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आप एक देशद्रोही से बात कर रहे हैं: स्टेन स्वामी
- Author, रवि प्रकाश
- पदनाम, बगईचा (रांची) से, बीबीसी हिंदी के लिए
"अभी आप एक देशद्रोही से बात कर रहे हैं...सरकार मुझे देशद्रोही कहती है. वजह - मैं सरकार की ग़लत नीतियों के ख़िलाफ़ चल रहे जनसंघर्ष में शामिल हूं. जनता को जगा रहा हूं. हम लोग अपराधी बना दिए गए हैं. लेकिन अब बहुत हुआ. अब अगर आप (मीडिया) और हम (सिविल सोसाइटी) चुप रहेंगे, तो देश विनाश की ओर चला जाएगा. हम चुप नहीं बैठ सकते. अपनी आवाज़ और तेज़ करने की ज़रूरत है. नहीं तो लोकतंत्र नहीं बचेगा."
फादर स्टेन स्वामी से हमारी बातचीत रांची शहर के जिस बाहरी इलाक़े में हो रही थी, उसकी पहचान 'बगईचा' के तौर पर है. इस कैंपस में आदिवासी लड़के-लड़कियों के हॉस्टल हैं. उनकी पढ़ाई के लिए स्कूल है और खेलने के लिए बड़ा मैदान. फादर स्टेन स्वामी ने इसे साल 2006 में बनवाया था. अभी वे 81 साल के हैं लेकिन उनकी दृढ़ता नौजवानों की तरह दिखती है.
महाराष्ट्र पुलिस का छापा
फादर स्टेन स्वामी उन आठ लोगों में शामिल हैं, जिन पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की कथित साज़िश रचने और भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा को कथित तौर पर भड़काने के आरोप हैं. हालांकि, वे इन आरोपों से इनकार करते हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा कि न तो वे कभी भीमा कोरेगांव गए और न वहां हुई हिंसा में उनकी कोई सहभागिता है.
इसके बावजूद पुणे पुलिस ने 28 अगस्त को उनके घर पर छापा मारा. कुछ सामान ज़ब्त किए इसलिए वे इन दिनों सुर्ख़ियों में हैं.
कौन हैं फादर स्टेन स्वामी
तमिलनाडु में जन्मे स्टेन स्वामी की पहचान एक ख्याति प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर है. वे पिछले तीन दशक से झारखंड में रहकर आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं.
वह मूलतः एक पादरी हैं लेकिन अब चर्च में नहीं रहते. समाज शास्त्र के छात्र रहे स्टेन स्वामी की शुरुआती पढ़ाई चेन्नई और तमिलनाडु के दूसरे शहरों में हुई. बाद में वे मनीला (फिलीपींस) चले गए.
पढ़ाई के सिलसिले में उन्होंने दुनिया के दूसरे देशों की भी यात्राएं की. इसके बाद उन्होंने इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट (बंगलुरु) के साथ काम किया. बकौल स्टेन स्वामी, वे इसके दिल्ली सेंटर में कार्यरत रहे.
फादर स्टेन स्वामी ने बीबीसी से कहा, "इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में काम करने के दौरान मैंने समझा कि देश में आदिवासियों और दलितों के साथ अधूरा इंसाफ़ किया जा रहा है. या फिर उन्हें इंसाफ़ ही नहीं मिल रहा. वे अपने अधिकारों से वंचित हैं. मुझे इनके लिए काम करना था. यह तय करना था कि कहां रहूंगा. तब मैंने समझा कि आदिवासी समाज में जो समानता, सामूहिकता, सहभागिता और एकमतता है, वह कहीं और नहीं है. इससे प्रभावित होकर तीन दशक पहले मैं झारखंड चला आया."
उन्होंने यह भी बताया, "तब जंगलों का यह इलाक़ा बिहार में था. मैं पश्चिमी सिंहभूम के एक सुदूर गांव मे रहने लगा. हो (आदिवासियों की भाषा) सीखी और साप्ताहिक हटिया (बाज़ार) में जाकर देखा कि बाहरी लोग किस तरह से भोले-भाले आदिवासियों के शोषण में लगे हैं. मैंने सोचा कि क्या मैं इनके जीवन में छोटा-सा परिवर्तन ला सकता हूं. मैंने वहां 'जोहार' और 'बगईचा' नामक संगठनों की बुनियाद रखी और अपना काम करने लगा. झारखंड के अलग राज्य बनने के कुछ महीने बाद साल 2001 में मैं रांची चला आया. मैंने कभी वैसा काम नहीं किया, जिसका आकलन आप राष्ट्रद्रोह की परिधि में आकर करें."
