You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
आधी रात आंदोलन कर लड़कियों ने मनवाई मांगें
- Author, आलोक प्रकाश पुतुल
- पदनाम, रायपुर से, बीबीसी हिंदी के लिए
रात के एक बजकर 25 मिनट हो रहे हैं और एलएलबी के पहले सेमेस्टर की छात्रा अदिती अपनी घड़ी की ओर देखती हुई कहती हैं, "मुझे अब घड़ी देखने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मुझे भागते हुए अपने हॉस्टल में नहीं जाना है. हमें अब आज़ादी मिल गई है."
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में रात गहरा रही है, लेकिन यूनिवर्सिटी में हर तरफ़ चहल-पहल है. लड़के-लड़कियां बेफ़िक्र होकर लाइब्रेरी से निकले आ रहे हैं.
कुछ हैं, जो कुछ देर पहले तक कैंटिन में थे और अब अपनी किताबों के साथ हॉस्टल का रुख़ कर रहे हैं.
अपनी एक सहपाठी के साथ यूनिवर्सिटी बिल्डिंग की बाहरी सीढ़ियों में बैठी आकांक्षा कहती हैं, "आज से पहले छत्तीसगढ़ के किसी भी शहर में, यहां तक कि रायुपर में भी कहीं कोई ऐसी जगह नहीं थी, जहां हम लड़कियां इतनी आज़ादी के साथ हवा में सांस ले सकें. हमें जिस पिंजरे में क़ैद कर के रखा गया था, वह टूट गया है."
असल में हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में पिछले कई दिनों से गूंजते 'आज़ादी' के नारे थम गए हैं, 'पिंजरा तोड़ो' आंदोलन सैद्धांतिक रूप से ख़त्म हो चुका है.
यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी 8 दिनों से प्रदर्शन कर रहे थे. उनकी मांग थी कि यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियों को 24 घंटे कैंपस के भीतर कहीं भी आने-जाने की छूट मिले.
'पिंजरा तोड़ो' आंदोलन
इसके अलावा यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी भी 24 घंटे खुली रखी जाए. यूनिवर्सिटी के कार्य परिषद की बैठकों की कार्रवाई सार्वजनिक की जाए.
इसके अलावा यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़कियों की यौन प्रताड़ना के लिए ज़िम्मेदार शिक्षकों को जांच तक निलंबित किया जाए.
साथ ही यूनिवर्सिटी में आर्थिक भ्रष्टाचार करने वालों को भी निलंबित कर उनके ख़िलाफ कार्रवाई की जाए.
27 अगस्त से शुरू हुआ आंदोलन धीरे-धीरे परवान चढ़ता गया और फिर पांचवें दिन तक देश भर से इस आंदोलन को समर्थन मिलना शुरू हो गया.
छात्र संगठनों से लेकर मानवाधिकार संगठन और राजनीतिक दल भी इस आंदोलन के पक्ष में उतर आए.
प्रभारी कुलपति ने 29 अगस्त को ही छात्रों की अधिकांश मांग मान लेने का आश्वासन दिया था. लेकिन पुराने अनुभवों को देखते हुए छात्र बिना लिखित वादे के अपना प्रदर्शन ख़त्म करने के लिए राजी नहीं हुए.
आंदोलन जारी रहा और लगभग 900 लड़के-लड़कियों की ओर से जब भूख हड़ताल शुरू करने की बात कही गई तो फिर प्रभारी कुलपति सामने आए.
कुलपति ने लिखित में आश्वासन दिया और फिर उन्हें पूरा करने की मियाद भी मांगी. पहले ही दिन से रात तीन बजे तक यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी और रात सवा तीन बजे तक हॉस्टल खुले रखने की शुरुआत भी कर दी गई.
राज्य के विधि मंत्री महेश गागड़ा कहते हैं, "छात्रों ने मुझसे मुलाक़ात की थी. देर रात तक लाइब्रेरी खुली रखने की मांग मुझे न्यायसम्मत लगी."
यौन प्रताड़ना, आर्थिक भ्रष्टाचार, बजट, कार्य परिषद के फ़ैसले जैसे कई मुद्दों पर यूनिवर्सिटी ने तत्काल जांच और कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. कुछ मामलों में जांच के लिए कमेटी भी बनाई गई, जो तय समय सीमा के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी.
स्टूडेंट बार असोसिएशन के उप संयोजक आकाश जैन का कहना है कि रात को होस्टल कैंपस, मेस और लाइब्रेरी खोलने की हमारी मांगें एक हद तक ज़रूर पूरी की गई हैं, लेकिन हमारा आंदोलन अभी ख़त्म नहीं हुआ है.
जैन कहते हैं, "आज भी हमने क्लास शुरू होने से एक मिनट का मौन रख कर सांकेतिक विरोध जारी रखा है. हमने अपनी सारी मांगें पूरी करने के लिए 24 सितंबर की समय सीमा तय की है. सारी मांगें अगर इस समय सीमा तक पूरी नहीं हुईं तो हम फिर से प्रदर्शन के लिए उतरेंगे."
हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और भारत के उपराष्ट्रपति रहे मोहम्मद हिदायतुल्ला की स्मृति में 2003 में स्थापित इस आवासीय यूनिवर्सिटी में एलएलबी ऑनर्स और एलएलएम की पढ़ाई होती है.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर इस यूनिवर्सिटी के कैंपस में ही लड़के और लड़कियों के होस्टल हैं, जहां देश भर से चयनित विद्यार्थी रहते हैं.
शुरू से ही अलग-अलग विवादों में घिरी इस यूनिवर्सिटी में ताज़ा विवाद की शुरुआत 27 अगस्त को हुई, जब छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यूनिवर्सिटी के कुलपति पद पर फिर से डॉ. सुखपाल सिंह की नियुक्ति को अवैध मानते हुए निरस्त कर दिया.
डॉ. सुखपाल सिंह के दूसरे कार्यकाल की नियुक्ति को यूनिवर्सिटी के ही एक प्रोफ़ेसर अविनाश सामल ने चुनौती दी थी.
हाई कोर्ट का फ़ैसला जिस दिन सामने आया, उसी शाम को यूनिवर्सिटी कैंपस स्थित लड़कियों के होस्टल के गेट में रात साढ़े दस बजे के बाद ताला बंद करने के मुद्दे पर प्रदर्शन शुरू हो गया.
रात भर प्रदर्शन चला और फिर अगले दिन प्रदर्शन के साथ कुछ और मांग जुड़ती चली गईं.
आठ दिन तक आंदोलन चला और फिर लिखित में जब अधिकांश मांगें मान ली गई हैं तो अब एक-एक कर सभी मांगों पर अमल करने की बारी है.
लेकिन फिलहाल तो देर रात तक यूनिवर्सिटी कैंपस में घूमने, पढ़ने और लाइब्रेरी में बैठने की इजाज़त से ही कैंपस में जश्न का माहौल है.
यूनिवर्सिटी में थर्ड इयर की छात्रा अनुष्का वर्मा कहती हैं-"मुझे अब तक गार्ड की सीटी सुनाई नहीं पड़ी है. मैं चाहती हूं कि इस देश के अंदर जितनी भी यूनिवर्सिटी हैं, जहां लड़कियां पिंजरों के अंदर बंद हैं, जहां लड़कियों को पिंजरों से निकलने की इजाज़त नहीं है, वो इस आज़ादी को महसूस करें, उन्हें भी यह आज़ादी मिले. उनके भी पिंजरे पिघलें."
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)