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निशानेबाज़ श्रेयसी क्या लगा पाएंगी सटीक निशाना
- Author, मनीष शांडिल्य
- पदनाम, बांका से, बीबीसी हिंदी के लिए
गैस सिलिंडर छाप भूलिएगा नहीं...
मैं पुतुल कुमारी की बेटी उनके लिए आपका आशीर्वाद मांगने आई हूँ...
18 तारीख को वोट ज़रूर कीजियेगा और सिलिंडर वाला ही बटन दबाइएगा...
बीते करीब तीन हफ़्ते से कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली अंतरराष्ट्रीय शूटर और अर्जुन पुरस्कार प्राप्त श्रेयसी सिंह कुछ ऐसी ही गुजारिशों के साथ शूटिंग रेंज की जगह गांव-कस्बों की गलियों और सड़कों पर पसीना बहा रही हैं.
श्रेयसी अपनी मां और पूर्व सांसद पुतुल कुमारी के लिए चुनाव प्रचार कर रहीं हैं जो कि तीसरी बार बिहार के बांका लोक सभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में है. साल 2014 में वह भाजपा प्रत्याशी थीं मगर इस बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं और उनका चुनाव चिन्ह है गैस सिलिंडर.
श्रेयसी सुबह सात बजे के करीब बांका शहर से चुनाव प्रचार के लिए निकल जाती हैं और देर रात करीब 11 बजे तक उनका प्रचार चलता रहता है. रात होने पर गांव की गलियों में अगर अंधेरा हो तो वह टॉर्च और मोबाइल की रोशनी में आगे बढ़ती हैं.
पुरखों से मिली राजनीतिक विरासत
श्रेयसी सिंह की एक पहचान उनके दिवंगत पिता और बांका के पूर्व सांसद दिग्विजय सिंह भी हैं. यही वजह है कि प्रचार के दौरान जब श्रेयसी अलग-अलग गांव पहुंचती हैं तो लोग उन्हें दिग्विजय की बेटी के तौर पर भी पहचानने लगते हैं.
दिवंगत दिग्विजय सिंह इलाके में अब भी बड़े कद के नेता के तौर पर याद किए जाते हैं. जेएनयू से पढ़े और तीन बार सांसद और केंद्र में मंत्री रहे दिग्विजय सिंह बांका ही नहीं बल्कि पूरे बिहार के बड़े नेता थे. बांका को रेल मार्ग से जोड़ने का काम उनकी ही पहल पर मुमकिन हो पाया था.
श्रेयसी के लिए राजनीति कोई नई चीज नहीं है. हां यह ज़रूर है कि इस लोक सभा चुनाव में बहुत ज्यादा सक्रिय हैं.
शूटिंग रेंज छोड़ कर क्या आप अपनी माँ के राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर निशाने साध रही हैं? इस सवाल का जवाब वह किसी सधे हुए राजनीतिज्ञ की तरह देती हैं. उन्होंने कहा, "हमारी लड़ाई किसी पार्टी या व्यक्ति के ख़िलाफ़ नहीं है. हमारी लड़ाई बेरोजगारी से है. बिहार के विकास का काम रुक सा गया है, हमें उसे आगे बढ़ाना है."
श्रेयसी रोज़ करीब 25 गांव में जाकर प्रचार करती हैं. वे घर-घर जाकर और नुक्कड़ सभा कर लोगों का दिल जीतने की कोशिश कर रही हैं.
श्रेयसी का कहना है, "युवाओं और महिलाओं का पूरा समर्थन मिल रहा है. मुझे माइक वगैरह की ज़रूरत नहीं पड़ी लेकिन लोगों से बातचीत कर मैं अपना संदेश लोगों तक पहुंचा देती हूँ और मैं उनके ओपिनियन सुन भी लेती हूँ."
शूटिंग पर कितना असर
श्रेयसी का डेली रूटीन अभी बहुत ज़्यादा बदला हुआ है. उन्होंने बताया, "सुबह सात बजे घर से निकलकर रात ग्यारह बजे तक लौटना होता है. दोपहर के करीब दो घंटे की मीटिंग होती है. दिन के खाने का टाइम थोड़ा ऑफ़ रहता है."
