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'यूपी में 16 और हरियाणा में 12 फर्जी एनकाउंटर हुए'
- Author, कमलेश
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
उत्तर प्रदेश और हरियाणा में पुलिस मुठभेड़ में होने वाली मौतों पर मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन ने सवाल उठाए हैं.
सिटीजन्स अगेंस्ट हेट नाम के इस संगठन ने मंगलवार को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दावा किया कि यूपी और हरियाणा में मुठभेड़ के कई मामलों में गड़बड़ियां हैं.
संगठन ने मुठभेड़ के 28 मामलों का अध्ययन करके एक रिपोर्ट जारी की. इन 28 मामलों में 16 यूपी और 12 हरियाणा के हैं.
मानवाधिकारों से जुड़े कुछ अन्य संगठन भी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे. रिपोर्ट के आधार पर दावा किया गया कि मुठभेड़ से जुड़े कई ऐसे तथ्य मिले हैं जो संदेह पैदा करते हैं.
हालांकि, यूपी पुलिस और हरियाणा सरकार के प्रवक्ता ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है.
रिपोर्ट में किए गए दावे
संगठन का कहना है कि यूपी के 16 मामलों में दर्ज हुए दस्तावेज़ों में तकरीबन एक जैसी कहानियां ही बताई गई हैं. जैसे एक ही तरह से पकड़ने का तरीका है और हर बार एक मुजरिम मारा जाता है और एक भाग जाता है.
साथ ही कई शवों पर जख़्म के निशान भी मिले हैं जिससे पुलिस प्रताड़ना का पता चलता है. मुठभेड़ में क्लोज रेंज से और कमर से ऊपर गोली मारे जाने पर भी सवाल उठाए गए हैं.
संगठन का कहना है कि अमूमन गोली तब चलाई जाती है जब अपराधी भाग रहा होता है या पुलिस पर हमला करता है. ऐसे में क्लोज रेंज से गोली कैसे लग सकती है.
हालांकि, बीबीसी ने जब उत्तर प्रदेश एसटीफ के आईजी अमिताभ यश से इन आरोपों को लेकर बात की तो उन्होंने सभी आरोपों को ख़ारिज कर दिया.
उन्होंने कहा, ''सभी मामलों पर सवाल उठाना सही नहीं है क्योंकि हर मुठभेड़ को अलग जगहों पर अलग टीमें अंजाम देती हैं. अगर कोई खास मामला है तो उसको देखकर जवाब दिया जा सकता है.''
पुलिस प्रताड़ना के आरोपों पर अमिताभ यश ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो न्यायिक जांच में ये सारी बातें सामने आ जाएंगी. अगर चोटें मुठभेड़ की नहीं हैं तो पुलिसकर्मी को जवाब देना होगा.
इसके अलावा मुठभेड़ के तरीके पर अमिताभ ने बताया कि मुठभेड़ उस वक्त के हालातों पर निर्भर करती है. अगर कोई अपराधी पुलिस पर हमला कर देता है तो पुलिस को अपना बचाव करना ही होगा. जो पुलिसवाला मौके पर होता है वो अपने अनुसार फैसला करता है.
खास समुदाय पर निशाना
संगठन ने इन मुठभेड़ों में खास समुदाय को निशाना बनाने की बात भी कही है. उनका कहना है कि ज्यादातर ऐसे मुसलमान निशाना बने हैं जो ग़रीब तबके से हैं.
लेकिन अमिताभ शौर्य कहते हैं कि मुठभेड़ में मारे गए लोगों में लगभग सभी समुदायों के लोग हैं. अगर अल्पसंख्यकों की भी बात करें तो वो भी कई वर्गों में विभाजित हैं और हर वर्ग के अपराधी से मुठभेड़ होती है.
