डॉक्टरों की हड़ताल: न ममता झुकने को तैयार न डॉक्टर, अब आगे क्या

    • Author, प्रभाकर एम.
    • पदनाम, कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए

पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के छठे दिन में प्रवेश करने के बावजूद अब तक गतिरोध टूटने की कोई राह नहीं नज़र आ रही है.

हड़ताली डॉक्टरों और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच शायद अकड़ और अहम की लड़ाई ने इस समस्या के समाधान की राह उलझा दी है. ममता की कुछ टिप्पणियों ने आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया है.

हालांकि शनिवार शाम को अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ममता के सुर में नरमी नज़र आई लेकिन जूनियर डॉक्टरों की दो मूल मांगों पर उनका रुख़ जस का तस रहा. इसी दौरान बंगाल में रहने वालों को बांग्ला सीखना और बोलना होगा जैसे बयानों ने भी ममता की छवि को ठेस पहुंचाई है.

इसे डॉक्टरों की हड़ताल और इसमें बीजेपी की कथित भूमिका के संदर्भ में जोड़ कर देखा जा रहा है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता बनर्जी ने डॉक्टरों की मांगों के समक्ष झुकने को शायद अपनी आन-बान-शान की लड़ाई बना लिया है.

हड़ताली डॉक्टर पहले दिन से ही दो मांगों पर ज़ोर दे रहे हैं. पहली यह कि मुख्यमंत्री को उस नील रतन सरकार मेडिकल कॉलेज में आकर आंदोलनकारियों से बात-मुलाक़ात करनी होगी जहां बीते सोमवार की रात को दो जूनियर डॉक्टरों की पिटाई के बाद समस्या शुरू हुई थी.

इसके साथ ही डॉक्टर मुख्यमंत्री दफ़्तर से डॉक्टरों पर हमले की निंदा करने वाला बयान जारी करने की भी मांग कर रहे हैं. लेकिन ममता ने इन पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

हालांकि उन्होंने इस बात का पर्पाप्त संकेत दे दिया है कि उनका इन मांगों को मानने का कोई इरादा नहीं है. शनिवार शाम को अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उनका कहना था कि हड़ताली डॉक्टरों से बातचीत के लिए राज्य सचिवालय से बेहतर और सम्मानजनक कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती.

उन्होंने सीधे यह नहीं कहा कि वे एनआरएस मेडिकल कॉलेज नहीं जाएंगी. इसी तरह मुख्यमंत्री अब तक हमले में घायल दोनों जूनियर डॉक्टरों को भी देखने नहीं गईं हैं. स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य और स्वास्थ्य विभाग के तमाम अधिकारी उन दोनों को देखने जा चुके हैं.

ममता गुरुवार को एनआरएस की बजाय एसएसकेएम अस्पताल गईं थीं लेकिन वहां आंदोलनकारियों में बाहरी लोगों के शामिल होने का आरोप लगा कर उन्होंने हड़ताली डॉक्टरों को और भड़का दिया.

उन्होंने उस दिन जूनियर डॉक्टरों को लताड़ते हुए पहले उनको काम पर लौटने के लिए चार घंटे का समय दिया था और फिर यह समय सीमा घटा कर दो घंटे कर दी.

ममता ने काम पर नहीं लौटने वालों से हॉस्टल ख़ाली कराने और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की धमकी भी दी थी. मौक़े पर ममता को जूनियर डॉक्टरों की नारेबाजी का भी सामना करना पड़ा.

ममता ने कहा, "एसएसकेएम में मुझे धक्का दिया गया और मेरे ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं लेकिन इस अपमान के बावजूद मैंने पुलिस को किसी की गिरफ़्तारी से मना कर दिया."

वो कहती हैं कि सरकार जोर-जबर्दस्ती करने या एस्मा लगाने के पक्ष में नहीं है. ममता के दो-दो बार न्योते के बावजूद हड़ताली छात्र शुक्रवार और शनिवार को उनसे मिलने राज्य सचिवालय नहीं पहुंचे. ममता ने मुंह से भले कुछ नहीं कहा हो, जूनियर डाक्टरों के रवैये ने उनकी नाराज़गी बढ़ाई है.

न डॉक्टर मानने को तैयार न ममता

हालांकि राज्य में मरीजों की बढ़ती मौतों और चौतरफ़ा आलोचना की वजह से ममता बार-बार इस समस्या के शीघ्र समाधान की बात करते हुए आंदोलनकारियों से फौरन काम पर लौटने की अपील कर रही हैं.

ममता ने इससे पहले भी एनआरएस मेड़िकल कॉलेज के डॉक्टरों से फ़ोन पर बात करने का प्रयास किया था, लेकिन आंदोलनकारी इसके लिए राज़ी नहीं हुए.

इस बीच, केंद्र सरकार ने जहां राज्य सरकार से इस मुद्दे पर रिपोर्ट मांगी है वहीं कोलकाता हाई कोर्ट ने भी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सरकार को यह गतिरोध दूर करने और डॉक्टरों पर हमले के मामले में की गई कार्रवाई से अदालत को अवगत कराने को कहा है.

