रविवार, 05 अगस्त, 2007 को 04:06 GMT तक के समाचार
संजीव श्रीवास्तव
भारत संपादक, बीबीसी हिंदी
बीबीसी हिंदी सेवा के विशेष कार्यक्रम 'एक मुलाक़ात' में हम भारत के जाने-माने लोगों की ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं से आपको अवगत कराते हैं.
बीबीसी एक मुलाक़ात में हमारे साथ हैं एक ऐसी शख़्सियत जिनके नाचने, ऐक्टिंग और कॉमेडी के अंदाज़ पर आपका दिल कई सालों से फ़िदा है. अब वो राजनीति में अपना जलवा बिखेर रहे हैं. हमारे आज के मेहमान हैं महान डांसर और अपनी कॉमेडी के लिए ख़ासा मशहूर अभिनेता गोविंदा.
हमें बहुत समय से इंतजार था कि कब हम आपसे मुलाक़ात करेंगे और आपको रैग कर पाएंगे.
आपने जब रैग कहा तो मैं थोड़ा सा सचेत हो गया. वैसे इतना सम्मान देने के लिए शुक्रिया.
क़रीब सौ फ़िल्मों में काम किया है आपने और बहुत लंबी पारी खेली है. कैसा रहा अब तक का सफ़र?
मैं इसे एक आशीर्वाद मानता हूँ. मेरे माता-पिता का आशीर्वाद, मेरे बडे़ बुजुर्गों का आशीर्वाद, मेरे दादा-दादी का आशीर्वाद और ख़ासतौर उस घर का आशीर्वाद जहाँ से मेरे पूरे परिवार को इस क्षेत्र में काम करने का मौका मिला. अगर धन्यवाद देने लगूँ तो लिस्ट बहुत लंबी हो जाएगी. बहुत कृपा रही है लोगों की. अब तक सीख रहा हूँ और यात्रा जारी है.
हम लोग लंबे समय तक एक जुमला सुनते रहे आपके बारे में-विरार का छोरा. आपको ऐसा सुनना अच्छा लगता था या लगता था कि अब ख़त्म करो ये बात?
देखिए कुछ बातें आपके साथ जोड़ दी जाती हैं और उनको किसी न किसी तरह से जीवित रखा जाता है. वैसे ये विरार का छोकरा वाली जो बात है वो प्रेम पूर्वक कही गई बात है. मेरे पिता जी कहा करते थे कि चलो इसी बहाने तुम बुढ़ापे तक छोकरे तो बने रहोगे. मेरा मानना है कि हर वो चीज़ जो आपसे जोड़ी जाती है उसकी एक वजह होती है. उस वजह को समझते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए.
मेरे ख़याल से इस जुमले के पीछे यही कहने का मकसद रहा होगा कि कहाँ से कहाँ पहुँच गया लड़का?
ये आपके अच्छे मन की बात है. हर बात की कई वजहें होती हैं. एक बात किस तरह से कही गई है और आगे जाकर ये इसका क्या परिणाम होगा ये भी मायने रखता है. बातें सिर्फ़ बातें होती हैं. इन बातों का कभी-कभी कर्मों से लेना-देना होता भी है और कभी-कभी नहीं भी होता है.
मुझे नहीं पता था कि मेरी इस बात का इतना गहरा मतलब भी होगा.
मैं इस बात को अबतक सहजता से ही ले रहा हूँ.
आप अपने शुरुआती दिनों के बारे में कुछ बताइए. इंडस्ट्री में कैसे संघर्ष किया. वैसे आपकी पहली फ़िल्म ही हिट थी.
हमारा संघर्ष सालों का है. मेरे पिता जी फ़िल्मों में हीरो हुआ करते थे. महबूब खान साहब ने उन्हें ब्रेक दिया था. मेरी माँ ठुमरी की शास्त्रीय संगीत गायिका हुआ करती थीं. लेकिन बीच में मेरा परिवार मुसीबत में आ गया था. लेकिन कलाकार के परिवार से होने के नाते संस्कृति और मेलजोल के मामले में हमारी हालत ठीक ही थी. माता-पिता की बड़ी कृपा रही. मैं अपनी माँ को काम करते देखता तो लगता मुझे भी काम करना चाहिए तो मैंने 13 साल की उम्र से ही काम करने के लिए सोचने लगा. तभी से मेरा संघर्ष शुरू हो गया. मैं 14-15 साल की उम्र से ही निर्माताओं के पास काम के लिए जाने लगा. वो कहते कि अभी तुम छोटे हो, तुम्हारे लायक काम होगा तो बताएंगे. मैं राजश्री प्रोडक्शन और शांता राम जी के कार्यालय में जाकर बैठ जाया करता था. लेकिन मुझे काम मिला 21 साल की उम्र में जब मैंने बीकॉम पूरा कर लिया. मैं अपने मामा उदय नारायण सिंह जी के यहाँ आकर रहने लगा. रवि चोपड़ा जी ने पहला ब्रेक दिया. मैं गूफ़ी पेंटल जी के माध्यम से उनसे मिला था. अविनाश जी नाम के एक शख़्स मुझे रवि चोपड़ा के पास लेकर गए. ऑल्विन नाम की एक घड़ी के लिए मैंने काम किया.
