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साँड़ पालने के लिए महिला ने नहीं की शादी
- Author, प्रमिला कृष्णन
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, तमिल सेवा
दक्षिणी भारतीय राज्य तमिलनाडु के मुदरै जिले की रहने वाली सेल्वरानी कनगारासू ने फ़ैसला किया है कि वो कभी शादी नहीं करेंगी. ऐसा करने के पीछे उनके पास एक 'बड़ी वजह' है.
मेलूर गांव में रहने वाली 48 साल की सेल्वरानी ने कम उम्र में ही फ़ैसला ले लिया था कि वो एक साँड़ को पालेंगी, जो बाद में जल्लीकट्टू प्रतियोगिता में हिस्सा ले सके.
जल्लीकट्टू हट्टे-कट्टे साँड़ों को वश में करने का खेल है, जिसमें युवा हिस्सा लेते हैं. ये खेल पोंगल त्योहार के दौरान खेला जाता है.
सेल्वरानी को लगा कि ऐसा कर के वो अपने परिवार की परंपरा को बचा सकती हैं. उनके परिवार के लोग इस त्योहार के लिए सांड पालते हैं.
सेल्वरानी कहती हैं कि उनके पिता कनगरासू और दादा मुत्थुस्वामी का मानना था कि जल्लीकट्टू के साँड़ को पालना बच्चे की परवरिश करने जैसा है.
बहन ने ली भाइयों की ज़िम्मेदारी
सेल्वरानी बताती हैं, "जब तीसरी पीढ़ी की बारी आई तो मेरे दोनों भाइयों के पास साँड़ की देखरेख के लिए समय नहीं था. परिवारों में साँड़ के मालिक पुरुष ही होते हैं लेकिन देखा जाए तो महिलाएं ही साँड़ों को चारा देती हैं, उनके रहने की जगह को साफ करती हैं. महिलाएं ही उनके स्वास्थ्य का ख़याल रखती है और उन पर नज़र रखती हैं."
वो कहती हैं, "मेरे भाइयों के परिवारों के लिए यह सब करना संभव नहीं था. तो मैंने उनसे कहा कि ये ज़िम्मेदारी मुझे सौंप दी जाए."
हालांकि वो शांत थीं लेकिन उनके चेहरे पर कम उम्र में मर्दों के खेल में उतरने की खुशी साफ झलक रही थी.
वो अपने पुराने दिनों की बात को याद करते हुए कहती हैं, "मैं अपना परिवार और अपने जुनून यानी साँड़ पालने के बीच में खुद को बांटना नहीं चाहती थी. सो मैंने दूसरे विकल्प को चुना. मैं चाहती थी कि हमारे परिवार की परंपरा आगे बढ़े."
'मेरा परिवार बस मेरा ये साँड़'
वो कहती हैं, "मैंने जो किया उस पर मुझे केवल गर्व नहीं है बल्कि मैं बहुत खुश हूं कि मेरा परिवार बस मेरा ये साँड़ है. ये बड़े शरीर वाला है और मैदान में उतरने पर एक गुस्सैल जानवर बन जाता है लेकिन ये बहुत प्यारा है."
भारतीय समाज में जो महिलाएं शादी नहीं करने का निर्णय लेती हैं अक्सर उनको अलग नज़रों से देखा जाता है. सेल्वरानी के परिवार और रिश्तेदार उनके अकेले रहने के फ़ैसले से खफ़ा भी हैं लेकिन आख़िर में उन्होंने उनके फ़ैसले को अपना लिया है.
यहां तक कि मेलूर गांववासी भी सेल्वरानी के फैसले और गरीबी के बावजूद भी साँड पालने के उनकी इच्छा की तारीफ करते हैं.
जब दुबली-पतली सेल्वरानी अपने हाथों से अपने साँड़ के पैने सींगों को पकड़कर उस् काबू करने की कोशिश करती हैं, वो नज़ारा देखने वाला होता है. सेल्वरानी के साँड़ के सींग इतने पैने और मजबूत हैं कि पोंगल के जल्लीकट्टू के खेल में ताकतवर से ताकतवर पुरुष को उठा कर फेंक दे.
साँड़ का नाम रामू
सेल्वरानी एक बड़ी-सी मुस्कान के साथ कहती हैं, "रामू की देखभाल करना एक बच्चे की देखभाल करने जैसा है."
सेल्वरानी खेतों में मज़दूरी करने का काम करती हैं. जिस दिन काम होता है, वो एक दिन में करीब दो सौ रुपये तक कमा लेती हैं.
वह अपनी कमाई का एक-एक पैसा जोड़ती हैं ताकि अपने साँड़, अपने रामू के लिए चारे की व्यवस्था कर सकें. वो प्यार से रामू को आवाज़ देती हैं, "आ रही हूं रामू, तुम्हारा खाना तैयार है."
