बीजेपी सरकार को फिर से सत्ता में नहीं आने देंगे: सोनिया गांधी

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इंडिया टुडे समूह के प्रमोटर और वरिष्ठ पत्रकार अरुण पुरी के साथ बात करते हुए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने माना कि वो हाल के वक्त में राजनीति से दूर रही हैं लेकिन इस बीच वो किसी और काम में व्यस्त थीं और जल्द ही राजनीतिक काम करते हुए नज़र आएंगी.
दिल्ली में आयोजित इंडिया टुडे कॉनक्लेव में बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, "मैं राजीव गांधी और इंदिरा गांधी से जुड़े कुछ कागज़ात जो मेरे पास हैं उन्हें डिजिटल करना चाहती हूं और इसी काम में व्यस्त हूं. इनमें इंदिरा की राजीव को लिखी चिट्ठियां और राजीव की उनकी मां को लिखी चिट्ठियां शामिल हैं."
"मैं जल्द ही (अगले सप्ताह) विपक्षी पार्टियों और अन्य पार्टियों के राजनेताओं से मिलने वाली हूं और राजनीति के बारे में बात करने वाली हूं." लेकिन स्पष्ट तौर पर राजनीति में भागीदारी के बारे में सोनिया ने कुछ नहीं कहा.
उन्होंने कहा, "अगर हम इस देश की चिंता करते हैं तो हमें अपने सभी राजनीतिक मतभेद भुलाने होंगे और साथ आना पड़ेगा."

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राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बना दिए गए हैं. नई ज़िम्मेदारियों को निभाने की भूमिका में राहुल गांधी को सोनिया क्या कहना चाहती हैं? इस पर सोनिया ने कहा "राहुल गांधी ज़िम्मेदार हैं और वो अपने कंधों पर रखे भार को समझते हैं. उनको मैं कोई राय नहीं देना चाहती."
"राहुल का काम करने का अपना तरीका है, मेरा अपना था. कांग्रेस पार्टी के कुछ नीति नियम हैं हम उसका पालन करते हैं."
पार्टी में युवाओं को जगह देने के बरे में वो कहती हैं, "हमें पार्टी में वरिष्ठ नेताओं को तो रखना ही है और साथ ही युवा नेताओं को भी ज़िम्मेदारी के साथ सामने लेकर आना है."

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2019 चुनावों के लिए क्या करेगी पार्टी?
भाजपा की आज 21 राज्यों में सरकार है जबकि कांग्रेस मात्र चार राज्यों तक ही सिमट गई है. साल 2014 को देखें तो कांग्रेस 13 राज्यों की सत्ता पर काबिज़ थी.
इस बारे में सोनिया ने कहा, "ये एक चुनौती है लेकिन मुझे उम्मीद है कि हम इस मुश्किल वक्त का सामना करेंगे."
"साल 2019 के लिए पार्टी स्तर पर हमारी पार्टी को लोगों के साथ जुड़ने के नए रास्ते बनाने होंगे. हमें अपनी पॉलिसी भी बदलनी पड़ेगी. मैं मानती हूं कि हमारी कई पॉलिसी को मौजूदा भाजपा ने अपनाया है लेकिन हमें अब और नई बातों के बारे में सोचना होगा."
उन्होंने कहा, "कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाए गए हैं वो बढ़ा-चढ़ा कर बताए गए हैं. टूजी का ही मसला लें तो जो आंकड़ा सीएजी ने दिया था वो काफ़ी बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया था और काफ़ी हद तक काल्पनिक था. ये किसी सटीक आंकड़े पर आधारित नहीं था."

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क्या इसे दुरुस्त किया जा सकता है?
सोनिया गांधी ने भाजपा पर आरोप लगाया कि "संसद में हमें बोलने नहीं दिया जाता. और ऐसे में हमें अपनी बात पहुंचाने के लिए आवाज़ उठानी पड़ती है और कई को लगता है कि हम सदन के कमकाज में बाधा पहुंचा रहे हैं."
इस पर सोनिया का कहना था कि "सत्तापक्ष हमें बोलने देना नहीं चाहता और ऐसे में हम और क्या कर सकते हैं. ऐसे में सरकार ससंद को बंद कर के जा सकती है क्योंकि विपक्ष को बोलने का मौका तो है ही नहीं."
"भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी एक महान नेता थे और वो हर किसी को अपनी राय रखने का मौका देते थे, लेकिन मौजूदा प्रधानमंत्री किसी भी आधार पर उनके समान नहीं हैं."

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2019 चुनावों के लिए कांग्रेस के लिए क्या मुद्दे होंगे?
सोनिया ने कहा कि भाजपा के वायदे जनता के सामने हसीन तस्वीर काटते हैं लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त इससे काफ़ी अलग है.
उन्होंने कहा, "लोगों को अभी भी 'अच्छे दिनों' की ज़रूरत है. भाजपा के 'अच्छे दिन' का हाल 'शाइनिंग इंडिया' जैसा बन गया है, इस कारण पहले कांग्रेस को जीत मिली थी."
क्या प्रियंका चुनाव में उतरेंगी?
सोनिया ने कहा, "प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार में उतरती हैं लेकिन फ़िलहाल वो अपने बच्चों और परिवार के साथ व्यस्त हैं. मैं अभी कुछ कह नहीं सकती लेकिन ये उन पर निर्भर करता है कि वो भविष्य में अपने लिए कौन सा रास्ता चुनेंगी."
उन्होंने कहा, "पार्टी चाहेगी तो मैं रायबरेली से ज़रूर चुनाव लडूंगी."

