क्या ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से कश्मीर में तनाव कम हुआ?

इमेज स्रोत, Getty Images
- Author, रियाज़ मसरूर
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर
पाकिस्तान भले ही कह रहा हो कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई और घर से भले ही आलोचनाओं के स्वर उठते रहे हों, लेकिन केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार 29 सितंबर 2016 में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में की गई उस कार्रवाई की दूसरी सालगिरह मना रही है, जिसे वह 'सर्जिकल स्ट्राइक' कहती है.
बीते दो वर्षों में भारत प्रशासित कश्मीर को छोड़ बाक़ी भारत में चरमपंथ की कोई घटना नहीं हुई है. भारत प्रशासित कश्मीर में भी बड़ी संख्या में चरमपंथियों को मुठभेड़ों में मारा गया है. लेकिन कश्मीर अब भी शांति से कहीं दूर नज़र आता है.
'सर्जिकल स्ट्राइक' के एक साल बाद भारतीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट संसद में रखी गई थी, जिसमें 2017 को भारत प्रशासित कश्मीर की तीस वर्षों की अस्थिरता का सबसे ख़ूनी साल बताया गया था.
हिंसा में इज़ाफा

इमेज स्रोत, Getty Images
पिछले साल संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, 2017 में प्रदेश में चरमपंथी हिंसा में इज़ाफा हुआ. ऐसी 342 घटनाएं हुईं, जिनमें 40 आम लोगों की जान चली गई.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, सशस्त्र चरमपंथियों को ख़त्म करने की दिशा में 2017 को सबसे सफल साल माना गया. सरकार का कहना है कि 2017 में 217 चरमपंथी मार दिए गए. 2016 में यह संख्या 138 थी.
हालांकि इस दौरान जान गंवाने वाले सुरक्षाकर्मियों की संख्या भी बढ़ गई. 2016 में 100 सुरक्षाकर्मी मारे गए, जबकि 2017 में 124.
2018 के नौ महीनों में ही 118 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो चुकी है और 25 सितंबर तक इस साल 176 चरमपंथियों को मारा गया है.
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत प्रशासित कश्मीर में हालात चार स्तरों पर ख़राब हुए हैं.
पहला मोर्चा: चरमपंथियों का समर्थन बढ़ा

इमेज स्रोत, Getty Images
कश्मीर घाटी, ख़ास तौर से दक्षिणी कश्मीर के चार ज़िलों में सशस्त्र चरमपंथियों के लिए समर्थन तेज़ी से बढ़ा है. तीन दशकों में पहली बार ऐसा होने लगा कि लोग घिरे हुए चरमपंथियों को बचाने के लिए मुठभेड़ की जगह पर पहुंच जाते हैं.
पचास से ज़्यादा लोगों की मौत ऐसी ही घटनाओं में हुई. इनमें महिलाएं भी शामिल थीं.
दूसरा: उस पार से फायरिंग भी नहीं रुकी

इमेज स्रोत, Getty Images
सर्जिकल स्ट्राइक को एलओसी पर पाकिस्तान की 'हरक़तों' के ख़िलाफ़ एक मज़बूत प्रतिरोध के तौर पर पेश किया गया था. लेकिन 2018 के शुरुआती दो महीनों में ही एलओसी पर सीज़फायर तोड़े जाने की 633 घटनाएं हुईं.
सालाना आंकड़े दर्शाते हैं कि 2017 आम लोगों के लिए सबसे हिंसक वर्ष रहा, जिसमें सीज़फायर तोड़े जाने की एलओसी पर 860 और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर 111 घटनाएं हुईं.
तीसरा: अनुपस्थित सरकार

इमेज स्रोत, Getty Images
इस साल पीडीपी की अगुवाई वाली सरकार से बीजेपी के हाथ खींच लेने के बाद कश्मीर ने एक भयंकर राजनीतिक अस्थिरता देखी. इसने घाटी में अलगाववादियों का जनाधार मज़बूत किया और भारत के पक्षधर नेताओं के बड़े स्तर पर आम लोगों तक पहुंचने की राह मुश्किल कर दी.
'ऑल आउट' जैसे आक्रामक सैन्य अभियानों में आम नागरिकों की मौत और पैलेट गन की चोटों ने भी अंतरराष्ट्रीय निगाहों का रुख़ भी कश्मीर की ओर मोड़ दिया.
चौथा: यूएन का दख़ल
पहली बार संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद ने कश्मीर पर रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट के ज़रिये भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की गई कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार पर्यवेक्षकों को भारत प्रशासित कश्मीर के ज़मीनी हालात के अध्ययन की इजाज़त दी जाए और इस तरह इस मसले में संयुक्त राष्ट्र का सीधा दख़ल हो. भारत की आपत्तियों के बावजूद रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के मंच पर बेहिचक स्वीकार कर लिया गया.
हमले नहीं हुए पर हालात बिगड़े