आपातकाल से ज्यादा ख़राब हालात
फादर स्टेन स्वामी ने कहा कि यह दौर आपातकाल से भी ज़्यादा ख़राब है क्योंकि तब कम से कम यह तो बताया जाता था कि आप किस आरोप में गिरफ़्तार किए जा रहे हैं.
"अब यह नहीं हो रहा है. लिंचिंग हो रही है. यह आपातकाल में नहीं होता था. समाज में बहुत अंतर्विरोध हैं. लोकतंत्र को नष्ट किया जा रहा है. इसलिए हम लोगों ने 'लोकतंत्र बचाओ मंच' बनाया है. इसके बैनर तले लड़ाई जारी रखेंगे."
फादर स्टेन स्वामी कहते हैं, "झारखंड की जेलों में 3000 से अधिक आदिवासी विचाराधीन क़ैदी सालों से सड़ रहे हैं. हमने अपनी स्टडी में पाया है कि इनमें से सिर्फ़ 15 फ़ीसदी लोगों पर जुर्म सिद्ध होता है. बाकी निर्दोष हैं लेकिन सरकार उनका स्पीडी ट्रायल नहीं कराती, वे जेल में सड़ रहे हैं. मैंने इसके ख़िलाफ़ रांची हाईकोर्ट में पीआइएल की है. मैं 'पेसा क़ानून' और 'वन अधिकार अधिनियम' को लागू कराने की लड़ाई लड़ रहा हूं. मैं सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2013 में दिए गए जजमेंट के तहत 'जिसकी ज़मीन, उसका खनिज' की बात करता हूं. सरकार को शायद ये बातें ठीक नहीं लगतीं."
पहले भी हुए हैं मुक़दमे
फादर स्टेन स्वामी के ख़िलाफ़ पुलिस ने पहले भी कार्रवाई की हैं.
पहली रिपोर्ट
उनके ख़िलाफ़ पहली एफ़आईआर तब हुई, जब वे नगड़ी (रांची के पास एक गांव) में किसानों की ज़मीन के अधिग्रहण का विरोध कर रहे थे.
उस आंदोलन में मशहूर सोशल एक्टिविस्ट दयामनी बरला गिरफ़्तार कर ली गई थीं. उनके ख़िलाफ़ रांची के अल्बर्ट एक्का चौक पर धरना दे रहे स्टेन स्वामी पर पुलिस ने बग़ैर इजाज़त प्रदर्शन का आरोप लगाकर रिपोर्ट दर्ज की लेकिन उनकी गिरफ़्तारी नहीं हुई.
दूसरी रिपोर्ट
खूंटी में पिछले दिनों चले चर्चित पत्थलगड़ी आंदोलन के कथित समर्थन के आरोप में 26 जुलाई को खूंटी थाना में उनके ख़िलाफ़ दूसरी रिपोर्ट दर्ज की गई. पुलिस ने उन पर देशद्रोह और आइटी एक्ट की धाराएं लगाई हैं. इसकी जांच भी चल रही है.
तीसरी रिपोर्ट
भीमा कोरेगांव में दलितों के प्रदर्शन के बाद भड़की हिंसा में शामिल लोगों से सांठ-गांठ होने के आरोप में पुणे (महाराष्ट्र) के विश्रामबाग वाड़ा थाने में उनके ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज की गई है.
पुणे पुलिस ने इस सिलसिले में रांची आकर स्टेन स्वामी के घर पर छापा मारा और 22 सीडी, लैपटॉप मोबाइल फोन, दो सिम कार्ड, एक पेन ड्राइव, डायरी, टैब और कुछ साहित्य ज़ब्त कर लिया.
पुणे पुलिस के इंस्पेक्टर दीपर निगम ने मीडिया को बताया कि ज़ब्त सामान जांच के लिए साइबर फोरेंसिक लैब में भेजे जाएंगे. उसकी रिपोर्ट के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी.
रांची में प्रदर्शन
फादर स्टेन स्वामी के घर पर छापेमारी के ख़िलाफ़ झारखंड के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 'वी स्टैंड विद स्टेन स्वामी' के पोस्टर के साथ रांची में प्रदर्शन किया और एक अपील जारी की. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी स्टेन स्वामी से मिलने उनके घर गए और पुलिस कार्रवाई का विरोध किया.
मशहूर अर्थशास्त्री और चर्चित सोशल एक्टिविस्ट ज्यां द्रेज़ ने बीबीसी को भेजे एक मेल में कहा है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डराने की कोशिश की जा रही है. यह लोकतंत्र की सेहत के प्रतिकूल है.
उन्होंने कहा कि सरकार को इनके ख़िलाफ़ दर्ज मुकदमे वापस लेकर उन्हें शीघ्र रिहा करना चाहिए.
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