नरेंद्र मोदी की चुप्पी, शिखर धवन का अंगूठा और मरते बच्चे

बीबीसी का कार्टून
    • Author, राजेश प्रियदर्शी
    • पदनाम, डिजीटल एडिटर, बीबीसी हिंदी

नरेंद्र मोदी की चुप्पी भी एक ख़ास तरह से गूंजती है, जैसे कि उनके भाषण.

दरअसल, लगातार सक्रिय और मुखर रहने वाले लोगों की चुप्पी पर अक्सर ध्यान चला जाता है. जो नेता जनता से लगातार संवाद कर रहा हो, लेकिन एक ख़ास बड़े मुद्दे पर चुप हो तो ये ख़याल आना लाजिमी है कि आख़िर इसकी वजह क्या है.

पीएम के तौर पर अपने पिछले कार्यकाल के अंत में वे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ अपनी पहली प्रेस कॉन्फ़्रेंस में नज़र आए, लेकिन सुनाई नहीं दिए. सुनाई दी उनकी गूंजती हुई चुप्पी.

प्रेस कॉन्फ़्रेंसों और सवालों के जवाब देने से परहेज़ करने की पीएम मोदी की नीति के पीछे उनकी सोच चाहे जो भी हो, लेकिन एकतरफ़ा संवाद उन्हें ख़ास पसंद हैं, इसके माध्यम के तौर पर प्रधानमंत्री को ट्विटर विशेष प्रिय है. शपथ लेने के बाद @narendramodi ने कुल 134 ट्वीट किए हैं जिनमें मुज़्फ़्फ़रपुर के बच्चों की बारी नहीं आ पाई है.

गाय के नाम पर होने वाली हत्याओं, राफ़ेल, लगातार हो रही रेल दुर्घटनाओं और गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में बड़ी संख्या में बच्चों की मौत जैसे अनेक मामलों में पूरे पांच साल तक लोगों ने नरेंद्र मोदी के ट्विटर हैंडल पर नज़र रखी और उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

ऐसा नहीं है कि नरेंद्र मोदी ने इन मुद्दों पर कुछ नहीं कहा, लेकिन उन्होंने तब कहा जब उनका जी चाहा, उस वक़्त बिल्कुल नहीं, जब लोग चाहते हों कि वे कुछ कहें. बड़े राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राय ज़ाहिर करने का समय ख़ुद चुनकर, प्रेस कॉन्फ़्रेंस न करके या सवालों के जवाब न देकर वे क्या जताना चाहते हैं?

योग दिवस पर नरेंद्र मोदी

इमेज स्रोत, @narendramodi

इमेज कैप्शन, योग दिवस पर आम लोगों से मिलते नरेंद्र मोदी

वे शायद यही जताना चाहते हैं कि वे किसी के दबाव में नहीं हैं, वे किसी और की नहीं, अपनी मर्ज़ी से चलते हैं, और उनसे मांगकर कोई जवाब नहीं ले सकता. वे परिस्थितियों के अधीन काम नहीं करते बल्कि अपनी राजनीति के अनुरूप परिस्थितियां खुद बनाते हैं.

इसे आप राजनीतिक चतुराई समझें, उनका अहंकार समझें या अपने विरोधियों को बेमानी बनाने की कोशिश, यह आपकी मर्ज़ी है. यह तो हम-आप सुनते ही रहे हैं कि प्रधानमंत्री से हर मामले पर लगातार बोलते रहने की उम्मीद करना ग़लत है.

अब सवाल ये है कि 'हर मामला' क्या है, और 'ख़ास मामला' क्या है. इसके लिए नरेंद्र मोदी के ट्विटर हैंडल को ज़रा ग़ौर से देखना होगा.

मुज़फ़्फ़रपुर के बच्चों की मौत

हर्षवर्धन
इमेज कैप्शन, बिहार में बच्चों की मौत पर प्रेस वार्ता करते केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन

बिहार में जहां भारतीय जनता पार्टी सत्ता में साझीदार है, जहां राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे बीजेपी के नेता हैं, वहां इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की लगातार मौत की ख़बरें पिछले 20 दिनों से आ रही हैं.

