संजीव भट्ट को जेल पहुंचाने वाला 1990 का वो मामला

संजीव भट्ट

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    • Author, विनीत खरे
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

नौकरी से बर्ख़ास्त पूर्व आईपीएस अफ़सर संजीव भट्ट को करीब 30 साल पुराने पुलिस हिरासत में मौत के एक मामले में गुजरात के जामनगर की एक अदालत ने उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है.

अपने 400 से ज़्यादा पन्ने के फ़ैसले में अदालत ने सभी सातों अभियुक्तों को दोषी करार दिया. अदालत ने संजीव भट्ट सहित दो लोगों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई है.

संजीव की पत्नी श्वेता भट्ट ने बीबीसी से कहा, "हम मुकदमे की सुनवाई से संतुष्ट नहीं हैं. मेरे पति एक ईमानदार अफ़सर थे और उन्हें अपनी ड्यूटी करने के लिए सज़ा दी जा रही है. हम इस फ़ैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे."

जबकि सरकारी वकील तुषार गोकानी ने कहा कि सात अभियुक्तों में से दो को प्रभुदास माधवजी वैशनानी की हिरासत में मौत के लिए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई, जबकि बाकी पांच लोगों को "शक़ का फ़ायदा देते हुए हिरासत में यातना देने का दोषी पाया गया."

तुषार गोकानी ने फ़ैसले को "मानवाधिकारों के लिए महत्वपूर्ण" बताया और कहा कि वो अदालत के फ़ैसले को ऊंची अदालत में चुनौती देंगे ताकि बाकी के पांच दोषी करार दिए गए लोगों को भी उम्रकैद की सज़ा मिले.

कई कोशिशों के बावजूद संजीव भट्ट के वकील आईएच सय्यद से बातचीत नहीं हो पाई.

आईआईटी मुंबई के छात्र रहे संजीव भट्ट ने साल 1988 में गुजरात काडर से आईपीएस ज्वाइन किया था.

उन्हें साल 2011 में बिना इजाज़त नौकरी से ग़ैरहाज़िर रहने और सरकारी गाड़ी के कथित दुरुपयोग के मामले में नौकरी से सस्पेंड किया गया था और फिर 2015 में नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया गया.

संजीव भट्ट

गिरफ़्तारी और मानवाधिकार हनन

अपनी बर्ख़ास्तगी पर 19 अगस्त 2015 को संजीव भट्ट ने एक ट्वीट में कहा था, "आखिरकार मुझे 27 साल आईपीएस की सर्विस के बाद नौकरी से हटा दिया गया. मैं फिर नौकरी के लिए तैयार हूँ. क्या कोई लेने वाला है?"

संजीव भट्ट उस वक्त सुर्खियों में आए जब 2002 गुजरात दंगे में उन्होंने उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी की कथित भूमिका को लेकर गंभीर आरोप लगाए.

संजीव भट्ट सितंबर 2018 से एक कथित ड्रग प्लांटिंग मामले में जेल में हैं. संजीव भट्ट का कहना है कि उन्हें इस झूठे मुकदमे में फंसाया गया है.

फिलहाल संजीव भट्ट को जिस मामले में उम्र कैद की सज़ा हुई है वो 1990 का मामला है.

उस वक्त संजीव भट्ट जामनगर में एएसपी यानी असिस्टेंट सुप्रिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस के पद पर थे.

मामला प्रभुदास माधवजी वैशनानी सहित 133 लोगों को टाडा कानून के अंतर्गत हिरासत में लेने का है. बाद में इसे आरोपियों पर से वापस ले लिया गया था.

टाडा क़ानून के प्रावधान बेहद सख़्त थे. आलोचक मानते थे कि इससे मानवाधिकारों का हनन हुआ.

1990 वो वक़्त था जब बिहार में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की अयोध्या रथयात्रा को रोका गया और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था.

गिरफ़्तारी के बाद भारत बंद की कॉल दी गई थी और कई जगह दंगे भड़क उठे थे. कई जगह दंगाइयों ने आगज़नी भी की थी.

अम्रुतभाई

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जिनकी गिरफ़्तारी हुई उनमें 39 साल के प्रभुदास माधवजी वैशनानी भी थे. वो 30 अक्टूबर 1990 का दिन था और प्रभुदास के बड़े भाई अम्रुतभाई उस दिन घर पर ही थे.

प्रभुदास के परिवार में पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चे थे जिनकी उम्र चार, छह और आठ साल थी.

