बच्चियों से रेप करने वालों को फाँसी देना कितना कारगर होगा?

    • Author, सर्वप्रिया सांगवान
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

इस साल की शुरूआत में ही हरियाणा गलत कारणों से सुर्खियों में आया. 'दस दिन में दस रेप' जैसी हेडलाइन टीवी और अख़बारों में छाई रहीं.

पिछले गुरूवार को ही हरियाणा विधानसभा ने एक बिल पास किया जिसके मुताबिक 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के दोषियों को फांसी की सज़ा हो सकती है.

इस बिल को हरियाणा के विपक्षी दलों ने भी अपना पूरा समर्थन दिया. विधानसभा में कांग्रेस विधायक किरण चौधरी ने तो किसी भी उम्र की लड़की के साथ बलात्कार करने वालों को फांसी दिए जाने का सुझाव दिया क्योंकि उन्हें लगता है कि फांसी बलात्कार रोकने में प्रभावी साबित होगी.

ऐसा प्रावधान करने वाला हरियाणा देश का तीसरा राज्य बन चुका है. इससे पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश भी इसी तरह के बिल पास कर चुके हैं.

बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिसे लेकर लोगों में रोष होना स्वाभाविक है और जनता को लगता है कि सरकार इसे रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं कर रही, सरकार का ये क़दम कुछ करते हुए दिखने की ही कोशिश है.

लेकिन क्या फांसी की सज़ा बच्चों और महिलाओं को बलात्कार से बचा पाएगी? क्या फांसी की सज़ा अपराधियों में खौफ़ पैदा कर पाई है?

बच्चियों के अपराधी कौन?

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की सचिव कविता कृष्णन राज्य सरकारों के इस कदम को असरदार नहीं मानतीं.

उनका तर्क है कि बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों में ज़्यादातर घर के लोग या जान-पहचान के लोग ही शामिल होते हैं. फांसी जैसे कड़े कानून के बाद तो परिवार के लोग शिकायत करने में और अधिक हिचकेंगे.

"दुनिया के किसी भी देश से ऐसा उदाहरण हमारे सामने नहीं है जो बता सके कि फांसी की सज़ा से बलात्कार रूकते हैं. सरकार को ये करना चाहिए कि स्कूलों में, मोहल्लों में इस मामले में जागरूकता फैलानी चाहिए ताकि किसी बच्चे के साथ कोई घटना हो तो वो बताए कि उसके साथ क्या हुआ है. दिल्ली जैसे शहर में मैंने देखा है कि बच्चों को काउंसलिग तक नहीं मिल पाती है ठीक से."

महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय की 2007 की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों के साथ यौन अपराध करने वाले 79 फीसदी लोग उनके रिश्तेदार या जान-पहचान वाले थे, इसलिए बच्चे उन पर विश्वास करते थे.

हरियाणा से लोकसभा सांसद दुष्यंत चौटाला इसे देर से आया सही फ़ैसला मानते हैं. लेकिन साथ ही पुलिस व्यवस्था में भी सुधार करने की बात पर ज़ोर देते हैं क्योंकि बलात्कार के मामलों के निपटारे में पुलिस की जांच और कानून-व्यवस्था भी लचर साबित होती रही है.

कितने मामले पहुंचते हैं अंजाम तक?

सज़ा की बात तब आती है जब बलात्कार के मामलों पर फैसला आए. पिछले 10 साल में भारत में बलात्कार के 2 लाख 78 हज़ार से अधिक मामले दर्ज हुए हैं.

इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 में बलात्कार के चार में से सिर्फ एक ही मामले में अपराधियों पर दोष साबित हुआ, यानी 75 प्रतिशत मामले में आरोप के घेरे में आए लोग छूट गए. 2007 से लेकर 2016 तक दोष साबित होने की दर 30 फीसदी तक भी नहीं पहुंच पाई है.

नेशनल लॉ स्कूल की रिपोर्ट के मुताबिक बाल यौन शोषण के अपराधों में अपराधियों के छूट जाने की दर काफ़ी ज़्यादा है.

अगर मीडिया की स्पॉटलाइट वाले मामलों की बात करें तो हाल ही में हरियाणा में गुरमीत राम रहीम को बलात्कार के मामले में सीबीआई कोर्ट ने 20 साल की सज़ा सुनाई है.

ये फैसला आने में ही 15 साल का वक्त लग गया.

राजस्थान की जेल में आसाराम बापू एक 16 साल की लड़की के बलात्कार के मामले में अगस्त 2013 से बंद हैं. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल ही गुजरात सरकार से सवाल किया कि उनके ट्रायल की कार्रवाई इतनी धीमी क्यों है.

इंडिया स्पेंड की ही एक और रिपोर्ट देखें तो पता चलता है कि दिल्ली में 2012 के निर्भया बलात्कार कांड के बाद बलात्कार की घटनाएं, कम होने की जगह, बढ़ी हैं.

2011 में दिल्ली में बलात्कार का जो आंकड़ा 572 था, 2016 में बढ़कर 2155 हो गया. हालांकि इसकी एक वजह ये भी है कि महिलाएं अब बलात्कार या यौन उत्पीड़न को पहले से अधिक रिपोर्ट कर रही हैं.

लेकिन निर्भया मामले में दोषियों को फांसी की सज़ा सुनाए जाने के बाद भी बलात्कार के मामले दिल्ली में कम होते नज़र नहीं आ रहे हैं.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा सरकार ने सज़ा के मामले में जो संशोधन किया है, उसमें साफ़ तौर पर लिखा है कि अगर किसी 12 साल से कम उम्र की 'लड़की' के साथ बलात्कार होता है तो अपराधी को फांसी की सज़ा या उम्र कैद हो सकती है लेकिन बाल यौन शोषण के पीड़ित तो छोटे लड़के भी होते हैं.

खुद महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि 13 राज्यों में यौन शोषण से पीड़ित 69 फीसदी बच्चों में से 54.68 फ़ीसदी लड़के थे.

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