चेन्नई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काले झंडे क्यों दिखाए गए?

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- Author, इमरान क़ुरैशी
- पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए
दक्षिण भारतीय शहर चेन्नई में काले झंडों के साथ सड़कों पर प्रदर्शन होना कोई अनोखी बात नहीं है. लेकिन फिर भी चेन्नई और यहां तक कि पूरे तमिलनाडु में इस तरह का प्रदर्शन कभी किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ नहीं हुआ है.
लेकिन बुधवार को 30 साल पुराना ये रिकॉर्ड टूट गया और यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ काले झंडों के साथ विरोध प्रदर्शन हुआ.
इससे पहले ऐसा प्रदर्शन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ख़िलाफ़ श्रीलंका के मुद्दे पर किया गया था. लेकिन पीएम मोदी के ख़िलाफ़ इतने बड़े पैमान पर विरोध प्रदर्शन और सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में आई प्रतिक्रियाओं ने यहां काफ़ी लोगों को हैरान किया.
पुलिस ने एयरपोर्ट और दो अन्य जगहों- अडयार कैंसर संस्थान और आईआईटी मद्रास के पास तक़रीबन तीन हज़ार प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया.

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क्यों दिखाए गए काले झंडे
प्रधानमंत्री ने तीन जगहों- डिफ़ेन्स एक्सपो, अडयार कैंसर संस्थान और आईआईटी मद्रास का दौरा किया. एयरपोर्ट के अलावा इन दोनों जगहों से पुलिस ने तक़रीबन तीन हज़ार प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया. मोदी सबसे पहले डिफ़ेन्स एक्सपो गए थे जहां उन्होंने इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया.

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डीएमके पार्टी ने पहले ही चेतावनी दी थी कि जिन-जिन जगहों पर मोदी जाएंगे, वहां उनके कार्यकर्ता प्रदर्शन करेंगे. शायद इस कारण मोदी सभी जगहों पर सड़क की बजाय हेलीकॉप्टर से गए. लेकिन शायद उन्हें उम्मीद नहीं थी कि डीएमके अपना विरोध जताने के लिए हवा में काले गुब्बारे छोड़ेगी ताकि उन्हें हेलीकॉप्टर से भी वो दिखाई दे जाएं.
नरेंद्र मोदी सड़क मार्ग से क्या बचे, एमडीएमके नेता वाइको ने प्रदर्शन कर रहे अपने कार्यकर्ताओं से कहा, "मोदी कायर हैं. क्या उन्हें लगता है कि काले झंडे दिखाने से कोई उन्हें गोली मार देगा. बेनितो मुसोलिनी की तरह मोदी को भी काले झंडों से डर लगता है. अगर उनमें हिम्मत होती तो वो सड़क के रास्ते जाते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया."
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कावेरी नदी के पानी के बंटवारे पर अब तक 'योजना' नहीं ला पाई है जिस कारण तमिलनाडु में उसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं. कावेरी नदी का पानी कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुदुच्चेरी के बीच बांटा जाना है.

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव
डीएमके ने ये मुद्दा कुछ हफ्ते पहले उठाया था जब सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद से भी केंद्र सरकार चुप थी. इन राज्यों के राजनीतिक दलों को उम्मीद नहीं थी कि कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड का गठन किया जाएगा.
सभी को पता था कि अगर केंद्र में मौजूद बीजेपी सरकार जल्दबाज़ी में कोई कदम उठाती है तो उसका ख़ामियाज़ा उसे आने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनावों में चुकाना पड़ सकता है. कर्नाटक में मई 12 को मतदान कराए जाने हैं. लेकिन डीएमके ने एआईएडीएमके सरकार का नकारात्मक पहलू दिखाने के लिए पहले ही इस मुद्दे को उठाया था. हाल ही में राजनीति में कदम रखने वाले अभिनेता रजनीकांत और कमल हासन भी राज्य भर में हो रहे इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए.
सेफ़ फ़ूड एलायंस के संयोजक हिमाचरण ने बीबीसी हिंदी को बताया, "विपक्ष सिर्फ जुमलेबाज़ी के लिए नहीं है. जब से जल्लीकट्टू को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, तभी से यहां के लोग सरकार से नाखुश हैं. जनवरी 2017 से ही तमिलनाडु में कई मुद्दों को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं जिनमें ऐसे कई सरकारी प्रोजेक्ट शामिल हैं जो राज्य के लिए नुकसानदायक हैं".

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हिमाचरण करते हैं, ''तूतीकोरिन में वेदांता स्टरलाइट प्रोजेक्ट का विस्तार किए जाने, पश्चिमी घाट को प्रभावित करने वाले न्यूट्रीनो प्रोजेक्ट और प्रस्तावित गैस प्रोजेक्ट के विरोध के साथ-साथ 'देश की संघीय प्रणाली को कमजोर करने के प्रयास' के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं.''
और अब जब राज्य में कावेरी जल बंटवारे को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं, उस वक्त आईपीएल टी-20 टूर्नामेंट हो रहा है और प्रतिबंध लगने के दो साल बाद चेन्नई सुपर किंग्स की टीम की आईपीएल में वापसी हुई है.
चेपक स्टेडियम में आईपीएल का पहला मैच भारी सुरक्षा इंतज़ामों के बीच खेल गया था, लेकिन फिर भी एक खिलाड़ी पर दर्शकों के बीच से जूता फेंका गया. इसके बाद बीसीसीआई ने फ़ैसला किया कि चेन्नई में आईपीएल का कोई मैच नहीं होगा.

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पीएम चुप क्यों?
अभिनेता और एक्टिविस्ट कस्तूरी शंकर मानती हैं कि इन प्रदर्शनों ने तमिलनाडु के लोगों के बारे में ग़लत छवि बना दी है कि यहां के लोग 'हमेशा लड़ते रहते' हैं.
शंकर कहती हैं, "खेल और राजनीति को अलग-अलग रखना चाहिए, लेकिन खेल के आयोजन का वक्त भी थोड़ा-बहुत इसके लिए ज़िम्मेदार है. तमिलनाडु के लोग केंद्र सरकार से नाराज़ हैं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी मज़ाक बना दिया है. डेडलाइन के आखिरी दिन केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट से उनकी कही योजना की परिभाषा पूछने पहुंची है."
उन्होंने कहा, "ये हर कोई जानता है कि केंद्र सरकार कावेरी मेनेजमेंट बोर्ड बनाने को लेकर कुछ नहीं करना चाहती क्योंकि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इसलिए इसका मतलब है कि तमिलनाडु की समस्याएं सुलझाना उनकी प्राथमिकता नहीं है. प्रधानमंत्री क्यों नहीं कहते कि तमिलनाड़ु के हकों की रक्षा होनी चाहिए?"

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तो तमिलनाडु में हो रहे विरोध प्रदर्शनों का भाजपा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
राजनीतिक विश्लेषक एस मुरारी कहते हैं, "अगर ऐसा ना भी होता तब भी भाजपा के वोटों में कोई ख़ास इज़ाफ़ा नहीं होने वाला था. पहले भी पार्टी को नोटा में जितने वोट मिलते हैं उनसे थोड़े ज़्यादा ही वोट मिलते थे. और बीजेपी की बी-टीम मानी जाने वाली एआईएडीएमके (मौजूदा सरकार) भी आने वाले चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी ऐसे कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं."