मेरा पहला चेक चार-साढ़े चार हज़ार का था. मैंने उन पैसों से मम्मी के लिए साड़ी खरीदी और कुछ मिठाइयों के डिब्बे भी ले लिए. मैं जब लोकल ट्रेन से लौट रहा था तो ट्रेन में मुझे एक साधू बाबा मिले. उन्होंने मुझसे पूछते हुए कहा कि क्या तुम्हारा नाम गोविंदा है और क्या तुम्हें आज कुछ काम मिला है. मैंने सोचा ये कनेक्टेड आदमी होगा इसके पास न्यूज़ पहुँच गई होगी. लेकिन फिर उन्होंने मुझसे कहा कि तुम माँ के पास जा रहे हो. मैंने पूछा कि आपको इतना सब कुछ कैसे मालूम है. उन्होंने मुझसे कहा कि मेरा अच्छा समय शुरू होने वाला है. अब मुझे हर क्षेत्र में कई गुरू मिलेंगे और तुम उनका सम्मान हमेशा करते रहना. इतना बोलकर वो अगले स्टेशन पर उतर गए. मैं घर पहुँचा और माँ को वो चेक दिया. एमपी बनने के बाद मैंने अपना काम मुंबई की लोकल ट्रेन से ही शुरू किया.
पहली बार जब मैं प्लेन में बैठा तो बहुत अज़ीब सा लगा. क्योंकि जब हम लोग गांव में थे तो गांव में आने वाली गाड़ियों के पीछे दौड़ा करते थे और अगर हमारे गांव के ऊपर से कोई प्लेन जाता था तो बहुत देर तक उसे देखते और उस पर लंबी चर्चा करते.
उसके बाद कश्मीर में शूटिंग हुई और काम का सिलसिला शुरू हो गया. सोने की धरती नाम की फ़िल्म थी. मेरी पहली रिलीज़ फ़िल्म थी 'तन बदन'. उसके बाद 'लव86' और फिर 'झूठा इल्ज़ाम' आई. मेरी पहली साइन की हुई फ़िल्म 'लव86' थी. तब से चला जा रहा है. तब से 'लव86' भी चल रहा है और 'झूठा इल्जाम' भी चल रहा है.
अभी तो लव 2007 चल रहा है. आप अपनी पसंद का एक गाना बताइए.
देवानंद जी की फ़िल्म 'हम दोनों' का गाना है हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया... इस गीत में एक बेफ़िक्री, एक मोहब्बत और एक फ़कीरियत भी है और साथ ही आदमी के अंदर अपने ही किरदार से जो लड़ाई चलती है उसकी क्षमता भी है. मुझे उसके लाइटर का संगीत बहुत अच्छा लगता है.
जैसे पहले कहा जाता था कि आर्ट फ़िल्म है या मनमोहन देसाई टाइप फ़िल्म है वैसे ही पिछले कुछ सालों से कुछ फ़िल्मों के लिए कहा जाने लगा कि गोविंदा टाइप फ़िल्म है. आपको कैसा लगता है ऐसा सुनकर?
मैंने छोटी सी उम्र में ही बहुत ही गंभीर किस्म की फ़िल्में कर लीं थीं जिसकी वजह से मुझे थकान सी हो गई थी. दरअसल मेरे ऊपर किरदारों का असर रहता था क्योंकि मैं काम को बहुत डूबकर किया करता था. मैंने दिलीप अंकल (दिलीप कुमार) का एक इंटरव्यू देखा जिसमें डॉक्टर ने उन्हें सलाह दी थी कि आप कॉमेडी फ़िल्में करिए जिससे आपकी तबियत ठीक रहेगी. फिर मैंने उनके साथ इज्ज़तदार नाम की एक फ़िल्म की. मेरी माँ ने कहा था कि अगर उनका पांव दबाने का मौका मिले तो ज़रूर दबाना. मैं उनसे उनके कमरे में मिला और बातें कीं. कुल मिलाकर ये समझ आया कि आप जिस काम से जुड़ जाते हैं उसका आपके काम और व्यक्तित्व में असर दिखता है. मैंने कॉमेडी फ़िल्में कीं और उसमें अपने काम को बहुत मज़े से किया. फिर उसी बात से एक मामला बन गया और मामला ही छवि बन गया. अब उसी छवि में हूँ. कभी-कभी बहुत अच्छा लगता है और कभी-कभी दिक्कत हो जाती है. मेरा कलाकार इसमें क़ैद हो गया है और फड़फड़ा रहा है. लेकिन कुछ भी हो मैं अपनी छवि में खुश हूँ. अभी तो सभी लोग इस क्षेत्र में आ गए हैं और हास्य रस में गोते लगा रहे हैं.
