अस्पतालों में इलाज के साथ गालियां और मार भी झेलती हैं गर्भवती महिलाएं

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- Author, कमलेश
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
28 साल की सुमन की अभी पिछले महीने ही डिलीवरी हुई है. लेकिन, जब उससे दूसरे बच्चे का सवाल पूछा गया तो वो सिहर गई.
दूसरे बच्चे के नाम से नहीं बल्कि डिलीवरी के दौरान होने वाले बर्ताव से.
सुमन की दिल्ली के संजय गांधी अस्पताल में डिलीवरी हुई थी.
अपना अनुभव बताते हुए वे कहती हैं, ''मेरा पहला बच्चा था. मुझे नहीं पता था कि डिलीवरी में क्या-क्या होने वाला है. मैं पहले ही घबराई हुई थी. मेरे साथ बड़े से कमरे में और भी औरतें डिलीवरी के लिए आई हुई थीं. वे दर्द से चिल्ला रही थीं. लेकिन इन औरतों के प्रति सहानुभूति दिखाने के बजाय उन्हें डांटा जा रहा था जिसने मेरी बैचेनी को और बढ़ा दिया था."
सुमन बताती हैं ,''वार्ड में पंखे तो टंगे थे, लेकिन चल नहीं रहे थे. इस गर्मी और उमस में हम तीन महिलाओं के लिए एक ही बिस्तर था. हम तीनों ही प्रसव के दर्द से जूझ रही थीं और लेटना चाहती थीं, लेकिन वो संभव नहीं था. हम तीनों महिलाएं सिकुड़ कर बैठी थीं और तभी आराम कर पाती थीं जब हम में से एक बाथरुम या टहलने के लिए उठती.''
''वहीं मेरे बगल वाले बिस्तर पर एक महिला को तेज़ दर्द उठा, वो दर्द से कराह रही थी. पसीने में तर-बतर उस महिला का मुंह सूख रहा था, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं था. लेकिन जब वो ज़ोर-ज़ोर से कराहने लगी तो नर्स आई. नर्स ने जांच की और कहा कि अभी बच्चा बाहर नहीं आया है. दर्द से चिल्ला रही इस महिला को जांच के दौरान न सिर्फ़ नर्स ने डांट लगाई बल्कि उसे कई बार मारा भी.''
''नर्स का जहां हाथ पड़ता वो उसे मार देती. वो लोग बाल तक खींच देती हैं. बातें तो ऐसी कहती हैं कि सुनकर बच्चा पैदा करने पर शर्म आ जाए. पहले तो मज़ा उठा लेती हो फिर चिल्लाती हो. बच्चा पैदा कर रही हो तो दर्द तो होगा ही, पहले नहीं पता था क्या. आप ही बताएं ये क्या कोई कहने वाली बात है. हम कोई जानवर हैं क्या जो ऐसा करते हैं. लेकिन उस वक्त ये सब देखकर तो हम सभी दहशत में आ गए और मेरा दर्द तो जैसे ग़ायब ही हो गया.''

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सरकारी अस्पतालों में प्रसव के दौरान महिलाओं के साथ ऐसा असंवेदनशील व्यवहार होना आम बात है. कई और सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रही महिलाएं भी इस तरह के अनुभव बताती हैं.
इस बात को केंद्र सरकार ने भी माना है और अस्पतालों में होने वाले दुर्व्यवहार पर सरकार ने वर्ष 2017 में 'लक्ष्य दिशानिर्देश' जारी किए हैं, जिन्हें राज्य सरकारों के ज़रिए लागू करवाने की कोशिश की जा रही है.
वहीं, चंडीगढ़ के 'पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च' या पीजीआईएमईआर ने 'रेस्पेक्टफुल ' या प्रसूति के दौरान सम्मानजनक व्यवहार और देखभाल को लेकर शोध किया है.

क्या कहती है रिसर्च
इस शोध में भी पाया गया कि अस्पताल का स्टाफ़ महिलाओं के साथ सख़्ती से पेश आता है, उन्हें डांटता है और बात न मानने पर धमकाता है.
पीजीआईएमईआर में कम्युनिटी मेडिसिन की प्रोफ़ेसर और इस शोध की प्रिंसिपल इंवेस्टीगेटर डॉक्टर मनमीत कौर कहती हैं, ''दरअसल ये धारणा बन गई है कि प्रसव के दौरान डांटना ज़रूरी है. नर्सें ये तक कहती हैं कि इससे महिलाओं को प्रसव में मदद मिलती है.''
इस शोध की रिसर्च कोऑर्डिनेटर इनायत सिंह कक्कड़ कहती हैं, ''अस्पतालों में एक नर्स के ज़िम्मे कई मरीज़ होते हैं. ऐसे में उनका चिड़चिड़ाना भी स्वाभाविक है. वह सभी पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पातीं. हमें भी कई नर्सों ने इसके बारे में बताया है. फिर भी प्यार और सम्मान से बात करना नामुमकिन नहीं है और कई नर्स अच्छा व्यवहार करती भी हैं.''

