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चीन आख़िर क्यों मसूद अज़हर को चरमपंथी घोषित करने की भारत की मांग का विरोध करता है
चीन संयुक्त राष्ट्र के 15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद का अकेला ऐसा देश है जो मसूद अज़हर को चरमपंथी घोषित करने के भारत के आवेदन का विरोध करता रहा है.
चीन ने भारत के इस आवेदन पर दो बार विरोध किया है. पहला विरोध छह महीने के लिए था और दूसरी बार विरोध किया तो तीन महीने के लिए ये आवेदन रुक गया.
जिसके बाद अब भारत को नया आवेदन यूएन में पेश करना होगा ताकि पाकिस्तान के रहने वाले मसूद अज़हर को बतौर चरमपंथी संयुक्त राष्ट्र की सूची में शमिल किया जाए.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनईंग ने 30 अक्तूबर, 2017 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, ''हम भारत के इस आवेदन पर चीन का पक्ष कई बार विस्तार से बता चुके हैं.''
''सुरक्षा परिषद के 1267 समिति में आतंकवादी संगठनों या किसी शख़्स के लिस्टिंग के मानदंडों के लिए स्पष्ट नियम हैं.''
''चीन हमेशा यह बात समिति में रखता रहा है कि लिस्टिंग के मामले में, 1267 समिति निष्पक्ष और प्रोफ़ेशनल तरीक़े से सिद्धांतों का पालन करे और ठोस सबूतों के आधार पर अन्य सदस्यों के बीच सर्वसम्मति से अपने फ़ैसले करे.''
''अगर हम लिस्टिंग के इस निवेदन की बात करें तो 1267 समिति में इसे लेकर मतभेद हैं. हमने इस प्रस्ताव को इसलिए रोका ताकि समिति को इस पर विचार करने के लिए और सभी पार्टियों को इस पर मशवरा करने का वक़्त मिल सके. हालांकि अब तक इस पर आम सहमति नहीं बन सकी है.''
''हम 1267 समिति के तहत जो फ़ैसले लेते हैं, उसका उद्देश्य समिति की अथॉरिटी और वैधता को बनाए रखना है, चीन सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और 1267 समिति के नियमों के अनुरूप सभी संबंधित पक्षों के साथ बातचीत करता रहेगा."
जब चुनयिंग से सवाल किया गया कि आख़िर चीन अकेले ही भारत के इस आवेदन का विरोध क्यों कर रहा है, क्या चीन ऐसा किसी व्यक्तिगत कारणों से कर रहा है?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ''मैं समझ सकता हूं कि आपने ये सवाल क्यों पूछा है, लेकिन मैं इससे इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता. चीन आतंकवाद के मुद्दे पर हमेशा ही निष्पक्ष और आतंकवाद-विरोधी रहा है. हम कोई भी फ़ैसला मुद्दे के सबूतों पर लेते हैं. ''
''पाकिस्तान ख़ुद आतंकवाद से पीड़ित है. चीन आतंकवाद को दूर करने और क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की वकालत करता रहा है.''
''जैसा कि मैंने पहले कहा, सुरक्षा परिषद की 1267 समिति आतंकवादी संगठनों या व्यक्तियों की लिस्टिंग के लिए तय मानदंडों का पालन करती है. समिति में आवेदन को लेकर आम सहमति नहीं बन पायी. हम आगे भी इससे जुड़े सभी पक्षों से संवाद क़ायम करते रहेंगे.''
संयुक्त राष्ट्र की 1267 समिति क्या है?
ये समिति संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रतिबंधों के मानकों की देखरेख करती है. निर्धारित लिस्टिंग के मानदंडों को पूरा करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं को नामित करती है. प्रतिबंधों से छूट के लिए सूचनाओं और अनुरोधों पर भी विचार करती है.
दाएश और अल-क़ायदा को प्रतिबंध सूची से हटाने के अनुरोधों पर विचार करना और इस पर फ़ैसला लेना जैसे काम इस समिति के हैं. मॉनिटरिंग टीम की ओर से पेश किए गए दस्तावेज़ों का अध्ययन और पड़ताल करना भी इस समिति का काम है.
सुरक्षा परिषद को प्रतिबंधों के मानकों की सालाना रिपोर्ट भी यही समिति देती है.
ये हथियारों के आयात पर प्रतिबंध, ट्रैवेल पर प्रतिबंध, संपत्ति ज़ब्त करने जैसे फ़ैसले लेती है. हर 18 महीने में इसकी समीक्षा भी की जाती है.
इस समिति ने अब तक 257 लोगों और 81 संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा चुकी है.
क्या हैं मानक?
अगर कोई वारदात, किसी एक व्यक्ति, समूह, या संस्था का संबंध दाएश या अल-क़ायदा से जुड़े होने के संकेत देती है और अगर वह किसी भी तरह से इन समूहों या संस्थाओं को वित्तीय पोषण, हथियारों की सप्लाई और किसी भी तरह से दाएश और अल-क़ायदा को समर्थन दे रही हो तो वह समूह, संस्था या व्यक्ति इस मानकों को पूरा करता है.
ये समिति कैसे तय करती है?
ये समिति आम सहमति से काम करती है. अगर किसी मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन पा रही है तो इस समिति के अध्यक्ष आम सहमति बनाने के लिए कोशिश करता है. अगर फिर भी समिति के सदस्यों के बीच आम सहमति नहीं बन पा रही है तो मुद्दा सुरक्षा परिषद के पास भेज दिया जाता है.
अगर किसी तरह विरोध नहीं होता है तो इस सुरक्षा परिषद पांच दिनों में फ़ैसला दे देती है. निर्विरोध लिस्टिंग करने या लिस्ट से किसी को बाहर करने की प्रक्रिया 10 दिन तक का वक़्त ले सकती है.
सदस्य किसी निर्णय को बिना किसी तय समय सीमा के रोक भी सकते हैं, हालांकि उनसे अनुरोध किया जाता है कि वे मामले पर अपनी राय तीन महीने में दे दें.
यूएन मसूद अज़हर को क्या मानता है?
जैश-ए-मोहम्मद (जैश) पाकिस्तान का एक चरमपंथी समूह है और मसूद अज़हर इसका मुखिया है. साल 1999 में मसूद अज़हर को भारतीय जेल से रिहा किया गया था. दरअसल, भारतीय एयरलाइन को हाईजैक कर लिया गया था अफ़ग़ानिस्तान के कंधार में ले जाया गया था. भारत सरकार से मसूद अज़हर को विमान में सवार 155 लोगों के बदले छोड़ने की मांग की गई थी. भारत ने उनकी मांग स्वीकार कर ली थी और मसूद अज़हर को भारत ने रिहा कर दिया था.
अज़हर मसूद ने ओसामा बिन लादेन, तालिबान और कई चरमपंथी समूहों की मदद से अपना संगठन बनाया था.
साल 2001 में जैश ने जम्मू-कश्मीर की असेंबली में हुए हमले की ज़िम्मेदारी ली. इस हमले में 31 लोगों की मौत हुई थी. लेकिन कुछ वक़्त बाद जैश ने इससे इंकार कर दिया.
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