पक्षी की चोंच में प्लास्टिक का छल्ला फंसा, निकले कैसे

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वन्यजीव प्रेमी और वन अधिकारी विलुप्त हो रही प्रजाति के एक पक्षी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं.
इस पक्षी की चोंच में प्लास्टिक की एक रिंग फंसी हुई है, जिसकी वजह से ये चोंच नहीं खोल पा रहा है.
काली गर्दन वाले स्टार्क नाम के इस पक्षी को पहली बार राजधानी दिल्ली के बाहर एक दलदली ज़मीन में 7 जून को देखा गया था. इन दलदली इलाके में कई सारे पक्षी खाने की तलाश में आते हैं.
देखने वालों का मानना है कि इस हालत में ये परिंदा पानी तो पी पा रहा है लेकिन चोंच ना खोल पाने की वजह से कुछ खा नहीं पा रहा.
अगर जल्द ही रिंग को चोंच से नहीं निकाली गई तो डर है कि ये पक्षी भूख से मर जाएगा. इसलिए बचाव कर्मी कोशिश कर रहे हैं कि स्टार्क को पकड़कर किसी तरह रिंग को जल्द से जल्द निकाल दें.
बचाव दल में शामिल पंकज गुप्ता बर्ड वॉचर के साथ-साथ दिल्ली बर्ड फाउंडेशन के सदस्य भी हैं. उन्होंने बीबीसी से कहा, "कमज़ोर होने पर वह उड़ नहीं पाएगा. लेकिन अगर वो ज़्यादा कमज़ोर हो गया तो मर सकता है."
पंकज गुप्ता को लगता है कि ये रिंग बोतल का हो सकता है, जो उस वक्त पक्षी की चोंच में फंस गया होगा जब वो पानी में शिकार कर रहा हो.
गुप्ता कहते हैं कि रिंग के साथ स्टार्क की तस्वीर सबसे पहले बर्ड वॉचर मनोज नय्यर ने खींची थी. फिर मनोज ने ये फोटो पंकज गुप्ता को भेजी.
पंकज गुप्ता और उनके साथियों ने ये फोटो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के साथ शेयर की. इसके बाद बचाव अभियान शुरू किया गया.
वन्य अधिकारियों की मदद से संरक्षण में माहिर बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के सदस्य इस परिंदे को बचाने की कोशिश में जुटे हैं.

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बचाव के काम में अपनी टीम के साथ लगे गुप्ता कहते हैं कि उन्होंने जाल की मदद से पक्षी को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वो हर बार उड़ जाता है.
इसलिए वो अब उसे पकड़ने के लिए बांस का जाल तैयार कर रहे हैं.
गुप्ता के मुताबिक काली गर्दन वाला स्टॉर्क एक विलुप्त होती प्रजाति का पक्षी है. ये पक्षी भारत के कुछ हिस्सों के अलावा इंडोनेशिया और श्रीलंका में पाए जाते हैं. लेकिन ऐसे 50 से 60 पक्षी दिल्ली के बाहर वाले दलदली इलाकों में आते हैं. वो उन इलाकों में जाते हैं जहां उन्हें मछली और दूसरे कीड़े खाने को मिल जाएं.
पंकज गुप्ता का कहना है कि ये स्टॉर्क एक जगह नहीं ठहर रहा, बल्कि ये 15 से 20 वर्ग किलोमीटर के दायरे में घूम रहा है.
इसे सबसे पहले, दिल्ली से 34 किलोमीटर दूर बसई के दलदल में देखा गया था, जबकि बचाव अभियान पास के दलदल में चलाया जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये पक्षी बसई से उड़कर अब वहां चला गया है.

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बसई वेटलैंड हाल ही में उस वक्त खबरों में आया था जब सरकार ने वहां निर्माण कार्य में बचे कचरे को रिसाइकिल करने के लिए एक फैक्ट्री लागने की योजना बनाई थी.
सरकार की इस योजना का कई पक्षी प्रेमियों और स्थानीय पर्यावरणविदों ने विरोध किया था.
गुप्ता ने बीबीसी से कहा, "ये फैक्ट्री पर्यावरण के लिए फायदेमंद होगी, लेकिन इसे बनाने के लिए एक दलदली ज़मीन को क्यों चुना गया?"
अब राष्ट्रीय पर्यावरण ट्रिब्यून ये फैसला करेगा कि क्या बसई को अधिकारिक तौर पर संरक्षित दलदल की मान्यता दी जानी चाहिए.
गुप्ता और उनके साथियों को उम्मीद है कि इस स्टॉर्क पक्षी की दुर्दशा शायद दलदल को बचाने में मदद करेगी.
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