इमेज स्रोत, Getty Images
सैन्य प्रशासन यहां कहता है कि सर्जिकल स्ट्राइक से एक रणनीतिक बढ़त भारत को मिली है क्योंकि पठानकोट और उरी के बाद वैसे हमले फिर नहीं हुए. लेकिन जानकार मानते हैं कि कश्मीर के भीतर राजनीतिक और सुरक्षा संबधी हालात बिगड़े हैं और जश्न के इस शोर में वे सरकार के लिए एक अप्रिय ध्वनि की तरह हैं.
भारतीय सेना प्रमुख का 'पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एक और सर्जिकल स्ट्राइक की ज़रूरत' बताने को भी कई हलकों में 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक की नाकामी के तौर पर देखा जा रहा है.
श्रीनगर के पत्रकार बिलाल फ़ुरक़ानी कहते हैं, "नीतियों में ही कंफ्यूज़न है. कश्मीर के मुद्दे को सिर्फ पाकिस्तान से जोड़कर देखा जाता है. वे समझते हैं कि पाकिस्तान को नियंत्रित कर लेंगे तो कश्मीर शांत रहेगा. 1971 में जब पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, उसके एक दशक बाद ही घाटी में ग़ुस्सा पैदा हुआ और हिंसक संघर्ष का सबसे ख़राब दौर शुरू हुआ."
'पहले लोग चरमपंथियों को बचाने नहीं जाते थे'

इमेज स्रोत, EPA
जब हालात शांतिपूर्ण थे, उस दौर को याद करते हुए फ़ुरक़ानी कहते हैं, "पाकिस्तान से युद्ध हमेशा घाटी में तनाव लेकर आया है. 2003 में भारत पाक के बीच हुआ सीज़फायर समझौता कश्मीर में शांति लेकर आया था."
शोधकर्ता बिस्मा भट कहती हैं, "भारत-पाक युद्ध में कश्मीरियों का कुछ भी दांव पर नहीं होता. भले ही सर्जिकल स्ट्राइक हुई, लेकिन यहां ज़मीनी हालात ख़राब होने से उसका लक्ष्य पूरा नहीं हुआ. इस सर्जिकल स्ट्राइक से पहले लोग चरमपंथियों के समर्थन में एनकाउंटर की जगहों पर दौड़े-दौड़े नहीं जाते थे. इन सर्जिकल स्ट्राइक से और कुछ नहीं, सिर्फ चरमपंथी हिंसा के लिए आम लोगों का समर्थन बढ़ा है. "
आक्रामक सैन्य नीति का क्या हासिल?

इमेज स्रोत, Getty Images
भारत के लिए कश्मीर लंबे समय से एक बड़ी राजनीतिक समस्या है. भारत की सरकारें ये कहती रही हैं कि पाकिस्तान कश्मीर में चरमपंथी हिंसा पाकिस्तान की फंडिंग पर फल-फूल रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने से पहले से ही मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल 'आक्रामक रक्षा' (ऑफेंसिव डिफेंस) की नीति की वक़ालत करते रहे हैं.
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने ख़ुद नरम शुरुआत करते हुए नवाज़ शरीफ़ को अपने शपथ ग्रहण समारोह का न्योता दिया था. फिर एक दिन वह विदेश यात्रा से लौटते हुए अचानक नवाज़ शरीफ़ के एक पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने पाकिस्तान जा पहुंचे थे.
लेकिन फिर भारत में सैन्य ठिकानों पर दो बड़े चरमपंथी हमले हुए. पंजाब के पठानकोट और जम्मू-कश्मीर के उरी में हुए हमलों में बीस सैनिकों की मौत हो गई और नरमी की ओर बढ़ रहे दोनों देशों के संबंधों में फिर तल्ख़ी आ गई.
इसी के बाद भारत ने एलओसी के उस पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करने का दावा किया और केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चरमपंथियों और उनसे सहानुभूति रखने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त नीति अपनाई.
हालांकि भारत प्रशासित कश्मीर में अधिकांश और नई दिल्ली में भी कुछ लोग यह मानते हैं कि भारत की आक्रामक सैन्य नीति के उल्टे नतीजे मिले हैं.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)