मुझे भी आपको देखकर ऐसा लग रहा है कि ये सिर्फ़ ऐक्टिंग की बात नहीं हो सकती. कुछ आपका अंदाज ही ख़ुशमिजाजी का है. लोग ऐसा भी कहते हैं कि टाइमिंग हो तो गोविंदा जैसी. क्या शुरू से ही ऐसा था या कुछ मेहनत करनी पड़ी?
मुझे हर चीज़ मेहनत से मिली. मैं शुरू से डांसर नहीं था. मैंने जॉन ट्रवोल्टा की एक फ़िल्म देखी 'सैटरडे नाइट फ़ीवर' नाम की और तब से डांस सीखना शुरू कर दिया. टूटे-फूटे टेप रिकॉर्डर मुझे मिला करते थे. मैंने उसी से इधर-उधर करके अभ्यास करना शुरू कर दिया. मुझे हर चीज़ करते-करते मिली है. फिर मैं आगे सीखने लगा. राम मास्टर जी ने बिना फ़ीस लिए हुए मुझे एक्शन सिखाया. सरोज जी ने डांस की फ़ीस माफ़ कर दी. रोशन तनेजा जी ने ऐक्टिंग की फ़ीस माफ़ कर दी. लगन बहुत थी मेरे अंदर. उनको लगा होगा कि एक दीवाना नया आया है और पूरी दीवानगी के साथ कला में गोते लगाना चाहता है. मैंने भी उसे बरकरार रखने की पूरी कोशिश की है. जिस तरह संपत्ति लुटती है उसी तरह माहौल कभी-कभी आपकी मौलिक चीज़ों को लूटने की कोशिश करता है. उसको बचाए रखने की एक अनुशासित क्रिया होती है. मैंने उसका ध्यान रखा.
अपनी पसंद का एक और बताएं.
फ़िल्म 'विधाता' का गाना है हाथों की चंद लकीरों का मैं आशिक हूँ तकदीरों का....इस गाने में दिलीप अंकल जवाब देते हैं तकदीर है क्या मैं क्या जानूं मैं आशिक हूँ तदबीरों का...ये गाना भी ट्रेन में फ़िल्माया गया था. ये गीत मुझे बहुत पसंद है.
जब आप काम मांगने सब जगह जा रहे थे तो ऐसा कौन सा आदमी था जिसने आपके ऊपर पूरा विश्वास किया था?
मेरे ख़याल से आदमी के अंदर काम करने की लगन होती है. प्रेमपूर्वक व्यवहार करने का एक तरीका होता है. जो मेरे अंदर था और शायद इसीलिए मुझे सभी ने सहयोग दिया. ऐसे बहुत ही कम लोग होंगे जिन्हें मैं उंगलियों पर गिना भी सकता हूँ कि जिन्होंने मेरी सहायता नहीं की.
उनके नाम बताइए.
नहीं. उन्होंने भी मुझे ऊर्जा ही दी. अड़चन आने से भी ऊर्जा ही मिली मुझे. इसलिए उनका भी धन्यवाद. मैं एक ऐसे दौर से गुजरा जब सब मेरी सहायता ही करना चाह रहे थे. शायद ये मेरे मामा उदय नारायण सिंह जी की वजह से हो. उनके यहाँ से मुझे सुबह पांच रुपए मिल जाते थे और उन्हीं पैसों के साथ मैं निकल जाता था. उन दिनों 95 पैसों की चाय मिला करती थी और मैं रोटियाँ ले लिया करता था. साथ में मक्खन ले लिया करता था. माँ ने कहा था कि दूध-मक्खन मत छोड़ना. तो मेरा चेहरा चमकता रहता था क्योंकि कोई मिर्च-मसालेदार खाना खाता नहीं था. गूफ़ी पेंटल, रवि चोपड़ा के ऑफ़िस से लेकर रिक्कू राकेश नाथ के ऑफ़िस तक मैं जहाँ भी गया मुझे प्रोत्साहन और काम ही मिला. अगर काम नहीं भी मिला तो इज्ज़त और एक कप चाय मिली कि मैं सीनियर कलाकारों का बेटा हूँ. जिन्होंने कुछ उल्टा-सीधा भी कहा उनका भी कहना था कि मुझमें एक आग है और अगर छह महीने बाद मैं वहाँ जाऊँ तो मुझे काम मिल सकता है.
