'मोदी की बीजेपी और इसराइल की एक जैसी सोच'

    • Author, राहुल बेदी
    • पदनाम, रक्षा विशेषज्ञ

इसराइल बीते 15 से 20 साल में भारत को रक्षा उपकरण देने के मामले में चौथा सबसे बड़ा देश बन चुका है.

अमरीका, रूस और फ़्रांस के बाद इसराइल का नंबर आता है. इसराइल ने भारत को कई तरह के मिसाइल सिस्टम, रडार और हथियार दिए हैं.

इसराइल अपने आप बहुत बड़े प्लेटफ़ॉर्म और जहाज़ नहीं बनाता, लेकिन वो मिसाइल और रडार सिस्टम बनाता है.

बीते डेढ़ दशक में भारत की इन पर निर्भरता बढ़ी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के दौरान जो रक्षा समझौते होंगे, उन्हें लेकर काफ़ी लंबे वक्त से बातचीत चल रही है.

बातचीत में तीन-चार मुद्दे अहम होंगे. एक तो फ़ाल्कन एयरबॉर्न अर्ली वॉर्निंग सिस्टम जिसे 'आई इन द स्काई' यानी आसमान में हवाई जहाज़ की आंख कहते हैं जो चारों तरफ 360 डिग्री में देखती है.

शॉर्ट रेंज मिसाइल सिस्टम

चार-पांच सौ किलोमीटर के दायरे में जो भी कुछ सामने आता है वो उसे रजिस्टर करती है. भारत ने तीन सिस्टम पहले लिए हुए हैं. दो सिस्टम और लेने की बात हो रही है.

एयरो स्टैट बैलून जो बैलून हवा में जाकर चारों तरफ देख सकते हैं. पिछले छह-सात साल से एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल को लेकर भी बातचीत चल रही है.

सेना के लिए ये बहुत ज़रूरी है. सेना को शॉर्ट रेंज मिसाइल सिस्टम भी चाहिए. वायुसेना और नौसेना के साथ काफ़ी सारे रडार और मिसाइल सिस्टम की भी बात चल रही है.

सबसे अहम बातचीत 'अनमैन्ड एरियल व्हीकल' को लेकर चल रही है. भारत ऐसे 15 आर्म्ड यूएवी लेना चाहता है.

इसके जरिए 30-35 हज़ार फ़ुट की ऊंचाई से ज़मीन में होने वाले हलचल की जानकारी हासिल कर सकते हैं और उस पर हमला कर सकते हैं.

इन पर बातचीत होनी है, लेकिन भारत और इसराइल इसके बारे में घोषणाएं नहीं करते हैं. ये चुपचाप बात करते हैं.

चीन के साथ दिक्कत

भारत और इसराइल अपने संबंधों पर ख़ामोशी से काम करते हैं. चीन के साथ कोई भी देश अपने रक्षा संबंध खासकर उपकरणों को लेकर होशियारी के साथ आगे बढ़ाता है.

इसकी वजह ये है कि चीन हर उपकरण की रिवर्स इंजीनियरिंग कर लेता है और उसे ख़ुद बनाने लगता है. बहुत सारे देश चीन को रक्षा उपकरण बेचने को तैयार नहीं होते.

इसराइल ने चीन को एयरक्राफ्ट अर्ली वार्निंग सिस्टम बेचे थे, लेकिन वो सौदा रद्द हो गया. इसराइल का चीन के साथ अनुभव ठीक नहीं रहा. भारत के साथ वो बात नहीं है.

भारत रक्षा उपकरणों के दुनिया में सबसे बड़े आयातकों में है. भारत अगले कई सालों तक इसराइल का प्रमुख उपभोक्ता रहेगा.

भारत-इसराइल तालमेल

मिसाइल सिस्टम इसराइल की ज्वाइंट डेवलपमेंट के साथ बन रही हैं और भारत को मिसाइलों की बहुत ज़रूरत है.

भारत और इसराइल के बीच ख़ुफ़िया सूचनाओं के आदान-प्रदान को लेकर भी साझेदारी है.

इसराइल ने कूटनीतिक, राजनीतिक और सैन्य लिहाज़ से भारत को ये बताया है कि जिस तरह से उनके देश के आसपास इस्लामिक देश हैं, उसी तरह भारत के सामने भी इस्लामिक ख़तरा है.

इसकी इसराइल के सहयोग के साथ कुछ हदतक निगरानी की जा सकती है. यूएवी, इंटेलिजेंस और सैटेलाइट के ज़रिए मदद हो सकती है.

करगि की जंग

भारत ने चार-पांच साल पहले इसराइल की सैन्य सैटेलाइट को भी प्रक्षेपित किया है.

भारतीय जनता पार्टी और इसराइल की सरकार का तालमेल काफी अच्छा है. भारत और इसराइल के संबंध साल 1992 में स्थापित हुए.

लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान 1999 में करगिल की लड़ाई के वक्त दोनों देशों के संबंध काफी आगे बढ़े.

इसराइल ने असलहा और बारूद भेजने में भारत की बहुत मदद की. भारतीय जनता पार्टी और इसराइल का पॉलिटिकल आउटलुक काफ़ी मिलता-जुलता है.

मैं सोचता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के दौरान ये साझेदारी काफी विकसित होगी.

(बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय से बातचीत पर आधारित)

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