|
'कॉन्डम का इस्तेमाल करें या धंधा बचाएँ' | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
समाज की आम धारणा के अनुसार वेश्यालयों को एड्स फैलाने के केंद्र के रूप में देखा जाता है. ये धारणा क्यों है इसका पता मुंबई की यौनकर्मियों के सबसे बड़े केंद्र कमाटीपुरा से चला. आंध्र प्रदेश से आए कमाटी मज़दूरों के नाम पर बसा यह इलाक़ा उन्नीसवीं सदी के अंत तक यौनकर्मियों का सबसे बड़ा ठिकाना बन गया था. आज भी वहाँ मुंबई की सबसे अधिक यौनकर्मी महिलाएं रहती हैं. वहाँ वर्षों से काम करने वाले बाबा पाटिल का कहना है,"इस इलाके में क़रीब 5,000 यौनकर्मी काम करते हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों से आए हुए हैं. इनकी भाषा, संस्कृति सब अलग रही है. वैसे इस इलाके में असामाजिक तत्व भी सक्रियता से काम कर रहे हैं." इस इलाके और वहाँ आस-पास रहने वालों के बारे में जानने के बाद जब ये पता लगाने की कोशिश की गई की वहाँ की वेश्याओं में कितनों को एड्स है तो सिर्फ़ खामोशी ही मिली. कोई बताने को तैयार नहीं कि किसको एचआईवी है क्योंकि ऐसा करने का मतलब हैं धंधा ख़त्म करना. कॉन्डम यानी धंधा ख़त्म वहाँ की तंग गलियों में वेश्याओं के कुछ ऐसे घर भी थे जहाँ ग्राहकों के अलावा किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं है. वहां मालकिनों का राज चलता है. मगर कुछ औरतें बात करने के लिए तैयार थीं और जब उनसे ये पूछा गया कि क्या कोई एचआईवी पॉज़िटिव है तो वे बहुत नाराज़ हो गईं. उनका कहना था, " अगर एचआईवी से ग्रस्त हैं तो भी क्या फ़र्क पड़ता है? हमें क्या मिल जाएगा?" उनके मन में सरकार और स्वयं सेवी संगठनों को लेकर बहुत नाराज़गी है. पर जब उनसे ये पूछा गया कि सारी ज़िम्मेदारी क्या सरकार की है, क्या कॉन्डम के इस्तेमाल से एचआईवी होने से रोका नहीं जा सकता? तब उन्होंने बताया कि उनके पास विकल्प नहीं होते. अगर अपनी पसंद की ज़िन्दगी ही जीने को मिलती तो भला वे अपने शरीर को बेचना क्यों पसंद करेंगी?
कई बार ग्राहक की मनाही की वजह से वे कॉन्डम का इस्तेमाल नहीं कर पातीं तो कभी पैसों की ज़रूरत. उन्हें अपनी मालकिनों के डर से भी कॉन्डम से दूर रहना पड़ता है. चाहे कारण जो भी हों इस तरह से एड्स को फैलने से रोकने की ज़िम्मेदारी किसी को तो लेनी ही पड़ेगी. कब तक यौनकर्मियों पर दोष मढ़कर ख़ुद को इससे अलग करते रहेंगे? यौनकर्मियों के पास नियमित रूप से हाज़िरी देने वाले ग्राहकों को कब तक नज़रअंदाज़ किया जाता रहेगा? समाज के हाशिए पर खड़ी इन औरतों के सवालों का जवाब देना शायद कोई नहीं चाहता. |
| ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||