कोई आम साँड़ होता तो उसके लिए थोड़ी घास और पुआल से काम चल जाता. लेकिन रामू जैसे खिलाड़ी साँड़ के लिए खाने में नारियल, खजूर, केले, तिल, मूंगफली तेल केक (खल), बाजरा और चावल शामिल किया जाता है.
सेल्वरानी गर्व के साथ बताती हैं, "रामू तंदुरुस्त रहे और ताकतवर बन सके इसके लिए उसके हर दिन के खाने का खर्च 500 रुपये है. ऐसे भी कुछ दिन होते हैं मुझे बस दिन में एक वक्त का ही खाना मिलता है लेकिन मैं रामू के खाने के लिए पैसे बचा लेती हूं, मुझे थकान नहीं होती, मुझे अच्छा लगता है."
जल्लीकट्टू आयोजन समिति के सदस्य गोविंदराजन कहते हैं, "खेल में उतरने के बाद एक ताकतवर और चुस्त सांड ही चुनौती देने वालों को हरा सकता है."
वो बताते हैं, "जब दर्जनों युवा साँड़ को घेर लेते हैं और हर कोशिश करते हैं कि वो जीत के लिए उसके कूबड़ को पकड़ कर 10 फीट तक आगे जा सकें, तो ऐसे में सांड की कोशिश होती है कि शुरू से आख़िर तक लगभग 30 फीट के उस फासले में वो किसी को भी उसके कूबड़ को पकड़ने न दे."
'वॉक' पर जाता है साँड़
सेल्वरानी के रिश्तेदार राजकुमार उनसे काफी प्रभावित हैं और उन्होंने भी बैल की देखरेख करने में उनकी मदद करना शुरू कर दिया है.
वैसे तो जल्लीकट्टू साल में एक ही बार पोंगल के दौरान खेला जाता है लेकिन सेल्वरनी को पूरे साल अपने रामू की देखभाल करनी होती है.
वो कहती हैं, "मैं रामू को गांव के तलाब में ले कर जाती हूं और उसे तैरने के लिए उत्साहित करती हूं ताकि उसके घुटने मज़बूत हो सकें. मेरा भतीजा राजकुमार रामू को वॉक पर ले कर जाता है और उसे सिखाता है कि कैसे चुनौती देने वालों को हराया जाए."
वो कहती हैं, "जल्लीकट्टू खेल के शुरू होने से पहले मुझे जानवरों के डॉक्टर से जा कर रामू के फिटनेस का सर्टिफकेट लेना होता है ताकि वो इस खेल में हिस्सा ले सके."
'एक घंटे तक रोया साँड़'
सेल्वरानी याद करती हैं कि जब पहली बार रामू एक चुनौती में हार गया था तो वो घंटे भर तक रोया था.
वो कहती हैं, "हम साल 2009 में उसे पहली बार जल्लीकट्टू के खेल में ले कर गए थे. उसे मेरे पास आए केवल तीन ही महीने हुए थे. वो शायद हार के बाद काफी दुखी हो गया था. उसकी आंखों से लगातार एक घंटे तक आंसू बहते रहे थे."
"मैंने उसको समझाने की कोशिश की. उसके बाद से रामू ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बीते पांच सालों में हर बार खेल में रामू जीतता रहा है."
रामू ने बीते कुछ सालों में सात बार जल्लीकट्टू के खेल में हिस्सा लिया है और उनमें से पांच बार उसने जीत हासिल की है.
सांड ने जीते कौन-कौन से ईनाम?
रामू ने जो इनाम जीते उनमें घर में इस्तेमाल होने वाला सामान, सिल्क की साड़ी और सोने का सिक्का शामिल है.
वो कहती हैं, "रामू मेरे लिए मेरे बेटा है. उसने मेरे लिए कई इनाम जीते हैं लेकिन सबसे ज़रूरी बात ये है कि उसने गांव में मेरे परिवार के लिए सम्मान जीता है."
52 साल की इंदिरा सेल्वराज, सेल्वरानी की रिश्तेदार हैं. वो कहती हैं कि खेल में बार-बार जीतने के बाद कई लोगों ने रामू को खरीदना चाहा और उसके लिए लोग एक लाख से भी अधिक रुपये देने के लिए तैयार थे, लेकिन सेल्वरानी ने रामू को बेचने के बारे में नहीं सोचा.
वो कहती हैं, "वो रामू का ख्याल रखना चाहती है. रामू को खेल के लिए तैयार करना जैसे उसकी ज़िंदगी का मकसद बन गया है. हम उसे एक लाख रुपये के लिए भी रामू को बेचने के लिए नहीं मना सके."
इंदिरा कहती हैं, "हम अब समझते हैं कि किसी व्यक्ति के लिए उसके जूनून की कोई कीमत नहीं हो सकती."
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