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शनिवार, 27 सितंबर, 2008 को 16:35 GMT तक के समाचार

'मस्त नग़मे लुटाने' वाला चला गया

जाने-माने पार्श्वगायक महेंद्र कपूर का मुंबई में निधन हो गया है.

74 वर्षीय महेंद्र कपूर गुर्दे की बीमारी से जूझ रहे थे और डायलिसिस की मदद से उनका उपचार चल रहा था.

तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीत चुके महेंद्र कपूर के परिजनों ने बताया कि उन्होंने नींद में ही अंतिम साँस ली.

बीबीसी से महेंद्र कपूर की अंतिम बातचीत

सात सितंबर को बीबीसी संवाददाता वंदना ने महेंद्र कपूर से लंबी बातचीत की थी जो संभवतः उनका अंतिम इंटरव्यू था.

इस बातचीत में महेंद्र कपूर ने कहा था, "ऐसा तो नहीं लगता कि मंज़िल मिल गई है लेकिन ऐसा लगता है कि मंज़िल के क़रीब हूँ."

बीआर चोपड़ा और मनोज कुमार की कई बड़ी फ़िल्मों में महेंद्र कपूर ने अपने सुरों से जान फूँकी, देशभक्ति गीतों के लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा.

महेंद्र कपूर एक राष्ट्रीय गायन प्रतियोगिता जीतकर पहली बार चर्चा में आए और उन्हें पचास के दशक के अंत में फ़िल्मों में गाने के मौके मिलने लगे जबकि वह तीन बड़े गायकों--रफ़ी, मुकेश और किशोर--के दबदबे का दौर था.

वे मोहम्मद रफ़ी के बहुत बड़े प्रशंसक थे और शुरुआत में लोगों ने कहा कि उनकी गायिकी में रफ़ी की झलक है लेकिन जल्दी ही उन्होंने अपनी एक सशक्त पहचान बना ली.

वे ख़ुद को रफ़ी का शागिर्द कहते थे और उनसे अक्सर गाना सीखने जाया करते थे.

'हमराज़', 'गुमराह', 'पूरब पश्चिम','उपकार', 'रोटी कपड़ा और मकान' से लेकर 'निकाह' तक के उनके गाने आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं.

मनोज कुमार को 'भारत कुमार' की पहचान दिलाने में महेंद्र कपूर के 'मेरे देश की धरती', 'है प्रीत जहाँ की रीत सदा' जैसे सुपरहिट गानों की बड़ी भूमिका रही है.

पद्मश्री सम्मान पाने वाले इस गायक की पहचान 'आधा है चंद्रमा रात आधी'गाने से बनी, नवरंग फ़िल्म का यह गाना 1959 में सुपरहिट रहा, 1959 में ही उन्होंने एक और सुपरहिट फ़िल्म 'धूल का फूल' के गाने गए जिसमें 'तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ' काफ़ी लोकप्रिय हुआ.

1934 में अमृतसर में जन्मे महेंद्र कपूर अपने बेटे के रोहन कपूर के साथ रहते थे जिन्होंने 'फ़ासले' और 'लव86' जैसी कुछ फ़िल्मों में काम किया लेकिन सफल नहीं हो सके.