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#70yearsofpartition: बंटवारे के बाद ना पाकिस्तान खुश था ना भारत
सत्तर साल पहले जब अंग्रेज़ों ने भारत को अलविदा कहा था तो उनका जाना ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एलान था.
भारत को ब्रिटिश ताज का नगीना कहा जाता था. जब हिंदुस्तान पर से ब्रिटेन की हुकूमत ख़त्म हुई तो एक नहीं दो मुल्क़ों ने आज़ादी की सांस ली थी.
मुल्क़ का बंटवारा अपने साथ एक ऐसी तबाही लेकर आया था जो बीसवीं सदी में इंसानियत के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक थी.
आज़ादी के वक़्त भारत की आबादी क़रीब चालीस करोड़ थी. इसमें हिंदुओं को अक्सरियत (बहुमत) हासिल थी. वहीं, देश की एक चौथाई आबादी मुसलमानों की थी. वो आज़ादी से पहले से ही अपने लिए अलग देश मांग रहे थे.
नेहरू बंटवारे के ख़िलाफ़ थे
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू मज़हब के आधार पर मुल्क़ को बांटने के ख़िलाफ़ थे.
लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि मुसलमानों को अपना अलग देश चाहिए. जिन्ना देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने.
बर्तानवी हुकूमत से जुड़े एक शख़्स ने कहा था, 'आज़ादी और देश का बंटवारा दोनों एक साथ हुए. भारत को आज़ादी, बंटवारे की क़ीमत पर मिली'.
हिंदुस्तान को तक़सीम करने की ज़िम्मेदारी आख़िरी ब्रिटिश गवर्नर जनरल और वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को दी गई थी. माउंटबेटन ब्रिटेन के शाही ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते थे.
साम्राज्य के सबसे बड़े उपनिवेश से ब्रिटेन ख़ुद को सुरक्षित निकालना चाहता था. ये काम मुश्किल भी था और पेचीदा भी.
भारत-पाक दोनों नाख़ुश
माउंटबेटन ने तय किया कि ये काम जितनी जल्दी हो जाए उतना बेहतर. हड़बड़ी इतनी कि भारत और पाकिस्तान के बीच की सरहद महज़ पांच हफ़्तों में खींच दी गई थी.
अगस्त 1947 में पहले पाकिस्तान और फिर भारत ने आज़ादी का जश्न मनाया.
लेकिन, दो दिन बाद जब दोनों मुल्क़ों के बीच सरहद का एलान हुआ तो न पाकिस्तान ख़ुश था और न ही भारत के लोग.
पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने शिकायत की कि उन्हें दीमक लगा पाकिस्तान थमा दिया गया. उन्हें एक ऐसा देश दिया गया है जिसके दो हिस्से एक दूसरे से दो हज़ार किलोमीटर की दूरी पर हैं. उनके बीच में हिंदुस्तान पड़ता है.
1971 में पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश के नाम से आज़ाद मुल्क़ बन गया.
भारत की आज़ादी के कुछ दिनों पहले हीदेश में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हिंसा शुरू हो गई थी. लेकिन किसी को भी ये अंदाज़ा नहीं था कि हिंसा की ये घटनाएं, बंटवारे के वक़्त भयंकर बवंडर बन जाएंगी.
जब भारत आज़ाद हुआ तो क़रीब सवा करोड़ या इससे ज़्यादा लोग शरणार्थी के तौर पर भारत और पाकिस्तान आए-गए. माना जाता है कि बंटवारे के वक़्त भड़की सांप्रदायिक हिंसा में पांच से दस लाख के बीच लोग मारे गए थे. इनमें हर मज़हब के मानने वाले थे.
बंटवारे के वक़्त भड़की हिंसा में दसियों हज़ार औरतें अगवा कर ली गई थीं.
बंटवारे का ज़ख्म इतना गहरा था कि भारत और पाकिस्तान आज तक इसके असर से उबर नहीं सके हैं. रियासत-ए-कश्मीर पर हक़ को लेकर आज भी दोनों देशों के बीच तनातनी है.
आज़ादी मिलने के कुछ हफ़्तों के भीतर ही दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर जंग छिड़ गई थी.
आज भी कश्मीर का मसला अनसुलझा है- ये हड़बड़ी में किए गए बेतरतीब बंटवारे की अधूरी विरासत है.
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