सुषमा का राजनीतिक सफ़र विवादों से अछूता नहीं था

    • Author, सलमान रावी
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

सुषमा स्वराज ने मात्र 25 साल की उम्र में चौधरी देवीलाल के हरियाणा सरकार में मंत्री बनने से लेकर भारत की विदेश मंत्री बनने तक कई राजनीतिक क़िले फ़तह किए.

संसद और संसद के बाहर उनके भाषण हमेशा लोगों को आकर्षित करते थे. हाज़िरजवाबी में भी उनका कोई मुक़ाबला नहीं था.

कुछ लोग तो उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के बाद भारतीय जनता पार्टी की सबसे बेहतरीन वक्ता मानते थे तो कई उन्हें इंदिरा गांधी के बाद देश की सबसे सफल महिला राजनेता मानते थे.

लेकिन इन सब उपलब्धियों के बावजूद उनका राजनीतिक करियर विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों से अछूता नहीं रहा.

क्रिकेट की दुनिया में इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत करने वाले ललित मोदी पर वित्तीय अनियमितता के आरोप थे और भारत का प्रवर्तन निदेशालय उनकी जांच कर रहा था. इस बीच ख़बर आई कि विदेश मंत्रालय ने ललित मोदी को पुर्तगाल जाने की इजाज़त दी है.

ज़ाहिर है विदेश मंत्री होने के नाते इसका सीधा आरोप सुषमा स्वराज पर लगा. विदेश मंत्रालय ने सफ़ाई दी कि ऐसा 'मानवीय आधार' पर किया गया क्योंकि वो बीमार थे.

मगर मीडिया का एक हिस्सा और विपक्षी कांग्रेस पार्टी इस दलील को मानने के लिए तैयार नहीं थे. कांग्रेस ने उनके इस्तीफ़े तक की मांग कर डाली थी.

लेकिन पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके साथ खड़े रहे और इसी वजह से उन्हें ज़्यादा मुश्किल नहीं हुई.

पासपोर्ट विवाद

लेकिन लखनऊ के एक दंपति को पासपोर्ट दिए जाने के कारण सुषमा स्वराज का ट्विटर पर जमकर ट्रोल भी किया गया. उन्हें इतना ज़्यादा ट्रोल किया गया कि कई लोग तो गाली गलौज तक उतर आए थे.

ये मामला लखनऊ के एक पासपोर्ट केंद्र का है जहाँ अंतर्धार्मिक विवाह के बाद वहां पर तैनात अधिकारी ने आवेदनकर्ता को पासपोर्ट देने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करने की शर्त रखी थी.

सुषमा स्वराज तक जब ये शिकायत पहुंची तो उन्होंने उस पासपोर्ट अधिकारी का फ़ौरन तबादला कर दिया. बस फिर क्या था, सोशल मीडिया पर मानो जैसे गाली गलौज की झड़ी लग गयी थी.

बेल्लारी बंधुओं से क़रीबी

सुषमा स्वराज पर बेल्लारी (कर्नाटक) के रेड्डी बंधुओं से क़रीबी संबंध रखने के आरोप भी लगते रहे हैं. साल 1999 में कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी कर्नाटक के बेल्लारी से लोकसभा चुनाव लड़ रहीं थी. बीजेपी ने सोनिया के ख़िलाफ़ सुषमा स्वराज को उतारा.

बेल्लारी बुंध उस समय बिज़नेस में तेज़ी से उभर रहे थे. इसी दौरान वे सुषमा स्वराज के क़रीब आए. बाद में जब येदियुरप्पा के नेतृत्व में कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनीं तो जनार्धन रेड्डी को मंत्री बनाया गया.

रेड्डी बंधुओं का व्यापार भी तेज़ी से बढ़ने लगा और उन्हें खनन के क्षेत्र में बड़े से बड़ा कॉन्ट्रैक्ट मिलता रहा. कहा जाता रहा कि सुषमा स्वराज से निकटता के कारण ही राजनीति और व्यापार दोनों में रेड्डी बंधुओं की तेज़ी से तरक़्क़ी होती रही.