माँ के ऊपर आपको बहुत विश्वास है. मैंने जब भी आपको सुना है तो माँ का ज़िक्र हुआ है.
माँ के ऊपर मेरा अंध विश्वास है. मुझे इस बात का गर्व है. ये कृपा की बात है. मेरे मन में आ गया कि मेरी माँ बहुत काम कर रही है. वहीं से श्रद्धा आ गई और मैंने तय कर लिया कि उन्हें अब और काम नहीं करने दूँगा. मुझे सारी ऊर्जा ही इस बात से मिली कि कुछ भी हो जाए अब मैं काम करूँगा. बस उसी ऊर्जा से गोविंदा बन गया.
एक और गाना बताएं.
मिले जो कड़ी-कड़ी एक जंजीर बने, प्यार का रंग भरो जिंदा तस्वीर बने, हमसफ़र बन के चलो तो सुहाना है सफ़र जो अकेला ही चले उसे न मिले डगर....बहुत अच्छा गीत है ये. अमित जी के बहुत से गीत हैं जो मुझे पसंद हैं लेकिन ये गीत ख़ासतौर पर पसंद है.
मुझे तो आपके गाने बहुत पसंद हैं. आपकी अपनी फ़िल्मों से जो गाने पसंद हों ऐसे कुछ गाने बताइए.
मेरे संगीतकार बुरा न मानें. वो गाने करना मेरी ज़रूरत थी. वो मेरी पसंद नहीं हैं. मैं एक शास्त्रीय संगीत गायिका का बेटा हूँ. मेरी फ़िल्मों से अगर चलाना हो तो 'जैसी करनी वैसी भरनी' का गाना चला सकते हैं. माता-पिता पर गीत था..सबसे बड़ी पूजा है मात-पिता की....
आपकी बहुत सी शुरूआती फ़िल्में नीलम के साथ आईं. कोई ख़ास वजह थी?
नीलम का पत्थर भी किसी-किसी की किस्मत बहुत चमका देता है. नीलम के अंदर भी लगता है ऐसी क्षमता है जो भाग्योदय करवा दें. नीलम बहुत अच्छी अदाकार हैं. उनके साथ मुझे बहुत सराहा गया. वो अंग्रेज मैं देशी. फिर करिश्मा कपूर के साथ काम किया. वो भी अंग्रेज और मैं देशी. अब मेरी जो फ़िल्म आ रही है पार्टनर उसमें मेरे साथ कैटरीना कैफ़ हैं जो अंग्रेज हैं और मैं देशी. तो मुझे लगता है कि इन लोगों से मेरे भाग्य मिलते हैं.
तो आप अंग्रेज़ बन गए या उन्हें देशी बना दिया?
थोड़ा मैं बदला और थोड़ा वो बदले. दो सभ्यताएँ जब मिलती हैं एक नई ऊर्जा का निर्माण होता है.
नीलम के साथ आपकी सबसे यागार फ़िल्म कौन सी है?
नीलम के साथ मेरी सबसे यादगार एक फ़िल्म नहीं एक गीत है. मैं पैदल अपने भांजे को लेकर वैष्णो देवी की चढ़ाई पर गया था. उसे सर पर बैठा रखा था. मेरे दोनों पांव सूज गए थे. मैंने वो गाना राकेश रोशन जी के सम्मान में किया था. मेरे पांव सूजे होने की वजह से गीत की शूटिंग एक दिन के लिए टाली गई. अगले दिन सिर्फ़ छह घंटे में गाने की शूटिंग हुई. गाना बहुत हिट रहा और मैंने और नीलम ने उस गाने को कई स्टेज़ शोज़ में प्रस्तुत किया. वो गाना है...मय से मीना से ना साकी से, दिल बहलता है मेरा आपके आ जाने से...
करिश्मा कपूर के साथ भी आपकी जबर्दस्त जोड़ी थी. उन दिनों मेरी पोस्टिंग बाहर थी. जब मैं लौटकर आया तो मैंने राजा बाबू फ़िल्म तीन-चार बार देखी थी. करिश्मा के साथ आपका अनुभव कैसा रहा?
