पीएम मोदी ने मौक़ा गंवा दिया है: द इकनॉमिस्ट

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द इकनॉमिस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत की नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल के कामकाज और इस दौरान लागू की गई आर्थिक नीतियों की तीखी आलोचना की है.
इस रिपोर्ट में द इकनॉमिस्ट ने बताया है कि मोदी ने ऐसा कोई आर्थिक सुधार नहीं किया जिसकी उम्मीद की जा रही थी. इसने भारतीय प्रधानमंत्री को एक सुधारक की तुलना में एक प्रशासक ज़्यादा बताया है.
द इकनॉमिस्ट में यहां तक कहा कि मोदी ने मौक़ा गंवा दिया है. द इकनॉमिस्ट की इस रिपोर्ट को कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर चुटकी ली है. इस रिपोर्ट की की अहम बातें इस तरह हैं-
'जब नरेंद्र मोदी 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने तो उन्हें लेकर राय बंटी हुई थी. कई लोगों को लगता था कि इस हिन्दू समर्थक नेता में एक छुपा हुआ आर्थिक सुधारक है.
वहीं कई लोग इसके विपरीत सोचते थे. हालांकि वे क्या करने वाले हैं, इसका पता चलने में तीन साल लग गए. इस दौरान मोदी ने कभी-कभी धार्मिक भावनाओं को उभारने का काम किया है. इसका ताज़ा उदाहरण है कि उन्होंने देश के सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में एक उग्र हिन्दू धर्मगुरु को मुख्यमंत्री बनाया जाना.

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लेकिन इसके साथ ही वह आर्थिक विकास को गति देने की भी कोशिश कर रहे हैं. 2013 में भारत की आर्थिक विकास दर 6.4 फ़ीसदी थी जो 2015 में 7.5 फ़ीसदी पहुंच गई थी.
भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है. मोदी ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सालों से अधर में लटके सुधारों को अंजाम दिया है.
जीएसटी लागू होना अहम क़दम
इसमें बैंक्रप्सी लॉ और जीएसटी सबसे अहम हैं. इन सुधारों से विदेशी निवेश बढ़ा लेकिन उसका बेस ज़्यादा नहीं है. भारत के कैबिनेट मंत्रियों का कहना है कि मोदी ने जो वादा किया था उसे पूरा करने में लगे हैं.
जीएसटी का लागू होना एक अहम क़दम है. इससे अनावश्यक जटिलता और नौकरशाही से मुक्ति मिलेगी. इसके साथ ही नया बैंक्रप्सी क़ानून सही दिशा में है. लेकिन वित्तीय सिस्टम में जान डालने के लिए और ज़्यादा करने की ज़रूरत है. भारत के सरकारी बैंक व्यर्थ क़र्ज़ के तले दबे हुए हैं.

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सरकार को ज़मीन अधिग्रहण करने और कड़े श्रम क़ानून के कारण भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. कई राज्यों ने अपनी तरफ़ से इन क़ानूनों को पास किया है.
बड़े सुधारों के बीच रातोंरात भारत के दो बड़े नोटों को रद्द कर दिया गया. ऐसा ब्लैक मनी पर काबू पाने के लिए किया गया था ताकि अर्थव्यव्स्था से इसे बाहर किया जा सके.
लेकिन इसका असर अवैध व्यापारों पर अंकुश लगाने के बजाय अच्छे व्यापारों पर पड़ा. इस साल के पहले तीन महीनों में वृद्धि दर 6.1 फ़ीसदी रही. मोदी के सत्ता में आने के बाद से यह सबसे धीमी वृद्धि दर थी.

