को थाने ले गए और आर्म्स ऐक्ट के तहत हिरासत में ले लिया. आरोप ये है कि वहां भी पिटाई जारी रही.
लड़की की चचेरी बहन बताती हैं, "बहुत मुश्किल से, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को फोन से इल्तजा कर पिता जी को अस्पताल में रखवाया."
लेकिन लड़की के सब्र का बांध टूट गया था और उसने अपनी मां से कहा कि मैं आत्महत्या कर लेती हूं, शायद तभी ये सब ख़त्म हो.
मां ने रोका नहीं, बल्कि कहा, "तुम अकेली क्यों हम पीछे जीकर क्या करेंगे." और सभी बहनें मां के साथ चल पड़ीं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के घर के सामने लड़की ने आत्मदाह की कोशिश की.

उसे तो बचा लिया गया, लेकिन अगले दिन तड़के ख़बर आई कि उसके पिता अस्पताल में दम तोड़ चुके हैं.
पूरे मामले में लापरवाही के लिए थानाध्यक्ष समेत पांच अन्य पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया.
बाद में विधायक के भाई अतुल सेंगर समेत कुछ पुलिसकर्मियों को लड़की के पिता की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया. अतुल सेंगर के ख़िलाफ़ पुलिस में पहले से तीन केस दर्ज थे.
राज्य सरकार सवालों के घेरे में आई और फिर बलात्कार की तहक़ीक़ात उत्तर प्रदेश पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दी गई.
कुलदीप सेंगर अब भी गिरफ़्तार नहीं किए गए थे.
सीबीआई
सारे घटनाक्रम और एफ़आईआर के बाद मीडिया दिन-रात पहरा देने लगा, इस संभावना में कि अब गिरफ़्तारी तय है.
लेकिन कुलदीप सेंगर ने घर से निकलकर पत्रकारों को ख़ुद बयान दिया कि वो निर्दोष हैं, "मैं कोई भगोड़ा नहीं, और हर तहक़ीक़ात के लिए तैयार हूं."
तीन दिन के असमंजस और बयानबाज़ी के बाद आख़िरकार सीबीआई ने सेंगर से पूछताछ की और कुछ घंटे बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया.
तब तक कथित बलात्कार की वारदात को एक साल से ज़्यादा हो चुका था.

इमेज स्रोत, Facebook/KuldeepSenger
फिर दो महीने बाद सीबीआई ने चार्जशीट दाख़िल कर उसमें विधायक सेंगर को मुख़्य अभियुक्त बनाया. लेकिन सुनवाई नहीं शुरू हुई.
लड़की को अब राज्य सरकार ने पुलिस सुरक्षा मुहैया करा दी थी. गांव और घर दोनों जगह.
ये अजीब था क्योंकि एक व़क्त पर लड़की के चाचा ही विधायक कुलदीप सेंगर के बॉडीगार्ड का काम करते थे.
कई गांववालों ने इस बात की तस्दीक की कि दोनों परिवारों में ख़ूब मेलजोल था. जब सेंगर के नाना सरपंच थे, तभी से दोनों परिवारों में अच्छे संबंध थे. एक जाति और एक मोहल्ला उन्हें बांधता था.
अब वही दो परिवार एक-दूसरे के दुश्मन हैं. विधायक सेंगर की ओर से लड़की के परिवार पर भी मुक़दमे हुए.
एक मुक़दमा धोखाधड़ी का है, जिसमें दावा किया गया है कि कथित बलात्कार के व़क्त लड़की नाबालिग नहीं थी और सबूत के तौर पर उसने अदालत में झूठी मार्कशीट दाख़िल की है.
अन्य मामलों के साथ ये भी अब सीबीआई के पास है.