बीबीसी से बातचीत में अम्रुतभाई ने बताया, "मेरे दो भाई को वे (पुलिसवाले) लोग घर से उठा ले गए थे. अभी आज तक मुझे नहीं पता कि उन्हें क्यों उठा ले गए... उस वक्त हम क़ायदे क़ानून की बात जानते नहीं थे कि पुलिस के सामने क्या करना है. पुलिसवालों से लोग बहुत डरते थे. कैसे ले गया क्यों ले गया, पूछने का भी टाइम नहीं मिला. पुलिस ने बताया भी नहीं. बाद में पता चला कि उसे टाडा में गिरफ़्तार किया गया था."

प्रभुदास माधवजी वैशनानी

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पुलिस हिरासत में मौत

अम्रुतभाई के मुताबिक, घर में घुसकर उनके भाइयों को उठा ले जाने वालों में संजीव भट्ट भी थे. दूसरे भाई का नाम रमेश भाई है.

अम्रुतभाई बताते हैं कि गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने लोगों को डंडे से मारा और उनसे उठक-बैठक करवाई.

वो कहते हैं, "डंडे की मार और उठक बैठक कराने से उसकी किडनी पर असर आ गया. दोनो भाई को किडनी की समस्या हो गई."

गुर्दे में चोट के कारण प्रभुदास 18 नवंबर को चल बसे जबकि दूसरे भाई रमेशभाई को 15-20 दिनों में अस्पताल से "किडनी की रिकवरी" के बाद छुट्टी मिल गई.

अम्रुतभाई से बातचीत में दोनों भाइयों के गुर्दे की चोट के बीच फर्क के बारे में पता नहीं चल पाया.

अम्रुतभाई के मुताबिक, उन्होंने भाई के पोस्टमार्टम के लिए एसडीएम को अर्ज़ी दी जिसमें उन्होंने लिखा कि "पुलिस की मार से" भाई की मौत हुई.

वो कहते हैं, "एसडीएम ने हमें मंज़ूरी दी और उसे पुलिस डिपार्टमेंट को भेज दी. पुलिस डिपार्टमेंट ने हमारी अर्ज़ी को एफ़आईआर में बदल दिया.

साल 1990 में मामले की जांच सीआईडी ने शुरू कर दी गई. लेकिन चार्जशीट फ़ाइल करने के लिए सरकारी सहमति नहीं मिलने के कारण मामला खिंचता चला गया.

संजीव भट्ट

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90 का मामला 2015 में शुरू हुआ

सरकारी वकील तुशार गोकानी कहते हैं, "चार्जशीट फ़ाइल करने की सहमति 1995-95 में मिली जिसे अभियुक्त ने अदालत में चुनौती थी. हाईकोर्ट की आलोचना के बाद 2012 में चार्जशीट दायर हुई जबकि पूरी तरह सुनवाई 2015 में शुरू हुई."

अम्रुतभाई बताते हैं कि बड़े भाई की मौत के बाद बाकी भाइयों ने प्रभुदास के परिवार की ज़िम्मेदारी उठाई.

वो कहते हैं, "हमने उनकी ज़िम्मेदारी ली और आज तक निभा रहे हैं. हमारे हिसाब से जो हो पाया हमने कर दिया. फ़ैमिली को देखने और देखभाल करने में बहुत दर्द हुआ. एक उनकी देखभाल करना, दूसरी कानूनी लड़ाई के लिए संघर्ष करना. हमें दोनों ओर से लड़ना पड़ा."

रमेशभाई का जामनगर में बुकस्टोर का काम है.

संजीव भट्ट की पत्नी का बयान

संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने एक बयान जारी कर कहा है, "गिरफ़्तार किए गए 133 लोगों में मृतक और उसका भाई, संजीव भट्ट या उनके स्टाफ़ की हिरासत में नहीं थे. इनमें से किसी से भी संजीव भट्ट या उनके स्टाफ़ ने पूछताछ नहीं की थी."

बयान में कहा गया है, "ध्यान देने वाली बात ये है कि 31 अक्टूबर 1990 को जब स्थानीय पुलिस ने नजदीकी मजिस्ट्रेट के सामने इन लोगों को हाज़िर किया तो मृतक प्रभुदास माधवजी वैश्नानी या अन्य गिरफ़्तार 133 दंगाईयों ने किसी भी तरह के टॉर्चर या कोई अन्य शिकायत दर्ज नहीं कराई."

"हिरासत में टॉर्चर की शिकायत प्रभुदास माधवजी वैश्नानी की मौत के बाद अम्रुतलाल माधवजी वैश्नानी ने दर्ज कराई थी जोकि विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी के सक्रिय सदस्य भी थे."

श्वेता भट्ट के मुताबिक, "संजीव भट्ट के ख़िलाफ़ दर्ज कराई गई शिकायत राजनीतिक बदले की कार्रवाई का एक सटीक उदाहरण है."

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