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आख़िर रफ़ायल पर कौन सच बोल रहा है?
- Author, टीम बीबीसी हिंदी
- पदनाम, नई दिल्ली
फ़्रांस की कंपनी डासो एविएशन के रफ़ायल लड़ाकू विमान को लेकर भारत में विवाद गर्म हो गया है.
शुक्रवार कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान कहा कि मोदी सरकार ने 36 रफ़ायल लड़ाकू विमान की ख़रीदारी में भ्रष्टाचार को अंजाम दिया है.
राहुल का कहना है कि सरकार इस सौदे की क़ीमत बताने से बच रही है जबकि सरकार का कहना है कि दोनों देशों के बीच हुए समझौते में गोपनीयता की शर्त के कारण वो क़ीमत को सार्वजनिक नहीं कर रही है.
क्या फ़्रांस के साथ हुए सौदे की क़ीमत इस क़दर गोपनीय है कि सार्जनिक नहीं की जा सकती? राहुल गांधी ने तो यहां तक कह दिया कि उनकी फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से बात हुई थी और उन्होंने कहा कि इस समझौते में गोपनीयता जैसी कोई बात नहीं है. आख़िर रफ़ायल पर झूठ कौन बोल रहा है?
10 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 36 रफ़ायल लड़ाकू विमान ख़रीदने की घोषणा की थी. फ़ाइनैंशियल टाइम्स अख़बार से डासो कंपनी के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने फ़ोन पर कहा था कि इस सौदे दोनों देशों के बीच भरोसा बढ़ेगा.
कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट में क्या है
रफ़ायल की क़ीमत को लेकर भारतीय मीडिया में विपक्ष की तरफ़ से समय-समय पर सवाल उठाए जाते रहे हैं. पहले की तुलना में ज़्यादा क़ीमत पर सरकार का कहना है कि डासो ने भारत में 108 फ़ाइटर जेट तैयार करने का वादा किया है.
इन लड़ाकू विमानों को भारत में बनाने के लिए पहले सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनौटिक्स लिमिटेड को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था. यह काम उसे डासो के साथ मिलकर करना था, लेकिन बाद में इस कॉन्ट्रैक्ट को रिलायंस डिफेंस को दे दिया गया.
डासो एविएशन की वार्षिक रिपोर्ट 2016 में कहा गया है कि 31 दिसंबर 2016 तक 20 करोड़ तीन लाख 23 हज़ार यूरो के रफ़ायल लड़ाकू विमान के पुराने ऑर्डर थे जबकि 31 दिसंबर, 2015 तक 14 करोड़ एक लाख 75 हज़ार यूरो के ही ऑर्डर थे.
डासो का कहना है कि 2016 में भारत से 36 रफ़ायल डील पक्की होने के बाद यह बढ़ोतरी हुई थी.
कई आलोचकों का कहना है कि भारत ने जिस तरह से इस समझौते को अंजाम तक पहुंचाया, उसकी वजह से ज़्यादा क़ीमत चुकानी पड़ रही है.
2005 में भी भारत सरकार पर फ़्रांस की स्कोरपेन सबमरीन की डील में भी ज़्यादा पैसे देने के आरोप लगे थे.
द डिप्लोमैट की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय वायु सेना और भारत की परमाणु क्षमता के लिहाज़ से फ़्रांस ने भारत को मिराज 2000 उपलब्ध कराया था. भारत को यह सौदा इसलिए करना पड़ा था, क्योंकि ब्रिटिश स्पेसजेट जगुआर ज़्यादा ऊंचाई पर धीमा हो जाता था और वो परमाणु बम से भी लैस नहीं था.
फ़्रांस की रक्षा कंपनियां भारत की निजी कंपनियों के साथ समझौते भी कर रही हैं. द डिप्लोमैट का कहना है कि फ़्रांस की कुछ कंपनियां टेक्नॉलजी ट्रांसफ़र पर भी राज़ी हो गई हैं.
फ़्रास से रफ़ायल को लेकर बातचीत 2012 से ही चल रही थी. इस सौदे में क़ीमत को लेकर तो मतभेद था ही, इसके साथ ही भारत में किस हद तक इसका निर्माण होगा, इसे लेकर भी विवाद था.
एक समय यह सौदा टूटने की कगार पर पहुंच चुका था, क्योंकि फ़्रांस भारत की सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स को टेक्नॉलजी ट्रांसफ़र करने को लेकर तैयार नहीं था.
जब भारत की कमान नरेंद्र मोदी के हाथों में आई में आई तो उन्होंने ख़ुद ही इस सौदे को अपने हाथों में लिया और कहा कि भारत फ़्रांस से 36 रफ़ायल ख़रीदेगा.
कब हुआ था समझौता?
हालांकि दोनों में से किसी भी सरकार की तरफ़ से इस सौदे की क़ीमत को सार्वजनिक नहीं किया गया, लेकिन एविएशन इंडस्ट्री से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि यह सौदा 8.7 अरब डॉलर का है.
रक्षा उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने फाइनैशियल टाइम्स से 22 सिंतबर, 2016 को कहा था, ''इसमें सब कुछ फ़्रांस कर रहा है. भारत की कंपनियों से इसमें किसी भी तरह के ठोस योगदान की उम्मीद नहीं की जा रही है.''
इस सौदे की शर्तों पर दोनों देश चुप हैं. फाइनैंशियल टाइम्स से फ़्रांस के अधिकारियों ने कहा है कि यह एक गोपनीय सौदा है, इसलिए कोई जानकारी मुहैया नहीं कराई जाएगी. भारतीय वायु सेना की वर्षों से सक्षम लड़ाकू विमान मुहैया कराने की मांग रही है.
एविएशन वीक की एक रिपोर्ट के अनुसार पहला रफ़ायल भारत के पास 2019 के आख़िर में आएगा और बाक़ी के 35 रफ़ायल 60 महीनों के भीतर आ जाएंगे. इनमें से 28 सिंगल सीट एयरक्राफ़्ट हैं जबकि 8 दो सीटों वाले हैं.
रफ़ायल को आधिकारिक रूप से परमाणु हथियारों से लैस नहीं किया गया है. ऐसा अंतरराष्ट्रीय संधियों के कारण किया गया है. हालांकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि भारत मिराज 2000 की तरह इसे भी अपने हिसाब से विकसित कर लेगा.
23 सिंतबर, 2016 को डासो एविएशन ने भारत के साथ राफ़यल सौदे को लेकर एक प्रेस रिलीज जारी किया. इसमें लिखा गया है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अप्रैल 2015 में फ़्रांस के दौरे पर आए थे और उन्होंने इस सौदे को अंतिम रूप दिया.
हालांकि प्रेस रिलीज में इस बात का ज़िक्र कहीं नहीं है कि यह सौदा कितने का है. इसके साथ ही इस प्रेस रिलीज में इस बात का भी उल्लेख नहीं है कि यह गोपनीय सौदा है और इससे जुड़ी जानकारियों को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.
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