हवा में ही घुला ज़हर, सांस कहां से लें?

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- Author, सरोज सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
दिल्ली दो दिन से एयरलॉक की गिरफ्त में है. ये वो स्थिति होती है जब वायुमंडल में हवा नहीं होती. यही वजह है कि आपको हर तरफ धुंध ही धुंध दिखाई दे रही है.
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर ख़तरे के निशान को पार कर चुका है. हालात इतने खराब हैं कि दिल्ली में रविवार तक स्कूल बंद कर दिए गए हैं.
प्रदूषण का स्तर ख़तरनाक
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक दिल्ली में फिलहाल 'हेल्थ इमरजेंसी' जैसे हालात हैं.
दरअसल आपके आसपास जो दिखाई दे रहा है वो कोहरा है जो धुंध के साथ घुल कर हम सबके लिए ज़हर बन गया है. इसको स्मॉग कहते हैं.
हवा में प्रदूषण का पता एयर क्वालिटी इंडेक्स से चलता है.
प्रदूषण मापने का पैमाना
एयर क्वालिटी इंडेक्स को मापने के कई पैमाने हैं. इनमें से जो सबसे ज़्यादा प्रचलित है वो है हवा में PM 2.5 और PM 10 का पता लगाना.
PM का मतलब है पार्टिकुलेट मैटर यानी हवा में मौजूद छोटे कण.
PM 2.5 या PM 10 हवा में कण के साइज़ को बताता है.
आम तौर पर हमारे शरीर के बाल PM 50 के साइज़ के होते हैं. इससे आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि PM 2.5 कितने छोटे होते होंगे.
24 घंटे में हवा में PM 2.5 की मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए, और PM 10 की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर.

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इससे ज़्यादा होने पर स्थिति ख़तरनाक मानी जाती है. इन दिनों दोनों कणों की मात्रा हवा में कई गुना ज़्यादा है.
हवा में मौजूद यही कण हवा के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर खून में घुल जाते है. इससे शरीर में कई तरह की बीमारी जैसे अस्थमा और सांसों की दिक्कत हो सकती है.
बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बूढ़ों के लिए ये स्थिति ज़्यादा ख़तरनाक होती है.

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मेडिकल जर्नल लांसेट की रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में प्रदूषण से दुनिया में 90 लाख लोग मारे गए. ये संख्या एड्स, टीबी और मलेरिया से होने वाले मौतों से भी ज़्यादा है.
इसलिए डॉक्टर ऐसे मौसम में बाहर टहलने से लेकर खेलने कूदने और बाकी आउटडोर व्यायाम करने से मना करते हैं.
ताज़ा हालात को देखते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दिल्ली सरकार से गुज़ारिश की है कि आने वाले 19 नवंबर को दिल्ली में होने वाले मैराथन को स्थगित कर दिया जाए.

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क्या करें, क्या न करें
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल के मुताबिक प्रदूषण से बचने के लिए हमें पांच बातों का ख़्याल रखना चाहिए.
- अपने आस-पड़ोस में धूल-मिट्टी न उड़ने दें.
- पत्ते, अगरबत्ती, काग़ज और किसी भी तरह का कचरा जलाने से पहले जरूर सोचें.
- अपने आस पास के इलाके में प्रदूषण स्तर मालूम कर घर से बाहर निकलें.
- अगर आप अस्थमा के मरीज़ हैं तो डॉक्टर से सलाह लें.
- मास्क पहनने के पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
N-95 और N-99 मास्क का ही इस्तेमाल करें. सस्ते मास्क लगाने से कोई फायदा नहीं होता.
इस आपातकाल जैसी स्थिति से कैसे निपटा जाए? सेंटर फॉर साइंस से जुड़ी अनुमिता रॉय चौधरी का मानना है कि सरकार को दो तरह के कदम उठाने की ज़रूरत है.
एक है इमरजेंसी उपाय, जिसे सरकार को तुंरत अमल में लाने की ज़रूरत है. जैसे पॉवर प्लांट बंद करना, स्कूल बंद करना, डीज़ल जेनरेटर पर रोक, पार्किंग फ़ीस में बढ़ोतरी और ज़्यादा से ज़्यादा पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने के लिए इंतजाम करना.
लेकिन इसके साथ ही सरकार को एक समग्र प्लान तैयार करने की जरूरत है ताकि वर्तमान आपताकाल जैसी स्थिति न आने पाए.
जानकारों का मानना है कि प्रदूषण अब पर्यावरण से जुड़ी समस्या नहीं है. यह एक गंभीर बीमारी है.
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