जब सीबीआई ने अवैध खनन के मामले में 2011 में रेड्डी बंधुओं को गिरफ़्तार किया तो सुषमा स्वराज का नाम एक बार फिर उछला. यहां तक कि सुषमा को बयान देना पड़ा.

उस समय उन्होंने कहा था, ''सत्य सामने आएगा तभी मेरे साथ न्याय होगा. दूर-दूर तक रेड्डी बंधुओं के साथ मेरा कोई व्यवसायिक संबंध नहीं है. हालांकि उस समय उन्होंने ये स्वीकार किया था कि वो साल में एक बार रेड्डी बंधुओं के ज़रिए आयोजित लक्ष्मी पूजा में शामिल होती हैं.''

सिर मुंड़वाने वाला बयान

सोनिया गांधी के बारे में दिए गए एक बयान के कारण भी उनकी बहुत आलोचना हुई थी.

बात 2004 की है. वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी 2004 का लोकसभा चुनाव हार चुकी थी और ये तय था कि कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनने जा रही है. ऐसी अटकलें लगाई जा रहीं थीं कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन सकती हैं.

सोनिया गांधी के विदेशी मूल को मुद्दा बनाते हुए सुषमा स्वराज ने उस समय बयान दिया था कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो इसके विरोध में वो अपना सिर मुड़वा लेंगी और वैराग्य जीवन व्यतीत करेंगी.

सोनिया गांधी ने तो प्रधानमंत्री बनने से ख़ुद ही इनकार कर दिया लेकिन सुषमा के इस बयान के लिए उनकी काफ़ी आलोचना हुई थी.

हालांकि यूपीए सरकार के दौरान बाद में सुषमा स्वराज नेता प्रतिपक्ष रहीं थीं और सोनिया यूपीए चेयरपर्सन थीं इसलिए दोनों की मुलाक़ातें होती थीं और फिर दोनों के रिश्ते अच्छे हो गए थे.

राजघाट पर नाच

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती से भी एक बार उनकी कहा-सुनी हुई थी. सुषमा का आख़िरी ट्वीट भी कश्मीर से जुड़ा था.

लेकिन ये बात है साल 2011 की. उसी साल सुषमा स्वराज ने अहमदाबाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सद्भावना उपवास में शिरकत के दौरान मोदी की तारीफ़ करते हुए कहा था कि मोदी की घोर राजनीतिक विरोधी महबूबा मुफ़्ती भी मोदी के काम की सराहना करतीं हैं.

सुषमा का दावा था कि राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में महबूबा ने मोदी की जमकर तारीफ़ की थी. महबूबा ने सुषमा के दावे को सिरे से ख़ारिज करते हुए केंद्र सरकार से कहा कि वो एनआईसी की बैठक की कार्यवाही को सार्वजनिक करें.

वर्ष 2011 में वो एक बार और विवादों में घिरी जब महात्मा गांधी की समाधि पर एक विरोध प्रदर्शन के दौरान नाचते हुए उनका वीडियो वायरल हुआ.

जब विपक्ष ने उनके इस्तीफ़े की मांग की तो उन्होंने कहा कि वो सिर्फ़ अपने समर्थकों का मनोबल बढ़ाने के लिए देशभक्ति के गीतों पर नाच रहीं थीं.

भगवत गीता को लेकर विवाद

उन्हें एक बार फिर विवाद ने तब घेरा जब उन्होंने भगवद्गीता को 'राष्ट्रीय ग्रंथ' के रूप में मान्यता दिए जाने की मांग की. उस वक़्त भी वो तृणमूल कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निशाने पर आ गयीं.

मामला कुछ ऐसा था कि भगवद्गीता को 'राष्ट्रीय ग्रंथ' के रूप में घोषणा करने की मांग दर-असल विश्व हिन्दू परिषद् के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल ने की थी. सुषमा स्वराज ने तो सिर्फ़ सिंघल की बातों को दोहराया था.

विवाद तब शुरू हुआ जब सुषमा स्वराज ने कहा कि भगवत गीता को 'राष्ट्रीय ग्रंथ' का दर्जा तभी मिल गया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को बतौर उपहार भगवद्गीता भेंट की थी.

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