गोरखपुर त्रासदी: पिता ने आरुषि को तिल-तिल मरते देखा

- Author, नितिन श्रीवास्तव
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, गोरखपुर से
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सात और 11 अगस्त के बीच में 60 बच्चों की मौत से न सिर्फ़ भारत बल्कि विदेशों में भी चिंताएं दिखी.
ज़्यादातर मौतें अस्पताल के 100 नंबर वार्ड के इंटेसिव केयर यूनिट में हुई थी जहाँ इंसेफ़ेलाइटिस का इलाज करा रहे बच्चे भर्ती थे.
घड़ी में रात के 12:20 बजे थे. कुशीनगर के विपिन सिंह ने बेटी आरुषि को आईसीयू में भर्ती कराया था और ज़ुबान पर प्रार्थना थी.
आईसीयू के बगल वाले बरामदे में करीब पचास लोग या तो सो रहे थे या फिर यही मना रहे थे कि भीतर से उनके बच्चे के नाम की कॉल न आए.
बलरामपुर की एक चीनी मिल में काम करने वाले विपिन संतुष्ट थे कि उन्होंने आरुषि को पडरौना जिला अस्पताल से यहाँ शिफ़्ट कर दिया.
रास्ते में बेटी ने पूछा भी था, "पापा अब तो ठीक हो कर हम घर ही जाएंगे न?"
सुबह होते-होते विपिन ने दो बिलखते हुए परिवारों को नवजात की लाशें कपड़े में ढके हुए ले जाते देखा था.
ये 10 अगस्त की सुबह थी. पिछले तीन दिनों में एनआईसीयू (नियो नेटल इन्टेन्सिव केयर यूनिट) और एईइस (मस्तिष्क ज्वर) और नॉन-एईइस में 30 मौतें हो चुकी थीं.

सुविधाएं भी नहीं
9 अगस्त को गुलहरिया के रहने वाले चार वर्षीय दीपक की लाश ले जा चुके पिता ने कहा, "अगले दिन खबर मिली कि उसी वार्ड में मौतों का कोहराम मच गया और शायद ऑक्सीजन की कमी के कारण."
10 अगस्त की सुबह 100 नंबर वार्ड में सब सामान्य था. करीब 12 डॉक्टर नीचे और ऊपर वाले फ़्लोर पर ड्यूटी कर रहे थे.
इत्तेफ़ाक़ से नर्सों ने भी कम छुट्टी ली थी. वजह थी बरसात के मौसम में इंसेफ़ेलाइटिस के बढ़ते कहर और मौतों की संख्या की.
इस बीच बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल राजीव मिश्रा छुट्टी पर थे.
दोपहर को बलरामपुर के विपिन सिंह के रिश्तेदार उनसे मिलने आए. रात भर के भूखे परिवार ने किसी तरह पास के गुप्ता भोजनालय से कुछ खाना खाया.
इतने बड़े पीडियाट्रिक वार्ड के आसपास खाने पीने का कोई प्रबंध नहीं है.
ज़्यादातर मरीज़ों के परिजन बाहर खाना बनाते हैं और एक गंदे नल के नीचे उन्हीं बर्तनों को धोकर वापस आईसीयू के बाहर बैठ जाते हैं. दोपहर को विपिन ने झाँक कर देखा तो बेटी अंदर सो रही थी.
उन्हें लगा ऑक्सीजन की एक नई नली लग चुकी थी. पत्नी ने बाहर आकर ढाढस बंधाया
इस बीच नवजात बच्चों का अस्पताल में भर्ती होना जारी था. आईसीयू में एक-एक बेड पर दो-दो नवजातों का इलाज चल रहा था.

नीला पड़ने लगा शरीर
कमलेश कुमार का 11 महीने का बेटा आज भी यहाँ भर्ती है.
उन्होंने बताया, "हम तो गरीब लोग हैं साहब, डॉक्टर साहब जो बताते हैं वही मानते हैं. डांट भी खाते हैं. रोना भी आता है."
कमलेश उस रात को याद करके आज भी सिहर उठते हैं, "हम कुछ बता नहीं पाएंगे साहब क्योंकि बच्चा अस्पताल के ही हाथ में है. बस जो देखा वो कभी देखना न पड़े."
विपिन सिंह जब छह बजे के दौरान अंदर आईसीयू में आरुषि का हाल लेने पहुंचे तो लगा कि बच्ची का शरीर थोड़ा ठंडा पड़ रहा है.
तुरंत ड्यूटी डॉक्टर को बताया तो जवाब मिला, "परेशान मत हों, आपकी बेटी ठीक है".
विपिन उस शाम को याद करते हैं, "हमारी घबराहट बढ़ती रही. साढ़े छह से आठ बजे के भीतर भीतर उसी वार्ड में तीन बच्चों ने देखते-देखते दम तोड़ दिया."
इस बीच आरुषि का ठंडा पड़ना जारी था. शरीर नीला भी होता जा रहा था.
एकाएक डॉक्टर ने रात आठ बज कर बीस मिनट पर विपिन से कहा, "आपकी बेटी मर चुकी है."
विपिन की आँखों के सामने अंधेरा छा गया और वे एकाएक लगे सदमे से रो भी न सके थे.

''उस रात कुछ तो गड़बड़ हुआ''
भावुक पिता ने मुझे बताया, "मैं दावे के साथ कह सकता हूँ उस रात आईसीयू में कुछ गड़बड़ हो रही थी. डॉक्टर इधर से उधर भाग रहे थे लेकिन बता कुछ नहीं रहे थे. हमसे बोले आप अपनी बेटी की बॉडी जा सकते हैं. मैंने बेटी को चादर में लपेटा और बाहर आकर टेम्पो कर लिया घर के लिए."
10 अगस्त , 2017 के 24 घंटों में इस अस्पताल में 23 मौतें हुईं
आरोप हैं कि अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हुई थी क्योंकि सप्लायर का लाखों रूपये का बकाया समय पर नहीं चुकाया गया था.
हालांकि ऑक्सीजन सप्लायर का कहना है कि वे अस्पताल और ज़िला प्रशासन को लगातार आगाह करते रहे थे. (बीबीसी हिंदी के पास चिट्ठियों की कॉपियां हैं)
प्रदेश सरकार ने ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होने से इनकार किया था.

जांच के आदेश
चश्मदीदों ने बीबीसी हिंदी को बताया है कि "उस रात अस्पताल के कई डॉक्टर बाहर दूसरे अस्पतालों से ऑक्सीजन सिलेंडर मंगाने के फ़ोन कर रहे थे".
सरकार ने इस आरोप की जांच के लिए उच्च-स्तरीय कमिटी भी बैठा दी है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ही संसदीय क्षेत्र में हुई इस घटना के दौरे पर दो दिन बाद पहुंचे और कहा, "दोषियों को कड़ी सजा मिलेगी".
भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यूपी सरकार से हादसे पर जवाब मांगा है.
आरुषि की मौत को अब कुछ दिन हो गए हैं. लेकिन पिता विपिन को लगता है आरुषि अभी भी उनके अगल-बगल ही है.
"वो मेरी गोदी में बैठ कर खाना खाती थी, मैं लेटा रहता था तो पेट पर चढ़ कर खेलती थी. हाथ जोड़ कर मनाता हूँ किसी और बाप को लापरवाही के कारण ऐसी कमी न खले."
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