You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
पंजाब चुनाव : 'जनरल' और 'कैप्टन' की टक्कर
- Author, वंदना
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
बात 1965 के जंग के बाद की है जब भारतीय सैनिक मोहम्मद अयूब खान को तत्कालीन राष्ट्रपति राधाकृष्णन के हाथों वीर चक्र मिला था. तब लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था कि हम पाकिस्तान के जनरल अयूब खान से तो नहीं मिले लेकिन हमें अपने रिसालदार अयूब खान पर गर्व है.
बाद में वे दो बार राजस्थान से लोक सभा चुनाव जीते और राजीव गांधी सरकार में मंत्री बने. अब एक बार फिर एक पूर्व फौजी चुनावी जंग में उतरने जा रहा है और वो भी पूर्व सेनाध्यक्ष.
"सेना के इतिहास में पहली बार होगा कि 'एक कैप्टन, जनरल को हराएगा.' पंजाब में सियासी जंग की तलखी का एहसास कांग्रेस नेता अमरिंदर सिंह के इसी बयान से लगाया जा सकता है जो उन्होंने भारतीय सेना के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल जेजे सिंह के ख़िलाफ़ दिया है.
इस बार जेजे सिंह अकाली दल की ओर से अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ पटियाला शहरी इलाक़े से चुनाव लड़ेंगे. अभी जेजे सिंह को राजनीति में आए कुछ दिन ही हुए हैं लेकिन दोनों के बीच ज़बानी जंग शुरू हो चुकी है.
पंजाब में चार फ़रवरी को विधानसभा चुनाव होने हैं. जनरल जेजे सिंह का ननिहाल पटियाला में है जिस पर चुटकी लेते हुए अमरिंदर सिंह ने कहा था कि वे जेजे सिंह को नानी याद दिला देंगे.
तो जनरल जेजे सिंह का पलटवार कुछ यूँ था, "मैं एक सिपाही का पोता हूँ जिसने आम लोगों की तरह संघर्ष करके नाम कमाया है. अमरिंदर सिंह की तरह सोने की थाली में खाकर बड़ा नहीं हुआ हूँ."
अब के पाकिस्तान के बहावलपुर में 1945 में जन्मे जनरल जेजे सिंह के दादा और पिता पहले और दूसरे विश्व युद्ध में लड़ चुके हैं. वे जम्मू और कश्मीर में 90 के दशक में तैनात रहे जब वहां चरमपंथ ज़ोरों पर था और वे एक अभियान में बुरी तरह घायल हो गए थे.
करगिल की लड़ाई के दौरान वे सैन्य अभियान के अतिरिक्त निदेशक थे. जनरल जेजे सिंह कमाल के शूटर रहे हैं और अबकी बार उनका निशाना अमरिंदर सिंह हैं जो ख़ुद सेना में बतौर कैप्टन के ओहदे पर थे. ये बात और है कि वो सेना में अमरिंदर सिंह के कार्यकाल को 'वीआईपी स्टिंट' करार देते हैं.
सेना में रहते हुए जनरल सिंह टॉप तक पहुँचे लेकिन राजनीति में उनका कोई तजुर्बा नहीं है.
वहीं पंजाब के शाही परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले अमरिंदर सिंह पंजाब की राजनीति के कद्दावर नेता हैं जो राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. 60 के दशक में सेना में भर्ती हुए अमरिंदर सिंह 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सेना में थे.
बाद में 80 के दशक में दोस्त राजीव गांधी के कहने पर वे राजनीति में आए. अमरिंदर सिंह ने इसके बाद राजनीति में कई दांव पेंच खेले हैं. ऑपरेश्न ब्लू स्टार के ख़िलाफ़ संसद और कांग्रेस से नाता तोड़ना, अकाली दल में जाना, अकालियों से अलग होकर अलग दल बनाना और बुरी तरह हारने के बाद वापस कांग्रेस में जाना.
पंजाब कांग्रेस में उनकी लीडरशिप को कई बार अपने ही पार्टी कार्यकर्ताओं से चुनौती भी मिली है.
इस बार भी विरोध के स्वर पूरी तरह शांत नहीं हुए हैं. उन पर आम लोगों की पहुँच से बाहर होने के आरोप भी लगे लेकिन सेना के इस पूर्व कैप्टन ने अपनी सियासी और रणनीतिक समझ से अपनी पोज़िशन बनाए रखी है.
इस साल मार्च में 75 के होने जा रहे अमरिंदर सिंह ने अपने फ़ेसबुक प्रोफाइल पर लिखा है, प्रशिक्षित पायलट, ट्रेकिंग में माहिर, तेज़ निशानेबाज़ जिसे कुकिंग, क्लासिकल संगीत और बाग़वानी पसंद है.
हालांकि कई पूर्व सैनिक दो फौजियों की इस भिड़ंत से ख़ुश नहीं हैं. ऑल इंडिया डिफेंस ब्रदरहुड जैसे पूर्व सैनिकों के संगठनों का कहना है कि एक फौजी का दूसरे पूर्व फौजी से लड़ना शोभा नहीं देता.
लेकिन जनरल जेजे सिंह का कहना है कि इलेक्शन धुँधाधार होगा.
वैसे सेना की बात करें तो कई पूर्व फौजी चुनावी मैदान में किस्मत आज़मा चुके हैं. पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह मौजूदा मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री हैं. उन्होंने 2014 में गाज़ियाबाद से लोक सभा चुनाव जीता.
मेजर जनरल (सेवानिवृत) भुवन चंद खंडूरी दो बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और लोकसभा सांसद हैं. वाजपेयी सरकार में विदेश मंत्री और वित्त मंत्री रह चुके जसवंत सिंह भी सेना में अफ़सर रह चुके हैं. रिसालदार अयूब खान भी राजीव सरकार में मंत्री थे.
पूर्व ओलंपिक विजेता और मौजूदा मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के पास भी कर्नल का तमगा है. तो पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कैप्टन बिक्रमजीत सिंह पाहुविंडिया को मैदान में उतारा है जिन्हें शौर्य चक्र मिल चुका है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)