2019 के आम चुनाव को क्यों चुनौती मान रहे हैं फ़ेसबुक, गूगल, ट्विटर#BeyondFakeNews

फ़ेक न्यूज़ के मुद्दे पर दिल्ली में बीबीसी के कार्यक्रम #BeyondFakeNews में फ़ेसबुक, गूगल और ट्विटर के प्रतिनिधियों ने स्वीकार किया कि फ़ेक न्यूज़ भारत में एक गंभीर समस्या है और उनकी कंपनियां इससे निपटने का प्रयास कर रही हैं.
आईआईटी दिल्ली में हुए इस कार्यक्रम में फ़ेसबुक की ओर से मनीष खंडूरी, गूगल की ओर से ईरीन जे ल्यू और ट्विटर की ओर से विजया गाड्डे ने हिस्सा लिया और तकनीकी कंपनियों के सामने फ़ेक न्यूज़ को रोकने की चुनौतियों पर चर्चा की.
फ़ेक न्यूज़ की समस्या पर फ़ेसबुक से जुड़े मनीष खंडूरी ने कहा, "ये हमारे प्लेटफार्म के अस्तित्व के लिए ही एक ख़तरा है और हम इसे बहुत गंभीरता से ले रहे हैं. एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म के तौर पर हम संवाद की गुणवत्ता पर केंद्रित हैं और ग़लत जानकारियां इसे प्रभावित करती हैं. हम एक सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म हैं और समाज में सार्थक दख़ल देना चाहते हैं. ग़लत जानकारियां इसके ठीक उलट हैं."
गूगल की दक्षिण एशिया में न्यूज़लैब प्रमुख इरीन जे ल्यू ने कहा, "गूगल इसे एक बड़ी समस्या के तौर पर स्वीकार करती है और इसका समाधान खोजने में अपनी ज़िम्मेदारी को समझती है. जब लोग गूगल पर आते हैं तो वो जवाबों की उम्मीद करते हैं. हम अपनी तकनीक की मदद से और पत्रकारों और अन्य के साथ साझेदारियां करके उच्च गुणवत्ता वाला कंटेंट उपलब्ध करवा सकते हैं."

ट्विटर की ट्रस्ट और सेफ़्टी (विश्वास और सुरक्षा) की ग्लोबल हेड विजया गाड्डे ने कहा, "ट्विटर का उद्देश्य जन संवाद को बढ़ाना है. जब लोग ट्विटर पर आते हैं तो वो जानना चाहते हैं कि क्या चल रहा है और वो इस बारे में दुनिया को भी बताना चाहते हैं. अगर हम उन्हें उच्च गुणवत्ता का कंटेंट मुहैया नहीं कराएंगे तो वो हमारे प्लेटफ़ार्म का इस्तेमाल ही बंद कर देंगे. इसलिए हमारे लिए इस तरह की ख़बरों के प्रभाव को स्वीकार करना बेहद महत्वपूर्ण है."
अमरीकी चुनावों के दौरान फ़ेसबुक की ओर से हुई ग़लतियों को स्वीकार करते हुए मनीष खंडूरी ने कहा, "हमने अपनी ग़लतियां स्वीकार की हैं. जहां तक साल 2016 के अमरीकी चुनावों का सवाल हैं, हमने अपनी ग़लतियों को स्वीकार किया है और इनसे काफ़ी सीखा है. एक प्लेटफ़ार्म के तौर पर फ़ेसबुक समाधान का हिस्सा बनना चाहता है. हम अपने प्लेटफ़ार्म पर उपलब्ध सामग्री की उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करना चाहते हैं."
सोशल मीडिया से उम्मीदें
जब मनीष खंडूरी से पूछा गया कि अमरीकी चुनाव में दख़ल के सवाल का जवाब देने के लिए फ़ेसबुक संस्थापक मार्क ज़करबर्ग को अमरीकी सदन के सामने पेश होना पड़ा था, लेकिन भारत में हुई लिंचिंग की घटनाओं पर उन्होंने कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, इस पर खंडूरी ने कहा, "भारत में जो हो रहा है, उसमें मार्क ज़करबर्ग की रुचि है और उन्होंने इस मुद्दे के समाधान के लिए एक बड़ी टीम बनाई है. वो चुनावों को ध्यान में रखते हुए वॉशिंगटन डीसी में एक इलेक्शन वॉर रूम भी बना रहे हैं."

