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'जब तक शरीर साथ देगा काम करूँगा' | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
हाल ही में मेरी मुंबई यात्रा के कुछ यादगार लम्हे थे बीबीसी के 'स्टार ऑफ़ द मिलेनियम' अमिताभ बच्चन से मुलाक़ात. अमित जी को मैंने पहली बार 1969 में अपने पिता के क़रीबी दोस्त ख़्वाजा अहमद अब्बास के मकान पर देखा था जब वह अपनी पहली फ़िल्म सात हिंदुस्तानी की शूटिंग में व्यस्त थे. उसके बाद 2005 में जावेद अख़्तर की साठवीं सालगिरह के अवसर पर उनसे आमना-सामना हुआ और अब 2007 में उनसे तीसरी बार मिलने और पहली बार एक लंबी बातचीत करने का मौक़ा मिला. इस बार उनसे मिलने का ख़ास मक़सद था उनके पिता डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन से जुड़ी उनकी यादों को रिकॉर्ड करना. यहाँ आपको यह बतादूँ कि अगले महीने बच्चन जी की जन्म शताब्दी के मौक़े पर बीबीसी हिंदी डॉट कॉम उन्हें एक विशेषांक के ज़रिए याद कर रही है और आप उनसे जुड़े अनेक संस्मरण पढ़ पाएँगे जिनमें उनके पुत्र की यादें भी शामिल होंगी. बहरहाल, अमित जी से बच्चन जी के बारे में तो लंबी बातचीत हुई ही उनकी अपनी वर्षगांठ का भी ज़िक्र हुआ जब ग्यारह अक्तूबर को वह जीवन के पैंसठ पढ़ाव पार कर रहे हैं. प्रस्तुत हैं उसी बातचीत के कुछ अंश... आपकी उम्र के साठ साल पूरे होने पर कई आयोजन हुए थे और ऐसा लगने लगा था कि आप अपने जीवन का सर्वोत्तम काम कर चुके हैं. लेकिन वह उम्र जब लोग रिटायर होने की सोचते हैं आपके लिए एक नई ऊर्जा ले कर आई और आप फिर से पूरे जोशोख़रोश से काम में जुट गए. मैंने तय किया है जब तक शरीर साथ देगा काम करता रहूँगा. मैं अभी थका नहीं हूँ. लेकिन देखा जाए तो साठ से पैंसठ साल का यह अरसा काफ़ी अहम रहा है. चाहे वह ब्लैक हो या एकलव्य, चीनी कम या निशब्द, सब इसी अवधि की देन हैं. इसमें कोई विशेष बात नहीं है. मुझे फ़िल्मों के प्रस्ताव मिले और मैंने स्वीकार कर लिए. लोग ऐसा क्यों समझते हैं कि इसके लिए शक्ति की ज़रूरत होती है. जब तक शरीर देख सकता है, सुन सकता है और सह सकता है तब तक काम जारी रहना चाहिए और वही मैं कर रहा हूँ. कहते हैं शारीरिक शक्ति भी तभी संभव है जब मानसिक ताक़त हो. क्या वह आपको पिता से विरासत में मिली है? नहीं, मैं यह तो नहीं कहूँगा कि उनकी जो मानसिक शक्ति थी मैं उसका मुक़ाबला कर सकता हूँ. लेकिन हाँ, कोशिश पूरी करता हूँ. जो काम मिलता है उसे पूरी ईमानदारी और जोश से निभाने का प्रयास करता हूँ और ईश्वर का आभारी हूँ कि उसने यह सब करने की शक्ति मुझे प्रदान की है. हाल ही में एकलव्य का चयन ऑस्कर के लिए हुआ है. यह भी उन फ़िल्मों में से एक है जो आपने साठ वर्ष की आयु पार करने के बाद कीं. अब 65 से 70 वर्ष के बीच की क्या योजनाएँ हैं? योजना क्या है, और फ़िल्में करूँगा. अभी रवि चोपड़ा की भूतनाथ तो कर ही रहा हूँ उनकी आने वाली एक नई फ़िल्म भी है. फिर सरकार-2 बन रही है जिसमें अभिषेक और ऐश्ववर्या भी हैं. मीरा नायर की शांताराम है जो एक प्रसिद्ध पुस्तक पर आधारित है. इसे हॉलीवुड के वार्नर ब्रदर्स बना रहे हैं और इसमें जॉनी डेप अहम भूमिका निभा रहे हैं. इनके अलावा दीपा मेहता कामागाटा मारू पर एक फ़िल्म बना रही हैं. कुछ अन्य फ़िल्मों में अलादीन, तीन पत्ती आदि प्रमुख हैं. बस यही कोई पाँच-छह फ़िल्में हैं. आपने सरकार-2 की बात की जो कि एक सीक्वेल है. आजकल सीक्वेल का ज़माना है. धूम-2 भी बन चुकी है. अगर आपसे पूछा जाए कि आप की कौन सी ऐसी फ़िल्म है जिसकी कहानी अभी आगे बढ़ाई जा सकती है यानी उसका सीक्वेल बन सकता है तो आप किसका नाम लेंगे? मेरे ख़्याल में यह निर्देशक का काम है. वही तय करे कि किस फ़िल्म को आगे ले जाना है. अब किसे पता था कि डॉन का सीक्वेल बनेगा. (पिता डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन से जुड़ी अमिताभ बच्चन की यादें बांटिएगा नवंबर में हमारे एक विशेषांक में) |
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