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जेटली के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हैं सिन्हा?
- Author, प्रदीप सिंह
- पदनाम, वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने देश की अर्थव्यवस्था को लेकर मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली पर निशाना साधा है.
इस पर अरुण जेटली ने यसवंत सिन्हा पर तीखा हमला करते हुए, उन्हें '80 वर्षीय आवेदक' कहा था.
दोनों ओर से हो रही बयानबाज़ी में तल्ख़ी बढ़ती जा रही है. सरकार में मौजूदा मंत्री जयंत सिन्हा, जोकि यशवंत सिन्हा के बेटे हैं, ने भी अख़बार में लेख लिख कर अपने पिता के आरोपों का जवाब दिया है.
असल में यशवंत सिन्हा अगर अपने लेख में निजी बातों को न उठाते और सिर्फ आर्थव्यवस्था तक खुद को सीमित रखते तो शायद उनकी बातों का प्रभाव ज़्यादा होता.
उन्होंने लिखा कि जेटली के चुनाव हारने के बाद भी उन्हें मंत्री बनाया गया, वाजपेयी के समय में ऐसा नहीं हुआ.
उनका ये दावा ग़लत है क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में प्रमोद महाजन और जसवंत सिंह को चुनाव हारने के बाद भी अहम ज़िम्मेदारी दी गई थी.
जसवंत सिंह को योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया और प्रमोद महाजन को प्रधानमंत्री का राजनीतिक सलाहकार बनाया गया, जबतक कि दोनों के लिए राज्यसभा सदस्यता की व्यवस्था नहीं हो गई.
जबकि जेटली का मामला अलग है. जब वो 2014 के आम चुनाव में हारे तो वो राज्यसभा के सदस्य थे.
दूसरी सबसे बड़ी बात ये है कि आम चुनाव से ठीक पहले यशवंत सिन्हा ने खुद एक साक्षात्कार में कहा था कि जबतक इस लोकसभा का कार्यकाल ख़त्म होगा, मैं 82 साल का हो जाउंगा और उस समय तक मैं शारीरिक रूप से उतना सक्रिय नहीं रह पाउंगा, इसलिए नए लोगों को मौका दिया जाना चाहिए.
इसके बाद उनके बेटे जयंत सिन्हा को टिकट दिया गया. वो जीते भी और मंत्री भी बने.
असल निशाना किसपर?
इसके बाद से ही यशवंत सिन्हा की कोशिश रही है कि अब उन्हें सरकार में कहीं मौका दिया जाए. जब योजना आयोग मौजूद था, तब वो इसके उपाध्यक्ष बनने की कोशिश करते रहे.
इसके बाद ब्रिक्स बैंक के चेयरमैन के लिए कोशिश की लेकिन क़ामयाब नहीं हुए और मोदी से उनके संबंध बिगड़ते गए.
उनका असल निशाना तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जेटली तो बहाना हैं.
यशवंत सिन्हा जब बात करते हैं कि एक हारे हुए व्यक्ति को वित्तमंत्री बना दिया गया, एक आदमी को इतने पोर्टफ़ोलियो दे दिए गए या जब वे ये लिखते हैं कि मोदी ने कहा था कि उन्होंने ग़रीबी को बहुत क़रीब से देखा है और अब वो पूरे देश को दिखा देंगे, तो उनके निशाने पर सीधे मोदी ही हैं.
वो ये भी कहते हैं कि वाजपेयी के समय कोई भी कुछ भी जाकर कह सकता था, जबकि आज लोग डरते हैं, तो इसमें शक नहीं रह जाता कि उन्होंने जेटली को बहाना बनाया है.
यशवंत सिन्हा ने निजी आरोप लगाकर एक तरह से अपने पक्ष को कमज़ोर ही किया है.
नाराज़गी पुरानी
अर्थव्यवस्था में समस्या है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता, चाहे वो सरकार के अंदर के लोग हों या बाहर के लोग. सभी इस समस्या से चिंतित हैं.
हालांकि दोनों नेताओं, जेटली और सिन्हा काफ़ी समय से बीजेपी में हैं और दोनों के बीच नाराज़गी पुरानी है.
ये कहा जाता रहा है कि एनडीए की पिछली सरकार में वित्तमंत्री के रूप में यशवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी की पहली पसंद नहीं थे. वो जसवंत सिंह को वित्तमंत्री बनाना चाह रहे थे.
लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इस बात पर अड़ गया कि जसवंत सिंह उदारवादी अर्थव्यवस्था की वक़ालत करते हैं. इसलिए उन्हें वित्तमंत्री नहीं बनाया गया.
जबकि यशवंत सिन्हा, 1998 के पहले तक स्वदेशी जागरण मंच में काम करते थे और आरएसएस की पसंद थे. इसलिए उन्हें वित्तमंत्री का पद दिया गया.
इसके बावजूद वाजपेयी ने उन्हे दो बार हटाने का मन बनाया था. यशवंत सिन्हा को लगता है कि इसके पीछे अरुण जेटली का हाथ था.
नुकसान
लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि यशवंत सिन्हा के हमले के बाद बीजेपी के अंदर मोदी विरोदी खेमा सक्रिय हो जाएगा क्योंकि किसी भी पार्टी में किसी नेता के ख़िलाफ़ तभी गोलबंदी होगी जब वोट दिलाने की उसकी क्षमता ख़त्म हो जाए, जोकि कम से कम बीजेपी में मोदी को लेकर ऐसा नहीं दिखता.
इस मामले में मोदी अब भी बीजेपी में नंबर एक पर हैं. हां यशवंत सिन्हा के त्योरी से बीजेपी को नुकसान ज़रूर हुआ है.
वो बीजेपी के अंदर के आदमी रहे हैं, वित्त मंत्री रहे हैं, अगर चंद्रशेखर सरकार के कार्यकाल को भी जोड़ दिया जाए तो वो सात बजट पेश कर चुके हैं. जब वो बोलते हैं तो उनकी बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इसलिए नुकसान तो निश्चित रूप से हुआ है.
जहां तक जेटली पर इसके असर की बात की जाए तो यशवंत सिन्हा ने ये हमला कर जेटली को एक तरह से बचाया है.
अगर उन्होंने केवल जेटली को ही निशाने पर लिया होता तो शायद कुछ असर पड़ता लेकिन उनका निशाना असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे.
(बीबीसी संवाददाता संदीप राय से बातचीत के आधार पर.)
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