कुछ बच्चे अपने माँ-बाप के हथियार बन जाते हैं. ख़ासतौर से जो ख़राब समय गुज़ार कर निकले होते हैं. करिश्मा भी उसी दौर से गुजरी थीं. उन्होंने भी वो सब किया जो उनकी माँ ने उनसे कहा. वो अपनी माँ की पहली शिष्या रही हैं. अपनी माँ की उन्होंने बहुत सेवा की. एक अच्छे घर से आने के बावज़ूद उन्होंने बहुत संघर्ष किया. मुझे याद है हम एक गाना कर रहे थे हुस्न है सुहाना...उसमें एक स्टेप था घुटने के ऊपर. मैंने कहा यार करिश्मा, स्टेप बदल देते हैं तुम्हारे घुटने में चोट लग जाएगी. उसने रोते हुए कहा कि नहीं मैं स्टेप करूँगी नहीं तो मेरी बेइज्ज़ती हो जाएगी और उसने वो स्टेप किया. एक ज़िद, एक भोलापन और एक मासूमियत उसमें रही. उसने माँ के कहने पर ही सब कुछ किया. मैं ऐसे लोगों का बहुत सम्मान करता हूँ जो अपने माँ-बाप का सम्मान करते हैं.
लेकिन आपके कहने से तो ऐसा लग रहा है जैसे ऐसा करके करिश्मा ने अपना कुछ नुकसान कर लिया हो?
नहीं ऐसा नहीं कह रहा मैं. रिश्तों को फ़ायदे और नुकसान से नहीं तौला जा सकता. अपना-अपना चलन है. जहाँ फ़ायदा है वहाँ नुकसान भी है. अच्छे कलाकार को किसी न किसी से बहुत प्यार करना चाहिए और पवित्रता के साथ करे. उसे वहाँ से ऊर्जा मिलती है. ऐसी मेरी राय है.
आपने प्यार में कभी कंजूसी नहीं की.
बहुत लुटता प्यार रहा है. हर आदमी को बंधन में रहना चाहिए लेकिन अगर वो खुलकर जीवन जीता है तो उसे अच्छे-बुरे अनुभव ही होते हैं वो काम ही आते हैं.
आप इन दिनों किन अनुभवों का लाभ उठा रहे हैं आप?
मैं सोचता हूँ जो अनुभव मैंने पहले पाए हैं या जिनसे ग्रसित रहा हूँ.
जीवन में जिनको आप प्यार करते हैं उनके आने-जाने भी दिल टूटता है या आगे बढ़ जाते हैं?
आने-जाने की बात तो क्षण भर की है. जो आपके परिवार, मित्र और सामाजिक वर्ग के लोग हैं वो साथ तो हैं ही. मन बनता है नहीं बनता है. बात बनती है नहीं बनती है. इसका बोझ लेकर मैं नहीं चलता. इस तरह का कुली नहीं हूँ मैं.
आपकी कुली नंबर वन, हीरो नंबर वन जैसी कई फ़िल्में आईं. आपको कभी ख़ुशफ़हमी, ग़लतफ़हमी या सचफ़हमी नहीं हुई कि आप नंबर वन हैं?
एक आदमी जो संघर्ष करके निकलता है उसका एक अनचाहा दबाव आपके ऊपर रहता है. वो मुझमें रहा इसलिए मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं नंबर वन हूँ. इसका मुझे फ़ायदा भी हुआ. मैं अपने साथ काम करने वालों से सीखता गया और धीरे-धीरे यहाँ तक पहुँच गया.
अपनी पसंद का एक और गाना बताएं.
बदन पर सितारे लपेटे हुए...
गाकर सुना दीजिए.
नहीं पेमेंट के साथ बुलाएँगे तो गाऊँगा.
अगली बार तो आपको पेमेंट के साथ बुलाना पड़ेगा?
कोई गुस्ताख़ी हो गई क्या. मैं कहता हूँ कि दो ही लोग डाँट सकते हैं एक बीबी और दूसरा बीबीसी.
मुझे आपमें जॉन ट्रवोल्टा और माइकल जैक्सन दोनों का अक्स दिखाई देता है. क्या आप उनसे प्रेरित हैं.
बिल्कुल. आपको प्रेरणा लेती रहनी चाहिए.
अभी मैंने एक कार्यक्रम में आपको डांस करते देखा. बहुत बढ़िया डांस था.
हाँ लोगों ने बहुत तारीफ़ की उसकी. मैंने अपनी फ़िल्मों के गानों पर डांस किया था. हम लोग बचपन में बड़े-बड़े कलाकारों की कॉपी किया करते थे. इस तरह हमने बहुत कुछ सीखा है. मैं सीखता रहता हूँ अपने से बड़े कलाकारों से.
