नज़रिया: कांग्रेस पार्टी क्यों नहीं उठा पाती बड़े मुद्दे?

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कांग्रेस 132 साल पुरानी राजनीतिक पार्टी है. वर्ष 1885 में 28 दिसंबर को ही कांग्रेस पार्टी की नींव रखी गई थी. भारत की आज़ादी में इसका बड़ा योगदान रहा है.
आज़ादी के 60 साल बाद तक देश की राजनीति की इबारत कांग्रेस ही लिखती रही थी, लेकिन साल 2014 के चुनाव में उसे इतनी सीटें भी नहीं मिलीं कि उसे एक संसदीय दल का दर्जा भी दिया जा सके. वर्तमान में लोकसभा में उसके केवल 44 सदस्य हैं.

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कांग्रेस के सामने बड़ी समस्या
आज की तारीख में देश के 29 राज्यों में से 19 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकार है. जबकि कांग्रेस पार्टी केवल चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश तक ही सिमट कर रह गई है.
हालांकि गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन कर अपने कार्यकर्ताओं, समर्थकों के बीच उत्साह का संचार ज़रूर किया है लेकिन आज पार्टी के सामने एक बड़ा मुद्दा मुंह बाए खड़ा है.
मुद्दा यह है कि भाजपा जहां सत्ता में है वहां वो किसी प्रकार का बड़ा विरोध होने नहीं देती और जहां कांग्रेस या अन्य पार्टियों की सरकारें हैं वहां वो बड़े मुद्दे उछालने में कामयाब रही है. इसके उलट कांग्रेस, भाजपा शासित राज्यों में बड़े मुद्दों को उठाने में नाकामयाब रही है. ऐसा क्यों है?
इस बारे में बीबीसी संवाददाता अभिजीत श्रीवास्तव ने वरिष्ठ पत्रकार कल्याणी शंकर से बात की.

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पढ़ें नज़रिया-
देश को आज़ादी मिलने के पीछे कांग्रेस पार्टी का बहुत बड़ा योगदान था. कांग्रेस के पास महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे बड़े नेता रहे हैं. 1950 और 60 के दशक में ये बहुत बड़ी राजनीतिक पार्टी थी. लेकिन इंदिरा गांधी के आने के बाद से 1967 से इसका प्रभाव कुछ कम होना शुरू हुआ फिर भी 2014 जैसी स्थिति नहीं थी.
आज कांग्रेस की सरकार केवल चार राज्यों में है- कर्नाटक, पंजाब, मिजोरम, मेघालय और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी. इनमें पंजाब और कर्नाटक ही केवल दो बड़े राज्य हैं. साल 2018 में कर्नाटक में चुनाव होने हैं लेकिन वहां परिणाम क्या होगा यह कह पाना अभी मुश्किल है.

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क्या करना होगा कांग्रेस को?
कांग्रेस बड़े मुद्दे नहीं उठा पाती लेकिन गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने जुझारू रूप दिखाया जिसके बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह आया. 2जी केस में आया फ़ैसला भी कांग्रेस के लिए उत्साहवर्धक है. राजस्थान के निकाय चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा है.
इसलिए मैं यह बिल्कुल नहीं मानती हूं कि कांग्रेस देश से ग़ायब हो रही है. कांग्रेस अभी जिंदा रहेगी. हालांकि उसके लिए नवनियुक्त कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को कड़ी मेहनत करनी होगी.
उन्हें पार्टी के कार्यकर्ताओं को ज़मीनी स्तर पर खड़ा करना होगा. उन्हें राज्य स्तर के नेता खड़े करने होंगे. उन्हें खुद लोगों से और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से मिलना होगा. आने वाला साल यानी 2018 कांग्रेस के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है.

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गुजरात से दिखी आस
बेशक कांग्रेस का अभी खराब समय है लेकिन गुजरात में नरेंद्र मोदी और भाजपा को भी अच्छी जीत हासिल नहीं हुई है. साल 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं. यह चुनाव छह महीने पहले भी करवाए जा सकते हैं.
लोकसभा चुनाव से पहले आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसमें से कुछ राज्यों में कांग्रेस को चुनाव जीतना होगा, तभी लोकसभा चुनाव में उनसे अच्छे प्रदर्शन की आशा की जा सकेगी.
लेकिन भाजपा के पास बड़े नेता हैं, उनकी मशीनरी बहुत अच्छी है. वो अच्छा माइक्रो मैनेजमेंट कर रहे हैं. लेकिन इसके उलट बड़े मुद्दे नहीं उठा पाने के कारण पिछले तीन साल से कांग्रेस का ग्राफ नीचे की ओर जा रहा था. इसका सबसे बड़ा कारण राज्य स्तर पर नेता का नहीं होना है और जो छोटे-छोटे नेता हैं उनको बड़ा बनाने के लिए पार्टी ने कुछ नहीं किया.
लेकिन जिन राज्यों में कांग्रेस के पास बड़े नेता हैं, जैसे पंजाब में अमरिंदर सिंह और कर्नाटक में सिद्धारमैया, वहां कांग्रेस भाजपा को बहुत आगे नहीं आने देती है. आप देखें तो जहां कमजोर नेता हैं, वहीं भाजपा मजबूत हुई है.
कुल मिलाकर कांग्रेस की सबसे बड़ी कमज़ोरी ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ता का नहीं होना है. कांग्रेस को स्थानीय मुद्दों को समझना और उसे उछालना होगा. यह तभी होगा जब ज़मीनी स्तर का नेता तैयार हो.

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राहुल गांधी का भविष्य
जब सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष बनीं थी, तब भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी. तब बहुत कम राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी. केंद्र की सत्ता में भी वो नहीं थी. यहां तक कि लोकसभा में संख्या बल भी ज्यादा नहीं था.
लेकिन उन्होंने पचमढ़ी और शिमला में चिंतन शिविर किया. पार्टी में इससे उत्साह आया. उसके बाद 2004 में सोनिया गांधी ने यूपीए बनाया. पार्टी मजबूत बनी और यूपीए गठबंधन के साथ कांग्रेस 10 सालों तक देश की सत्ता पर काबिज़ रह सकी.
अब सोनिया एक तरह से राजनीति से अलग हो गई है और कांग्रेस का भार राहुल गांधी के कंधों पर है. गुजरात में जिस तरह उन्होंने मोदी-शाह के गढ़ में घुसकर उन्हें कड़ी टक्कर दी है, उससे कांग्रेस में हौसले की नई उम्मीद ज़रूर जगी है.
राहुल गांधी का भविष्य साल 2018 के चुनावी नतीजों पर टिका है और साथ ही पार्टी की दशा और दिशा भी आने वाले साल में उनके प्रदर्शन पर टिकी है.