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व्हाट्सऐप पर उठ रहे सवालों पर खंडूरी ने कहा, "हम सीख रहे हैं. लेकिन इस प्लेटफार्म पर कई अच्छी चीज़ें हो रही हैं और बहुत ज्ञान भी साझा किया जा रहा है. हम भारत में बहुत कुछ बदल रहे हैं. हमने इस समस्या की गंभीर प्रकृति को समझा है और इसके समाधान के लिए कुछ बदलाव कर रहे हैं."
चुनावों में फे़क न्यूज़ को रोकने के लिए आप क्या कर रहे हैं? इस सवाल पर फ़ेसबुक से जुड़े मनीष खंडूरी ने कहा, "हम तथ्य को जांचने के लिए और अधिक बाहरी लोगों को रख रहे हैं. फ़ेसबुक पर मौजूद सामग्री की स्वच्छता को बरक़रार रखने के लिए हम कई प्रयास कर रहे हैं और इन पर काफ़ी पैसा ख़र्च कर रहे हैं. हम नीति निर्माताओं से बात भी कर रहे हैं. हम ट्रेनिंग भी करवा रहे हैं."
वहीं यूट्यूब पर उपलब्ध झूठी सामग्रियों से जुड़े सवाल पर ईरीन जे ल्यू ने कहा, "हमने इस बात को समझा है कि भारत में अब बहुत से लोग समाचारों के लिए भी यूट्यूब पर आ रहे हैं और हम ज़रूरी बदलावों पर काम कर रहे हैं."
उन्होंने कहा, "हम कोशिश कर रहे हैं कि जब कोई ब्रेकिंग न्यूज़ खोजने हमारे प्लेटफ़ार्म पर आए तो उसे भरोसेमंद स्रोतों से ही सूचनाएं प्राप्त हों."
ट्विटर की ओर से बोलते हुए विजया गाड्डे ने कहा, "हम फ़ेक अकाउंट की पहचान करने की तकनीक को बेहतर कर रहे हैं. फ़ेक अकाउंट हमारी नीति के ख़िलाफ़ हैं. आपत्तिजनक कंटेंट को रिपोर्ट करने का विकल्प हमने दिया है."
ईरीन जे ने कहा, "अगर हम लोगों तक सटीक सूचनाएं पहुंचा पाते हैं तो इससे हमारे बिज़नेस मॉडल को ही फ़ायदा होता है क्योंकि हम लोगों के सवालों के सही जवाब देना चाहते हैं."
लोकसभा चुनाव की तैयारी

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जब मनीष खंडूरी से पूछा गया कि भारत के साल 2019 के चुनावों की सुरक्षा के लिए वो क्या कर रहे हैं तो उन्होंने कहा, "हम तथ्य को जांचने के लिए और अधिक बाहरी लोगों को रख रहे हैं. फ़ेसबुक पर मौजूद सामग्री की स्वच्छता को बरक़रार रखने के लिए हम कई प्रयास कर रहे हैं और इन पर काफ़ी पैसा ख़र्च कर रहे हैं. हम नीति निर्माताओं से बात भी कर रहे हैं. हम ट्रेनिंग भी करवा रहे हैं. हम स्थानीय प्रशासन को साथ लेकर भी काम कर रहे हैं."
इसी सवाल पर गूगल की ईरीन जे ल्यू ने कहा, "हम फ़ेक न्यूज़ से लड़ने के लिए एक मज़बूत इकोसिस्टम बनाने पर कम कर रहे हैं. हम भारत में आठ हज़ार पत्रकारों को प्रशिक्षित कर रहे हैं. ये सात भाषाओं में काम करने वाले पत्रकार हैं."
वहीं ट्विटर की विजया गाड्डे ने कहा, "हमने अमरीकी चुनावों से काफ़ी कुछ सीखा है. हम फ़ेक अकाउंट को लेकर गंभीर हैं. हम ऑटोमेटेड को-आर्डिनेशन को पकड़ने में अब पहले से अधिक सक्षम हैं. हम राजनीतिक विज्ञापनों में और अधिक पारदर्शिता ला रहे हैं."