मीडिया ने देर से ही सही, हंगामाखेज़ रिपोर्टिंग शुरू की है यानी मामला राष्ट्रीय सुर्खियों में है. मीडिया कवरेज के बारे में चर्चा करना यहां मकसद नहीं है लेकिन ज़्यादातर चैनल यही बताने की कोशिश कर रहे हैं कि डॉक्टर बच्चों का इलाज ठीक से नहीं कर रहे हैं, लीची से लेकर जापान तक की बातें हो रही हैं लेकिन देश की सरकार की ज़िम्मेदारी की नहीं.

बहरहाल, 30 मई को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तकरीबन इसी समय से बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले से बच्चों की मौत की खबरें आनी शुरू हुई थीं, जब 20 से ज़्यादा दिन गुज़र चुके हैं, राज्य में 150 से अधिक बच्चे मौत की नींद सो चुके हैं. डॉक्टर इस बात पर आम राय रखते हैं कि इस बीमारी का सही तरीके से इलाज होने पर जानें बच सकती थीं यानी मेडिकल चूक नहीं, प्रशासनिक और व्यवस्थागत नाकामी है.

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने पटना में पत्रकारों के सवाल के जवाब ज़रूर दिए हालांकि उस प्रेस कॉन्फ़्रेंस की ज़्यादा चर्चा केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री की झपकियों की वजह से रही. मामले के बहुत बढ़ जाने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अस्पतालों का दौरा ज़रूर किया लेकिन बच्चों की मौत का ज़िम्मेदार कौन है? इसका कोई जवाब न तो केंद्र सरकार के पास है, न राज्य सरकार के पास.

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने बीस दिनों के बाद कहा है कि वे लोगों के दुख-दर्द को समझती हैं क्योंकि उनके भी बच्चे हैं.

प्रशासन और व्यवस्था के लिए कौन ज़िम्मेदार है? इसका जवाब मीडिया डॉक्टरों से मांग रहा है. इसी मामले पर चल रही बैठक में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके मंगल पांडे की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जाता है कि वे बीच बैठक में वे पूछ रहे थे कि "कितने विकेट गिरे?"

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क्रिकेट की चिंता केवल बिहार के स्वास्थ्य मंत्री को ही नहीं है, नरेंद्र मोदी की चुप्पी की ख़ास तौर से तब चर्चा में आई जब उन्होंने भारत के सलामी बल्लेबाज़ शिखर धवन के टूटे अंगूठे पर कुछ इस तरह की भावना ज़ाहिर की, "शिखर, बेशक पिच पर आपकी कमी खलेगी, लेकिन मैं उम्मीद करता हूँ कि आप जल्द-से-जल्द ठीक हो जाएं और मैदान पर लौटकर देश की जीत में और योगदान करे सकें."

इसके अलावा, अपने दूसरा कार्यकाल शुरू करने के बाद से नरेंद्र मोदी अनेक ट्वीट कर चुके हैं. उन पर एक नज़र डालना काफ़ी दिलचस्प होगा. कुल 134 ट्वीट में से 32 तो सिर्फ़ अलग-अलग योगासनों के बारे में हैं या फिर दुनिया भर में योग की लोकप्रियता पर हर्ष और गर्व दिखाने के लिए.

योगदिवस पर मोदी

इमेज स्रोत, @narendramodi

बाकी ट्वीट विश्व पर्यावरण दिवस का संदेश, योगी आदित्यनाथ को जन्मदिन की बधाई, ब्रह्मकुमारी समुदाय की आध्यात्मिक गुरु सरला दीदी के निधन पर शोक, क्रिकेट टीम को वर्ल्ड कप के लिए शुभकामनाएं, गुरुवायुर और तिरुपति मंदिर के दर्शन के सौभाग्य का उल्लेख, विदेश यात्राओं का विवरण, विदेशी नेताओं से सौहार्द्रपूर्ण मुलाकातों के बारे में हैं.

शिखर धवन की टूटे अंगूठे पर अफ़सोस जताने के बाद नरेंद्र मोदी की अगली ट्वीट में सांसदों की दावत की तस्वीरें हैं, जिसमें वे ढाई किलो का सनी देयोल का हाथ थामे मुस्कुरा रहे हैं और विजयी सांसदों को बधाई दे रहे हैं. उसके बाद वे फिर अपने प्रिय विषय योग की तरफ़ लौट आए हैं.

वैसे भी मुज़फ़्फ़रपुर के गांव में बिलख रहे माँ-बाप ट्विटर थोड़े ही देखते हैं?

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