श्रेयसी के मुताबिक उन्हें एथलीट होने का फ़ायदा मिल रहा है कि वह रोज करीब 16-17 घंटे के काम करने के बावजूद जल्दी थकती नहीं हैं. वह यह भी कहती हैं, "जोश और जुनून इतना है कि यह थकने नहीं देता और लोगों से मिलने से इतना जोश मिलता है आदमी चलता रहता है."
क्या शूटिंग से करीब एक महीने दूर रहने पर इसका असर उनके प्रदर्शन पर पड़ेगा?
इसके जवाब में वह कहती हैं, "मैं दस साल से शूटिंग कर रही हूँ. इसलिए तीन-चार हफ्ते इससे दूर रहने पर मेरे स्किल पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा. ये ब्रेक मैं आसानी से मैनेज कर लूंगी. और ऐसा भी नहीं है कि मैं शूटिंग से पूरी तरह दूर हूँ. मैं मेंटल ट्रेनिंग ले रही हूं. कोच, न्यूट्रिशियन और फ़िजिकल ट्रेनर के लगातार संपर्क में हूँ."
कौन बने देश का प्रधानमंत्री
श्रेयसी नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं. हालांकि बांका में एनडीए प्रत्याशी के रूप में गिरिधारी यादव मैदान में हैं.
दरअसल पुतुल कुमारी अपनी जगह जदयू के गिरिधारी यादव को बांका से उम्मीदवार बनाए जाने के कारण ही भाजपा से इस्तीफ़ा देकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं.
भाजपा द्वारा टिकट नहीं दिए जाने पर श्रेयसी कहती हैं, "बांका में भाजपा का संगठन खड़ा करने में 70 फीसदी भूमिका पुतुल कुमारी की है. इस कारण भाजपा के बहुत सारे लोग यह सीट जदयू को दिए जाने के कारण खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं और वो पुतुल कुमारी को सपोर्ट कर भाजपा का समर्थन कर रहे हैं. और उन्हें यकीन है कि प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन की बात पर हम भाजपा में वापस लौट जायेंगे."
ओलंपिक का सपना
श्रेयसी के मुताबिक जदयू ने उन्हें उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने बताया, "जदयू की ओर से मुझे उम्मीदवार बनाने के लिए संपर्क किया गया था लेकिन मेरा, मेरे पिता और पूरे बिहार का सपना है कि कोई बिहारी ओलंपिक में पहुंचे. ये सपना राजनीति की महत्त्वाकांक्षा से ज्यादा अहम है और मैं वो सपना जीना चाहती हूँ.''
वैसे श्रेयसी अपने पिता का एक सपना पूरा कर चुकी हैं. दिग्विजय सिंह का सपना था कि श्रेयसी कामनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीते.
उनका यह सपना पूरा हुआ मगर वह इसे अपनी आँखों से देख नहीं पाए. साल 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी के सिलसिले में दिग्विजय सिंह लंदन गए हुए थे तभी वहां उनकी अचानक तबियत बिगड़ी और इसके बाद वहीं उनकी मौत हो गई. अपनी मौत के समय दिग्विजय सिंह सांसद होने के साथ-साथ नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी थे.
2010 के कामनवेल्थ गेम्स दिल्ली में होने वाले थे और इसके पहले उसी साल हुए कामनवेल्थ शूटिंग चैंपियनशिप में श्रेयसी ने सिल्वर मेडल जीता था. तब दिग्विजय सिंह ने अपने एक रिश्तेदार के जरिये श्रेयसी तक अपनी यह ख्वाहिश पहुंचाई थी.
श्रेयसी को अपने पिता का यह सपना पूरा करने में आठ साल लगे जब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीता.
ओलंपिक शूटिंग में सिल्वर जीतने वाले राज्यवर्धन सिंह राठौर खेल और राजनीति दोनों ही फील्ड में श्रेयसी के आइकॉन हैं.
उन्होंने बताया, "शॉट गन शूटिंग में मेरा पैशन उनके खेल को देख कर ही पैदा हुआ. उन्होंने मुझे कोचिंग भी दी है."
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