कश्मीर: अनुच्छेद 370 ख़त्म होने पर क्या बोले कश्मीरी पंडित

    • Author, अनंत प्रकाश
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

'इन आंखों ने सिर्फ़ दर्द, मौत, खून-खराबा और विस्थापन देखा है, कभी सोचा न था कि ये बूढ़ी आंखें ये दिन भी देख पाएंगी.'

ये शब्द 58 वर्षीय कश्मीरी पंडित अशोक भान के हैं जिन्हें साल 1990 की 19 जनवरी को अपना सबकुछ छोड़कर कश्मीर से भागकर जम्मू में शरण लेनी पड़ी थी.

उस रात को मस्जिदों से गूंजे नारे 'यत बनावो पाकिस्तान...' को याद करते हुए अशोक भान भावुक हो उठते हैं.

वह कहते हैं, "मैं आज भी कांप उठता हूं जब जब 19 जनवरी की वो शाम याद आती है. मैं उस वक़्त अस्पताल में मौजूद था. जब मस्जिदों से आवाज़ें सुनाई दीं तो टांगे थर्रा गईं. मैं वो सब कुछ अपने शब्दों से बयां नहीं कर सकता हूं. जब हर ओर से ये ख़बरें आने लगीं कि कश्मीरी पंडितों को वादी छोड़कर जाना होगा तो मेरे दिल में सबसे पहले ये ख्याल आया कि मेरे घरवाले कहां जाएंगे, क्या खाएंगे और हमारे घरों का क्या होगा."

भान आज दिल्ली में अपने घरवालों के साथ रहते हैं.

वह कहते हैं, "मैं कश्मीर वापस जाना चाहता हूं. लेकिन जब कश्मीर से निकला था तब मैं 27 साल का था. अब मैं लगभग साठ के पास पहुंच गया हूं. लेकिन हमारा घर तो कश्मीर में ही है. कश्मीर ही हमारी मां है. तीस साल हो गए, हमें ये कहते हुए कि एक दिन हम कश्मीर जाएंगे. और ये दिन हमारे लिए ईद की तरह है. हमारा सपना पूरा हो गया है."

'काश, आज हमारे पिता ज़िंदा होते'

दिल्ली के आइएनए मार्केट में तीस साल पहले सड़क किनारे कपड़ों की दुकान लगाने वाले अशोक कुमार मट्टू गृह मंत्री अमित शाह के प्रस्ताव पर खुशी ज़ाहिर करते हैं.

इस मौके पर अपने पिता को याद करते हुए वह कहते हैं, "आज मैं बस ये कहना चाहता हूं कि काश आज मेरे डैडी ज़िंदा होते. कुछ समय पहले ही उनका इंतकाल हो गया. अगर वो ज़िंदा होते तो आज बहुत खुश होते. आज जहां-जहां भी कश्मीरी पंडित हैं, वो ईद मना रहे हैं. ये उनके लिए बहुत बड़ा दिन है."

"जब हम कश्मीर से भागे थे तो सोचा था शायद अब कभी कश्मीर हमारा घर नहीं हो पाएगा. लेकिन आज पूरा भारत कह रहा है कि कश्मीर हमारा है."

'जिनका इलाज़ किया, उन्होंने ही कश्मीर से निकाला'

साल 1990 से पहले कश्मीर के श्रीनगर में एक फ़िजिशियन के रूप में काम कर चुके डॉक्टर एल एन धर 1990 के दौर को याद करके कहते हैं कि 19 जनवरी के दिन से पहले भी बम-धमाके हुआ करते थे, हम उन पर ध्यान नहीं देते थे.

वह बताते हैं, "उस दिन रात को कश्मीर की सभी मस्जिदों से ऐलान हुआ कि कश्मीरी पंडितों को बाहर निकालो. और कश्मीरी पंडितों के पास तीन विकल्प हैं - पहला विकल्प है इस्लाम स्वीकार करना, दूसरा विकल्प है जान देना और तीसरा विकल्प है कश्मीर छोड़ देना.".

"हमारे पास घर छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. लेकिन तब हमें लगा था कि ये दो-तीन महीनों की बात है. हम खाली हाथ घर से निकले थे. लेकिन लगातार हालात बिगड़ते चले गए."

धर बताते हैं, "इतने सालों में इतनी सरकारें बदल गईं लेकिन हमारे लिए कुछ नहीं हुआ. इसकी वजह से आज जब ये हुआ है तो हम बहुत खुश हैं."

अनुच्छेद 370 ख़त्म होने पर कश्मीरी पंडितों की अलग-अलग समितियों में जश्न का माहौल बना हुआ है.

लेकिन कश्मीरी पंडित अब कश्मीर में उनकी वापसी के लिए केंद्र सरकार से उम्मीद लगा रहे हैं.

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