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फ़ेसबुक पर राजनीतिक पार्टियों के प्रचार से जुड़े सवाल पर मनीष खंडूरी ने कहा, "राजनीतिक पार्टियों से हमारे संबंध दोतरफ़ा हैं. हम जानते हैं कि फ़ेसबुक एक प्रभावशाली माध्यम बन गया है."
तकनीकी कंपनियों को फ़ेक न्यूज़ से निबटने के लिए कितना समय दिया जाना चाहिए? इस सवाल पर मनीष खंडूरी ने कहा, "हम समस्या को समझ रहे हैं. एक दिन में इसका समाधान नहीं निकलेगा, ये शायद छह महीनों में भी नहीं होगा लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि हम इसके समाधान में जुटे हैं."
रणनीति है क्या?

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कार्यक्रम में शामिल एक दर्शक ने सवाल किया कि चुनावों के मद्देनज़र तैयार किए गए फ़ेसबुक पेज़ों को लेकर फ़ेसबुक की क्या रणनीति है?
इस पर मनीष खंडूरी कहते हैं, "अपने प्लेटफ़ार्म पर कंटेट उपलब्ध करवा रहे पेजों की पहचान के लिए फ़ेसबुक के पास एक ठोस रणनीति है. लेकिन कुछ सीमाएं हैं जिनके दायरे में हम काम करते हैं. दार्शनिक रूप से देखा जाए तो झूठी ख़बरों की पहचान करने की हमारी कुछ सीमाएं हैं. हम ये निर्णय नहीं लेना चाहते कि क्या फ़ेक न्यूज़ है और क्या नहीं. हम कुछ मापदंडों के आधार पर तय करते हैं कि क्या फ़ेक न्यूज़ हो सकती है और फिर इसकी पुष्टि का काम अपने थर्ड पार्टी एजेंट्स (बाहरी कर्मचारियों) को सौंप देते हैं. हमारी रूचि ऐसा इको-सिस्टम बनाने में है जिसमें सर्वश्रेष्ठ कार्य नीतियां विकसित हों."
झूठी ख़बरों से जुड़े कंटेंट को हटाने के सवाल पर खंडूरी ने कहा, "क्या झूठी ख़बर है और क्या नहीं ये एक संपादकीय फ़ैसला है. लेकिन अगर उससे हमारे कम्युनिटी स्टैंडर्ड (सामुदायिक मानकों) का उल्लंघन होता है तो हम उसे हटा देते हैं. उदाहरण के तौर पर पोर्न, हिंसा, रेप या मर्डर से जुड़े कंटेंट को लेकर हमारी नीति काफ़ी सख़्त है और ऐसा कंटेंट तुरंत हटा दिया जाता है. लेकिन जब कोई किसी सामग्री को किसी राजनीतिक दल का प्रोपेगेंडा बताता है तो हम विचारों और अटकलबाज़ी के क्षेत्र में दाख़िल हो जाते हैं और फ़ेसबुक ऐसा नहीं करेगा."
कुछ झूठी साबित हो चुकी बातें भी फ़ेसबुक पर मौजूद रहती हैं. इस सवाल पर खंडूरी ने कहा, "एक प्लेटफ़ार्म के तौर पर हम ऐसा कंटेंट नहीं हटाते हैं. यहां एक बहुत बारीक़ दार्शनिक रेखा है. ऐसी चीज़ें होती हैं जिन्हें हटा दिया जाना चाहिए. लेकिन एक तर्क ये भी है कि लोगों के सूचित होने के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए. ऐसे लोग भी हैं जो आज भी मानते हैं कि धरती सपाट है. अगर किसी को ऐसा लगता है तो हमारा प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ़ उसका फ़ैक्टचैक करता है और यूज़र को बताता है कि आप इसे शेयर करना नहीं चाहेंगे."
क्या हैं विकल्प