अभी आपने बात की अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार की. लेकिन मैं बताऊँ मुझे किसकी छाप नज़र आती है आपमें. देव साहब और राजेश खन्ना की?
मुझ में अनेक रूप देखे लोगों ने. इसकी वजह यह है कि ठीक थिएटर के नीचे मेरा पालन-पोषण हुआ. मेरा घर थिएटर के नीचे बना हुआ है. उसमें से आवाज़ें आती रहती थीं. हम आवाज़ों के साथ सोए हैं और सुबह संगीत के साथ उठे हैं. मैंने सभी कलाकारों से सीखा है.
आपका पसंदीदा अभिनेता?
एक अभिनेता के रूप में दिलीप अंकल (दिलीप कुमार) और एक हीरो के रूप में धर्मेद्र जी. और नए दौर में अमिताभ बच्चन जी. ये सब महान विभूति हैं.
अमिताभ और दिलीप कुमार के चाहने वाले तो मिलते रहते हैं लेकिन धर्मेद्र का प्रंशसक बहुत दिनों बाद सुना है?
उनके जैसा हसीन हीरो मैं अभी तक नहीं देखा. जो एक बार पर्दे पर आ जाए तो न संवाद सुनो, न लोकेशन देखो. बस उस आदमी को देखो कि कैसे उसने आप को अब तक कैसे सहेजकर रखा है. भगवान ने हम सब को एक ही शरीर दिया है लेकिन इस शरीर को उन्होंने जैसे संभाल कर रखा है वो देखने लायक है. उनकी दिनचर्या और रखरखाव सब बहुत अच्छा है. और इसका परिणाम उनके चेहरे पर दिखाई देता है. वो व्यक्तित्व बहुत ही सुदर्शनीय हैं. इतनी मेहनत किया हुआ आदमी मनभावक हो ही जाता है. गांव के लड़कों पर उनका बहुत प्रभाव रहा है. हमारे यहाँ गांव में जो लड़का बहुत बॉडी बना लेता था उसे कहा जाता था कि क्या आपने को धरमेंदर समझ रहा है.
आपको कौन सी हीरोइनें पसंद हैं?
मेरी सबसे पसंदीदा हीरोइन हैं माधुरी दीक्षित. उन्होंने बहुत ही सहजता से अपनी कला को सजोया है.
आपका नाम चीची कैसे पड़ा
पंजाबी में हाथ की सबसे छोटी उंगली को हम चीची कहते हैं. मैं पंजाबी हूँ. मेरे पिता जी ने ये नाम रखा और माँ को ये नाम बहुत पसंद आता था. हर बार एक कृष्ण भगवान की मूर्ति ले आतीं जिसमें भगवान ने गोवर्धन पर्वत हाथ की कानी उंगली से उठा रखा होता था. माँ कहती ये चीची ऐसा ही चीची बनेगा. मैं बोलता था कि ऐसा क्यों आप मैं क्यों पर्वत उठाने लगा. माँ का तो आशीर्वाद देने का एक तरीका होता है.
मुझे नहीं पता था कि आप भी पंजाबी हैं. हर पीढ़ी में पंजाबी सुपर स्टार रहे हैं. कहीं कोई घालमेल तो नहीं?
हम कलाकार हैं और कला की कद्र करते हैं और जिस मिट्टी से आए हैं उसका आदर तो करते ही हैं. कला व्यक्ति को बहुत विस्तार देती है. मेरी माँ बनारस की हैं तो बनारस का अंग लोगों को मुझमें अधिक दिखाई देता है. मेरी जो फ़िल्में यूपी वाली बनीं सब जबर्दस्त सुपर हिट रहीं. मेरे ननिहाल के नौ के नौ मामा दिखाई देते हैं उसमें.
अपनी पसंद का एक और गाना?
छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा....और देव साहब का जवाब था, 'इन अदाओं का जमाना भी है दिवाना, दिवाना क्या कहेगा...'
आपको स्क्रीन पर किस हीरोइन के साथ अपनी जोड़ी सबसे अच्छी लगी या आपको लगा कि जनता ने इसे पसंद किया होगा?
ख़ुद को देखकर बहुत मजा आता है. मैं बहुत मतलबी कलाकार हूँ. मैं अपने को ही देखता रहता हूँ. मैं देखता हूँ कि मैंने अपने को सुधारा है या नहीं. कहीं मैं ख़राब तो नहीं लग रहा. मेरी साथ वाली हीरोइनें कहती भी हैं कि तुम अपने से बाहर निकलो तो किसी और को देख पाओगे. ये सब सम्मिलित मेहनत का और भगवान के आशीर्वाद का कमाल होता है.
