मसूद अज़हर के मसले पर चीन नरम क्यों पड़ा?

    • Author, प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह
    • पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने बुधवार को पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख अज़हर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया.

ये मुमकिन हो सका क्योंकि पाकिस्तान के सबसे बड़े समर्थक और इस मामले में हर बार वीटो लगा देने वाले चीन ने अपने रुख़ में बदलाव किया.

इससे पहले जब भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने पर चर्चा हुई, तो चीन ने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर ऐसा होने से रोक दिया.

क़रीब 10 साल से चीन का यही रुख़ रहा है. इस दौरान उसने हमेशा यही कहा कि इस मामले में जल्दबाज़ी नहीं की जानी चाहिए; और ऐसे फैसले तभी प्रभावी हो सकते हैं, जब वक़्त और सब्र के साथ काम लिया जाए और सभी सदस्यों में सहमति बने.

भारत ने मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सबसे पहले 2009 में मुंबई में हुए 26/11 हमलों के बाद रखा था.

सुरक्षा परिषद में वीटो पावर रखने वाले स्थाई सदस्य अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस ने भी बाद में इस तरह का प्रस्ताव लाया जबकि एक और स्थाई सदस्य रूस अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रस्ताव का समर्थन करने का वादा करता रहा है.

मसूद के लिए अकेले खड़ा रहा चीन

चीन को अकेला छोड़ते हुए सुरक्षा परिषद के अस्थाई स्दस्यों में से भी ज़्यादातर इस प्रस्ताव के समर्थन में आ गए थे. चीन की इस बात के लिए निंदा होने लगी कि वो पाकिस्तान स्थित इस चरमपंथी का समर्थन कर रहा है जिसका ट्रैक रिकॉर्ड काफ़ी ख़राब रहा है.

लेकिन जब सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध कमेटी मसूद अज़हर के मामले में आम राय नहीं बना सकी तब फ़्रांस ने इस मामले में अगुवाई करते हुए ख़ुद ही मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया. इससे चीन और अलग-थलग पड़ गया.

भारत में इसी साल फ़रवरी में पुलवामा में हुए चरमपंथी हमले के बाद फ़्रांस, ब्रिटेन और अमरीका ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध कमेटी की मार्च में हुई बैठक में ये प्रस्ताव फिर से रखा. लेकिन चीन ने आख़िरी समय पर एक बार फिर इसपर 'तकनीकी रोक' लगा दी और ये मुद्दा एक बार फिर छह महीने के लिए ठंडे बस्ते में चला गया.

ये चौथी बार था जब चीन ने 'तकनीकी रोक' लगाई थी और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति से इस मसले पर और चर्चा करने के लिए कहा था.

लेकिन इसके कुछ ही दिनों के बाद चीन के विदेश मंत्री और भारत में उनके राजदूत इस मुद्दे का जल्द समाधान निकालने की बात करने लगे और छह हफ़्ते के अंदर ही चीन ने इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे दी.

लेकिन चीन का ये हृदय परिवर्तन कैसे हुआ?

इसकी एक वजह ये हो सकती है कि चीन की ओर से बार-बार लगाई जा रही इस तकनीकी रोक को देखते हुए ट्रंप प्रशासन (जिसका चीन के साथ पहले से व्यापार युद्ध चल रहा है) ने पिछले महीने सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर बहस करने का प्रस्ताव दिया था. अमरीका ने कहा था कि ये बहस सुरक्षा परिषद के टेबल पर होनी चाहिए.

अमरीका के इस प्रस्ताव ने चीन को परेशानी में डाल दिया क्योंकि अब चीन को अपना रवैया सार्वजनिक रूप से रखना पड़ता. इससे पहले वो प्रतिबंध समिति की बंद दरवाज़ों के पीछे होने वाली बैठकों में अपनी बात रखता था जिससे ये पता नहीं चल पाता था कि इस मामले में चीन दरअसल क्या कहता था.

इस तरह का दबाव बनता देख पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने ये प्रचार करना शुरू कर दिया कि मसूद अज़हर बहुत बीमार हैं और जबतक उनके ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिलता, तबतक उन्हें कोर्ट में घसीटा नहीं जाना चाहिए.