एक यूज़र ने ट्विटर पर फ़ेक न्यूज़ को रिपोर्ट करने के विकल्प के न होने का सवाल उठाया.
इस पर विजया ने कहा, "हमने हाल ही में फ़ेक अकाउंट को रिपोर्ट करने का विकल्प दिया है. हम देख रहे हैं कि हम इससे क्या सीख सकते हैं और हम ज़रूरत पड़ने पर इसका विस्तार भी करेंगे...आपने एक वाजिब मुद्दा उठाया है, इसके लिए शुक्रिया."
लेकिन जब उनसे पूछा गया कि फ़ेक न्यूज़ के ख़िलाफ़ क़दम उठाने में ट्विटर को इतनी देर क्यों लग रही है तो उन्होंने कहा, "हमारी ऐसी कोई नीति नहीं है जो आपको ट्विटर पर झूठ बोलने से रोकती हो, अगर हम लोगों को झूठ को रिपोर्ट करने का विकल्प दे भी देंगे तो हम उसका क्या कर पाएंगे. क्योंकि ये हमारी नीति के ख़िलाफ़ नहीं है. हम ऐसी कंपनी नहीं बनना चाहते जो अपने प्लेटफ़ार्म पर किए गए हर ट्वीट पर जजमेंट ले, रोज़ाना हमारे प्लेटफ़ार्म पर करोड़ों ट्वीट किए जाते हैं."
जब उनसे पूछा गया कि ऐसा करके क्या आप झूठ को बड़ी तादाद में लोगों तक पहुंचाने में मदद नहीं कर रहे हैं तो उन्होंने कहा, "आज ये हमारे दार्शनिक दृष्टिकोण के ख़िलाफ़ हैं. हालांकि हम ऐसे अकाउंट के व्यावहारिक संकेतों का विश्लेषण कर रहे हैं. ये फ़ेक न्यूज़ को रोकने का हमारा तरीका है. अक्सर ऐसे अकाउंट फ़ेक मिलते हैं तो हम उनकी सामग्री पर कार्रवाई किए बिना ही उन्हें हटा देते हैं."
राजनीतिक विज्ञापन

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राजनीतिक विज्ञापनों से जुड़े सवाल पर मनीष खंडूरी ने कहा कि इस साल जनवरी या फरवरी से हम नई व्यवस्था ला रहे हैं जिसमें पाठकों को ये पता चलेगा कि कंटेंट किसने स्पांसर किया है.
साल 2019 में फ़ेक न्यूज़ को रोकने से जुड़े सवाल पर गूगल की ईरीन जे ल्यू ने कहा, "हम स्थानीय भाषाओं में फैलाई जाने वाली फ़ेक न्यूज़ को रोकने के प्रयास कर रहे हैं. झूठी ख़बरें सिर्फ़ हिंदी और अंग्रेज़ी में ही नहीं फैलाई जा रही हैं बल्कि अन्य स्थानीय भाषाओं में भी फैलायी जा रही हैं. हम स्थानीय भाषाओं के पत्रकारों को फ़ेक न्यूज़ की पहचान का प्रशिक्षण देने जा रहे हैं."
वहीं खंडूरी ने कहा, "चुनाव के दौरान झूठी ख़बरें एक बेहद गंभीर मुद्दा होंगी. हम अपने इको-सिस्टम को बेहतर करने पर काम कर रहे हैं."

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लेकिन जब व्हाट्सएप के ज़रिए फ़ेक न्यूज़ फैलाए जाने का सवाल किया गया तो खंडूरी ने कहा, "व्हाट्सएप निजी संवाद का प्लेटफ़ार्म हैं. निजता व्हाट्सएप के मूल में हैं. इसे बदलना इसका डीएनए बदलना होगा. व्हाट्सएप पर होने वाला 80-90 फ़ीसदी संवाद निजी होता है. ये वायरल संदेश नहीं होते हैं."
लेकिन जब उनसे व्हाट्सएप के कारण भीड़ के हिंसक होने का सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, "हम कई समाधान कर रहे हैं. हम एडमिन को और अधिकार दे रहे हैं. अपने प्राडक्ट में भी कई बदलाव कर रहे हैं. हम ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कंटेंट कैसे वायरल किया जाता है."
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