लेकिन जब मुझे अच्छा लगा जब हमने और बड़के भइया( अमिताभ बच्चन) ने माधुरी दीक्षित के साथ एक गीत किया बड़े मियाँ छोटे मियाँ... मैंने उस गीत को देखकर इतना ख़ुश हुआ कि बहुत सीटियाँ बजाईं. उसमें का इलाहाबादी, पंजाबी और मराठी रंग पूरे विश्व में छा जाता है. इस गाने के बाद मेरे मामा का बनारस से फ़ोन आया कि हाँ अब जाकर तुम थोड़ा ठीक-ठाक से कलाकार बने हो. उस गीत से जो माहौल छाया वो ऐतिहासिक रहा है मेरे लिए.
आप अमिताभ बच्चन के प्रशंसक हैं और मैं भी हूँ. लेकिन मुझे लगता है कि 'बड़े मियाँ छोटे मियाँ' में आप अमिताभ से बेहतर थे?
मुझे नहीं लगता. ये मेरा दुर्भाग्य है कि जनता के मस्तिष्क में ये विचार लाया गया. मुझे इसमें राजनीति नज़र आई. आपको ऐसे व्यक्ति के सामने प्रतिद्वंदी बनाकर खड़ा कर दिया जाता है जो महान विभूति हो और आप उसे अपना बड़ा भाई, गुरू और परिवार वर्ग का हिस्सा मानते हों. कुछ लोग चाहते थे कि इन दोनों की बन ना पाए. और मुझे लगा कि आर्ट पावर की भी कुछ ग़लतियाँ रह गईं जो ये उस फ़िल्म में बाहर निकलीं. मुझे इस बात का पता होता तो मैं इसे होने ही न देता. इस बात को न सिर्फ़ उछाला गया बल्कि इस पर बहुत चर्चा हुई.
जब दो कलाकार साथ काम करते हैं तो चर्चा होती ही है?
लेकिन विषय बनाकर चर्चा की गई और चर्चा से ये कोशिश की गई कि ये लोग आगे साथ में काम ही न कर पाएं. मुझे उनके साथ काम करने का जो मौका मिला, जो आनंद मिला मैं उसके लिए उनका आभारी हूँ. उनके साथ काम के करने के दौरान जो मैंने सीखा उसे मैं अपने दैनिक जीवन में इसतेमाल में लाता हूँ.
ऐसा क्या सीखा आपने?
बहुत कुछ सीखा. बहुत से अनुभव प्राप्त हुए.
आपका पसंदीदा अभिनेता जिसके साथ आपने काम किया?
सीखने के लिहाज से दिलीप साहब और अमिताभ बच्चन. और मस्ती मारने के लिहाज़ से हम उम्र संजू भैया (संजय दत्त) और अभी हाल के दिनों में सलमान खान. हँसते-खेलते हमारी फ़िल्में बन गईं.
दिल के क़रीब फ़िल्में कौन सी हैं?
मैं दिल लगाकर काम करता हूँ लेकिन काम से दिल नहीं लगाता. जैसा देवता को फूल अर्पित कर देते हैं वैसे ही मैंने अपने काम को ईश्वर के सामने अर्पित कर देता हूँ. काम को सराहना ईश्वर के हाथों में है. मन शुद्ध होना चाहिए लेकिन हीरे की तरह कठोर भी होना चाहिए. प्रेमपूर्वक काम करना चाहिए लेकिन इतना काम नहीं करना चाहिए कि उसी में उलझ कर रह जाएँ.
और किसी से प्रेम ही न कर पाएँ?
बिल्कुल.
आपकी पसंद का एक और गीत?
मैं ये गीत तब गाता था जब कॉमेडी फ़िल्में करता था. ये मेरा बड़ा पसंदीदा गीत है आज पुरानी राहों पर कोई मुझे आवाज़ न दे, दर्द भरे वो गीत न दे गम का सिसकता साज़ न दे...
किसका गाया हुआ है?
मोहम्मद रफ़ी साहब ने गाया है और दिलीप साहब गाने में हैं. फ़िल्म 'आदमी और इंसान' का गाना है.
अपनी आलोचना कैसी लगती है?
अगर आलोचक सच्चा है तो प्रथम मित्र है. अगर झूठा है तो फिर समाज का अंग है. सच्चे आलोचक बड़े ऊर्जावान होते हैं और झूठे आलोचक तो व्यावसायिक होते हैं. जिसमें अपना फ़ायदा नज़र आता है वही करते हैं. मेरा ध्यान मेरे लक्ष्य पर है.