इसने चीन और पाकिस्तान (ख़ासकर वहां की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई और सेना) को ये सोचने पर भी मजबूर किया होगा कि क्या मसूद अज़हर अब उनके किसी काम के नहीं रहे और क्या वो भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किए जाने वाले हथकंडे के बजाए एक बोझ बन गए हैं.

ये भी दिलचस्प है कि चीन ने ये फ़ैसला ऐसे वक़्त पर किया जब एक दिन पहले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान चीन की बेल्ट एंड रोड समिट में हिस्सा लेकर बीजिंग से लौटे थे.

इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत चीन के कई नेताओं से मुलाक़ता की थी. ज़ाहिर है इस दौरान मसूद अज़हर पर भी निश्चित तौर पर बातचीत हुई होगी.

हालांकि चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अपना फैसला तो बता दिया, लेकिन पाकिस्तान को कम से कम नुक़सान हो, इसके लिए चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसकी कोई समयसीमा नहीं बताई और अपनी पार्टी लाइन को दोहराते हुए कहा कि जल्द से जल्द इस मसले का उचित समाधान निकाला जाना चाहिए.

चीन की परेशानी को और बढ़ाते हुए पेरिस स्थित फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफ़एटीएफ़) ने पिछले एक साल में पाकिस्तान पर नकेल कसते हुए उसे अपनी 'ग्रे लिस्ट' में डाल दिया और उसे जून तक 'काली सूची' में डालने की भी चेतावनी दी. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

एफ़एटीएफ़ ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि वो अपनी धरती पर विभिन्न चरमपंथी संगठनों की आर्थिक फंडिग रोकने में नाकाम रहा है.

चीन फिलहाल एफ़एटीएफ़ का उपाध्यक्ष है और अक्तूबर में अध्यक्ष बनने वाला है. चीन ने अपने फ़ैसले में इस बात का भी ध्यान रखा होगा.

इसके अलावा भारत की हाल में की गई राजनयिक कोशिशें, ख़ासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आतंकवाद-विरोधी अभियान को भी सराहने की ज़रूरत है, जिसके तहत मोदी चीन समेत सभी महाशक्तियों से सक्रिय द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बातचीत के दौरान इस मुद्दे को पुरज़ोर तरीक़े से उठाते रहे हैं.

ये भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि पिछले अप्रैल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच वूहान इनफ़ॉर्मल समिट के दौरान हुई मुलाक़ात में ही इस बात पर सैद्धांतिक तौर पर सहमति बना ली गई थी.

चीन की घोषणा की टाइमिंग से ये भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तरफ़ से मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने का फ़ायदा भारत में हो रहे आम चुनाव में ले सकती है. वो इसे चीन और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपनी विदेश नीति की बड़ी जीत के तौर पर पेश कर सकती है.

लेकिन सरसरी तौर पर इस पूरे मामले की हक़ीक़त पर निगाह डाली जाए तो पता चल जाएगा कि मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाना प्रतीकात्मक महत्व से ज़्यादा कुछ भी नहीं है.

हाफ़िज़ सईद का मामला इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण है.

मसूद अज़हर का क्या होगा

मुंबई में 26/11 के चरमपंथी हमले के बाद ओबामा प्रशासन ने 2012 में हाफ़िज़ सईद के बारे में पुख़्ता सबूत जुटाने वाले को (जिससे उन्हें सज़ा दी जा सके) एक करोड़ डॉलर का इनाम देने का वादा किया था.

पाकिस्तान में इतनी ग़रीबी के बावजूद कोई भी इस इनाम के लालच में नहीं आया. ज़्यादा से ज़्यादा पाकिस्तान की सरकार ने कई बार हाफ़िज़ सईद को 'नज़रबंद' कर दिया था और अदालतों ने उन्हें सभी मामलों में बरी कर दिया.

हाफ़िज़ सईद ना सिर्फ़ पाकिस्तान में खुले आम घूमते रहे हैं, बल्कि उन्होंने वहां एक राजनीतिक पार्टी भी बना ली. इस पार्टी ने पिछले साल जुलाई में हुए चुनावों में नेशनल असेंबली के लिए 80 उम्मीदवारों और प्रांतीय विधान सभाओं के लिए 185 उम्मीदवारों को उतारा था.

मसूद अज़हर की क़िस्मत भी इससे कुछ अलग नहीं होगी.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)