राज्यपाल केसरी नात्र त्रिपाठी ने शुक्रवार को कहा था कि इस मुद्दे पर बातचीत के लिए उन्होंने ममता को फ़ोन किया था. लेकिन उनका फ़ोन नहीं आया. उसी ममता ने शनिवार को राज्यपाल से फ़ोन पर बात की और दावा किया कि सरकार की इस मामले में उठाए गए क़दमों से वे (राज्यपाल) संतुष्ट हैं.

एक वरिष्ठ चिकित्सक नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "इस मामले में डॉक्टरों पर बीजेपी समर्थक और बाहरी होने का आरोप लगा कर ममता ने बर्र की छत्ते में हाथ डाल दिया है."

"अममून हर छोटी-बड़ी घटना के बाद मौक़े पर पहुंचने वाली ममता अगर पांच दिनों के बाद भी एनआरएस मेडिकल कालेज नहीं पहुंची हैं तो साफ है कि वे इस घटना को राजनीतिक दूरबीन से देख रही हैं."

पक्ष-विपक्ष की राजनीति और डॉक्टर

ममता ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जूनियर डॉक्टरों की तमाम जायज़ मांगे मान लेने का दावा किया. लेकिन 'जॉइंट फोरम आफ जूनियर डॉक्टर्स' के प्रवक्ता अरिंदम दत्त कहते हैं, "सरकार की ओर से गतिरोध दूर करने की ईमानदार पहल नहीं नज़र आ रही है. हड़ताली डॉक्टरों से बात करने के लिए मुख्यमंत्री को एनआरएस मेडिकल कालेज आना होगा. लेकिन इसमें शायद ममता का अहम आड़े आ रहा है."

शायद यही वजह है कि स्वास्थ्य राज्य मंत्री और विभाग के तमाम आला अधिकारियों को मौक़े पर भेजने के बावजूद उन्होंने अब तक उधर का रुख नहीं किया है. उन्होंने दो दिन पहले ही बीजेपी पर सीपीएम की सहायता से इस आंदोलन को भड़काने का आरोप लगाया था.

वहीं, ममता बनर्जी का आरोप है कि कुछ राजनीतिक दल सोशल मीडिया पर ग़ुमराह करने वाली झूठी ख़बरें फैला रहे हैं.

बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा कहते हैं, "ममता ने अब इस मामले को अपनी नाक और अहम का सवाल बना दिया है. उनको लगता है कि हड़ताली डॉक्टरों की मांग के आगे झुकने पर उनकी छवि ख़राब हो जाएगी. ममता के इस रवैये की बंगाल को भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है. रोज़ाना लोग इलाज के अभाव में मारे जा रहे हैं."

बीजेपी ने बंगाल में रहने पर बांग्ला सीखने और बोलने वाले बयान के लिए ममता की आलोचना करते हुए कहा है कि वे डॉक्टरों की हड़ताल के मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ऐसे बेसिर-पैर के बयान दे रही हैं.

दो साल में 175 हमले

सीपीएम विधायक सुजन दत्त कहते हैं, "ममता इतने गंभीर मसले को सुलझाने में पूरी तरह नाकाम रही हैं. उनकी दिलचस्पी गतिरोध दूर करने की बजाय राजनीतिक खेल में है. अपनी टिप्पणियों से उन्होंने उल्टे गतिरोध बढ़ा दिया है."

इंडियन मेडिकल असोसिएशन यानी आईएम भी ममता पर समस्या को सुलझाने की बजाय उलझाने का आरोप लगा चुकी है.

जाने-माने चिकित्सक विनायक सिन्हा ने एक स्थानीय अख़बार में लिखे अपने लेख में कहा है कि बीते दो साल में बंगाल में डॉक्टरों के साथ मारपीट की लगभग 175 घटनाएं हो चुकी हैं. लेकिन सोमवार की घटना ने तो सारी हदें पार कर दीं. इससे साफ़ हो गया है कि डॉक्टरों के लिए काम-काज का माहौल कितना असुरक्षित है और सरकार को उनकी कितना चिंता है.

राजनीतक पर्वयेक्षकों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों से बाद से हालात ममता के अनुकूल नहीं हैं. उसके बाद वे कई बार विवादास्पद बयान दे चुकी हैं. वह चाहे जय श्रीराम बोलने पर लोगों को धमकाने और गिरफ्तार कराने का मुद्दा हो, बंगाल में रहने वालों के बांग्ला सीखने का या फिर डॉक्टरों की हड़ताल से निपटने का.

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर सोमनाथ समाद्दार कहते हैं, "लोकसभा चुनावों के बाद ममता को हर चीज में बीजेपी की साज़िश नजर आ रही है. यही वजह है कि वे राज्य में सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं ठप होने के बावजूद इस मामले में भी रत्ती भर झुकने को तैयार नहीं हैं."

कोलकाता के एक वरिष्ठ चिकित्सक नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, "ममता की अकड़ और अहं इस गतिरोध को दूर करने की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं. न तो वे झुकने को तैयार हैं और न ही हड़ताली डॉक्टर. ऐसे में इस गतिरोध को दूर करने की कुंजी जल्दी शायद ही मिले."

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