आपका लक्ष्य क्या है?
अच्छा काम. मेरी कला का काम. जिसकी वजह से मैं सांसद बना. जिसमें मेरी जड़े जुड़ी हैं. जिससे मेरा परिवार जुड़ा है. जिस काम की शक्ति से मैं ऊर्जा लेता हूँ और इसी की सेवा में तत्पर रहता हूँ.
आलोचक झूठा हो तो नहीं चलता लेकिन प्रशंसक झूठा हो तो भी चलता है?
जब आप कलाकार से स्टार बन जाते हो तो चर्चा अलग-अलग स्तर पर होगी ही.
राजनीति में कैसे पहुँचे गोविंदा. राजनीति में जाकर ख़ुश हैं?
राजनीति में ख़ुशी और नाख़ुशी विषय नहीं है. इसमें यही विषय होता है कि आप साथ हैं या नहीं. ख़ुशी-नाख़ुशी को बगल में रखकर आदमी साथ का विचार करता है और मेरे लिए भी साथ बहुत मायने रखता है. मेरे लिए साथ एक मुद्दा है. मैंने एक पार्टी को जो वचन दिए हैं वो मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं. एक बात तो है. मैं अपनी बात का पक्का हूँ. राजनीति आपके पूरे बदन को भिगाए या न भिगाए लेकिन पांवों तो गीला रखती है. अब वो कितना कष्ट देती है या आनंद देती है. ये देखने की बात है. एक कलाकार होने की वजह से हम राजनीति में अपने आपको एक शिष्य की तरह देखते हैं. और देखते हैं कि कितने पापड़ बेले जाते हैं. मेरे बड़ों की इच्छा थी कि मैं इससे जुड़ूँ. इसे देखूँ और जानूँ. इसका अनुभव लूँ. मैं राजनीति से जुड़ा हूँ और समझ रहा हूँ.
लोग कहते हैं कि गोविंदा यहाँ भी स्टार की तरह आते हैं. देर से आते हैं?
मैं उनसे कहता हूँ कि आपको स्टार और कार्यकर्ता चाहिए था. कार्यकर्ता की अपनी सीमाएँ होतीं हैं. सबका अपना-अपना क्षेत्र होता है. मुझे तो लगता है कि मैंने स्टारडम दिखाया ही नहीं. हर झोपड़े और हर नाले में गया. जब प्रचार शुरू किया था तो पंजाबी हीरो लगता था और जब ख़त्म हुआ तो दक्षिण भारतीय हीरो लगने लगा. मैं इज्जत में कह रहा हूँ. मैंने अपनी क्षमता और सोच के अनुसार हिसाब पार्टी के लिए योगदान किया है. मैं सोच के चलता हूँ, चल के नहीं सोचता. मेरी सोच अपनी अकेले की नहीं होती. उसमें बड़ों का सलाह और आशीर्वाद भी शामिल होता है.
आने वाले समय में गोविंदा से उनके चाहने वाले क्या उम्मीद रखें?
कलाकार हूँ, कलाकर रहूँगा. शिष्य हूँ, हमेशा शिष्य रहूँगा और अभ्यास में यकीन है. जिज्ञासा मुझमें बहुत है. बस कृपा की आवश्यकता है. बड़ों से उसी की कामना है. गल्तियों की क्षमा मांगता हूँ.
आप राजनीतिज्ञ बन तो गए हैं.
कमाल की बात है जब आदमी ठीक बोलता है तो लोग कहते हैं कि राजनीतिज्ञ हो गया है. एक महफ़िल में मुझसे किसी ने कहा था आप में राजनेता बनने की क्षमता है. मैं बोला कि भाई मैंने आपसे कब वोट मांग लिया या क्या फ़ायदा उठा लिया. उसने कहा वोट की बात नहीं है गोविंदा, तुम बहुत सोच कर बोलते हो. मैंने बोला अरे ये तो मुझे अपनी माँ और परिवार से मिला है कि बात सोच-समझ कर ही करनी चाहिए. अकेले में आदमी बातूनी होता है. मेरा जो बोलने का चलन है वो माँ की वजह से है. ये राजनीति नहीं है लेकिन नीति ज़रूर है.
मन की कोई एक हसरत, सपना या इच्छा जो अगर आपको पूरा करने का मौका मिले तो आप सबसे पहले करें?
आज भाव प्रकट करने का समय नहीं है. आपके विचार भी चुरा लिए जाते हैं. अपने विचारों तक अपने तक रखता हूँ. जब उन्हें प्रकट करना होता है तभी प्रकट करता हूँ.