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सहारनपुर शराब कांड - क्या ज़हरीली शराब के पीछे कोई साज़िश थी?
- Author, फ़ैसल मोहम्मद अली
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, ओमाही कलां गांव सहारनपुर
"आप ये नहीं कर सकते कि एक पंडित जी मरेंगे तो उसकी बेवा को एक करोड़ देंगे आप, एक सरकारी नौकरी भी देंगे आप, एक घर भी देंगे आप, और चमार-मुसलमान की जान की क़ीमत बस दो लाख टका!"
सोलर बल्ब की टिमटिमाती रोशनी में भीड़ के बीच खड़े उस शख़्स की शक़्ल तो नहीं नज़र आती, लेकिन उसकी आवाज़ की दृढ़ता और लोगों की एकाग्रता से अंदाज़ा हो जाता है कि उसकी बातें गहरा असर छोड़ रही हैं.
ज़हरीली शराब के ख़ूनी चंगुल में आए सहारनपुर के दसियों गावों का दौरा कर दलित कार्यकर्ता आरपी सिंह कुछ ही देर पहले ओमाही कलां पहुंचे हैं.
दो सूबों- उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को मिलाकर ज़हरीली शराब पीकर मरनेवालों की संख्या अब 114 पहुंच गई है.
जो मौत का नशा पी गए
ओमाही कलां गांव, जहां की 18 ज़िंदगियां ज़हरीली शराब की भेंट चढ़ गईं और जहां के एक दलित पिंटू पर पुलिस ने सप्लायर होने का आरोप मढ़ा है.
संत रविदास के मंदिर, जहां पर भीड़ इकट्ठा हुई है वहां से तक़रीबन 100 क़दम के फ़ासले पर पिंटू की बेवा तीन बच्चों के साथ लाल-काली धारी वाली दरी पर रज़ाई में सिमटी है.
"उनको दो-तीन उल्टियां हुईं, चक्कर आने लगे, कहने लगे कुछ दिख नहीं रहा तो हम उनको अस्पताल लेकर भागे, वहां थोड़ा इलाज हुआ, ऑक्सीजन लगाया, पानी चढ़ाया लेकिन फिर दूसरे अस्पताल भेज दिया जहां उनकी मौत हो गई....," सुनीता कहती हैं.
वो बताती हैं, "फिर तो घर में जैसे मौतों का सिलसिला सा लग गया, एक लाश लाते तो दूसरे को अस्पताल लेकर भागना पड़ता, और फिर उसकी मौत हो जाती .."
इस परिवार ने दो दिनों के भीतर ही पांच लोगों को खो दिया.
सुनीता को मुआवज़े के तौर पर प्रशासन के लोग दो लाख रुपये का चेक़ देकर गए हैं जिसे बैंक में डालने की उन्हें फिलहाल सुध-बुध नहीं.
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दो लाख का चेक़ तो शाहनवाज़ को भी मिला है, जिनके वालिद बैंड मास्टर रिज़वान अहमद सालों से देसी दारू के शौकीन रहे थे लेकिन उस गुरुवार उन्हें शायद अंदाज़ा नहीं था कि ये उनकी ज़िंदगी का आख़िरी नशा होगा.
तक़रीबन चार हज़ार की आबादी वाले दलित-मुस्लिमों के इस गांव में शाहनवाज़ का घर सुनीता के घर से दूसरे छोर पर है. मस्जिद की चारदीवारी से सटे उस मकान में जहां से इबादतगाह में टंगा साउंड-बॉक्स तक दिखता है.
शाहनवाज़ उस काले दिन को याद करते हुए बताते हैं, ''उस दिन हम पिताजी को सरकारी से लेकर प्राइवेट अस्पतालों में लेकर भागते रहे लेकिन वो बच नहीं पाए''.
इसके लिए शाहनवाज़ शासन-प्रशासन को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
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साज़िश किसकी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हालांकि पूरी घटना को ये कहते हुए साज़िश बताया है कि पहले इसी तरह के ज़हरीली शराब व्यापार में समाजवादी पार्टी के कुछ नेता शामिल रहे हैं.
हालांकि दलित नेता और आरक्षण बचाओ संघर्ष समीति के अध्यक्ष आरपी सिंह का तर्क है कि पहले अगर कोई किसी तरह के धंधे में लगा भी था तो भारतीय जनता पार्टी का तो वादा था कि वो तमाम तरह के ऐसे सांठ-गांठ को समाप्त करेगी तो फिर आख़िर उन्होंने किया क्या?
बल्कि दलितों की तरफ़ से प्रशासन के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजे गए एक ज्ञापन में साफ़ कहा गया है कि मरनेवालों में 99 प्रतिशत लोग चमार जाति के हैं तो क्या यह भी एक षडयंत्र है?
दलितों में इस बात की भी नाराज़गी है कि सरकार की तरफ़ से कोई भी मंत्री या बड़ा नेता पीड़ितों से मिलने नहीं आए. हालांकि वो ये भी कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी, भीम आर्मी, आरक्षण बचाओ समिति से जुड़े और दूसरे दलित नेता इस त्रासदी के दौरान लगातार उनकी मदद के लिए साथ रहे हैं.
मांग उठ रही है कि ज़हरीली शराब से जिनकी मौत हुई है, उनके परिवारों को 50 लाख का मुआवज़ा, और घायलों को कम से कम 10 लाख की राशि दी जाए.
ये पूछे जाने पर की ज़हरीली शराब पीकर मरनेवालों को सरकार क्यों मुआवज़ा दे. इस पर आरपी सिंह कहते हैं कि सरकार को इसलिए मुआवज़ा देना चाहिए क्योंकि ये मौतें शासन-प्रशासन के निकम्मेपन का नतीजा हैं.
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प्रशासन ने सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) और रुड़की (उत्तराखंड) की घटना के लिए तीन और लोगों को गिरफ़्तार किया है और पूरे प्रदेश में अवैध शराब के ख़िलाफ़ सरकार की मुहिम जारी है जिसके तहत तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों की गिरफ्तारियां हुई हैं और सैकड़ों लीटर अवैध शराब ज़ब्त की गई हैं.
लेकिन पीड़ित परिवार इससे संतुष्ट नहीं. वे प्रशासन के विरोध में 17 फ़रवरी को कलैक्टर के कार्यालय के सामने प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं.
दलित नेताओं के शब्दों में कहें तो जो लोग इस घटना को साज़िश बता रहे हैं, ये बात उनके ही ख़िलाफ़ जाएगी.
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