CBI पर मोदी सरकार के फ़ैसले से भड़के सुब्रमण्यम स्वामी

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- Author, टीम बीबीसी हिंदी
- पदनाम, नई दिल्ली
सीबीआई पर मोदी सरकार के रुख़ को लेकर बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने ही सरकार पर निशाना साधा है.
स्वामी ने ट्वीट कर कहा, ''सीबीआई में क़त्लेआम के खिलाड़ी अब ईडी के अधिकारी राजेश्वर सिंह का निलंबन करने जा रहे हैं ताकि पीसी के ख़िलाफ़ आरोपपत्र दाखिल ना हो. अगर ऐसा हुआ तो भ्रष्टाचार से लड़ने की कोई वजह नहीं है, क्योंकि मेरी ही सरकार लोगों को बचा रही है. ऐसे में मैंने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जितने मुक़दमे दायर किए हैं सब वापस ले लूंगा.''
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दूसरी तरफ़ कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने भी सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को हटाए जाने पर मोदी सरकार को इसी तरह निशाने पर लिया है. राहुल ने ट्वीट कर कहा, ''CBI चीफ आलोक वर्मा राफेल घोटाले के कागजात इकट्ठा कर रहे थे. उन्हें जबरदस्ती छुट्टी पर भेज दिया गया. प्रधानमंत्री का मैसेज एकदम साफ़ है जो भी राफेल के इर्द गिर्द आएगा- हटा दिया जाएगा, मिटा दिया जाएगा. देश और संविधान खतरे में हैं.''
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केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई में शीर्ष के दो अधिकारियों की लड़ाई में बुधवार सुबह नया मोड़ आया.
केंद्र सरकार ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया. इससे पहले मंगलवार को आलोक वर्मा ने अपने जूनियर राकेश अस्थाना से सारी ज़िम्मेदारियां छीन ली थीं.
राकेश अस्थाना सीबीआई में दूसरे नंबर पर थे. अस्थाना के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई ने एफ़आईआर दर्ज कराई है, लेकिन अस्थाना ने आलोक वर्मा पर भी रिश्वत लेने का आरोप लगाया है.
मंगलवार को हाई कोर्ट ने अस्थाना की गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी. बुधवार को आलोक वर्मा को हटाने का फ़ैसला आया तो विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि राकेश अस्थाना पीएम मोदी के प्रिय ऑफिसर रहे हैं और उन्हीं को बचाने के लिए आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया गया.

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सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वक़ील प्रशांत भूषण ने भी केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि उसने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अस्थाना को बचाने के लिए आलोक वर्मा को हटा दिया.
उन्होंने आलोक वर्मा के हटाने के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है. दूसरी तरफ़ आलोक वर्मा ने भी कहा है कि वो इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे.
आलोक वर्मा की जगह नागेश्वर राव को सीबीआई का तात्कालिक बॉस बनाया गया है. राव सीबीआई में जॉइंट डायरेक्टर थे. आलोक वर्मा को हटाने के फ़ैसले पर सवाल उठने लगे तो सरकार का बचाव करने वित्त मंत्री अरुण जेटली सामने आए.
अरुण जेटली ने विपक्ष के आरोपों को बकवास बताया और कहा कि सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयोग) की सिफ़ारिश पर यह फ़ैसला लिया गया है.
जेटली ने कहा कि दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं और इसकी निष्पक्ष जांच के लिए किसी तीसरे आदमी ज़रूरत थी.
वित्त मंत्री ने कहा कि जांच पूरी होने तक दोनों अधिकारियों को कार्यभार से मुक्त किया गया. जेटली ने कहा कि सरकार ने जो फ़ैसला लिया है वो पूरी तरह से क़ानूनसम्मत है.

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कांग्रेस के आरोप
अरुण जेटली की प्रेस कॉन्फ़्रेस के बाद कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी एक प्रेस वार्ता की और सरकार के दिए तर्कों का जवाब दिया.
सिंघवी ने सरकार के फ़ैसले और उसके तर्कों को ख़ारिज करते हुए कहा, ''मोदी सरकार ने असंवैधानिक रूप से सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को हटाया. सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेज कर इन लोगों ने देश के सर्वोच्च न्यायालय का अपमान किया है. नियमों के मुताबिक़ दो वर्ष तक सीबीआई प्रमुख को पद से हटाया ही नहीं जा सकता. इसका प्रावधान सीबीआई एक्ट के सेक्शन 4 (a) और 4 (b) में है.''

