रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अचानक इस्तीफ़ा क्यों दिया?

विरल आचार्य

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रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने पद से इस्‍तीफ़ा दे दिया है. उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा होने के छह महीने पहले पद छोड़ा है.

पिछले सात महीने के भीतर दूसरी बार है जब रिज़र्व बैंक के किसी उच्‍च अधिकारी ने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही अपने पद को छोड़ दिया. इससे पहले आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने दिसंबर में निजी कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्‍तीफ़ा दे दिया था.

मीडिया में आई विरल आचार्य की ख़बरों की पुष्टि आरबीआई ने भी कर दी है. रिज़र्व बैंक के मुख्य महाप्रबंधक योगेश दयाल ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा, "कुछ हफ्ते पहले डॉक्टर आचार्य ने रिज़र्व बैंक को एक चिट्ठी भेजी थी, जिसमें बताया गया था कि वो अति ज़रूरी निजी वजहों से 23 जुलाई 2019 के बाद अपने पद पर नहीं बने रह पाएंगे. उनके पत्र पर संबंधित अधिकारियों द्वारा विचार किया जा रहा है."

रिज़र्व बैंक की प्रेस विज्ञप्ति

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ आचार्य ने रिज़र्व बैंक की मौद्रित नीति कमेटी की 6 जून को हुई बैठक से कुछ हफ्ते पहले ही अपना इस्तीफ़ा दे दिया था. उन्होंने 23 जून 2017 को रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर का पदभार संभाला था.

भाषण से आए चर्चा में

विरल आचार्य आरबीआई के डिप्टी गवर्नर के रूप में 26 अक्तूबर, 2018 को चर्चा में आए थे जब उन्होंने आरबीआई की स्वायत्ता से समझौता करने का आरोप लगाते हुए मोदी सरकार को खरी-खोटी सुनाई थी.

उर्जित पटेल

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इमेज कैप्शन, उर्जित पटेल ने पिछले साल दिसंबर में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था

उनका ये भाषण रिज़र्व बैंक की बोर्ड बैठक के ठीक तीन दिन बाद हुआ था.

अपने क़रीब डेढ़ घंटे के भाषण में तब उन्होंने कहा था कि जो सरकारें अपने केंद्रीय बैंकों की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करतीं, उन्हें देर-सबेर वित्तीय बाज़ारों के ग़ुस्से का सामना करना ही पड़ता है.

आचार्य के उस संबोधन को आरबीआई और मोदी सरकार के बीच के रिश्तों में तल्ख़ी के रूप में देखा गया था.

दरअसल, इस भाषण से कुछ समय पहले सरकार और रिज़र्व बैंक के बीच कई मुद्दों पर मतभेद थे. मसलन सरकार ब्याज दरों में कमी चाहती थी, ग़ैर बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों यानी एनबीएफ़सी को और अधिक नक़दी देने की हिमायत कर रही थी, साथ ही सरकार ये भी चाहती थी कि आरबीआई अपने रिज़र्व का कुछ हिस्सा सरकार को दे.

जबकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. कहा तो ये भी गया कि सरकार ने आरबीआई बोर्ड में अपने सदस्यों को नामांकित किया जो बैठकों में खुलकर गवर्नर और डिप्टी गवर्नरों से अपनी नाराज़गी का इज़हार करते थे.

कौन हैं विरल आचार्य?

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के नए डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्टर्न बिज़नेस स्कूल में प्रोफेसर रहे हैं.

विरल आचार्य

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विरल आचार्य का चयन सौ से अधिक लोगों में से किया गया, जिन्होंने डिप्टी गवर्नर के लिए आवेदन किया था.

42 वर्षीय विरल आचार्य स्टर्न बिज़नेस स्कूल में वर्ष 2009 से अर्थशास्त्र की बारीकियां पढ़ाते थे.

इससे पहले वे लंदन बिज़नेस स्कूल (एलबीएस) में भी अर्थशास्त्र ही पढ़ाते थे.

'यादों के सिलसिले' नाम से विरल आचार्य कई वर्ष पहले एक म्यूज़िक एलबम भी निकाल चुके हैं.

अर्थशास्त्र की दुनिया में क़दम रखने से पहले विरल ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई से स्नातक की उपाधि हासिल की. ये वर्ष 1995 की बात है.

इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से फाइनेंस में पीएचडी की और फिर लंदन बिज़नेस स्कूल में अपनी सेवाएं दीं.

विरल आचार्य 'यूरोपियन सिस्टेमैटिक रिस्क बोर्ड' की वैज्ञानिक परामर्श समिति में बतौर सदस्य भी काम कर चुके हैं.

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में भी विरल आचार्य ने सदस्य के तौर पर अपनी सेवाएं दी हैं.

आरबीआई में चार डिप्टी गर्वनर होते हैं जिनमें से दो को पदोन्नति के ज़रिए बनाया जाता है. बाक़ी दो में से एक कमर्शियल बैंकर होता है जबकि एक पोस्ट अर्थशास्त्री के हिस्से में होती है.

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