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मोदी एक सुधारक की तुलना में एक प्रशासक ज़्यादा
जैसा कि माना जाता है उस मुताबिक भारतीय प्रधानमंत्री एक निडर सुधारक नहीं हैं. वह अपने पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह से ज़्यादा ऊर्जावान हैं.
मोदी ने मैन्युफैक्चरिंग से लेकर शौचालय बनाने तक के लिए क़दम उठाए लेकिन वह कोई बड़े आइडिया को ज़मीन पर नहीं उतार पाए. जीएसटी और बैंक्रप्सी जैसे आइडिया मोदी के नहीं बल्कि ये लंबे समय से अधर में लटके थे.
मोदी की पहचान व्यापार को बढ़ावा देने वाले शख़्स के रूप में है. वह फैक्ट्री लगाने के लिए आसानी से ज़मीन मुहैया कराते रहे हैं. इसके साथ ही वह काम को अधर में लटकाने के बजाय फटाफट निपटारा करने वाले शख़्स की पहचान के साथ सत्ता में आए थे. लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था के भीतर जो समस्याएं हैं उसे ठीक तरीक़े से वह निपटा नहीं पा रहे हैं.

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भारत को केवल पावर स्टेशन और विकास के लिए आसानी से भूमि की ही ज़रूरत नहीं है. इसके साथ ही बिजली के लिए सक्रिय बाज़ार, भूमि और श्रम जैसी चीज़ों में भी बड़े सुधारों की ज़रूरत है.
20 साल में पहली बार इंडस्ट्री लोन के लिए कॉन्ट्रैक्ट कर रही है. मोदी को चाहिए कि वह जर्जर अवस्था में आए सरकारी बैंकों को ज़िंदा करे ताकि लोगों को क़र्ज़ लेने में कोई दिक़्क़त नहीं हो.
किसी भी प्रॉपर्टी की ख़रीद डरावने दलदल की तरह हो गई है. सरकार को चाहिए कि वह रजिस्टर की गुणवत्ता में सुधार करे और विवादों को कम से कम करे.
नाउम्मीद हो चुका है विपक्ष
राजनीतिक परिस्थितियां सुधार के पक्ष में हैं जो लंबे वक़्त बात ऐसा हुआ है. दशकों बाद भारत में एक मजबूत सरकार बनी है.

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लोकसभा में बीजेपी को बड़ा बहुमत हासिल है. आने वाले वक़्त में राज्यसभा में भी मोदी सरकार बहुमत में आ जाएगी. भारत के ज़्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकार है. विपक्ष बुरी तरह से नाउम्मीद हो चुकी है.
आर्थिक सुधारों की हवा भारत के पक्ष में है. भारत तेल का बड़ा आयातक देश है. तेल की कीमत कम है और भारत इससे अपनी वृद्धि दर को गति दे सकता है.
भारत अब भी युवा है. दुनिया की श्रमशक्ति में अभी से 2025 तक एक तिहाई से ज़्यादा लोग भारतीय होंगे. ऐसे में भारत के लिए वृद्धि दर की गति हासिल करना मुश्किल नहीं है.
दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे ग़रीब है. भारत के लिए सही वक़्त है कि वह दूसरी अर्थव्यवस्थाओं से आगे निकले.

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मोदी के पास एक सुनहरा मौक़ा है वह उसे गंवा रहे हैं. हालांकि मोदी के कई समर्थकों का कहना है कि राज्यसभा में बहुमत मिलने तक बड़ा सुधारों के लिए इंतज़ार करना होगा.
अगर ऐसा है तो मोदी ने अब तक वैसी किसी योजना को ज़मीन पर उतारने का संकेत नहीं दिया है. यहां तक कि वह इस मामले में स्पष्ट नहीं हैं कि आर्थिक सुधार उनकी प्राथमिकता में है.
मोदी एक अर्थशास्त्री से ज़्यादा क़ौमपरस्त
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केवल हिन्दू उग्रपंथियों को लेकर उदार रहे हैं. मोदी सरकार ने बढ़ते बीफ़ निर्यात में भगदड़ की स्थिति पैदा कर दी. हिन्दु आस्था की आड़ में इसे लेकर नया क़ानून बनाया गया.
जिस आदित्यनाथ को मोदी ने मुख्यमंत्री बनाया वो धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप में जांच का सामना कर रहे थे. इन सबके बीच डर यह है कि अर्थव्यवस्था अधर में न लटक जाए.
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