ब्लॉगः कहां गया बीजेपी का कांग्रेस मुक्त का नारा?

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- Author, ज़ुबैर अहमद
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
मई 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले 11 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं जिन में से छह महत्त्वपूर्ण राज्य हैं. यहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का सीधा मुक़ाबला है.
इन राज्यों में से दो यानी कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में है और बाक़ी चार - गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा की सरकारें हैं.
इनके इलावा नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, मिज़ोरम और सिक्किम में चुनाव होंगे.
लेकिन भाजपा और कांग्रेस की नज़र ऊपर बताये छह राज्यों पर टिकी होंगी, क्योंकि ये सियासी तौर पर महत्वपूर्ण राज्य हैं. इन राज्यों में लोकसभा की कुल 123 सीटें हैं और विधानसभा की 994 सीटें.
लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा के ये चुनाव एक तरह से सेमीफ़ाइनल की तरह होंगे. साल ख़त्म होने से पहले हिमाचल प्रदेश में 9 नवंबर को चुनाव है जबकि गुजरात में चुनाव की तारीख़ की घोषणा नहीं हुई है. चुनाव दिसंबर में होने की पूरी संभावना है.

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कांग्रेस की चुनौती
विशेषज्ञ मानते हैं कि इन छह राज्यों में होने वाले चुनावों के नतीजों का लोकसभा चुनाव पर भारी असर पड़ेगा. कांग्रेस पार्टी के सामने कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में सत्ता में वापस आना एक बड़ी चुनौती होगी.
लेकिन अगर इन दोनों राज्यों में पार्टी चुनाव हार जाती है, मगर छह में से तीन राज्यों में चुनाव जीत जाती है तो लोकसभा चुनाव में उसका हौसला काफी बुलंद रहेगा.
दूसरी तरफ, इन राज्यों के इलावा राजस्थान में कांग्रेस चुनाव जीतने में सफल रहती है और गुजरात में हार के बावजूद पिछले चुनाव के मुक़ाबले अपनी सीटें बढ़ाने में कामयाब रहती है तो ये भाजपा के लिए आम चुनाव से पहले बुरी ख़बर साबित हो सकती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के राज्य गुजरात में भाजपा 1995 से सत्ता में है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के केंद्र में आने के बाद गुजरात विधानसभा का ये पहला चुनाव होगा.

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गुजरात बना प्रतिष्ठा का सवाल
लेकिन पिछले साढ़े तीन सालों में ये दोनों नेता अपने राज्य को भूले नहीं हैं. ये गुजरात का कई बार दौरा कर चुके हैं.
अक्टूबर के महीने में ही 'गौरव यात्रा' के अंतर्गत प्रधानमंत्री ने गुजरात का कई बार दौरा किया और वो 23 अक्टूबर को भी गुजरात में होंगे. इन दौरों में वो पार्टी के हज़ारों कार्यकर्ताओं से मिले और चुनाव की तैयारियों का जायज़ा लिया.
ऐसा लगता है कि पार्टी चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है. गुजरात का चुनाव प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष की प्रतिष्ठा का सवाल है.
अभी हाल में बीबीसी से बात करते हुए दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 2013 में अपनी हार का कारण गिनाते हुए कहा था कि विधानसभा के तीन बार लगातार चुनाव जीतने के बाद लोग उनकी सरकार से ऊब चुके थे, इसीलिए दिल्ली वालों ने उन्हें और उनकी सरकार को ख़ारिज कर दिया.
लेकिन गुजरात दिल्ली नहीं है. मोदी लहर अब भी महसूस की जा सकती है. यहाँ अधिकतर लोग भाजपा की सरकार को पसंद करते हैं. भाजपा की जीत पर किसी को शायद ही शक हो.

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कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी
लेकिन इस सम्भावना से भी कम ही लोग इनकार करेंगे कि पार्टी की सीटें कम हो सकती हैं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2012 के चुनाव में बीजेपी को विधानसभा की 182 सीटों में से 116 सीटें मिली थीं और कांग्रेस को 60.
अगर कांग्रेस 80 सीटें भी लाने में कामयाब होती है तो ये मोदी-शाह जोड़ी के लिए शिकस्त की तरह होगा.
कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी पिछले कुछ हफ़्तों से जोश में नज़र आते हैं. पिछले आम चुनाव में उनकी पार्टी चारों ख़ाने चित हो गई थी जिसके बाद से मोदी-शाह ने एक कांग्रेस-मुक्त भारत का आक्रामक नारा देना बुलंद कर दिया था.
कुछ समय तक तो लगा कि उनका नारा रंग ला रहा है लेकिन पंजाब विधानसभा की हालिया जीत के बाद ये नारा अब सुनाई नहीं देता.
कुछ समय से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि पार्टी में दोबारा जान फूंकने की कोशिश कामयाब हो रही है.
पंजाब के गुरदासपुर लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस की जीत, महाराष्ट्र लोकल इलेक्शन में प्रदर्शन, राहुल गाँधी के सोशल मीडिया पर मोदी-विरोधी तानों पर प्रतिक्रियाएं और हाल में उनकी गुजरात यात्रा के दौरान लोगों के उत्साह इस बात की तरफ़ इशारा हो सकता है की पार्टी एक बार फिर से अपना सिर उठा रही है.

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बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी?
राहुल गाँधी की गुजरात यात्रा के दौरान मंदिरों में जाने से भाजपा नेता घबराए नज़र आते हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 'ये एक ढोंग है.'
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बोले कि 'राहुल बाबा ने कभी पूजा की थाली नहीं उठायी और वो अब तिलक और माला पहन रहे हैं.'
विशेषज्ञों के मुताबिक़, अगर भाजपा 'हार्ड हिंदुत्व' को आगे बढ़ाने में जुटी है तो कांग्रेस अब 'सॉफ्ट हिंदुत्व' को लेकर आगे बढ़ रही है.
शीला दीक्षित ने भी कहा कि 'देश की मेज़ोरिटी हिन्दू है और कांग्रेस की नीति इसको दर्शाती है लेकिन अल्पसंख्यकों का हक़ मारे बग़ैर.'
गुजरात के दौरे में राहुल गाँधी का एक साधारण हिन्दू की तरह मंदिरों में जाना और पूजा-पाठ में हिस्सा लेना कांग्रेस की बदलती नीतियों की एक कड़ी नज़र आती है.
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