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सिंघवी ने कहा, ''जिस अधिकारी पर वसूली करने का आरोप है, उसका सरकार ने साथ दिया और अभियोजक को ही हटा दिया. ये गुजरात का नया मॉडल है. प्रधानमंत्री मोदी आज सीधा सीबीआई के अफ़सरों को बुलाते हैं. फ़ौजदारी मामले में पीएम हस्तक्षेप कर रहे हैं. ये क़ानून का ख़ुले तौर पर उल्लंघन है.''
उन्होंने कहा, ''सीवीसी का पावर नियुक्त करना या हटाना नहीं है. जो बीजेपी ज्ञान दे रही है. वो वही ज्ञान है जो नोटबंदी और आर्थिक मामलों और माल्या पर दिया जाता. सीवीसी एक सुपरवाइज करने वाली संस्था है. ये चुनाव नेता प्रतिपक्ष, जज और प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं. ये लोग सीवीसी का दुरुपयोग कर रहे हैं. ये सीवीसी का अधिकार क्षेत्र नहीं है.''
इस बीच ज़िम्मेदारियां वापस लिए जाने के मसले पर आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है जिसकी सुनवाई शुक्रवार को होगी. नागेश्वर राव ने अंतरिम पद संभालते ही सीबीआई के दफ़्तर की 10वीं और 11वीं मंजिल को सील करवा दिया. यहां आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के दफ़्तर हैं.

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सीबीआई के पूर्व जॉइंट डायरेक्टर एनके सिंह ने कहा, "सीबीआई के डायरेक्टर की नियुक्ति का अंतिम फ़ैसला प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता की एक कमेटी करती है.''
सिंह ने कहा, ''उनका कार्यकाल दो साल का होता है. कायदे के मुताबिक़ इससे पहले उन्हें हटाने का फ़ैसला भी तीन लोगों की यही कमेटी करेगी. अब यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया है और शुक्रवार को इस पर सुनवाई होनी है."

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कौन हैं अंतरिम सीबीआई डायरेक्टर नागेश्वर राव?
1986 बैच के आईपीएस अधिकारी नागेश्वर राव सीबीआई के अंतरिम निदेशक बनाए गए हैं. नागेश्वर तेलंगाना के रहनेवाले हैं और ओडिशा काडर के आईपीएस अधिकारी हैं.
ओडिशा के चार ज़िलों में पुलिस अधीक्षक (एसपी) के अलावा वो राउरकेला और कटक में रेलवे के पुलिस अधीक्षक और क्राइम ब्रांच के पुलिस अधीक्षक भी रह चुके हैं.
नागेश्वर ओडिशा के ऐसे पहले अधिकारी रहे हैं जिन्होंने एक बलात्कार के मामले की जांच (1996) में डीएनए फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल किया था.

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क्या है पूरा मामला?
राकेश अस्थाना के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल यानी एसआईटी गठित हुई थी, जो मांस निर्यातक मोइन क़ुरैशी केस की जांच कर रही थी. आरोप है कि इसकी जांच में क़ुरैशी को बरी करने के लिए अस्थाना ने रिश्वत ली.
दूसरी तरफ़ अस्थाना का आरोप है कि आलोक वर्मा ने इसकी जांच रोकवा दी. सीबीआई ने राकेश अस्थाना के नेतृत्व वाली एसआईटी में शामिल जांच अधिकारी देवेंद्र कुमार को गिरफ़्तार किया था.

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दो साल से चल रही तनातनी
कहा जा रहा है कि दोनों शीर्ष अधिकारियों के बीच 2016 से ही खींचतान चल रही थी. तब सीबीईआई के नंबर दो अधिकारी आरके दत्ता का अचानक गृह मंत्रालय में तबादला कर दिया गया था.
उनका तबादला डायरेक्टर अनिल सिन्हा के रिटायर होने से ठीक दो दिन पहले किया गया था. यानी वरिष्ठता के मुताबिक दत्ता अगले सीबीआई डायरेक्टर बन सकते थे.
इसके बाद राकेश अस्थाना को अंतरिम निदेशक नियुक्त किया गया. उनकी नियुक्ति स्थायी हो सकती थी, लेकिन वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने उनकी नियुक्ति को चुनौती दे दी.
फिर 2017 फ़रवरी में आलोक वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर बनाया गया, लेकिन कुछ ही महीने बाद यह मामला फिर तूल पकड़ने लगा.
तब आलोक वर्मा ने ही राकेश अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाए जाने का ये कहते हुए विरोध किया कि उनके ख़िलाफ़ कई तरह के आरोप हैं और मामले की जांच जारी है, इसलिए उन्हें एजेंसी में नहीं होना चाहिए.
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