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राहुल इतना ब्रेक क्यों लेते हैं? इस बारे में सोनिया ने कहा "वो काम के सिलसिले में देश के बाहर गए हैं. मुझे ये बड़ा मुद्दा नहीं लगता. इसमें असामान्य कुछ नहीं."
राजीव गांधी के राजनीति में आने को ले कर उन्होंने कहा, "मेरी सास इंदिरा की मौत के बाद मुझे इस बात का डर था कि राजीव की जान को ख़तरा है. मैं उनके राजनीति में आने को ले कर बहुत आश्वस्त नहीं थी और सही कहें तो इसके ख़िलाफ़ ही थी. और बाद में मेरा डर सच साबित हो गया."
"इसके बाद कई सालों तक मैं राजनीति में क़दम रखने के बारे में सोचती रही थी. बाद में जब पार्टी संकट के दौर से गुज़र रही थी तो मुझे लगा कि मुझे आना होगा."

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सोनिया की राजनीतिक विचारधारा क्या है?
सोनिया का कहना है, "मैं कांग्रेस की विचारधारा में यक़ीन करती हूं. लेकिन मैं मानती हूं कि समाज में बैंलेस बनाए रखने के लिए हमें समाज के हर तबके की ज़रूरतों के बारे में सोचना होगा, नहीं तो समाज में स्थिति सामान्य नहीं रहेगी."
पीएम मोदी पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा "मैं स्लोगन और जुमलों में कतई यक़ीन नहीं करती. आप चुनाव में लोगों को ऐसे वायदे कैसे कर सकते हैं जो वो पूरे नहीं कर सकते?"
"मुझे भारत की जनता पर यक़ीन है लेकिन मुझ देश की चिंता है. हम भाजपा को फिर से सत्ता में नहीं आने देंगे."

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राहुल की मदद करना चाहती हैं सोनिया
सोनिया गांधी के लंबे वक्त के बाद फिर से मीडिया के सामने आने के क्या मायने हैं. इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई कहते हैं कि वो राजनीतिक तौर पर राहुल गांधी को दायित्व दे चुकी हैं और भविष्य में उनकी क्या भूमिका होगी इस बारे में अभी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है.
राशिद किदवई कहते हैं, "सोनिया दरअसल राहुल गांधी का हाथ बंटाना चाहती हैं. वो जानती हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके आगे की राजनीति में गठबंधन की कोई गुंजाइश होगी तो राहुल की भूमिका सीमित होगी. विपक्ष के ग़ैर-एनडीए के जो पार्टनर हैं उनके साथ राजनीतिक शिष्टाचार के स्तर पर राहुल गांधी का रैपो बहुत बढ़िया नहीं है. इस मामले में उन्हें सोनिया जी की मदद की ज़रूरत है जो वो संसद में रहकर कर सकती हैं."
2016 में सोनिया की इच्छा थी कि राहुल के ज़िम्मेदारी संभालने के बाद वो सक्रिय राजनीति से खुद को अलग कर लेंगी. लेकिन शायद इस पर अब फिर से विचार किया जा रहा है. शायद अब उनकी इच्छा कि वो सलाहकार की भूमिका ले कर ग़ैर-भाजपा पार्टियों के साथ तालमेल बैठा कर राहुल की मदद करें और मोदी के ख़िलाफ़ एक बड़ा गठबंधन खड़ा करें.
कांग्रेस और सोनिया गांधी बार-बार इस बात को आगे रख रहे हैं कि मौजूदा सरकार अपने वायदे पूरे नहीं कर पाई है और भाजपा के 'अच्छे दिनों' का हाल कुछ-कुछ 'शाइनिंग इंडिया' के जैसा हो चला है. राशिद किदवई कहते हैं, "उनको लग रहा है कि ये फिर से 2003 वाली स्थिति आ रही है जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और जिस कारण 2004 में कांग्रेस जीत गई थी."

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वो कहते हैं, "लेकिन अब ऐसा नहीं है, वक्त बदल गया है. बहुत सारी ऐसी चीज़ें हो गई हैं जिसका काट कांग्रेस नहीं निकाल पा रही है. राजनीति में राष्ट्रीयता की बात आ रही है और धर्म विशेष को इससे जोड़ा जा रहा है."
"कांग्रेस की समस्या इस वक्त ये है कि उनके पास अब गांव में फैल रही बेचैनी का जवाब देने के लिए कोई नेता नहीं हैं. देश की जनता बदलाव तो चाहती है लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस कोई परिवर्तन नहीं दे पा रही है. इससे पहले सोनिया डॉ मनमोहन सिंह को सामने लाई थीं जिनकी देश की अर्थव्यवस्था पर अच्छी पकड़ थी. लेकिन आज ऐसे वरिष्ठ समझदार नेता कांग्रेस के पास नहीं हैं."
राशिद किदवई कहते हैं, "आज की भाजपा वो नहीं जो आज से पहले थी. वैचारिक रूप से इसमें पैनापन है और इसका पूर्ण बहुमत है. संघ का संगठन इसके साथ है और संघ से जुड़ी अन्य संस्थाएं इसके साथ हैं."
वो कहते हैं, "रही कांग्रेस की बात तो आस्था से जुड़े मुद्दों की काट कांग्रेस के पास नहीं है."
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