मुठभेड़ों से क़ानून व्यवस्था सुधरने के सवाल पर अमिताभ कहते हैं, ''जरूरी नहीं कि एनकाउंटर से अपराध रुकता है लेकिन इससे अपराधी पुलिस को हल्के में लेना बंद कर देते हैं. साल 2014-16 तक हमारी पुलिस का मनोबल बहुत गिरा हुआ था. अब मनोबल बढ़ा क्योंकि पुलिस का हौसला बढ़ाया गया.''
हरियाणा के एनकाउंटर
संगठन ने हरियाणा पुलिस की कार्यशैली पर भी प्रश्न उठाए हैं.
12 मुठभेड़ों को संदिग्ध बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि शवों को परिजनों के हवाले नहीं किया गया और पुलिस की बताई जगह पर ही दफनाना पड़ा.
लेकिन, हरियाणा सरकार के प्रवक्ता जवाहर यादव ने इन आरोपों का खारिज करते हुए कहा, ''हरियाणा में फर्जी मुठभेड़ जैसा कोई मसला है ही नहीं. अभी तक किसी मुठभेड़ में गड़बड़ी नहीं पाई गई है.''
''हरियाणा में अभी कुल मिलाकर 4 या 5 मुठभेड़ें हुई हैं और वो उनके साथ हुई हैं जो भगोड़े थे. पुलिस ने अपनी आत्मरक्षा में गोली चलाई है और अपराधियों को पकड़ा है.''
मेवात क्षेत्र से 12 मामले
संगठन ने बताया कि मेवात क्षेत्र से 12 मामलों का अध्ययन किया गया है. ये मामले 2010 से 17 के बीच के हैं. यह यूपी, हरियाण और राजस्थान का मिला हुआ क्षेत्र है.
इस क्षेत्र में करीब सारे पीड़ित मुस्लिम हैं. ये आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े हुए हैं और किसानी व पशुपालन का काम भी करते हैं.
रिपोर्ट का कहना है कि इस क्षेत्र में एनकाउंटर इस तरह हुए हैं कि पशु खरीदने गए लोगों को रास्ते में पकड़कर एनकाउंटर कर दिया गया.
लेकिन, यूपी और हरियाणा की सरकारों ने इन तथ्यों को ग़लत बताया है.
मृतकों के परिजन भी पहुंचे
प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ मृतकों के परिजन भी मौजूद थे. उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई. यूपी में पठानपुर की रहने वालीं ज़ुबैदा ने बताया, ''पिछले साल दिसंबर में उनके बेटे मंसूर की पुलिस मुठभेड़ में जान चल गई थी.''
''करीब 30 साल के मंसूर को पुलिस दिन में घर से ले गई और और रात को ही मार दिया. हमें किसी और से उसकी मौत का पता चला. मेरे बेटे की मानसिक स्थिति सही नहीं थी तो वो क्या अपराध करता.''
हालांकि, ज़ुबैदा ने बताया कि मंसूर को ले जाने और छोड़ने का सिलसिला 10-12 साल से चल रहा था. उसका पुलिसकर्मियों के साथ उठना-बैठना भी था. उन्होंने कहा कि पुलिसवालों को डर था कि कहीं वो उनकी पोल न खाले दें.
सहारनपुर की रहने वालीं ममता के भाई गुरमीत सिंह की पिछले साल मार्च में मुठभेड़े में मौत हो गई थी. उसे पुलिसवाले उठा कर ले गए थे. जब वो वापस आया तो उसके पैर और दिल में गोली थी.
ममता का कहना है कि पुलिस वालों ने पहले सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया और फिर निजी अस्पताल में ले गए. पुलिस ने अलग से पोस्टमर्टम के लिए डॉक्टर बुला रखा था.
मंसूर पर आपराधिक मामले भी चल रहे थे और वो अदालत में पेश भी होने वाले थे. हालांकि, जब ममता से पूछा गया कि उनके भाई को ही निशाना क्यों बनाया गया तो वो कोई ठोस कारण नहीं बता सकीं.
अब परिजनों ने मानवाधिकार आयोग से स्वतंत्र जांच की मांग की है.
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