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एम्स प्रवेश परीक्षा की टॉपर ने कहा- 'योग है मेरी सफलता का राज़'
- Author, अभिमन्यु कुमार साहा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा में सूरत की निशिता पुरोहित ने टॉप किया.
रोज़ 11 से 12 घंटे तक पढ़ने वाली 18 साल की निशिता ने बीबीसी को बताया कि वो बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहती थीं.
वो कहती हैं कि अपने इसी सपने को सच करने लिए उन्होंने कोटा की ओर रुख किया और वहीं से प्रवेश परीक्षा की तैयारी की.
बीबीसी से बात करते हुए निशिता ने योग को अपनी सफलता का राज़ बताया.
निशिता ने कहा, ' मैं हर दिन योग और मेडिटेशन करती हूं. इसे करने से मेरे अंदर ग़ज़ब के बदलाव आए. मैं 11वीं में बहुत ज्यादा योग नहीं करती थी, लेकिन बारहवीं में इसे निश्चित तौर पर करना शुरु किया. इससे मेरे रिज़ल्ट में भी बहुत बदलाव देखने को मिले.'
वह आगे बताती हैं कि जब भी नकारात्मक सोच उन्हें घेर लेती थी तो वह योगा करती थी.
वह कहती हैं, 'हर सुबह योग और ध्यान लगाना मेरी दिनचर्या में शामिल है. इससे फायदा यह हुआ कि मेरा दिमाग शांत रहने लगा और मन में अनावश्यक विचार नहीं आते थे.'
इन्हें योग और मेडिटेशन करने की प्रेरणा कहां से मिली?
निशिता ने बताया- "पूरा परिवार योगा करता है. कोटा आने के बाद इन सब चीजों को समय बहुत कम दे पाती थी. लेकिन बाद में मैंने इस पर पूरा समय देने का फैसला किया. हर दिन की शुरूआत मैं योगा से करती थी."
अपने अब तक के सफ़र के बारे में वो कहती हैं, 'मुझे यह तय करना था कि मैं आगे की पढ़ाई गणित ये करूं या बायोलॉजी से. बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना था. अंततः मैंने बायोलॉजी को चुना. फिर ये भी तय करना था कि पढ़ाई के लिए कहां जाएं. घर पर रहूंगी तो दोस्तों के साथ मस्ती ज़्यादा होगी, पढ़ाई कम. मेरे बड़े भाई ने कोटा में पढ़ाई की थी. उससे प्रेरित होकर मैंने भी कोटा जाने का फैसला किया. मैंने एक निजी कोचिंग ज्वाइन की और दो साल खूब मेहनत की.'
हॉबी को भी त्याग दिया
निशिता बताती हैं, 'हॉस्टल में खाना अच्छा नहीं होता था. टीवी, हॉबीज़ सब कुछ छोड़ दिया. मैं बास्केट बॉल खेला करती थी, वह भी छूट गया. दो साल मेरी जिंदगी स्कूल, कोचिंग के इर्द-गिर्द ही घूमती रही. इसके बाद हॉस्टल में वक्त सेल्फ स्टडी में बीत जाता था.'
डॉक्टर बबने का ही फैसला क्यों किया, इस सवाल पर निशिता ने कहती हैं कि वह बचपन से ही कुछ ऐसा करना चाहती थी कि जिससे वह लोगों की मदद कर सकें. इसी सोच से प्रेरित होकर वह डॉक्टर बनने के सपने बुनने लगी.
'पढ़ाई का दायरा तय करें'
निशिता बताती हैं- 'मेडिकल की तैयारी में यह तय करना होगा कि जो वो पढ़ रहे हैं वह परीक्षा के मद्देनजर कितना उपयोगी है. कुछ भी पढ़ने से लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा. सिलेबस के मुताबिक ही पढ़ाई का दायरा रखना होगा. कई सिलेबस से बहुत ज्यादा पढ़ लेते हैं. जो भी स्कूल या कोचिंग में पढ़ाया जाता है उसे अच्छी तरह सुनें और समझें. अगर ऐसा करते हैं तो 50 से 60 फीसदी तैयारी वहीं हो जायेगी, बाकी की कमी आपकी सेल्फ स्टडी पूरी कर देगी.'
सेल्फ स्टडी के महत्व के बारे में निशिता कहती हैं- 'दो साल की तैयारी में यह बहुत मुश्किल होता है कि आपको पहले साल की पढ़ाई याद रहे. ऐसे में पुराने चीजों को याद रखने के लिए सेल्फ स्टडी जरूरी होती है. मैं पहले उन चीजों को दोहरा लेती थी जो उस दिन पढ़ाया जाता था, उसके बाद मैं पुरानी पढ़ाई करती थी.'
निशिता कहती हैं कि वो मेडिकल परीक्षा को लेकर बहुत ज्यादा तनाव नहीं लेती थीं.
वो बताती हैं कि जब भी कभी मन में किसी तरह की परेशानी होती थी तो माता-पिता से उसे शेयर करती थीं.
निशिता भविष्य में कार्डियक सर्जन बनना चाहती हैं. वह डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्रामीण इलाकों में मेडिकल कैंप लगाकर उन लोगों तक सुविधाएं पहुँचाना चाहती हैं जो इनसे वंचित हैं.
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