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सही ट्रेनिंग की ज़रूरत
वहीं, जब संजय गांधी अस्पताल से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने अपने अस्पताल में दुर्व्यवहार से जुड़ी कोई शिकायत मिलने से तो इनकार किया, लेकिन इसे माना कि सरकारी अस्पतालों में ऐसा होता है.
संजय गांधी अस्पताल के डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर एमएम मनमोहन ने कहा, ''बात डांटने की है तो हम नर्सिंग स्टाफ़ की समय-समय पर काउंसलिंग करते रहते हैं ताकि मरीजों से प्यार से कैसे बात की जाए. ये व्यक्तिगत मसला भी है. हमारे यहां ऐसी कोई शिकायत नहीं आई कि किसी ने मरीज़ को मारा या प्रताड़ित किया गया.''
लेकिन, सरकारी अस्पतालों में ऐसे बर्ताव को मानते हुए उन्होंने कहा, ''इसका एक कारण ये है कि कई नर्सों को सॉफ़्ट स्किल की ट्रेनिंग नहीं दी जाती. वो मेडिकल की पढ़ाई में करिकुलम का हिस्सा होना चाहिए. लेकिन हमेशा से ऐसी ट्रेनिंग नहीं दी जाती रही है.''
साथ ही डॉक्टर मनमोहन स्टाफ़ की कमी को भी इसका एक कारण मानते हैं. उन्होंने बताया कि हर एक अस्पताल में कम से कम 15 से 20 प्रतिशत सीटें खाली होंगी चाहे वो नर्स हों या डॉक्टर. ऐसे में अस्पतालों में मरीज़ ज़्यादा हैं लेकिन नर्स और डॉक्टर कम हैं. यहां तक कि मोहल्लों में खुले पॉलीक्लीनिक में भी अस्पताल का ही स्टाफ़ जाता है. वहां अलग से नियुक्ति नहीं की गई है. मरीज और नर्स/डॉक्टर के अनुपात को कम करने की ज़रूरत है.

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डॉक्टर मनमोहन बताते हैं कि जैसे अस्पताल के एक वॉर्ड में दो ही नर्सें होती हैं और उन पर क़रीब 50-60 मरीज़ों का भार होता है. अब अगर इतने लोग एक या दो नर्सों को बार-बार बुलाएंगे तो उन्हें भी परेशानी होना स्वाभाविक है. उन्हें रिकॉर्ड भी बनाना होता है, दवाइयां देनी होती है, इंजेक्शन लगाना होता है और मरीज़ बुलाए तो उसके पास भी जाना होता है. उन लोगों के लिए छुट्टी लेना भी कई बार मुश्किल होता है.
दिल्ली के बाबू जगजीवन अस्पताल की मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर प्रतिभा भी अस्पतालों में नर्स और डॉक्टर की कमी की बात स्वीकार करती हैं.
डॉक्टर प्रतिभा कहती हैं, ''आज भी डॉक्टर के कई पद ख़ाली पड़े हैं. सरकार के पास डॉक्टर ही नहीं हैं. सिर्फ़ दिल्ली ही नहीं दूसरे राज्यों में भी अस्पतालों में सुधार की ज़रूरत है ताकि दिल्ली पर दूसरे राज्यों के मरीज़ों का बोझ कुछ कम हो सके."
वो बताती हैं कि दूसरी ज़रूरत मरीज़ों के प्रति सहानुभूति पैदा करने की है. नर्सें गर्भवती महिलाओं के सबसे ज्यादा संपर्क में रहती हैं. ऐसे में उन्हें सही प्रशिक्षण दिया जाना ज़रूरी है.
उधर इनायत सिंह कहती हैं, '' मरीज़ से सहानुभूति और इंटर पर्सनल कम्यूनिकेशन, मेडिकल एजुकेशन का हिस्सा होना चाहिए. इस तरह के कोर्सेज़ समय-समय पर होते रहने चाहिए ताकि यह उनकी आदत बन जाए."

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काउंसलिंग की ज़रूरत
इन मामलों में देखा जाता है कि अमूमन महिलाएं शिकायत के साथ सामने नहीं आना चाहतीं और कहती हैं कि मेरे साथ नहीं बल्कि दूसरी महिला के साथ दुर्व्यवहार हुआ है.
ऐसे में महिलाओं को आंगनबाड़ी या किसी और ज़रिए से अस्पताल की प्रक्रियाओं और प्रसव के दर्द व सावधानियों की जानकारी देकर काउंसलिंग की ज़रूरत है.
सरकार ने अस्पतालों में होने वाले दुर्व्यवहार पर जो 'लक्ष्य दिशानिर्देश' ज़ारी किए हैं, उनमें माना गया है कि प्रसूति की देखभाल सम्मानजनक तरीके से होनी चाहिए जिसका अभी अभाव है.

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इसमें दिए गए कुछ निर्देश कहते हैं:
- प्रसव पीड़ा के दौरान अलग लेबर रूम या एक निजी क्यूब देकर महिलाओं को निजता प्रदान करें.
- दर्द के दौरान परिजन साथ रहें.
- प्रसव के दौरान महिला को उसकी सुविधानुसार पोज़ीशन में रहने दें.
- टेबल की बजाए लेबर बेड का इस्तेमाल करें.
- गर्भवती महिला के साथ मौखिक या शारीरिक दुर्व्यवहार न करें.
- दवाइयों, जांच या बच्चा पैदा होने की खुशी में पैसा न लें.
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