चाचा
फिर एक पुराना मुक़दमा भी ताज़ा किया गया. वर्ष 2000 में चुनाव प्रचार के दौरान तमंचा दिखाकर धमकाने के आरोप में लड़की के चाचा को गिरफ़्तार किया गया था.
वो ज़मानत पर छूटे तो वापस अदालत में पेश ही नहीं हुए. उस केस में उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया.
17 साल बाद, विधायक सेंगर की गिरफ़्तारी के कुछ महीने बाद अदालत को ये बताया गया कि चाचा अब दिल्ली में हैं.
अदालत ने उन्हें हत्या की कोशिश के लिए दोषी ठहराया और 10 साल की सज़ा सुनाई .
लड़की के ताया की तो कई साल पहले ही मौत हो गई थी. पिता की हिरासत में मौत और चाचा को जेल के बाद अब घर में सिर्फ़ औरतें ही बची थीं.

लड़की की चचेरी बहन ने बताया, "सब कुछ चाची ही देख रहीं थीं. दिल्ली से गांव जाना, सीबीआई को बयान देना और साथ में घर और व्यापार चलाना."
लड़की की मां कहती हैं, "धमकियों का सिलसिला तब भी नहीं थमा बल्कि बढ़ता चला गया."
अपने वकील की मदद से उन्होंने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मुख्य न्यायाधीश तक को मदद के लिए चिट्ठियां लिख डालीं.
सुप्रीम कोर्ट
लेकिन कोई चिट्ठी समय पर नहीं पहुंची. जुलाई 2019 की एक दोपहर एक ट्रक के साथ टक्कर लगने पर कार में सवार लड़की और उसके वकील बुरी तरह से घायल हो गए. चाची और उनकी बहन की मौत हो गई.
लड़की की चचेरी बहन का दावा है, "चिट्ठी व़क्त से पहुंच जाती, पढ़ ली जाती तो ये जानें बच जातीं." अब सीबीआई इस बात की जांच कर रही है कि ये दुर्घटना थी या साज़िश.
सुप्रीम कोर्ट को लिखी चिट्ठी पर जब मीडिया ने लिखा तब मुख्य न्यायाधीश ने खुद संज्ञान लेकर तत्काल सुनवाई की.
उन्होंने सीबीआई को निर्देश दिया कि बलात्कार का वो मामला जिसमें चार्जशीट एक साल पहले दायर हो गई थी, लेकिन मुक़दमा शुरू ही नहीं हुआ, वो फ़ौरन हो और 45 दिन में पूरा भी किया जाए.
लड़की के बलात्कार और परिवार से जुड़े चारों केस दिल्ली ट्रांसफ़र किए गए और राज्य सरकार को लड़की के परिवार को 25 लाख रुपए अंतरिम मुआवज़ा देने का आदेश हुआ.
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जब मैं लड़की की चचेरी बहन से मिली, तो बचा परिवार यानी लड़की की मां, तीन बहनें और छोटा भाई उसके साथ फ़र्श पर चादर बिछाकर बैठे थे.

लड़की की मां को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बारे में बताया तो वो बोलीं, "चलो कुछ तो अच्छी ख़बर आई, बस अब मेरे देवर को भी रिहा कर दें तो हमें सहारा मिले, नहीं तो कौन ये लड़ाई लड़ेगा."
इन सबमें से कोई पढ़ा-लिखा नहीं है. इनमें से किसी के हाथ में मैंने स्मार्टफोन तक नहीं देखा.
जो लड़ाई लड़ रही थीं, वो चाची नहीं रहीं. उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलनेवाली उनकी बहन भी नहीं.
सुप्रीम कोर्ट की दख़ल से लड़की और वकील को इलाज के लिए दिल्ली के एम्स अस्पताल लाया गया है, लेकिन दोनों की हालत गंभीर है.
वकील कोमा में बताए जा रहे हैं और लड़की वेंटिलेटर के सहारे ज़िंदगी की डोर पकड़े हुए है.
लड़की की चेचरी बहन ने कहा, "अब इंसाफ़ की उम्मीद जगी है तो ज़िंदगी जीने की वजह बुझ गई है."
(तस्वीरें - देबलिन रॉय)
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